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Friday, 14 November, 2025
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कुत्तों और इंसानों का रिश्ता 10 हजार साल से अधिक पुराना

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(काइली एम केर्न्स, न्यू साउथ वेल्स विश्विद्यालय सिडनी और मेलानी फिलिओस, न्यू इंग्लैंड विश्वविद्यालय)

सिडनी, 14 नवंबर (द कन्वरसेशन) गांव की गलियों में घूमने वाले आवारा कुत्तों से लेकर घरों में पाले जाने वाले टॉय पूडल और मास्टिफ तक, अलग-अलग रंग-रूप, आकार और व्यावहारिक गुणों वाली कुत्तों की सैकड़ों नस्लें पाई जाती हैं। मौजूदा समय में लगभग 70 करोड़ कुत्तों के इंसानों के साथ या उनके आसपास रहने का अनुमान है।

हममें से कई लोगों के लिए कुत्ते एक वफादार साथी और परिवार के प्रिय सदस्य की तरह होते हैं। और इतिहास बताता है कि कुत्तों और इंसानों के बीच रिश्तों की जड़ें सदियों पुरानी हैं। इतनी बड़ी संख्या वाले ये जीव कब अस्तित्व में आए और इंसानों के साथ इनका रिश्ता कैसे कायम हुआ? ‘साइंस’ पत्रिका में शुक्रवार को प्रकाशित दो नये अध्ययन इन सवालों का जवाब देने की कोशिश करते हैं।

मॉन्टपेलियर विश्वविद्यालय की एलोवेन एविन के नेतृत्व में किया गया पहला अध्ययन कुत्तों के प्राचीन अवशेषों पर आधारित है। वहीं, कुनमिंग इंस्टीट्यूट ऑफ जूलॉजी के शाओ-जी झांग की अगुवाई में हुए दूसरे अध्ययन में प्राचीन पूर्वी यूरेशियन कुत्तों के डीएनए को केंद्र में रखा गया है। कुल मिलाकर दोनों अध्ययनों से पता चलता है कि कुत्तों और इंसानों के साथ उनके संबंधों की कहानी अनुमान से कहीं अधिक पुरानी और जटिल है।

——कुत्तों की नस्ल में विविधता——

एविन और उनके सहयोगियों ने अपने अध्ययन में यह पता लगाने की कोशिश की कि कुत्तों की नस्ल में इतने बड़े पैमाने पर विविधता कैसे आई। इसके लिए उन्होंने कुत्तों और भेड़ियों की उन नस्लों की 643 खोपड़ियों का इस्तेमाल किया, जो पिछले 50,000 वर्षों में अलग-अलग अवधि पर अस्तित्व में आईं।

एविन और उनकी टीम के विश्लेषण से पता चलता है कि “कुत्ते की तरह की” विशिष्ट खोपड़ी पहली बार लगभग 11,000 साल पहले, होलोसीन युग के दौरान दिखाई दी थी, जो कि सबसे हालिया हिमयुग के बाद का समय था। उन्होंने उसी काल के कुत्तों की खोपड़ियों के आकार में पर्याप्त विविधता भी दर्ज की।

इसका मतलब यह है कि आज कुत्तों के रंग-रूप और आकार में जो विविधता दिखाई देती है, वह सिर्फ पिछली कुछ सदियों में प्रचलित गहन चयनात्मक प्रजनन प्रणाली का नतीजा नहीं है। इनमें से कुछ विविधताएं तो सहस्राब्दियों पहले भी मौजूद थीं।

टीम ने 1,29,000 से 11,700 साल पुराने भूवैज्ञानिक काल ‘उत्तर प्लीस्टोसीन’ में पाए जाने वाले कुत्तों और भेड़ियों की सभी 17 नस्लों की खोपड़ियों के आकार का पुनः विश्लेषण किया। इनमें से कुछ खोपड़ियां 50,000 साल पुरानी थीं।

उन्होंने पाया कि उत्तर प्लीस्टोसीन काल की इन खोपड़ियों का आकार मूलतः भेड़ियों से मेल खाता था, जिनमें से कुछ की पहचान प्राचीन कुत्तों के रूप में की गई थी।

इससे यह संकेत मिलता है कि भेड़ियों और कुत्तों के बीच विभाजन संभवतः प्लीस्टोसीन काल में हुआ था, लेकिन प्राचीन कुत्तों की खोपड़ी का आकार होलोसीन काल के करीब आने तक नहीं बदला था, यानी लगभग 11,000 साल पहले तक। हालांकि, होलोसीन काल के कुछ कुत्तों की खोपड़ियों का आकार भी भेड़ियों से मेल खाता था।

यह अध्ययन दर्शाता है कि प्राचीन कुत्ते रंग-रूप और आकार के लिहाज से अनुमान से कहीं ज्यादा विविध थे। हो सकता है कि इसी विविधता ने आज के कुत्तों के रंग-रूप और आकार में अत्यधिक विविधता की नींव रखी हो।

——इंसानों के यात्रा के साथी——

शुरुआती जीनोमिक अध्ययनों से कुत्तों के चार प्रमुख वंशों का पता चला है, जिनकी उत्पत्ति संभवतः लगभग 20,000 साल पहले हुई थी। इनमें पूर्वी (पूर्व एशियाई और आर्कटिक) और पश्चिमी (यूरोप और निकट पूर्व) कुत्ते शामिल हैं।

इन प्राचीन कुत्तों की वंशावली की उत्पत्ति अभी भी अबूझ पहले बनी हुई है। हालांकि, विभिन्न समयावधि और क्षेत्रों में पाए जाने वाले कुत्तों की वंशावली में देखे गए बदलावों का अध्ययन हमें कुत्तों की उत्पत्ति और नव-पाषाण युग के इंसानों की यात्रा, दोनों को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकता था।

झांग और उनके साथियों ने अपने अध्ययन में पिछले 10,000 वर्षों पाए गए 73 प्राचीन कुत्तों के जीनोम का इस्तेमाल करके यह पता लगाया गया कि पूर्वी यूरेशिया में समय के साथ इंसान और कुत्ते कैसे अलग-अलग क्षेत्रों में पहुंचे।

इन प्राचीन कुत्तों के अवशेषों के विश्लेषण से सामने आया कि पूर्वी यूरेशिया में कुत्तों की वंशावली में कई बार बदलाव आया, जो विशिष्ट मानव समूहों (शिकारी, किसान और पशुपालक) के आवागमन से संबंधित हैं। इससे पता चलता है कि जब विभिन्न मानव सांस्कृतिक समूहों ने यूरेशिया के अलग-अलग क्षेत्रों में कदम रखा, तब उनके साथ कुत्ते भी वहां चले गए और उनके अनूठे आनुवंशिक चिह्नों को अपना लिया।

एशिया के कुछ हिस्सों में इंसानों और कुत्तों की आबादी में कुछ अंतर थे। उदाहरण के लिए, पश्चिमी यूरेशियाई में बसे मनुष्यों से करीब से जुड़े पूर्वी वेरेटे और बोटाई के शिकारियों के पास उस समय पश्चिमी यूरेशिया की इंसानी आबादी के साथ पाए जाने वाले पश्चिमी कुत्तों के बजाय पूर्वी (आर्कटिक) कुत्ते अधिक संख्या में थे।

इसका मतलब यह है कि कुत्ते विभिन्न मानव संस्कृतियों या समुदायों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान या व्यापार का एक प्रमुख हिस्सा रहे होंगे। यह कुत्तों की विकास यात्रा की उन जटिलताओं को भी दर्शाता है, जिन्हें हम अभी तक समझ नहीं पाए हैं।

झांग और उनकी टीम का अध्ययन इस बात के ठोस प्रमाण पेश करता है कि हजारों साल पहले पूर्वी यूरेशिया में कुत्तों ने मानव समाज में ‘जैवसांस्कृतिक साथी’ के रूप में एक अहम भूमिका निभाई थी, क्योंकि वे इंसानों के साथ-साथ घूमते-फिरते थे। दूसरे शब्दों में कहें तो इंसान अपनी यात्राओं में कुत्तों को साथी के रूप में ले जाते थे (और शायद उनका व्यापार भी करते थे), न कि स्थान परिवर्तन के बाद नये कुत्ते खरीदते थे।

ये निष्कर्ष कुत्तों और इंसानों के बीच दीर्घकालिक, जटिल और परस्पर जुड़े संबंधों को उजागर करते हैं, जो 10,000 वर्षों से भी अधिक समय पुराने हैं।

कुत्तों की आनुवंशिक वंशावली प्राचीन मानव प्रवास, व्यापार नेटवर्क और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के जीवंत रिकॉर्ड के रूप में भी काम कर सकती है। यही नहीं, प्राचीन कुत्तों पर किए गए अध्ययन से हमें उन पर्यावरणीय कारकों को समझने में भी मदद मिल सकती है, जिन्होंने कुत्तों के विकास में योगदान दिया और इंसानों के साथ उनके संबंधों को मजबूत किया।

——कुत्तों के बारे में हमारी समझ बदली——

दोनों अध्ययन कुत्तों की नस्लों में विविधता और इंसानों तथा कुत्तों के बीच संबंधों को लेकर हमारी समझ को नयी दिशा देते हैं। ये अध्ययन इस बात पर जोर देते हैं कि कुत्तों की आधुनिक नस्लों में दिखने वाली अविश्वसनीय विविधता कोई नयी विकास नहीं है।

इस विविधता की आनुवंशिक और रूपात्मक नींव हजारों साल पहले रखी गई थी, जिसे प्राकृतिक चयन, मानव चयन और विविध वातावरणों ने आकार दिया गया था, वो भी पिछली कुछ शताब्दियों के संरचित प्रजनन से काफी पहले।

भविष्य में कुत्तों की शारीरिक विविधता और वंश-परंपरा की पड़ताल करने वाले अध्ययन, दुनियाभर में कुत्तों की जटिल उत्पत्ति और प्रसार के बारे में हमारी समझ को और गहरा कर सकते हैं।

(द कन्वरसेशन)

पारुल नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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