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Thursday, 13 November, 2025
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मेट्रो की बजाय रोपवे: क्या ट्रैफिक से निजात पाएगा वाराणसी

800 करोड़ रुपये का वाराणसी रोपवे उन शहरों के लिए एक नेशनल टेस्ट केस बन गया है, जहां मेट्रो संभव नहीं — ताकि ट्रैफिक की समस्या को हल किया जा सके.

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वाराणसी: पिछले महीने वाराणसी के नए रोपवे के गिरने का एक फर्ज़ी वीडियो वायरल हुआ तो शहर का प्रशासन फौरन हरकत में आ गया — पुलिस ने एफआईआर दर्ज की, बयान जारी किया और साइबर क्राइम सेल को वीडियो के स्रोत का पता लगाने में लगा दिया.

एक दिन के अंदर, प्रशासन ने प्रधानमंत्री मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट — भारत के पहले शहरी रोपवे — पर फैल रही भ्रामक खबर को खत्म कर दिया.

एक ऐसे देश में जहां पुल गिरने की खबरें आम हैं, वहां वाराणसी रोपवे का यह वीडियो तेज़ी से फैल सकता था और लोग उस पर यकीन भी कर लेते.

डीसीपी क्राइम सरवनन थंगमणि ने कहा, “वाराणसी कमिश्नरेट की सोशल मीडिया सेल से हमें पता चला कि एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें कहा गया कि वाराणसी रोपवे असुरक्षित है. इसका मकसद अफवाह फैलाना था. कुछ घंटे में प्रशासन ने कार्रवाई की.” उन्होंने कहा कि वायरल क्लिप असल में छत्तीसगढ़ के एक मंदिर के रोपवे की थी.

जहां दूसरे शहर मेट्रो के लिए ट्रैक बिछा रहे हैं, वहीं वाराणसी आसमान में रोपवे की डोर बुन रहा है. यह प्राचीन शहर अपनी तंग गलियों की भीड़ से निपटने के लिए हाई-टेक और अनोखा तरीका अपना रहा है. 800 करोड़ रुपये की लागत से बन रहा यह 4 किलोमीटर लंबा केबल कार प्रोजेक्ट सरकार की उस कोशिश का हिस्सा है जिसमें काशी को टिकाऊ शहरी परिवहन का मॉडल बनाया जा सके. ऐसे वक्त में जब देशभर में पुल गिरने की घटनाओं से इंजीनियरिंग पर सवाल उठ रहे हैं, वाराणसी का रोपवे एक तरह से बुनियादी ढांचे पर पुनर्विचार का राष्ट्रीय प्रयोग है.

पूरा होने पर यह दुनिया की तीसरी सार्वजनिक परिवहन रोपवे प्रणाली होगी — बोलिविया के ला पाज़ और मैक्सिको सिटी के बाद. आमतौर पर रोपवे पहाड़ों या पर्यटन स्थलों में होते हैं, लेकिन शहरी ट्रांजिट के लिए इसका इस्तेमाल एक बड़ी सोच का बदलाव है. प्रयागराज की 2.2 किलोमीटर लंबी संगम रोपवे परियोजना को हाल ही में सड़क परिवहन मंत्रालय से मंजूरी मिल चुकी है. देशभर में 200 से अधिक रोपवे प्रोजेक्ट्स पर काम की योजना है.

वाराणसी रोपवे पर बहुत कुछ दांव पर लगा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे “आस्था और तकनीक का अद्भुत संगम” और शहर के ट्रैफिक जाम से “ग्रीन सॉल्यूशन” बताया है.

वाराणसी रोपवे 800 करोड़ रुपये की लागत से बनाया जा रहा है | ग्राफिक: दीपाक्षी शर्मा/दिप्रिंट
वाराणसी रोपवे 800 करोड़ रुपये की लागत से बनाया जा रहा है | ग्राफिक: दीपाक्षी शर्मा/दिप्रिंट

पिछले पांच साल में ट्रैफिक वाराणसी का सबसे बड़ा सिरदर्द बन गया है. यह शहर तीर्थस्थल से एक भीड़भाड़ वाले पर्यटन केंद्र में बदल गया है. 2021 में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर खुलने के बाद से श्रद्धालु और पर्यटक लगातार बढ़ रहे हैं. केवल 2024 में ही 11 करोड़ से अधिक लोग वाराणसी आए — जो पिछले साल से 18.7 प्रतिशत ज्यादा है.

हालांकि, यह महत्वाकांक्षी रोपवे प्रोजेक्ट चुनौतियों से खाली नहीं रहा. 2023 में शिलान्यास के बाद से इसे ज़मीन अधिग्रहण, कोर्ट केस, विभागीय समन्वय, निर्माण संबंधी दिक्कतों और शहर की प्राचीन नालियों के नीचे छिपी अप्रत्याशित बाधाओं का सामना करना पड़ा है.

यह एक दूरदर्शी प्रोजेक्ट है और वाराणसी के लोग इसे जिम्मेदारी से इस्तेमाल करें

— पुलकित गर्ग, पूर्व उपाध्यक्ष, वाराणसी विकास प्राधिकरण

प्रोजेक्ट के प्रमुख लोगों में से एक शहर के टाउन प्लानर प्रभात कुमार ने बताया, “वाराणसी की संकरी गलियों में आना-जाना सबसे बड़ी चुनौती है. पहले हमने अंडरग्राउंड मेट्रो का विचार किया, फिर एलिवेटेड मेट्रो पर सोचा, लेकिन जगह की कमी के कारण यह संभव नहीं था. तब रोपवे का विचार आया जो शहर के ट्रैफिक को संभालने में मदद करेगा.”

मेट्रो योजना 2018 में बंद कर दी गई और उसी के बाद रोपवे पर काम शुरू हुआ. अब टेस्ट रन शुरू हो चुके हैं.

पहले चरण में यह प्रोजेक्ट वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन से काशी विश्वनाथ मंदिर के पास गोदौलिया तक पांच स्टेशनों को जोड़ेगा.

कुमार ने कहा, “हमने कई बार ट्रायल रन किए हैं और पहला चरण अब अंतिम अवस्था में है. रामनगर क्षेत्र के विस्तार की योजना पर भी काम शुरू हो चुका है. अगले साल फरवरी तक संचालन शुरू हो जाएगा. यह हम सबके लिए एक चुनौतीपूर्ण लेकिन ऐतिहासिक प्रोजेक्ट है.”

भारत की पहली शहरी सार्वजनिक ट्रांजिट केबल कार के लिए वाराणसी के आसमान में खिंच रही हैं केबल लाइनें | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
भारत की पहली शहरी सार्वजनिक ट्रांजिट केबल कार के लिए वाराणसी के आसमान में खिंच रही हैं केबल लाइनें | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

विवाद, देरी और ‘नाला’

रोपवे आसमान की ओर बढ़ रहा था, लेकिन इसकी सबसे बड़ी मुश्किल ज़मीन के नीचे छिपी थी.

जून में, जब इंजीनियर गोदौलिया क्रॉसिंग पर आखिरी टावर लगाने की तैयारी कर रहे थे, तभी उन्हें एक अनदेखी बाधा मिली — एक प्राचीन नाला, जिसे ‘घोड़ानाला’ कहा जाता है. खुदाई के दौरान इस नाले को हुआ नुकसान इतना गंभीर था कि कई विभागों में अलार्म बज गया.

इस घटना से प्रोजेक्ट की प्रमुख संस्था वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) और कार्यान्वयन एजेंसी — नेशनल हाईवेज़ एंड लॉजिस्टिक्स मैनेजमेंट लिमिटेड (NHLML), जो भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) की एक इकाई है के बीच खींचतान शुरू हो गई.

मामला उम्मीद से कहीं बड़ा निकला. ‘घोड़ानाला’, जो हर दिन करीब 3 करोड़ लीटर सीवेज अपने साथ बहाता है, न केवल क्षतिग्रस्त हुआ था बल्कि उसने आसपास की मिट्टी भी काट दी थी. इससे आसपास की इमारतों को गिरने का खतरा पैदा हो गया.

इंजीनियर वाराणसी के एक रोपवे स्टेशन पर चल रहे निर्माण कार्य की जांच करते हुए. प्रोजेक्ट की सबसे बड़ी अड़चन अंडरग्राउंड ड्रेनेज सिस्टम से आई | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट
इंजीनियर वाराणसी के एक रोपवे स्टेशन पर चल रहे निर्माण कार्य की जांच करते हुए. प्रोजेक्ट की सबसे बड़ी अड़चन अंडरग्राउंड ड्रेनेज सिस्टम से आई | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

नगर आयुक्त अक्षता वर्मा, तब के वीडीए उपाध्यक्ष पुलकित गर्ग और एनएचएलएमएल के अधिकारी तुरंत मौके पर पहुंचे. पास के होटल और घर खाली कराए गए और यूपी जल निगम को मरम्मत का आदेश दिया गया, लेकिन काम शुरू होने से पहले ही मानसून आ गया और गंगा में बाढ़ आ गई. पानी उतरने तक मरम्मत रोकनी पड़ी.

इसी बीच, एनएचएलएमएल अधिकारियों ने शिकायत की कि वीडीए ने उन्हें शहर के अंडरग्राउंड नालों की जानकारी ही नहीं दी थी.

एनएचएलएमएल के एक अधिकारी ने कहा, “अगर उन्होंने हमें बताया होता, तो हम टावर लगाने के लिए कोई और जगह चुन लेते.”

हालांकि, घोड़ानाला वाराणसी के पुराने ड्रेनेज सिस्टम का अहम हिस्सा है, लेकिन स्थानीय प्रशासन को भी इसकी पूरी रचना तक का पता नहीं है.

प्रभात कुमार ने कहा, “हमारे पास तो ड्रेनेज सिस्टम का नक्शा तक नहीं है, न ही यह जानकारी है कि यह किन-किन इलाकों से होकर गुज़रता है.” उन्होंने बताया कि यही प्रशासन के लिए प्रोजेक्ट को पूरा करने की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक रही है.

चुनौतियां खासतौर पर इस वजह से हैं कि यह एक ऐतिहासिक शहर है, जिसकी आबादी 10 लाख से ज्यादा है और सालाना पांच गुना ज़्यादा पर्यटक यहां आते हैं. ऐसे शहर में रोपवे का निर्माण करना पर्यावरण और सामाजिक जोखिमों का मूल्यांकन मांगता है

— आंद्रेयास ओएल, टीम लीडर, एसईआरवी (प्रोजेक्ट पार्टनर), एक इंटरव्यू में

एक और बड़ी रुकावट कानूनी लड़ाई रही. तीन महिलाओं — मंशा सिंह, सुचित्रा सिंह और प्रतिमा सिंघा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जब उनके गोदौलिया क्रॉसिंग स्थित दुकानें रोपवे स्टेशन के लिए तोड़ी गईं. उनका कहना था कि उन्हें न कोई नोटिस मिला, न मुआवजा. साथ ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनकी लंबित याचिका के बावजूद उनकी दुकानें नहीं बचाईं.

फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने “स्टेटस क्वो” का आदेश दिया, जिससे वाराणसी कैंट, काशी विद्यापीठ, रथ यात्रा, गिरजा घर और गोदौलिया इन पांच स्टेशनों के अंतिम हिस्से पर काम रुक गया. हालांकि, अब काम फिर से शुरू हो गया है, लेकिन गति पहले जैसी नहीं रही.

वाराणसी के विश्वनाथ मंदिर के पास की भीड़भाड़ वाली सड़क. शहर के नए रोपवे का आखिरी स्टेशन पास के गोडौलिया चौक पर बन रहा है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
वाराणसी के विश्वनाथ मंदिर के पास की भीड़भाड़ वाली सड़क. शहर के नए रोपवे का आखिरी स्टेशन पास के गोदौलिया चौक पर बन रहा है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

कुमार ने कहा, “ज्यादातर निर्माण कार्य पूरा हो चुका है. सिर्फ कैंट और गोदौलिया में थोड़ा काम बाकी है.”

स्थानीय अखबारों ने इस प्रोजेक्ट की हर मोड़ पर रिपोर्टिंग की है और हर मौके पर इसे बढ़ावा भी दिया है. एक हेडलाइन में लिखा था — ‘बनारस में करिए अब हवाई सफर, जाम की किचकिच से मिलने जा रही बड़ी राहत’. एक और ने दावा किया — ‘विश्व का तीसरा सबसे बड़ा सार्वजनिक रोपवे वाराणसी में’.

अब, अगस्त 2024 की पहली समयसीमा पार कर और नई डेडलाइन 12 दिसंबर के करीब पहुंचते हुए, आखिरकार इस परियोजना के नतीजे नज़र आने लगे हैं.


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‘आगे की सोच वाला प्रोजेक्ट’

नीले और नारंगी रंग के रोपवे जब वाराणसी की छतों और फ्लाईओवरों के ऊपर हवा में चलने लगे, तो लोग ऊपर देखकर हैरान रह गए. 2 अक्टूबर को कैंट रेलवे स्टेशन से हुए पहले ट्रायल रन में शहर ने पहली बार रोपवे को चलते देखा.

वीडीए के पूर्व उपाध्यक्ष पुलकित गर्ग ने कहा, “यहां हर कोई इस प्रोजेक्ट को लेकर बहुत उत्साहित है. यह पूरी तरह से ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर है.” 2016 बैच के आईएएस अधिकारी और सिविल इंजीनियर गर्ग ने लगभग दो साल तक इस प्रोजेक्ट की निगरानी की है.

पिछले महीने वाराणसी में ट्रायल रन के दौरान रास्ते पर चलते नीले रोपवे | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
पिछले महीने वाराणसी में ट्रायल रन के दौरान रास्ते पर चलते नीले रोपवे | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

उन्होंने बताया कि पांच स्टेशन जिनमें आरामदायक इंतज़ार करने के लिए रूम और यात्रियों के लिए अनुकूल सुविधाएं होंगी, जल्द ही जनता के लिए खोल दिए जाएंगे. रोपवे में कुल 148 गोंडोला होंगे, जो हर दिन करीब एक लाख यात्रियों को ले जाने में सक्षम होंगे. हर रोपवे में 8 से 10 लोग बैठ सकते हैं और वीडीए ने प्रति घंटे 3,000 यात्रियों का लक्ष्य रखा है. यह सिस्टम मोनो-केबल डिटैचेबल गोंडोला (एमडीजी) तकनीक पर आधारित है, जिसमें बोर्डिंग के दौरान केबिन मैन केबल से अलग हो जाता है.

गर्ग ने कहा, “यह एक दूरदर्शी प्रोजेक्ट है जो वाराणसी में आ रहा है और हर किसी को इसे जिम्मेदारी से इस्तेमाल करना चाहिए.”

यह उत्साह अब लखनऊ तक पहुंच गया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जून और अगस्त में प्रोजेक्ट साइट्स का निरीक्षण किया था और स्टेशनों के लेआउट भी देखे थे.

वाराणसी की संकरी गलियों में यात्रा करना सबसे बड़ी चुनौती है. पहले हमने अंडरग्राउंड मेट्रो की कोशिश की, फिर एलिवेटेड मेट्रो पर विचार किया, लेकिन जगह की कमी के कारण यह संभव नहीं था. इसके बाद रोपवे का विचार आया, जो शहर के ट्रैफिक की समस्या को काफी हद तक कम करेगा

— प्रभात कुमार, वीडीए टाउन प्लानर

वाराणसी कैंट रोपवे स्टेशन की दीवारों पर अब नई रंगीन ग्राफिटी नज़र आती है — घाटों के नज़ारें और नदी किनारे शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का भित्तिचित्र. वीडीए ने स्टेशनों के आसपास पार्किंग जोन तय करने की योजना भी शुरू कर दी है.

कुमार ने कहा, “वाराणसी कैंट और काशी विद्यापीठ स्टेशनों के पास पर्याप्त जगह है, लेकिन बाकी स्टेशनों के लिए और ज़मीन की ज़रूरत है.”

वाराणसी कैंट रोपवे स्टेशन की दीवारों पर बने घाटों के चित्र और उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का भित्तिचित्र | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
वाराणसी कैंट रोपवे स्टेशन की दीवारों पर बने घाटों के चित्र और उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का भित्तिचित्र | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए कार्यान्वयन एजेंसी NHLML ने भारत की विश्व समुद्र इंजीनियरिंग कंपनी को निर्माण कार्य के लिए और स्विट्जरलैंड की बार्थोलेट मशिनबाउ एजी को रोपवे सिस्टम और तकनीक के लिए जोड़ा है. रोपवे का डिज़ाइन जर्मनी के पोर्श डिज़ाइन स्टूडियो ने तैयार किया है. 3,660 मीटर लंबा यह रोपवे वाराणसी की छतों के ऊपर लगभग 45 मीटर की ऊंचाई पर चलेगा.

फंडिंग जुटाना भी अपने आप में एक बड़ी चुनौती थी. 2021 में, आर्थिक मामलों के मंत्रालय ने एक समिति की बैठक में वाराणसी रोपवे के लिए वायबिलिटी गैप फंडिंग (वीजीएफ) सहायता पर चर्चा की थी.

बैठक के मिनट्स के अनुसार, वाराणसी विकास प्राधिकरण ने लागत लगभग 410 करोड़ रुपये आंकी थी, जिसमें 40% राशि वीजीएफ के तहत आने की उम्मीद थी. अनुमानित लाभों में शामिल थे पुराने काशी और नए वाराणसी के बीच बेहतर कनेक्टिविटी, सड़क यातायात में कमी, यात्रियों को बेहतर अनुभव, राजस्व सृजन, स्वच्छ हवा, और शहर की सेवा सूचकांक में सुधार.

लेकिन चार साल बाद, लागत लगभग दोगुनी होकर 800 करोड़ रुपये पहुंच गई.

वाराणसी कैंट रोपवे स्टेशन पर जारी निर्माण कार्य, जो शहर के नए अर्बन केबल कार सिस्टम का शुरुआती बिंदु है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
वाराणसी कैंट रोपवे स्टेशन पर जारी निर्माण कार्य, जो शहर के नए अर्बन केबल कार सिस्टम का शुरुआती बिंदु है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

फंडिंग के तहत, वर्ल्ड सी इंजीनियरिंग ने एक स्विस बैंक से 40 मिलियन यूरो (करीब 360 करोड़ रुपये) का कर्ज़ा लिया, जिसे स्विट्जरलैंड की एक्सपोर्ट क्रेडिट एजेंसी SERV ने मंजूरी दिलाई. इसे पहली बार किसी भारतीय इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी द्वारा NHAI प्रोजेक्ट के लिए विदेशी कर्ज हासिल करने की बड़ी उपलब्धि माना गया है.

एक इंटरव्यू में SERV के टीम लीडर आंद्रेयास ओएल ने कहा, “चुनौतियां मुख्य रूप से स्थान के कारण थीं. यह एक ऐतिहासिक शहर है जिसकी आबादी 10 लाख से अधिक है और हर साल यहां पांच गुना ज्यादा पर्यटक आते हैं. ऐसे शहर में रोपवे बनाना पर्यावरण और सामाजिक जोखिमों का आकलन मांगता है. हालांकि, यह पहाड़ी निर्माण से अलग है, लेकिन इस तरह का दूरदर्शी प्रोजेक्ट अपने आप में मज़ेदार है.”

भीड़ कम करने और सतत परिवहन को बढ़ावा देने के अलावा, यह प्रोजेक्ट राजस्व उत्पन्न करने के लिए भी डिज़ाइन किया गया है.

प्रभात कुमार ने कहा, “हर स्टेशन पर कुछ जगहें कमर्शियल यूज़ के लिए किराए पर दी जाएंगी, जिससे रेवेन्यू आएगा.”

वाराणसी रोपवे लगभग 4 किमी तक फैला है और फरवरी तक जनता के लिए खुलने की उम्मीद है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
वाराणसी रोपवे लगभग 4 किमी तक फैला है और फरवरी तक जनता के लिए खुलने की उम्मीद है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

उन्होंने बताया कि किराया तय करने पर अभी चर्चा चल रही है, लेकिन इसे इतना सस्ता रखा जाएगा कि अधिक से अधिक लोग इसका उपयोग करें और सड़कों पर जाम कम हो सके.

उन्होंने कहा, “किराया मौजूदा यातायात साधनों जैसे ई-रिक्शा के हिसाब से तय किया जाएगा.”

कुछ अधिकारी इसे आध्यात्मिक नज़रिए से भी देखते हैं.

NHLML के एक अधिकारी ने कहा, “वाराणसी रोपवे जब इस पवित्र नगरी के ऊपर से उड़ेगा तो एक आत्मा को छू लेने वाला, बदल देने वाला आध्यात्मिक अनुभव कराएगा.”


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भारत में रोपवे का बढ़ता जाल

वाराणसी को पूरे देश के लिए एक ‘प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट’ यानी उदाहरण के तौर पर देखा जा रहा है. मोदी सरकार ने अगले पांच साल में 1,200 किलोमीटर तक फैले 250 रोपवे प्रोजेक्ट्स की योजना बनाई है, जिन पर करीब 1.25 लाख करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है.

वित्त वर्ष 2022-23 के केंद्रीय बजट में केंद्र ने ‘परवतमाला परियोजना’ यानी नेशनल रोपवे डेवलपमेंट प्रोग्राम की घोषणा की थी. इसका उद्देश्य कठिन, चुनौतीपूर्ण और संवेदनशील इलाकों में कम उत्सर्जन वाले केबल कार नेटवर्क बनाना है, जहां पारंपरिक परिवहन संरचना बनाना मुश्किल है.

इस योजना के तहत वित्त वर्ष 2024-25 तक 60 किलोमीटर तक के प्रोजेक्ट्स देने की योजना बनाई गई थी. अब तक उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, असम और महाराष्ट्र सहित 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ समझौता ज्ञापन साइन किए जा चुके हैं. पाइपलाइन में मौजूद प्रमुख प्रोजेक्ट्स में सोनप्रयाग-केदारनाथ रोपवे, गौरीकुंड-केदारनाथ रोपवे और प्रयागराज में संगम रोपवे शामिल हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी रोपवे साइट का निरीक्षण करते हुए. यह प्रोजेक्ट केंद्र की ‘परवतमाला परियोजना’ का हिस्सा है | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी रोपवे साइट का निरीक्षण करते हुए. यह प्रोजेक्ट केंद्र की ‘परवतमाला परियोजना’ का हिस्सा है | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

हालांकि, ज़मीन से आसमान की ओर इस बदलाव ने वाराणसी के कई स्थानीय निवासियों के बीच चिंता भी बढ़ा दी है.

दिसंबर 2024 में जब बुलडोज़र उनके घर के बाहर पहुंचा, तो स्थानीय निवासी आशीष जायसवाल उसके सामने खड़े होकर विरोध करने लगे.

उन्होंने कहा, “मैंने विकास प्राधिकरण से थोड़ा समय मांगा था ताकि मैं अपने घर के कागजात दिखा सकूं, लेकिन उन्होंने घर गिरा दिया.”

वाराणसी विकास प्राधिकरण के अधिकारियों का कहना है कि प्रभावित लोगों के लिए मुआवजे के नियम बनाए गए हैं.

एक अधिकारी ने कहा, “अगर व्यक्ति हमारे दफ्तर में स्वामित्व के दस्तावेज़ जमा करता है, तो हम मुआवजे की प्रक्रिया शुरू करते हैं.”

शहर के 16,000 से अधिक ई-रिक्शा चालकों को भी इस रोपवे से खतरा महसूस हो रहा है.

सैलानियों को पुराने शहर की गलियों में घुमाने वाले सुरेश कुमार ने कहा, “इससे हमारा धंधा बंद हो जाएगा.” उन्हें डर है कि अब पर्यटक रिक्शा की बजाय सीधे रोपवे लेंगे.

लेकिन दिल्ली के सुनील मित्तल जैसे पर्यटकों के लिए यह नया रोपवे एक और कारण है वाराणसी आने का. पिछले दो दशकों से नियमित रूप से शहर आने वाले मित्तल कहते हैं कि वह उस दिन का इंतज़ार कर रहे हैं जब 5 किलोमीटर की दूरी तय करने में 40-45 मिनट नहीं लगेंगे.

उन्होंने कहा, “मैं इस प्राचीन शहर को ऊपर से देखना चाहता हूं. रोपवे के पहले दिन मैं यहां आकर सफर करूंगा.”

इधर वाराणसी प्रशासन की नज़रें पहले से ही दूसरे चरण पर हैं.

कुमार ने कहा, “दूसरे फेज में हम रोपवे को रामनगर तक बढ़ाएंगे. रामनगर वाराणसी के पास का कस्बा है, जो 18वीं सदी के रामनगर किले के लिए प्रसिद्ध है. इससे गंगा के पार बसे लोगों का संपर्क भी बढ़ेगा.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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