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Tuesday, 11 November, 2025
होमदेशबस कंडक्टर, उबर ड्राइवर, दुकानदार—कौन थे दिल्ली कार ब्लास्ट में मारे गए लोग

बस कंडक्टर, उबर ड्राइवर, दुकानदार—कौन थे दिल्ली कार ब्लास्ट में मारे गए लोग

रात भर अपने रिश्तेदार दिनेश मिश्रा के ज़िंदा होने की उम्मीद में बैठे राज त्रिपाठी ने कहा, ‘मुझे लगा था वो बच जाएगा, लेकिन नहीं बच सका...हमारा परिवार उसे आखिरी बार भी नहीं देख पाया.’

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नई दिल्ली: सोमवार को लाल किले के पास हुए ब्लास्ट में मारे गए 12 लोगों में एक उबर ड्राइवर, एक बस कंडक्टर और एक दुकानदार भी शामिल थे. इनमें से कई अपने परिवार के लिए इकलौते कमाने वाले सदस्य थे और कुछ अपने घरों के अकेला सहारा थे.

दिप्रिंट ने कुछ मृतकों की जानकारी और उनके परिवारों की रात भर चली खोज की कहानी को एक साथ संजोकर सामने रखा है.

पंकज साहनी, दिल्ली निवासी

निकेश कुमार ने पूरी रात अपने साले, पंकज साहनी के बारे में कोई भी जानकारी ढूंढने में बिताई. मंगलवार तड़के उन्हें सोशल मीडिया पर एक सफेद कार की फोटो दिखाई दी—वह पूरी तरह कुचल चुकी थी और उसके आसपास पुलिस का भारी पहरा था.

जब उन्होंने फोटो को ज़ूम करके नंबर प्लेट पर गौर किया, तब उन्हें पता चला कि यह पंकज की ही कार थी.

निकेश ने कहा, “मैंने बस गूगल करके देखा कि क्या हुआ था और तभी पता चला कि ब्लास्ट हुआ है. मैंने पंकज को कई बार फोन किया, लेकिन किसी कॉल का जवाब नहीं मिला. मैं तुरंत बाइक लेकर उन्हें ढूंढने निकल गया और इमरजेंसी साइट पर ही रुका रहा.”

22 साल के साहनी ने 12वीं तक की पढ़ाई की थी और परिवार के खर्च चलाने के लिए कैब चलाते थे. सोमवार शाम वह अपने एक पड़ोसी को लाल किले के पास वाले बाज़ार में छोड़ने जा रहे थे. कैब में वे अकेले थे.

निकेश ने कहा, “हमें पंकज के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, सिर्फ मीडिया से पता चला.”

निकेश कुमार, जिन्होंने सोशल मीडिया पर अपने साले पंकज साहनी की कुचली हुई कार की फोटो देखी | क्रेडिट: समृद्धि तिवारी/दिप्रिंट
निकेश कुमार, जिन्होंने सोशल मीडिया पर अपने साले पंकज साहनी की कुचली हुई कार की फोटो देखी | क्रेडिट: समृद्धि तिवारी/दिप्रिंट

मंगलवार सुबह निकेश थके हुए दिख रहे थे. उनके चेहरे पर धूल जमी थी. पंकज के परिवार के भविष्य का फैसला करने वाली कॉल का इंतज़ार करते हुए निकेश शवगृह के बाहर लोहे के खंभों को पकड़े खड़े थे. अचानक उनका फोन बजा.

उन्होंने फोन पर रिश्तेदारों से कहा, “कन्फर्म कर दिया.”

वो रो पड़े, लेकिन थोड़ी देर में खुद को संभालते हुए आंसू पोंछकर कागज़ी प्रक्रिया शुरू करनी पड़ी.

निकेश ने कहा, “पंकज का फोन शाम 7 बजे से बंद था. रात 8 बजे से सुबह 7:30 बजे तक मैं सड़कों पर ही था और आखिर में कॉल भी मोर्चरी से ही आई.”

जब निकेश को मोर्चरी में पंकज की पहचान करने के लिए बुलाया गया, उन्होंने वहां मौजूद कर्मचारियों से कहा कि वे पंकज के चेहरे से खून साफ कर दें. उन्होंने मना कर दिया.

स्कूल खत्म करने के बाद, पंकज ने मीशो में काम करना शुरू किया था, जहां बाद में उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया. उनके पास ड्राइविंग लाइसेंस था, इसलिए उन्होंने कैब चलाना शुरू कर दिया. वे परिवार में अकेले कमाने वाले थे और अपनी दो बहनों व छोटे भाई की देखभाल कर रहे थे.

परिवार मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर का है और 2001 से दिल्ली के नॉर्थ-वेस्ट इलाके के कंझावला में रह रहा है.

दिनेश मिश्रा, दिल्ली निवासी

राज त्रिपाठी ने सोमवार की रात लोक नायक अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड के बाहर ही बिताई, इस उम्मीद में कि उनके रिश्तेदार दिनेश मिश्रा ज़िंदा हों, लेकिन अगली सुबह उन्हें पता चला कि 32 साल के मिश्रा अब नहीं रहे.

मिश्रा चांदनी चौक में साड़ी और लहंगे की दुकान में काम करते थे. धमाका जब हुआ, वह वहीं मौजूद थे.

त्रिपाठी ने पूरी रात पुलिस और डॉक्टरों को फोन करके यह पूछने की कोशिश की कि क्या मिश्रा ज़िंदा हैं. उन्होंने कहा, “मुझे बस यह जानना था कि वह अंदर हैं या नहीं और क्या वह ज़िंदा हैं.”

मंगलवार सुबह त्रिपाठी मोर्चरी पहुंच गए. वह बाहर खड़े थे, मिश्रा का शव लेने के लिए. उन्होंने कहा, “मुझे लगा था वो बच जाएंगे, लेकिन नहीं बच सके…हमारा परिवार उनको आखिरी बार भी नहीं देख पाया.”

मिश्रा पिछले 10 साल से दुकान में काम कर रहे थे. उनके दो बच्चे थे — एक बेटा और एक बेटी. त्रिपाठी ने कहा, “वह अपने परिवार से बहुत प्यार करते थे. वह बहुत मेहनत करते थे ताकि परिवार सम्मान से रह सके.”

मिश्रा से अपनी आखिरी बातचीत याद करते हुए त्रिपाठी ने कहा, “मैंने सिर्फ यही पूछा था कि काम कैसा चल रहा है, वह ठीक हैं या नहीं और सैलरी ठीक मिल रही है या नहीं…वह हमेशा बहुत मदद करते थे.”

अब त्रिपाठी और परिवार मिश्रा के पार्थिव शरीर को उनके पैतृक स्थान श्रावस्ती ले जा रहे हैं.

अशोक कुमार, अमरोहा निवासी

जब वे मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज की मोर्चरी पहुंचे, तो विजय कुमार यह समझ ही नहीं पा रहे थे कि उनके भाई अशोक कुमार का शव इतनी बुरी स्थिति में कैसे हो गया.

विजय ने कहा, “अशोक लाल किले की तरफ चलने वाली क्लस्टर बस में कंडक्टर थे…यह सब बहुत अचानक हुआ. हम प्रार्थना कर रहे थे कि वो बच जाए.”

34 साल के अशोक उत्तर प्रदेश के अमरोहा के रहने वाले थे और काम के लिए दिल्ली आए थे. वह न सिर्फ अपने दो बच्चों का खर्च उठाते थे, बल्कि अपने भाई के तीन बच्चों का भी सहारा थे.

शाम तक विजय और परिवार को अशोक के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. उन्होंने कहा, “हमें जानकारी तब मिली जब अमरोहा पुलिस घर आई. उन्हें अशोक का बस आईडी कार्ड मिला और उसी से पहचान हुई.”

जब अशोक की पत्नी ने मोर्चरी में उनका बुरी तरह घायल शरीर देखा, तो वह सदमे में चली गईं. विजय ने बताया, “अशोक के माथे पर गहरे घाव थे, खून था और उनके पेट के अंदरूनी अंग बाहर आ गए थे.”

नोमान, शामली निवासी

सोनू, जो टाइल मिस्त्री का काम करते हैं, मंगलवार सुबह काम पर जा रहे थे, लेकिन उनके चाचा का एक फोन — जिसमें कहा गया कि वह अपने चचेरे भाई नोमान की खबर लेने जाए उन्हें मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के शवगृह तक ले आया.

टाइल मिस्त्री सोनू में हिम्मत नहीं थी कि वह मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के शवगृह में अपने चचेरे भाई के शव को देख सकें | फोटो: समृद्धि तिवारी/दिप्रिंट
टाइल मिस्त्री सोनू में हिम्मत नहीं थी कि वह मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के शवगृह में अपने चचेरे भाई के शव को देख सकें | फोटो: समृद्धि तिवारी/दिप्रिंट

उत्तर प्रदेश के शामली के रहने वाले नोमान, एक कॉस्मेटिक दुकान में काम करते थे. वे अपनी दुकान के लिए कॉस्मेटिक सामान खरीदने दिल्ली आए थे. नोमान पिछले सात महीने से परिवार में अकेले कमाने वाले थे क्योंकि उनके बड़े भाई को किडनी फेलियर हुआ और वे काम नहीं कर पा रहे थे.

सोनू ने कहा, “नोमान के पिता शवगृह में गए, उन्होंने मुझे साथ आने को कहा, पर मेरे पास अपने भाई के शव को देखने की हिम्मत नहीं थी. वह हमारे परिवार में सबसे करीब था.”

नोमान की उम्र 23 साल थी.

लोकेश अग्रवाल, अमरोहा निवासी

लोकेश अग्रवाल, 52, जो अमरोहा में खाद बेचते थे, अपने रिश्तेदार से मिलने दिल्ली आए थे जो सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती थे.

लोकेश के भाई सोनू अग्रवाल ने कहा, “रिश्तेदार से मिलने के बाद वह लाल किला आया, जहा उसने अपने दोस्त अशोक को लाल किला मेट्रो स्टेशन पर मिलने के लिए फोन किया.”

वे स्टेशन पर उतरे और कुछ ही देर में कार फट गई.

सोनू ने कहा, “हमें तब पता चला कि क्या हुआ जब हमने टीवी चैनलों पर खबर देखी.”

पुलिस ने लोकेश का फोन इस्तेमाल कर आखिरी डायल किए गए नंबर को अमरोहा ट्रेस किया, तब परिवार को सूचित किया गया.

लोकेश के पिता ओम प्रकाश ने कहा, “वह मेरा सबसे बड़ा बेटा था. वो कल दिल्ली गया था अपनी बेटे की सास से मिलने, जो वहां अस्पताल में भर्ती थीं. यह एक आतंकवादी हमला है. हम चाहते हैं कि सरकार हमारे परिवार की मदद करे और आतंकवादियों को सबसे कड़ी सज़ा दी जाए.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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