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Thursday, 13 November, 2025
होममत-विमतग़ाज़ा में शांति योजना बन रही है, क्या इसमें भारत की कोई भूमिका है?

ग़ाज़ा में शांति योजना बन रही है, क्या इसमें भारत की कोई भूमिका है?

गाज़ा में संघर्ष के दोनों पक्ष अगर किसी एक देश पर भरोसा करते हैं तो वह भारत ही है. इजरायल कुछ अरब तथा मुस्लिम देशों पर भरोसा नहीं करता, और फिलस्तीन को किसी पश्चिमी देश के प्रभाव या भागीदारी का संदेह है.

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गाज़ा में युद्धविराम कुलमिलाकर कायम है, हालांकि इजरायल गज़ा में नागरिकों पर बार-बार हमले करके और हमास इज़राइली सैनिकों पर कथित रूप से हमले करके इसे भंग करता रहा है. युद्धविराम समझौता 10 अक्टूबर को लागू हो गया था, और यह अपने शुरुआती मकसद हासिल करने में अब तक सफल रहा है.

सभी जीवित बंधकों को इजरायल को लौटा दिया गया है. यह युद्धविराम को लागू करने की पहली शर्त थी. संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों की ओर से वहां थोड़ी-थोड़ी मात्र में खाद्य सामग्री, पानी, दवा, ईंधन आदि के रूप में राहत पहुंचने लगी है, हालांकि मानवीय संकट जितना गंभीर है उस अनुपात में यह नहीं है.

सैकड़ों-हजारों परिवार फिर से अपने जीवन की टूटी कड़ी को जोड़ने के लिए अपने नष्ट मकानों की ओर धीरे-धीरे लौटने लगे हैं. और उन्हें उम्मीद है कि मौत और तबाही का दुःस्वप्न फिर कभी दोहराया नहीं जाएगा.

शुरुआती कदम

यह युद्धविराम डॉनल्ड ट्रंप की ’20 सूत्री शांति योजना’ का परिणाम है, जिसकी घोषणा 29 सितंबर को की गई थी. इसमें मसले के स्थायी समाधान की महत्वाकांक्षी कार्य-योजना प्रस्तुत की गई है जिसकी शुरुआत तुरंत युद्धविराम और बंधकों की तुरंत वापसी से की जानी थी. लेकिन शंकाएं और आशंकाएं भी थीं कि युद्धविराम के पिछले प्रस्तावों की तरह यह योजना विफल न हो जाए.

व्यापक धारणा यह थी कि यह योजना हमास के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण होगी क्योंकि इससे उसके अस्तित्व पर ही संकट आने वाला था. इसमें इजरायल को युद्धविराम के मामूली उल्लंघन के बहाने गज़ा में फिर से घुसने की पूरी छूट दी गई है. लेकिन हमास जब सभी जीवित बंधकों को एक साथ रिहा करने को, जो कि इजरायल की केंद्रीय मांगों में शुमार था, राजी हो गया तब युद्धविराम को हरी झंडी मिल गई.

युद्धविराम के पहले महीने में, इसके कई तात्कालिक लक्ष्य हासिल कर लिये गए हैं. इन लक्ष्यों में इजरायली सेना की गज़ा में निर्धारित ‘पीली रेखा’ के पीछे वापसी, इजरायल की ओर से हवाई हमलों तथा गोलाबारी के साथ जमीनी ऑपरेशनों पर रोक शामिल है. इजरायल मृत बंधकों के शव हमास को सौंप रहा है.

लेकिन शांति की योजना की आगे प्रगति इन तीन अहम बातों पर निर्भर है—‘इंटरनेशनल स्टेबिलाइजेशन फोर्स (आईएसएफ) का गठन, गज़ा का परिसीमन तथा हमास का निःशस्त्रीकरण, एक तकनीक केंद्रित तथा अराजनीतिक फिलस्तीन कमिटी का गठन. यह कमिटी योग्य फिलस्तीनियों तथा अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की होगी, जिस पर ‘बोर्ड ऑफ पीस’ नाम की एक नई अंतरराष्ट्रीय परिवर्ती संस्था नजर रखेगी. इस संस्था के अध्यक्ष होंगे राष्ट्रपति ट्रंप. इन तीनों उपायों के साथ अलग-अलग चुनौतियां जुड़ी हैं. लेकिन शांति की योजना को अगर सफल होना है तो उसे लागू करना ही होगा.
सौभाग्य से, कदम कुछ आगे बढ़े हैं. अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के लिए एक प्रस्ताव का मसौदा तैयार कि है जिसके तहत यह एक परिवर्ती संस्था और गाज़ा में आईएसएफ के दो साल के लिए का आदेश दे सकती है. इस मसौदे को यूएनएससी के 10 निर्वाचित सदस्यों के साथ साझा किया जा रहा है. इसके अलावा मिस्र, क़तर, सऊदी अरब, तुर्किये और यूएई के प्रतिनिधि इस प्रस्ताव को क्षेत्रीय समर्थन जाहिर करने के लिए अमेरिका से हाथ मिला सकते हैं. प्रस्ताव की स्वीकृति के लिए उसके पक्ष में कम-से-कम नौ वोट जरूर पड़ने चाहिए और रूस, चीन ब्रिटेन या फ्रांस की ओर से कोई वीटो न आए. यूएनएससी से मंजूरी इस योजना के मसौदे को कहीं ज्यादा वैधता प्रदान करेगी.

फिलस्तीन के प्रमुख राजनीतिक गुट 24 अक्टूबर को काहिरा में इकट्ठे हुए और टेक्नोक्रेटों की एक स्वतंत्र कमिटी द्वारा गाज़ा का प्रशासन संभालने के मुद्दे पर चर्चा की. एक-दूसरे के घोर विरोधी फतह और हमास समेत ऐसे आठ गुट गाज़ा के भावी शासन के विकल्पों पर चर्चा करने के लिए गुप्त बैठक कर रहे हैं. असली सवाल यह है कि क्या हमास युद्ध के बाद प्रशासन का स्वरूप तय करने में कोई भूमिका निभा सकता है, जबकि इजरायल ने शांति के लिए साफ शर्त रखी है कि इस गुट को गाज़ा में कोई राजनीतिक भूमिका निभाने की छूट नहीं दी जा सकती.

मिस्र के विदेश मंत्री बद्र अब्देलती ने अनुकूल और स्वीकार्य नतीजा निकलने की उम्मीद का है, “मुख्य मकसद फिलस्तीनी सत्ता और फिलस्तीनियों को इतना ताकतवर बनाना है कि वे गाज़ा को ‘वेस्ट बैंक’ के अभिन्न हिस्से के रूप में संभालने के काबिल बन सकें और स्वतंत्र फिलस्तीन का सपना साकार हो सके.” उन्होंने यह भी कहा कि कमिटी को फिलस्तीनियों की रोजाना की जिंदगी को चलाने की ज़िम्मेदारी सौंपी जाएगी, पुलिस को गाज़ा में कानून लागू करने और सुरक्षा प्रदान करने का काम सौंपा जाएगा”.

भारत की स्थिति

शर्म अल-शेख में 13 अक्टूबर को जो उच्चस्तरीय शांति शिखर सम्मेलन हुआ उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नहीं शामिल हुआ. इस सम्मेलन में राष्ट्रपति ट्रंप ने गज़ा का नए सिरे से पुनर्निर्माण करने की घोषणा की. सम्मेलन में भारत का प्रातिनिधित्व विदेश राज्यमंत्री कीर्ति वर्द्धन सिंह ने किया. मोदी की नौपस्थिति की कोई साफ वजह नहीं बताई गई, लेकिन अधिकतर जानकारों ने इसे अमेरिका के साथ ‘टैरिफ वार’ से और ट्रंप द्वारा निरंतर किए जा रहे इस वादे से जोड़ा कि मई में भारत-पाकिस्तान युद्ध को होने से उन्होंने ही रोका.

गाज़ा में भारत की भारत की भूमिका को लेकर ये कुछ बातें उभरती हैं:

  1. ट्रंप की शांति योजना और गज़ा में युद्धविराम का सबसे पहले स्वागत करने वाले देशों में भारत भी शामिल था.
  2. संघर्ष के दोनों पक्ष अगर किसी एक देश पर भरोसा करते हैं तो वह भारत ही है. इजरायल कुछ अरब तथा मुस्लिम देशों पर भरोसा नहीं करता, और फिलस्तीन को किसी पश्चिमी देश के प्रभाव या भागीदारी का संदेह है.
  3. भारतीय सेना को इजरायल की सीमाओं पर संयुक्त राष्ट्र के मिशनों में सक्रिय भागीदारी का वर्षों का अनुभव हासिल है— जैसे लेबनान में संयुक्त राष्ट्र के ‘इंटरिम फोर्स’ और सीरिया की सीमा पर गोलन हाइट्स में संयुक्त राष्ट्र के ‘डिसइंगेजमेंट ऑब्जर्वर फोर्स’ नामक मिशनों में.
  4. गाज़ा में ‘आईएसएफ’ को संयुक्त राष्ट्र का आदेश इस फोर्स में योगदान करने को लेकर भारत की सैद्धांतिक बाधा को दूर कर देगा.

मध्य-पूर्व में अमन की कोशिशों पर भारत का भारी दांव लगा है क्योंकि वह न केवल इस क्षेत्र में बल्कि इसके यूरोप तक अपने व्यापार का विस्तार करना चाहता है और सुरक्षा को भी मजबूत करना चाहता है. भारत की आर्थिक वृद्धि की संभावनाओं को मजबूती देने वाली एक प्रमुख परियोजना है ‘भारत-मध्य-पूर्व-यूरोप आर्थिक कॉरीडोर’ (आईएमईसी). इस परिवर्तनकारी परियोजना की घोषणा सितंबर 2023 में दिल्ली में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में की गई थी. लेकिन गाज़ा में युद्ध ने इस पर रोक लगा दी. अब गाज़ा में जब अमन धीरे-धीरे कायम हो रहा है तब भारत का हित इसी में है कि वह इस प्रक्रिया से ‘अलग’ न रहकर इसमें ‘शरीक’ हो.

इस संदर्भ में, इजरायल के विदेश मंत्री गिदियों सार की 4 नवंबर की भारत यात्रा महत्वपूर्ण है. इस यात्रा के दौरान भारत और इजरायल ने रक्षा उपकरणों और टेक्नोलॉजी के मामलों में आपसी सहयोग बढ़ाने के सहमति पत्र पर दस्तखत किए. लेकिन इससे भी ज्यादा अहम थी गाज़ा में अमन की प्रक्रिया पर की गई बातचीत. सरकारी स्तर की वार्ताओं के बाद मीडिया से बात करते हुए सार ने इस प्रक्रिया में भारत की भूमिका के बारे में संकेत दिए. उन्होंने कहा, “यह योजना यथार्थपरक है और इसे चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा. यह अपने रास्ते पर आगे बढ़े इसमें दुनिया के अगुआ के रूप में भारत को प्रमुख भूमिका निभानी है.”

आगे की राह

गाज़ा में शांति की प्रक्रिया धीरे-धीरे आकार ले रही है, यह एक हौसला बढ़ाने वाला संकेत है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ‘आईएसएफ’ का जो मसौदा प्रस्ताव रखा गया और फिलस्तीनी गुट शासन के मॉडल पर जो विचार-विमर्श कर रहे हैं उन सबसे उम्मीद बंधती है. इस क्षेत्र में भारत के प्रति जो सकारात्मक नजरिया है उसे देखते हुए मौके को नहीं गंवाया जा सकता.

वास्तव में, ‘आईएसएफ’ के प्रस्ताव को सुरक्षा परिषद से मंजूरी दिलाने के लिए भारत एक अहम दावेदार के रूप में रूस और चीन से पैरवी कर सकता है. यह क्षेत्र में स्थिरता बहाल करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के झंडे तले एक सेना का गठन करने का रास्ता बनाएगा और इस बात की व्यवस्था करेगा कि भारत शांति की इस प्रक्रिया के ‘अंदर’ शामिल रहे.

कर्नल राजीव अग्रवाल (रिटायर्ड) चिंतन रिसर्च फ़ाउंडेशन में सीनियर रिसर्च कंसल्टेंट हैं. उनका एक्स हैंडल @rajeev1421 है. व्यक्त विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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