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Sunday, 9 November, 2025
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एयरलाइन कंपनियों के स्वैच्छिक टिकाऊ विमानन ईंधन को अपनाने से कार्बन उत्सर्जन कम होगा: एयरबस अधिकारी

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(मनोज राममोहन)

नयी दिल्ली, नौ नवंबर (भाषा) एयरलाइन कंपनियों के स्वैच्छिक रूप से टिकाऊ विमानन ईंधन कार्यक्रम को अपनाने से उन्हें कार्बन उत्सर्जन घटाने में मदद मिलेगी। एयरबस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह उम्मीद जताई और कहा कि ईंधन उत्पादन के लिए फीडस्टॉक संग्रह से भारत को अतिरिक्त सामाजिक-आर्थिक लाभ भी होंगे।

फीडस्टॉक संग्रह में कृषि अवशेष, वन अपशिष्ट या ऊर्जा फसलों जैसे नवीकरणीय कार्बन स्रोतों को जमा किया जाता है और संयंत्रों तक पहुंचाया जाता है।

विमान बनाने वाली यूरोपीय कंपनी एयरबस की भारत में महत्वपूर्ण उपस्थिति है, और उसने एयरलाइन कंपनियों के स्वैच्छिक टिकाऊ विमानन ईंधन (एसएएफ) कार्यक्रमों पर खर्च को सरकार के सीएसआर (कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व) ढांचे के तहत लाने की वकालत की है।

वैश्विक स्तर पर 2040 तक एसएएफ की अनुमानित आवश्यकता 18.3 करोड़ टन होगी।

एयरबस में एसएएफ और सीडीआर (कार्बन डाइऑक्साइड निष्कासन) विकास, टिकाऊ संगठन के प्रमुख जूलियन मनहेस ने कहा कि एसएएफ की एक स्वैच्छिक योजना एयरलाइन के लिए खुद को अलग दिखाने का एक अवसर होगी।

उन्होंने कहा कि इसे पहले कॉरपोरेट ग्राहकों, फिर कार्गो ग्राहकों और अंत में निजी ग्राहकों के लिए लागू किया जा सकता है। टिकाऊ प्रयासों के तहत सरकार जल्द ही एक एसएएफ नीति लेकर आएगी।

मनहेस ने यहां एक साक्षात्कार में पीटीआई-भाषा को बताया कि इसका मकसद अच्छी सीटों और भोजन के साथ ही ‘‘कम कार्बन उत्सर्जन’’ वाली यात्रा की पेशकश करना है।

उन्होंने कहा कि एयरलाइन बिना प्रोत्साहन के एसएएफ योजनाओं को अपनाने में हिचकिचाती हैं क्योंकि इससे लागत बढ़ेगी।

उन्होंने कहा कि स्वैच्छिक मांग बाजार में ऐसा नहीं है और यह एक अतिरिक्त लाभ होगा।

भारत ने 2027 तक विमान ईंधन में एक प्रतिशत एसएएफ, 2028 तक दो प्रतिशत और 2030 तक पांच प्रतिशत मिश्रण हासिल करने का लक्ष्य तय किया है।

भाषा पाण्डेय अजय

अजय

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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