पटना/महुआ/मुज़फ्फरपुर: रात के 12 बजने में एक घंटा बाकी है, लेकिन पटना का दिन ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा है.
नए बने गंगा रिवरफ्रंट—जिसे बिहार की राजधानी अपना ‘मरीन ड्राइव’ कहती है—पर खूब चहल-पहल है. युवाओं के समूह चाय पीते हुए और अपने स्मार्टफोनों पर रील्स बनाते हुए दिखते हैं. यह उनका एकमात्र आराम का समय है. वे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हुए महीनों किताबों में डूबे रहते हैं.
“युवा तो सबसे पहले रोज़गार चाहता है, चाहे कोई भी हो,” टीचर भर्ती परीक्षा (TRE) की तैयारी कर रहे अंकित कुमार ने दिप्रिंट से कहा.
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले प्रमुख राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों में युवाओं के लिए रोज़गार को सबसे अहम मुद्दा बनाया गया है.
सत्ता में बने रहने की कोशिश में NDA ने अपने ‘विकास’ नैरेटिव पर ज़ोर देते हुए वादा किया है कि पीएम मोदी और सीएम नीतीश कुमार की जोड़ी राज्य में औद्योगिक विकास को तेज़ करेगी और एक करोड़ नई नौकरियां पैदा करेगी.
इसके जवाब में महागठबंधन, RJD नेता तेजस्वी यादव के नेतृत्व में, ने राज्य के हर परिवार को एक सरकारी नौकरी देने का वादा किया है. उनका कहना है कि NDA ने सत्ता में रहते हुए पर्याप्त काम नहीं किया, इसलिए गठबंधन ने हर बेरोज़गार युवा को 2,000-3,000 रुपये मासिक भत्ता देने की घोषणा की है.
और नए विकल्प के रूप में उतरे प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने भी अपने अभियान में लगातार नौकरियों और पलायन का मुद्दा उठाया है.
यह साफ है कि युवाओं को लुभाना सभी दलों के लिए ज़रूरी है.
चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 14 लाख युवा पहली बार वोट डालेंगे. 18-29 वर्ष आयु वर्ग के युवा बिहार के 7.42 करोड़ मतदाताओं का बड़ा हिस्सा हैं.
फिर भी, हर कोई सरकार बदलना नहीं चाहता.
“नीतीश जी बिहार के लिए बिल्कुल सही हैं. उनके राज में जो काम हुआ है, पहले वैसा कुछ नहीं हुआ. वह फिर आएंगे तो अच्छा रहेगा,” पटना के अभिषेक कुमार ने कहा.
अभिषेक का कहना था कि हर घर को सरकारी नौकरी देना व्यावहारिक नहीं है. “इंडस्ट्री और फैक्ट्रियां लगानी चाहिए,” उन्होंने कहा.
दूसरी तरफ, कुछ युवा मानते हैं कि नीतीश कुमार ने काम किया है, लेकिन अब बदलाव चाहिए.
“नीतीश कुमार कई बार मुख्यमंत्री रहे हैं, उन्होंने काम भी किया. लेकिन अब हम एक युवा नेता को मौका देना चाहते हैं. बदलाव होना चाहिए. मैं तेजस्वी को एक मौका देना चाहता हूं,” BPSC परीक्षा की तैयारी कर रहे कुनाल कुमार ने कहा.
हालांकि बिहार की बेरोज़गारी दर 2017-18 के 7% से घटकर 2023-24 में 3% हो गई है, 2025 की अप्रैल-जून तिमाही के PLFS रिपोर्ट के मुताबिक 15-29 आयु वर्ग में श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) 33.9% है, जो राष्ट्रीय औसत 42% से कम है.
विशेषज्ञों का कहना है कि नौकरियां पैदा करना संभव है, लेकिन राजनीतिक इच्छा-शक्ति ज़रूरी है.
पूर्व JNU प्रोफेसर डॉ. मोहन राव ने कहा, “मुद्दा सिर्फ रोज़गार नहीं, बल्कि रोजगार क्षमता भी है. लोग कितने कुशल और रोजगारयोग्य हैं.”
डॉ. राव ने बताया कि स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे क्षेत्र बड़ी संख्या में नौकरियां दे सकते हैं.
“लेकिन यही वे क्षेत्र हैं जहां सरकार निवेश घटा रही है. अगर सरकार चाहे, तो कई क्षेत्र हैं जहां नौकरियां बनाई जा सकती हैं,” उन्होंने कहा.
पलायन का मुद्दा उठाकर जन सुराज पार्टी ने युवाओं की भावना को छुआ, लेकिन कई युवा पार्टी को मौका देने को लेकर असमंजस में दिखे.
दूसरे वर्ष के इंजीनियरिंग छात्र श्रीकांत कुमार ने कहा कि वे चाहते हैं कि बिहार में कंपनियां आएं. “मैं चाहता हूं कि हमें बाहर न जाना पड़े,” उन्होंने कहा.
आशीष कुमार ने कहा, “सिर्फ सरकारी नौकरी देना समाधान नहीं है. अवसर बनाने होंगे. किसी नए को मौका देना चाहिए—पीके भी हैं.”
मुज़फ्फरपुर के निवासी रोशन कुमार ने कहा, “अच्छी लोकतंत्र में नया विकल्प होना अच्छा है. अभी शायद जल्दी है, लेकिन भविष्य में विकल्प बन सकते हैं.”
युवाओं की उम्मीदों पर बोलते हुए JDU प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि NDA ने 50 लाख नौकरियां दी हैं.
“अब NDA ने 1 करोड़ नौकरियां देने का वादा किया है. साथ ही महिलाओं को 10,000 रुपये दिए जाएंगे,” उन्होंने कहा.
RJD प्रवक्ता जयंथ जिज्ञासु ने कहा कि बिहार ने काफी सहा है.
“कोई नौकरी नहीं, पेपर लीक होते हैं. युवा हमारा भविष्य हैं. इसलिए तेजस्वी जी ने फ्री यात्रा, हर परिवार को नौकरी और रोज़गार के अवसर पर ज़ोर दिया,” उन्होंने कहा.
अंकित कुमार के लिए मुद्दा सिर्फ एक है. “मैं TRE की तैयारी कर रहा था, लेकिन चुनावों के कारण परीक्षा टाल दी गई… छात्रों को क्या चाहिए? नौकरी,” उन्होंने कहा.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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