जबलपुर (मध्यप्रदेश), तीन नवंबर (भाषा) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने सोमवार को कहा कि आज पूरी दुनिया संकट के दौर से गुजर रही है और वह भारत की ओर आशा भरी निगाहों से देख रही है।
यहां ‘जीवन उत्कर्ष महोत्सव’ को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि दुनिया भारत से यह अपेक्षा इसलिए करती है क्योंकि भारत धर्म व संस्कृति के मार्ग पर चलता है।
उन्होंने कहा, ‘‘सामान्य भाषा में संस्कृति का अर्थ है—संस्कारयुक्त आचरण। जब एक-दूसरे के प्रति सद्भावना और आत्मीयता का भाव होता है, तभी समाज में सौहार्द बना रहता है। अन्यथा, शत्रुतापूर्ण संबंध बनते हैं और झगड़े बढ़ते हैं।’’
संघ प्रमुख ने कहा कि भारत ने अपनी संस्कृति और आध्यात्मिकता की धरोहर को आज भी संजोकर रखा है और समय-समय पर दुनिया को सही मार्ग दिखाने का दायित्व निभाया है।
उन्होंने कहा, ‘‘वास्तव में हम सब एक हैं, आपस में जुड़े हुए हैं। यह जुड़ाव भारत के पास है, दुनिया के पास नहीं। इसलिए आज जब दुनिया संकट में है, तो वह भारत से अपेक्षा कर रही है।’’
भागवत ने कहा कि दुनिया के पास भारत के अलावा कोई और मार्ग नहीं है, क्योंकि भारत धर्म और संस्कृति के सिद्धांतों पर आधारित जीवन जीता है।
उन्होंने कहा कि अब दुनिया यह सीखना चाहती है कि आध्यात्मिकता और आचरण के समन्वय से जीवन कैसे जिया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि संतों का आचरण समाज को दिशा देता है, इसलिए आरएसएस विभिन्न माध्यमों से संतों की सेवा में लगा रहता है।
‘जीवन उत्कर्ष महोत्सव’ के पांच दिवसीय आयोजन के उद्घाटन सत्र में भागवत के साथ बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था के ईश्वरचरण स्वामी भी उपस्थित थे।
यह आयोजन विश्वविख्यात बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था के आध्यात्मिक अधिष्ठाता महंत स्वामी महाराज के जीवन, उपदेशों और सेवा कार्यों को समर्पित है। महंत स्वामी महाराज का जन्म 13 सितंबर 1933 को जबलपुर में हुआ था।
इस अवसर पर मोहन भागवत ने स्वामी भद्रेशदास की एक पुस्तक का विमोचन भी किया और उनके विचारों तथा शिक्षाओं को आज के समाज के लिए अत्यंत प्रासंगिक बताया।
भाषा ब्रजेन्द्र खारी
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