( टिलमैन रफ़, द यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न )
मेलबर्न, 31 अक्टूबर (द कन्वरसेशन) अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पेंटागन को “अन्य देशों के समान आधार पर” परमाणु हथियार परीक्षण तुरंत फिर से शुरू करने का निर्देश दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि यह आदेश वास्तविक विस्फोटक परमाणु परीक्षणों से संबंधित है, तो यह अमेरिका का अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण और चिंताजनक कदम होगा।
विश्लेषकों के अनुसार, इस तरह के किसी भी कदम से रूस और चीन सहित अन्य परमाणु संपन्न देशों की ओर से भी जवाबी कार्रवाई की घोषणाएं होने की आशंका है, जिससे परमाणु हथियारों की नई होड़ शुरू हो सकती है और पूरी मानवता गंभीर खतरे में पड़ सकती है।
परमाणु परीक्षणों से रेडियोधर्मी उत्सर्जन का वैश्विक खतरा भी बढ़ेगा। भले ही परीक्षण भूमिगत किए जाएं, लेकिन रेडियोधर्मी पदार्थों के रिसाव और भूजल प्रदूषण का जोखिम बना रहेगा।
परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि का उल्लंघन
समग्र परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) पर 187 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं, जो विश्व की सबसे व्यापक रूप से समर्थित निरस्त्रीकरण संधियों में से एक है।
अमेरिका ने भी इस पर दशकों पहले हस्ताक्षर किए थे, लेकिन अब तक इसका अनुमोदन नहीं किया है। इसके बावजूद, एक हस्ताक्षरकर्ता देश होने के नाते, वह संधि की भावना और उद्देश्य का उल्लंघन नहीं कर सकता।
क्यों रुके थे परमाणु परीक्षण
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद परमाणु परीक्षणों का मुख्य उद्देश्य हथियारों के प्रभाव और उनके विनाशकारी दायरे को समझना था। लेकिन 1960 के दशक में पर्यावरणीय और स्वास्थ्य दुष्परिणामों के कारण देशों ने वातावरण में परमाणु परीक्षणों पर रोक लगाने पर सहमति बनाई।
1963 की आंशिक परीक्षण प्रतिबंध संधि के बाद केवल भूमिगत परीक्षणों की अनुमति थी। अमेरिका ने 1992 में, फ्रांस ने 1996 में परीक्षण बंद किए, जबकि रूस और चीन ने भी 1990 के दशक के बाद कोई परीक्षण नहीं किया। इस सदी में केवल उत्तर कोरिया ने 2017 में परमाणु परीक्षण किया है।
तकनीकी क्षमताओं के विकसित होने के बाद परमाणु शक्तियों को नए हथियारों के डिज़ाइन का परीक्षण वास्तविक विस्फोट के बिना संभव हो गया, इसलिए भौतिक परीक्षणों की आवश्यकता नहीं रही।
वैश्विक परमाणु प्रसार की चिंता
हाल के वर्षों में सभी नौ परमाणु संपन्न देश — अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, भारत, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया और इज़राइल — अपने हथियार भंडार को और उन्नत, सटीक और तेज बना रहे हैं। इससे परमाणु हथियारों के उपयोग की संभावना बढ़ रही है और यह परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) के तहत उनके निरस्त्रीकरण दायित्वों के विपरीत है।
रूस और इज़राइल जैसे देशों द्वारा हालिया संघर्षों में दिए गए परमाणु धमकी भरे बयान इस खतरे को और बढ़ाते हैं। खबरों के अनुसार, दुनिया भर में सक्रिय परमाणु हथियारों की संख्या फिर से बढ़ने लगी है, जिसमें वे हथियार भी शामिल हैं जो कुछ ही मिनटों में प्रक्षेपित किए जा सकते हैं।
एकमात्र शेष संधि भी संकट में
शीत युद्ध के बाद बनी अधिकतर प्रमुख हथियार नियंत्रण संधियां अब समाप्त हो चुकी हैं। अमेरिका और रूस के बीच न्यू एसटीएआरटी (स्ट्रैटेजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रीटी) ही ऐसी आखिरी संधि है जो दोनों देशों के 90 प्रतिशत परमाणु हथियारों को सीमित करती है।
यह संधि अगले वर्ष फरवरी में समाप्त होने वाली है और इसके नवीनीकरण को लेकर अभी तक औपचारिक वार्ता शुरू नहीं हुई है।
इन सभी घटनाक्रमों के चलते विशेषज्ञों का कहना है कि मानवता के अस्तित्व पर मंडराते खतरों का प्रतीक “डूम्सडे क्लॉक” अब पहले से कहीं अधिक आगे बढ़ गई है।
यह अत्यंत खतरनाक समय है और यदि अमेरिका ने वास्तव में परमाणु परीक्षण फिर शुरू किया तो यह पूरे विश्व के लिए एक भयावह मोड़ साबित हो सकता है।
( द कन्वरसेशन ) मनीषा नरेश
नरेश
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