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Saturday, 11 October, 2025
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‘डिटेक्ट, डिलीट, डिपोर्ट’: अमित शाह की चेतावनी — अवैध घुसपैठ से ‘देश धर्मशाला बन जाएगा’

गृह मंत्री ने स्पष्ट किया, ‘जो लोग धर्म, परिवार, सम्मान और कमाने के लिए आए हैं वे शरणार्थी हैं, लेकिन जो आर्थिक या अन्य कारणों से अवैध रूप से घुसे, वे घुसपैठिए हैं.’

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नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को कहा कि 1947 में धर्म के आधार पर देश का बंटवारा “भारत के लिए एक बड़ी भूल” थी. उन्होंने कहा कि आज़ादी के बाद भारत ने सहिष्णुता की अपनी सदियों पुरानी परंपरा को अपनाया, लेकिन विभाजन ने “देश की सांस्कृतिक एकता और अखंडता को गहरी चोट पहुंचाई.”

शाह ने आरोप लगाया कि कांग्रेस की नीतियों की वजह से बंटवारे के दौरान और उसके बाद करोड़ों हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों को दुख झेलना पड़ा.

उन्होंने कहा, “मैं आज बिना झिझक ये कहना चाहता हूं कि देश के युवाओं और लंबे समय से जी रहे नागरिकों के लिए इन मुद्दों को समझना बहुत ज़रूरी है. देश की संस्कृति, भाषा और आज़ादी को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. धर्म, जनसांख्यिकी और लोकतंत्र — ये तीनों विषय आपस में जुड़े हुए हैं.”

1951, 1971, 1991 और 2011 की जनगणना के आंकड़े साझा करते हुए शाह ने कहा कि जनसंख्या में हुए बदलाव “सिर्फ जन्मदर की वजह से नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार और पिछली सरकारों की नीतियों की वजह से हुए.” उन्होंने इसे धर्म के आधार पर हुए विभाजन से जोड़ते हुए कांग्रेस पर निशाना साधा.

उन्होंने कहा, “अगर देश का बंटवारा न हुआ होता तो जनगणना में धर्म पूछने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती. बंटवारे के बाद कांग्रेस के नेताओं ने धर्म पूछने का फैसला लिया, जिससे गड़बड़ियां और समस्याएं पैदा हुईं. 1951 में तो मेरी पार्टी बनी ही नहीं थी, वह फैसला हमने नहीं लिया था.”

शाह ‘दैनिक जागरण’ के पूर्व एडिटर-इन-चीफ नरेंद्र मोहन की स्मृति में आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे. यह कार्यक्रम ‘जागरण साहित्य सृजन सम्मान’ और ‘हिंदी हैं हम’ पहल के तहत आयोजित किया गया था. इसका विषय था — ‘घुसपैठ, जनसांख्यिकी परिवर्तन और लोकतंत्र’.

घुसपैठ और शरणार्थी

पाकिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों का हवाला देते हुए शाह ने कहा कि हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों को उत्पीड़न का सामना करना पड़ा, जबकि भारत ने उन्हें शरण दी.

उन्होंने कहा, “ये मुद्दे सिर्फ राजनीतिक नहीं हैं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, बेरोज़गारी, गरीबी और सामाजिक सुरक्षा से जुड़े हुए हैं.”

शाह ने कहा, “आजादी के तुरंत बाद जो शरणार्थी भारत आए, उन्हें कई पीढ़ियों तक नागरिकता नहीं दी गई. उन्हें नौकरी, राशन और संपत्ति के अधिकारों से वंचित रखा गया. यह भेदभाव कांग्रेस का फैसला था, कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं.”

उन्होंने स्पष्ट किया, “जो लोग अपने धर्म, परिवार, सम्मान और कमाई के लिए भारत आए, वे शरणार्थी हैं और उन्हें नागरिकता का अधिकार है, लेकिन जो लोग आर्थिक या अन्य कारणों से अवैध रूप से आए, वे घुसपैठिए हैं.”

शाह ने जनगणना के आंकड़े गिनाए: “1951 में हिंदू 84% और मुस्लिम 9.8% थे. 1971 में हिंदू 82% और मुस्लिम 11%. 1991 में हिंदू 81% और मुस्लिम 12.12%. और 2011 में हिंदू 79% और मुस्लिम 14.2% हो गए.”

उन्होंने कहा, “यह संस्कृति और लोकतंत्र की रक्षा का विषय है. जब तक नागरिकों को अपने अधिकारों की जानकारी नहीं होगी, तब तक कोई हमें बचा नहीं सकता. सुरक्षा और लोकतंत्र की ज़िम्मेदारी मेरी है.”

शाह ने कहा कि नरेंद्र मोदी की सरकार में लागू किया गया CAA शरणार्थियों को नागरिकता देने का कानून है.

उन्होंने कहा, “CAA धार्मिक उत्पीड़न से भागे हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन और ईसाइयों को राहत देता है. इसका मकसद किसी की नागरिकता छीनना नहीं है.”

उन्होंने मीडिया पर अपने और कानून को लेकर भ्रम फैलाने का आरोप लगाया.

उन्होंने विदेशों में घटती हिंदू आबादी का ज़िक्र करते हुए कहा, “भारत ने हमेशा अपने संविधान के तहत शरण दी है.”

शाह ने कहा, “अगर देश का विभाजन नहीं हुआ होता तो धर्म आधारित आंकड़े इकट्ठा करने की ज़रूरत नहीं पड़ती. लेकिन विभाजन के बाद 1951 में कांग्रेस ने धर्म पूछने की अनुमति दी. मुस्लिम आबादी में 24.6% की वृद्धि हुई, जबकि हिंदू आबादी में 4.5% की कमी आई. ये बदलाव जन्मदर से नहीं, भ्रष्टाचार से हुए.”

उन्होंने कहा, “1951 में पाकिस्तान में हिंदू आबादी 13% थी, अब 1.73% है. बांग्लादेश में 22% से घटकर 7.9% रह गई. अफगानिस्तान में 2.2 लाख हिंदू और सिख थे, अब सिर्फ़ 150 बचे हैं.”

उन्होंने कहा, “कांग्रेस ने शरणार्थियों को नागरिकता और संपत्ति के अधिकारों से वंचित रखा. मोदी सरकार ने इसे सुधारते हुए उन्हें कानूनी नागरिकता दी.”

CAA पर शाह ने दोहराया, “यह कानून सिर्फ धार्मिक उत्पीड़न से भागे लोगों को राहत देने के लिए है. यह किसी की मौजूदा नागरिकता को प्रभावित नहीं करता. सभी नागरिक — हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई या बौद्ध — लोकतांत्रिक प्रक्रिया का समान हिस्सा हैं.”

अवैध घुसपैठ को रोकने के लिए शाह ने बताया कि बीजेपी ने तीन कदम अपनाए हैं — “डिटेक्ट, डिलीट और डिपोर्ट”.

उन्होंने कहा, “शरणार्थियों को नागरिकता देना ज़रूरी है. 1951 से 2014 तक हुए ऐतिहासिक बदलावों को पहली बार नरेंद्र मोदी ने संबोधित किया. जो हिंदू वैध या शरणार्थी थे, उन्हें लंबी अवधि के वीज़ा, प्रमाण पत्र और बाद में नागरिकता दी गई. कांग्रेस की की गई गलतियों को सुधारा गया, क्योंकि यह हमारा वादा था.”

उन्होंने कहा, “सीमा और नागरिकता को राजनीतिक नज़रिए से नहीं देखा जाना चाहिए. यह राष्ट्रीय सुरक्षा और लोकतंत्र की रक्षा का मुद्दा है.”

‘सबको धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार है’

असम और पश्चिम बंगाल की 2011 की जनगणना का हवाला देते हुए शाह ने कहा, “असम की जनगणना में 29.6% उदार मुस्लिम दिखे — बिना बाहरी दखल के यह संभव नहीं था. पश्चिम बंगाल के जिलों में 40% लोगों ने सीमा पार की. जो लोग घुसपैठ को काल्पनिक बताते हैं, वे इसे कैसे समझाएंगे?”

चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर उन्होंने कहा, “चुनाव आयोग का कर्तव्य है कि वह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराए. किसी से यह पूछना कि वह भारतीय नागरिक है या नहीं, आयोग की ज़िम्मेदारी है. विपक्ष सिर्फ वोट बैंक की राजनीति के लिए इसका विरोध करता है.”

उन्होंने कहा, “सिर्फ भारतीय नागरिकों को ही वोट देने का अधिकार होना चाहिए. गैर-नागरिकों को वोट देने देना लोकतंत्र की मूल भावना को प्रभावित करता है.”

शाह ने ज़ोर देकर कहा, “हमारा संविधान स्पष्ट है — हर व्यक्ति को अपने धर्म के अनुसार अपने इश्वर की उपासना करने का अधिकार है. इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता.”

उन्होंने कहा, “शरणार्थियों और घुसपैठियों में फर्क होना चाहिए, जो धर्म की रक्षा के लिए आते हैं, वे शरणार्थी हैं और उनका स्वागत है; जो आर्थिक कारणों से अवैध रूप से आते हैं, उन्हें वापस भेजना चाहिए, वरना देश धर्मशाला बन जाएगा.”

उन्होंने कहा, “किसी ने कहा था — ‘भूमि लेकर आओगे तो रख लेंगे, लेकिन अगर घुसपैठ करोगे तो लेबल तो लगेगा ही.’”

शाह ने हिंदी और नरेंद्र मोहन को किया याद

नीतियों पर विस्तार से बोलने के बाद शाह ने भाषा और संस्कृति पर बात की और हिंदी के महत्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने पत्रकार नरेंद्र मोहन को श्रद्धांजलि दी.

उन्होंने कहा, “छात्र जीवन में मैंने हिंदी साहित्य बड़े चाव से पढ़ा. हिंदी हमारी सांस्कृतिक धरोहर और सबसे अहम भाषा है.”

इस समारोह में वर्ष 2024 में प्रकाशित विशिष्ट हिंदी साहित्यिक कृतियों को विभिन्न श्रेणियों में सम्मानित किया गया. मुख्य पुरस्कार ‘जागरण साहित्य सृजन सम्मान’, जो उत्कृष्ट मौलिक हिंदी साहित्य को प्रदान किया जाता है, इसके अंतर्गत 11,00,000 रुपये की राशि दी गई.

इसके अलावा, ‘दैनिक जागरण कृति सम्मान’ के अंतर्गत तीन श्रेणियां—हिंदी बेस्टसेलर, उत्तम में सर्वोत्तम और नवांकुर—के कुल 4 वर्गों के लिए 9 रचनाकारों का चयन किया गया. प्रत्येक को 50,000 रुपये की राशि प्रदान की गई.

पहला ‘जागरण साहित्य सृजन सम्मान’ प्रसिद्ध लेखक महेंद्र मधुकर को उनके उपन्यास ‘वक्रतुण्ड’ के लिए प्रदान किया गया, जिसे राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है.

‘दैनिक जागरण कृति सम्मान’ प्राप्त करने वालों में प्रमुख नाम थे — इतिहासकार विक्रम संपत, अभिनेता-संगीतकार-लेखक पियूष मिश्रा, कवि शकील आज़मी, लेखक डॉ. ओमेंद्र रत्नू, और नवोदित लेखक अतुल कुमार राय.

आपातकाल के दौरान नरेंद्र मोहन के योगदान को याद करते हुए शाह ने कहा, “उन्होंने निडर पत्रकारिता की और इसके लिए जेल गए. उनका काम स्वतंत्र प्रेस के प्रति समर्पण का प्रतीक है.”

नरेंद्र मोहन ने 37 साल तक दैनिक जागरण के एडिटर इन चीफ के रूप में काम किया. आपातकाल के दौरान उन्होंने संपादकीय कॉलम खाली छोड़कर सेंसरशिप का विरोध किया, जिसके चलते उन्हें जेल जाना पड़ा. उनका मशहूर कॉलम ‘विचार प्रवाह’ और लेखन उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है. 1996 से 2002 के बीच वे राज्यसभा सदस्य रहे और वित्त, दूरसंचार और गृह मंत्रालय की समितियों में सक्रिय भूमिका निभाई.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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