(तस्वीरों के साथ)
मैसुरु, दो अक्टूबर (भाषा)कर्नाटक के मैसुरु शहर में 11 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध दशहरा उत्सव का बृहस्पतिवार को विजयादशमी के भव्य शोभायात्रा के साथ समापन हो गया।
‘नाडा हब्बा’ (राज्य उत्सव) के रूप में मनाया जाने वाला मैसुरु दशहरा या ‘शरणा नवरात्रि’ उत्सव इस साल कर्नाटक की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं को शाही धूमधाम और गौरव के साथ प्रदर्शित करने का मंच बना।
हजारों लोग ‘जंबू सवारी’ देखने के लिए जुटे। ‘अभिमन्यु’ नाम के हाथी के नेतृत्व में एक दर्जन सजे-धजे हाथियों की शोभायात्रा निकली। अभिमन्यु की पीठ पर मैसुरु और यहां के राजपरिवार की अधिष्ठात्री देवी चामुंडेश्वरी का विग्रह 750 किलोग्राम के स्वर्णिम हौदा या ‘अंबरी’ में स्थापित किया गया।
भव्य शोभायात्रा मुख्यमंत्री सिद्धरमैया द्वारा अपराह्न एक बजे से 1.18 बजे के बीच शुभ ‘धनुर लग्न’ के दौरान राजसी अम्बा विलास पैलेस के बलराम द्वार पर नंदी ध्वज की पूजा के साथ शुरू हुई।
नंदी ध्वज की पूजा करने के बाद सिद्धरमैया ने राज्य के लोगों को विजयादशमी की शुभकामनाएं दीं।
कर्नाटक की विरासत को दर्शाने वाले विभिन्न जिलों के सांस्कृतिक समूहों और झांकियों से युक्त यह शोभायात्रा लगभग पांच किलोमीटर की दूरी तय कर बन्नीमंतपा पहुंची।
सरकारी विभागों की योजनाओं, कार्यक्रमों और सामाजिक संदेशों को दर्शाती झांकियां भी इसमें शामिल थी। शोभायात्रा शुरू होने से कई घंटे पहले ही रास्ते में भारी भीड़ देखी गई।इस दौरान हल्की बारिश हुई।
मुख्यमंत्री सिद्धरमैया, उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार और पूर्व मैसुरु राजघराने के वंशज यदुवीर कृष्णदत्त चामराजा वाडियार सहित गणमान्य व्यक्ति शाम 4.42 बजे से 5.06 बजे के बीच शुभ ‘कुंभ लग्न’ में देवी चामुंडेश्वरी के विग्रह पर पुष्प वर्षा कर ‘जम्बू सवारी’ को रवाना किया। देवी के विग्रह को हाथी की पीठ पर रखे हौदे में स्थापित किया गया था।
इस दौरान नगर की अधिष्ठात्री देवी को 21 तोपों की सलामी दी गई। ‘अभिमन्यु’ नामक हाथी ने छठी बार मां चामुंडेश्वरी को नगर भ्रमण कराया और उसके साथ ‘कुमकी’ हथिनी कावेरी और रूपा थीं। विशेष रूप से बनाए गए मंच से गणमान्य व्यक्तियों ने देवी को पुष्प अर्पित किए।
विजयादशमी पर दशहरा शोभायात्रा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। ऐतिहासिक रूप से, राजा अपने भाई और भतीजे के साथ हौदे में सवार होते थे, श्री जयचामाराजेंद्र वाडियार मैसूर के अंतिम शाही राजा थे जिन्होंने ऐसा किया। आज भी यह परंपरा जारी है लेकिन अब देवी चामुंडेश्वरी का विग्रह 750 किलोग्राम के हौदा में ले जाया जाता है। यह हौदा लकड़ी का है जिसपर करीब 80 किलोग्राम सोने की परत चढ़ी है।
महल में परंपरा को बनाए रखते हुए यदुवीर कृष्णदत्त चामराज वाडियार शाही पोशाक में, अंबा विलास पैलेस से परिसर के भीतर भुवनेश्वरी देवी मंदिर तक ‘विजया यात्रा’ का नेतृत्व किया और ‘शमी’ वृक्ष की विशेष पूजा की।
शोभायात्रा से पहले ‘वज्रमुष्टि कलागा’ – पहलवानों (जेट्टी) के बीच द्वंद्वयुद्ध का आयोजन महल में किया गया, जिसमें राज्य भर से प्रतिभागी भाग लिया।
दस दिनों के दशहरा उत्सव के दौरान मैसुरु के महल, प्रमुख सड़कें, चौक और इमारतें रोशनी से सजी रहती हैं और रोशनी के इस उत्सव को ‘दीपलंकारा’ कहा जाता है। विभिन्न स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ-साथ खाद्य मेला, पुष्प प्रदर्शनी, किसान दशहरा, महिला दशहरा, युवा दशहरा, बाल दशहरा और कविता पाठ जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
शाम बन्नीमंतप मैदान में मशाल परेड में राज्यपाल थावरचंद गहलोत बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए।
महल में नवरात्रि समारोह के तहत दैनिक अनुष्ठान होते हैं, जिसमें वाडियार वैदिक मंत्रोच्चार के बीच स्वर्ण सिंहासन पर बैठकर ‘खासगी दरबार’ (निजी दरबार) लगाते हैं।
विजयनगर शासकों ने दशहरा मनाने की परंपरा शुरू की थी जो मैसुरु के वाडियारों को विरासत में मिली। सन् 1610 में राजा वाडियार प्रथम द्वारा मैसुरु में शुरू किया गया यह उत्सव 1971 में प्रिवी पर्स की समाप्ति के बाद एक निजी समारोह बन गया। यह परंपरा 1975 तक एक साधारण आयोजन के रूप में जारी रही जब तत्कालीन डी. देवराज उर्स सरकार ने इसे राज्य उत्सव के तौर पर भव्य रूप से मनाने की शुरुआत की।
भाषा धीरज नरेश
नरेश
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