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Thursday, 2 October, 2025
होमराजनीति‘पहलगाम पर हुई प्रतिक्रियाओं ने दिखा दिया कि दुनिया में भारत के दोस्त कौन हैं’—RSS प्रमुख मोहन भागवत

‘पहलगाम पर हुई प्रतिक्रियाओं ने दिखा दिया कि दुनिया में भारत के दोस्त कौन हैं’—RSS प्रमुख मोहन भागवत

नागपुर में विजयादशमी के भाषण में मोहन भागवत ने कहा कि अमेरिकी टैरिफ के बीच हमें स्वदेशी वस्तुएं अपनानी चाहिए और पहलगाम हमले के बाद अपनी सुरक्षा क्षमताओं को मजबूत करना ज़रूरी है.

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नई दिल्ली: पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद विभिन्न देशों के रुख ने यह दिखा दिया कि भारत के दोस्त कौन हैं और उनकी मित्रता की सीमा क्या है, यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय से विजयादशमी भाषण में कही. यह अवसर संघ की स्थापना के 100 साल पूरे होने पर भी मनाया जा रहा है.

उन्होंने ज़ोर दिया कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में भारत को और सतर्क, चौकस और मजबूत होना चाहिए, भले ही वह अन्य देशों के साथ दोस्ती बनाए रखे.

भागवत के अनुसार, पहलगाम घटना ने यह स्पष्ट किया कि भारत को सभी के साथ दोस्ती बनाए रखते हुए भी जितना संभव हो सके, उतना सतर्क रहना चाहिए और अपनी सुरक्षा क्षमताओं को विकसित करना चाहिए.

आरएसएस प्रमुख ने कहा, “इस पूरे मामले पर दुनिया के अन्य देशों की प्रतिक्रियाओं ने यह भी दिखाया कि वैश्विक मंच पर हमारे दोस्त कौन हैं और कितनी हद तक वे हमारे साथ खड़े होने के लिए तैयार हैं.”

भागवत ने इस अप्रैल में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा 26 नागरिकों की हत्या के बाद पाकिस्तान में आतंकवादी संरचना के खिलाफ मोदी सरकार की कार्रवाई की भी सराहना की.

भागवत ने ऑपरेशन सिंदूर का ज़िक्र करते हुए कहा, “22 अप्रैल को पहलगाम में, सीमा पार से आए आतंकवादियों ने 26 नागरिक पर्यटकों की हत्या की, उनसे उनके धर्म के बारे में पूछने के बाद. इस हमले ने पूरे भारत में शोक, दुःख और गुस्से की लहर पैदा कर दी. सावधानीपूर्वक योजना के बाद, भारत सरकार ने मई में इस हमले का समुचित जवाब दिया.”

सरकार की प्रतिक्रिया से संतोष व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि मई में पाकिस्तान के साथ संघर्ष के दौरान “देश के नेतृत्व की दृढ़ता, हमारी सशस्त्र सेना का वीरत्व और युद्ध-तैयारी, साथ ही हमारे समाज का संकल्प और एकता” देखने को मिली.

‘निर्भरता बेबसी में बदलनी नहीं चाहिए’

आरएसएस प्रमुख ने अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय सामान पर भारी शुल्क लगाने के बीच स्वदेशी (देशी) वस्तुओं को अपनाने और आत्मनिर्भर बनने की आवश्यकता पर भी ज़ोर दिया.

भागवत ने कहा कि एक जुड़े हुए विश्व में, भारत की व्यापारिक साझेदारों पर निर्भरता बेबसी में नहीं बदलनी चाहिए और भारत को देशी उत्पादन पर ध्यान देना चाहिए. उन्होंने कहा कि स्वदेशी और स्वावलंबन (आत्मनिर्भरता) का कोई विकल्प नहीं है.

उन्होंने कहा, “दुनिया आपस में परस्पर निर्भरता के आधार पर चलती है. आत्मनिर्भर बनकर और वैश्विक एकता को ध्यान में रखकर हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह वैश्विक निर्भरता हमारे लिए मजबूरी न बने और हम अपनी इच्छा के अनुसार कार्य कर सकें. स्वदेशी और स्वावलंबन का कोई विकल्प नहीं है.”

यह पहली बार नहीं है जब भागवत ने ट्रंप के टैरिफ और स्वदेशी वस्तुओं को बढ़ावा देने की ज़रूरत पर बात की हो. अगस्त में, जब अमेरिका ने भारतीय आयात पर शुल्क 50 प्रतिशत तक बढ़ाया था, उस दिन आरएसएस प्रमुख ने कहा था कि व्यापार स्वेच्छा से होना चाहिए, किसी दबाव में नहीं, और स्वदेशी का समर्थन किया था.

ट्रंप ने पहले भारत के लिए 25 प्रतिशत टैरिफ की घोषणा की थी, फिर दिल्ली के रूसी ऊर्जा उत्पादों की खरीद के कारण अतिरिक्त 25 प्रतिशत “दंडात्मक” शुल्क लगाया. अब भारत को कुल 50 प्रतिशत शुल्क का सामना करना पड़ रहा है, जो अमेरिका के किसी भी व्यापारिक साझेदार के लिए सबसे अधिक दरों में से एक है.

भागवत ने गुरुवार को कहा कि आर्थिक क्षेत्र में, मौजूदा संकेतकों के अनुसार भारत की स्थिति सुधर रही है, “साधारण नागरिकों में हमारे देश को वैश्विक नेता बनाने का उत्साह साफ़ दिखाई दे रहा है, खासकर युवा पीढ़ी में.”

लेकिन उन्होंने मौजूदा आर्थिक प्रणाली की कमजोरियों की ओर भी ध्यान दिलाया, जैसे अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई, आर्थिक शक्ति का केंद्रीकरण, नए ऐसे तंत्रों का विकास जो आसान शोषण को सक्षम बनाते हैं, पर्यावरण का क्षरण और वास्तविक अंतरव्यक्तिगत संबंधों की बजाय लेन-देन और अमानवीयता का बढ़ना. उन्होंने कहा कि ये समस्याएं वैश्विक स्तर पर उजागर हुई हैं.

उन्होंने कहा, “हमें कुछ मुद्दों पर अपनी दृष्टि पर पुनर्विचार करना होगा ताकि ये कमज़ोरियां और अमेरिका की केवल अपने स्वार्थ पर आधारित शुल्क नीति हमारे लिए चुनौती न बनें.”

इससे पहले, भागवत ने नागपुर में विजयादशमी के अवसर पर ‘शस्त्र पूजा’ भी की.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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