नई दिल्ली: ट्रंप प्रशासन ने एच-1बी वीज़ा के लिए 1 लाख डॉलर फीस की घोषणा की है. यह 47वें अमेरिकी राष्ट्रपति के दौरान प्रवास (इमिग्रेशन) को लेकर बढ़ती चिंताओं का नया मुद्दा है, लेकिन कई रिसर्च पेपर और सरकारी रिकॉर्ड दिखाते हैं कि “विदेशी” लोगों को लेकर बहस अमेरिकी जनता में 1850 के दशक से चली आ रही है.
एच-1बी प्रोग्राम, जो 1990 के इमिग्रेशन एक्ट के तहत शुरू हुआ था, कानून लागू होने से पहले अमेरिकी कांग्रेस में बहस का बड़ा मुद्दा रहा.
रिसर्च बताते हैं कि सबसे शुरुआती इमिग्रेशन पॉलिसी 19वीं सदी के दूसरे हिस्से में शुरू हुईं, जब अमेरिका में औद्योगिकीकरण तेज़ी से बढ़ रहा था. मई 2000 में द सेंटर फॉर कंपेरेटिव इमिग्रेशन स्टडीज़ (CCIS) में छपे एक पेपर में कहा गया, “मशीनों के बढ़ते इस्तेमाल ने अनस्किल्ड वर्कर्स को काम पर रखना आसान और फायदेमंद बना दिया और यूरोपीय इमिग्रांट्स ने ऐसे कामगारों की बड़ी संख्या उपलब्ध कराई जो लंबे समय तक कम मजदूरी पर काम करने को तैयार थे और गुट बनाने का खतरा नहीं था.”
इस पेपर, जिसका शीर्षक है Evolution of US Policy Toward Foreign-Born Workers, में बताया गया कि 1820 से 1880 के बीच 1 करोड़ से ज्यादा आयरिश, जर्मन, अंग्रेज़, स्कैंडिनेवियन और उत्तरी और पश्चिमी यूरोप के इमिग्रांट्स अमेरिका आए.
इसमें कहा गया, “एशिया से भी छोटे स्तर पर प्रवासी आए, जिनमें चीन के प्रवासी शामिल हैं, जो 1850 के दशक में कैलिफोर्निया में सोने की खानों में काम करने आए और जापानी प्रवासी, जो 1890 के दशक में खेतों में काम करने आए.”
इसका मतलब यह था कि 1870 तक, अमेरिका में हर तीन में से एक निर्माण और मशीनरी श्रमिक प्रवासी था.
यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन के प्रोफेसर चार्ल्स हिर्शमैन ने लिखा, विदेशी जन्मे लोगों की संख्या 19वीं सदी के मध्य से 20वीं सदी के शुरुआती दशकों तक तेज़ी से बढ़ी, जिसे ‘एज ऑफ मास माइग्रेशन’ कहा जाता है.
पेपर में कहा गया, “हालांकि, इमिग्रांट्स के प्रति भेदभाव और पूर्वाग्रह जारी थे. अमेरिकी अब प्रवासियों के सकारात्मक योगदान को मानने लगे हैं. यह विश्वास आंशिक रूप से अमेरिका की ऐतिहासिक छवि ‘एक प्रवासियों का राष्ट्र’ के आधार पर है.”
अमेरिका की आबादी में 14% विदेशी
अमेरिका की लगभग 14% आबादी विदेशी है. अगर इन लोगों के बच्चे भी शामिल करें, तो हर चार में से एक अमेरिकी को हाल के प्रवासियों के समुदाय का हिस्सा माना जा सकता है.
भारत की आईटी कंपनियां अपनी आमदनी का लगभग 60% अमेरिका से कमाती हैं. ये कंपनियां ऐसे कर्मचारियों को अमेरिका में भेजती हैं जो वहां के प्रोजेक्ट्स पर काम करें, जिनके क्लाइंट्स अमेरिका में हैं. अमेरिका आईटी इंडस्ट्री का बड़ा केंद्र है और सिलिकॉन वैली में बड़ी टेक कंपनियों की बहुत मौजूदगी है और ट्रंप द्वारा एच-1बी वीज़ा के लिए एक बार के 100,000 डॉलर फीस से इन कार्यों पर असर पड़ सकता है.
सीसीआईएस की रिसर्च के अनुसार, जब अमेरिकी गृहयुद्ध के दौरान इमिग्रेशन की गति धीमी हो गई थी, तो अमेरिकी कांग्रेस ने 1864 में एक कानून पास किया ताकि लोग अमेरिका आएं. इस कानून से पहला फेडरल इमिग्रेशन ब्यूरो भी बनाया गया, जिसका कार्यालय न्यूयॉर्क में था. इस ब्यूरो का काम था प्रवासियों को अमेरिका में उनकी मंजिल तक पहुंचाने में मदद करना.
पहली पाबंदी 1875 में
लगभग 1880 के दशक में अमेरिका में इमिग्रेशन पर पहली पाबंदियां कानून में आईं. सीसीआईएस के अनुसार, 1875 में एक कानून ने “अपराधियों” और “वेश्यालयियों” को पहले ऐसे प्रवासियों के रूप में चिन्हित किया जिन्हें आने से रोका जा सकता था. 1882 में एक और कानून आया, जिसने हर आने वाले प्रवासी पर टैक्स लगाया और “पागल” और “मूर्ख” लोगों को भी रोकने की सूची में शामिल किया.
रिसर्च बताती है कि ऐसा क्यों हुआ. 19वीं सदी के दूसरे हिस्से में बहुत सारे प्रवासी रेल और स्टीमशिप पर काम कर रहे थे. 1881 से 1930 के बीच अमेरिका में 2.8 करोड़ प्रवासी आए. सबसे ज्यादा प्रवासी इटली, ऑस्ट्रिया-हंगरी, रूस और बाल्टिक देशों से आए.
सीसीआईएस के अनुसार, “अधिकांश अमेरिकी लोगों की नज़र में ये नए प्रवासी पहले आए आयरिश और जर्मनों से भी निचले स्तर के थे और अमेरिकी पहचान के लिए खतरा बन सकते थे.”
इटालियन, यहूदी और पोलिश प्रवासियों के खिलाफ पूर्वाग्रह भी बढ़ा.
1882 में पहला कानून किसी विशेष जाति या नस्ल के खिलाफ बना. इसे चीनी निषेध कानून (Chinese Exclusion Act) कहा गया. कैलिफोर्निया में उस समय चीनी प्रवासी हर 10 में से एक थे. इस कानून ने चीनी श्रमिकों का अमेरिका में आने और नागरिकता पाने पर 10 साल के लिए रोक लगा दी, लेकिन शिक्षक, छात्र, व्यापारी और पर्यटक इससे छूटे.
अमेरिकी विदेश विभाग के अनुसार, “अमेरिका में चीनी प्रवासियों के खिलाफ आपत्तियां आर्थिक, सांस्कृतिक और जातीय भेदभाव के कारण थीं. अधिकतर चीनी श्रमिक अमेरिका इसलिए आए ताकि अपने परिवार को चीन में पैसा भेज सकें.”
US Office of The Historian के अनुसार, 1905 में चीन के व्यापारियों ने इस कानून का विरोध करते हुए अमेरिका का बहिष्कार किया. इसके बाद 20वीं सदी की शुरुआत में यूजेनिक्स आंदोलन (eugenics movement) भी नस्ल और जाति के आधार पर भेदभाव को मान्यता देने में शामिल हुआ.
1904 में ब्रिटिश वैज्ञानिक सर फ्रांसिस गेल्टन ने यूजेनिक्स को कहा: “यह विज्ञान है जो किसी जाति की जन्मजात गुणों को सुधारने और उन्हें अधिकतम लाभ तक विकसित करने के उपाय बताता है.”
इस सिद्धांत की खामी यह थी कि एडोल्फ हिटलर इसका बड़ा समर्थक था, जब दुनिया ने देखा कि हिटलर ने इसका गलत इस्तेमाल किया, तो यूजेनिक्स आंदोलन को बंद कर दिया गया.
1907 में ‘Excludable aliens’ की लिस्ट बढ़ी
1907 में अमेरिका ने नया प्रवास कानून बनाया. इस कानून से “Excludable aliens” यानी ऐसे प्रवासी जिन्हें अमेरिका में आने से रोका जा सकता था, की लिस्ट बढ़ा दी गई. इस कानून ने राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया कि वह किसी भी प्रवासी को अमेरिका आने से रोक सकता है, अगर उसे लगता कि यह देश के मज़दूरी हालात के लिए नुकसानदेह होगा.
यह कानून खासकर जापानी मजदूरों के लिए था. ये लोग हवाई, मेक्सिको और कनाडा के रास्ते अमेरिका आ रहे थे. जापान की सरकार अपने नागरिकों के अमेरिका जाने का विरोध कर रही थी. सीसीआईएस की स्टडी के अनुसार, ये जापानी प्रवासी आर्थिक रूप से बहुत सफल थे, इसलिए अमेरिका में जन्मे लोगों के लिए खतरा माने गए.
फिर, पहले विश्व युद्ध के वक्त “विदेशी कट्टरपंथियों” का डर बढ़ा. 1917 के इमिग्रेशन एक्ट ने पहले के कानूनों को और कड़ा कर दिया. इसके तहत 16 साल से ऊपर के सभी नए प्रवासियों को पढ़ना-लिखना आना ज़रूरी था. इस कानून ने “barred zone” भी बनाई, जिससे एशिया के ज्यादातर देशों के लोगों का अमेरिका में आना रोक दिया गया.
यह एक बड़ा बदलाव था. पहली बार रोकने के नियम बहुत सख्त हो गए. बड़ी संख्या में प्रवासियों को आने से रोका गया और नस्ल और जाति के आधार पर रोक लगाई जाने लगी.
United States Holocaust Memorial Museum के अनुसार, “1921 और 1924 में अमेरिकी कांग्रेस ने ऐसे कानून बनाए, जिनसे नए प्रवासियों की संख्या और उनके देश की पहचान पर सख्त रोक लग गई. 1930 के दशक में यह कानून नहीं बदला, जब नाजी जर्मनी से यहूदी शरणार्थी अमेरिका आना चाहते थे.”
1921 में परिवार के लिए छूट
गौर करने वाली बात यह है कि 1921 के कानून में पहली बार अमेरिका में पहले से रहने वाले प्रवासियों के परिवार के लोगों के लिए विशेष छूट दी गई.
फिर, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान और उसके बाद, अमेरिका का रुख कुछ नरम हुआ. 1942 में एक प्रोग्राम बनाया गया, जिसके तहत मेक्सिको से मजदूर लाए गए ताकि खेती और रेलवे में काम कर सकें. 1952 के कानून ने अमेरिका में कॉन्ट्रैक्ट वाले मजदूरों पर रोक हटा दी और उन्हें आने की अनुमति दी.
इस कानून में आज के एच-1बी वीज़ा विवाद की झलक मिलती है. इस कानून ने कुछ स्थायी वीज़ा विशेष रूप से हायर एजुकेशन, ट्रेनिंग और एक्सपीरियंस वाले इमिग्रांट्स के लिए तय किए.
1965 का इमिग्रेशन एंड नैशनलिटी एक्ट
1965 में अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने इमिग्रेशन एंड नैशनलिटी एक्ट पर हस्ताक्षर किए. इस कानून ने “राष्ट्रीय मूल” के आधार पर प्रवासियों की संख्या सीमित करने वाले नियम हटा दिए. ये नियम पिछले 40 साल से दक्षिण और पूर्वी यूरोप, अफ्रीका और एशिया के प्रवासियों को आने से रोक रहे थे.
सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, 1978 तक अमेरिका में सालाना प्रवासियों की संख्या 6,00,000 से ज्यादा हो गई थी.
सीसीआईएस रिसर्च के मुताबिक, 1965 में यूरोपीय प्रवासियों का हिस्सा 90% था, जो 1985 तक घटकर सिर्फ 10% रह गया. इस बीच हिस्पैनिक और एशियाई प्रवासी कुल कानूनी प्रवासियों का लगभग दो-तिहाई बन गए.
लेकिन जब अवैध प्रवासियों की संख्या बढ़ी, तो 1986 में इमिग्रेशन रिफॉर्म एंड कंट्रोल एक्ट लाया गया. इस कानून ने पहली बार अमेरिका में कंपनियों से यह सुनिश्चित करने को कहा कि उनके कर्मचारी कानूनी रूप से अमेरिका में हैं.
एच-1बी वीज़ा की शुरुआत
फिर एक बड़ा कानून आया, जिससे एच-1बी प्रोग्राम शुरू हुआ. यह था 1990 का इमिग्रेशन एक्ट.
यूएस सिटिजनशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज़ की निदेशक एम. जेड्डो ने कहा, “एच-1बी प्रोग्राम 1990 में बनाया गया था और इसे आधुनिक बनाना ज़रूरी था ताकि अमेरिका की बढ़ती अर्थव्यवस्था को मदद मिल सके.”
इस कानून ने अमेरिका में हाई स्किल वाले अस्थायी कामगारों के लिए नियम बनाए. पहली बार सालाना 65,000 वीज़ा तय किए गए. एच-1बी वीज़ा धारक अधिकतम 6 साल अमेरिका में रह सकते हैं और उनके पास बैचलर डिग्री या उसके बराबर योग्यता होनी चाहिए.
1996 में नया कानून आया, जिसका मकसद अवैध इमिग्रेशन रोकना था. इसमें सीमा नियंत्रण कड़ा करना, अवैध प्रवासियों को पकड़ना और उन्हें वापस भेजने के नियम सख्त करना शामिल था.
एच-1बी वीज़ा की सीमा पहले 1,95,000 तक बढ़ी, फिर फिर से 65,000 कर दी गई. 2005 में यूएस मास्टर डिग्री वाले छात्रों के लिए 20,000 अतिरिक्त स्लॉट जोड़ दिए गए. अब यह सीमा 85,000 है, जिसमें विश्वविद्यालय और रिसर्च संस्थानों के लिए छूट है.
समय के साथ एच-1बी प्रोग्राम अमेरिका की टेक्नोलॉजी और रिसर्च में बहुत ज़रूरी बन गया है. ज्यादातर वीज़ा धारक भारतीय और चीनी हैं.
अमेरिका में प्रवासियों को लेकर चिंताएं 19वीं सदी से रही हैं, लेकिन हाई स्किल वाले कामगारों की ज़रूरत भी हमेशा रही है.
अमेरिका को विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) में कामगारों की कमी रहती है. एच-1बी वीज़ा धारक इन जगहों को भरते हैं.
एच-1बी वीज़ा ग्लोबल टैलेंट के लिए रास्ता है, लेकिन यह अमेरिकी राजनीति में बड़ा मुद्दा भी बना रहेगा, कम से कम तब तक जब तक डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति हैं.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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