बेंगलुरु, 22 सितंबर (भाषा) कर्नाटक में ‘जाति जनगणना’ के नाम से जाना जाने वाला सामाजिक एवं शैक्षिक सर्वेक्षण सोमवार से शुरू हो रहा है।
हालांकि, ग्रेटर बेंगलुरु क्षेत्र में प्रशिक्षण और आवश्यक तैयारियां सुनिश्चित करने के लिए इस प्रक्रिया में एक-दो दिन की देरी हो सकती है।
कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा सात अक्टूबर तक चलने वाले इस सर्वेक्षण में 1.75 लाख गणनाकार शामिल होंगे, जिनमें ज्यादातर सरकारी स्कूल के शिक्षक होंगे। इस गणना में राज्य भर के लगभग दो करोड़ घरों के लगभग सात करोड़ लोगों को कवर किया जाएगा।
अधिकारियों के अनुसार 420 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाला यह सर्वेक्षण ‘‘वैज्ञानिक रूप से’’ किया जाएगा और इसके लिए 60 प्रश्नों की प्रश्नावली तैयार की जाएगी।
वहीं, सर्वेक्षण के लिए तैयार की गई जातियों की सूची को लेकर सत्तारूढ़ कांग्रेस सहित विभिन्न वर्गों की आलोचना और आपत्तियों के बीच आयोग ने कहा कि इन जातियों के नाम ‘‘छिपाए’’ जाएंगे, लेकिन हटाए नहीं जाएंगे। इनमें दोहरी पहचान वाली कई जातियां शामिल हैं – जिनके ईसाई और हिंदू दोनों धर्मों के पहचान वाले नाम शामिल हैं जैसे कि ‘कुरुबा ईसाई’, ‘ब्राह्मण ईसाई’, ‘वोक्कालिगा ईसाई’ आदि।
पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष मधुसूदन आर. नाइक ने रविवार को कहा कि पुस्तिका में जातियों की सूची सार्वजनिक जानकारी के लिए नहीं है और इसकी कोई कानूनी वैधता नहीं है, यह केवल गणनाकर्ताओं को वर्णानुक्रम के अनुसार जातियों की सूची प्राप्त करने में मदद करने के लिए है।
उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला ऐप इन 33 जातियों को दोहरी पहचान के साथ नहीं दिखाएगा, क्योंकि अब इन्हें छिपा दिया गया है। हालांकि, नागरिक अपनी पसंद के अनुसार गणना करने के लिए स्वतंत्र हैं।
भाषा सुरभि रंजन
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