फिल्म एक्ट्रेस सोनाक्षी सिन्हा को पिछले दो दिनों से रामायण के एक प्रसंग की जानकारी न होने की वजह से ट्रोल किया जा रहा है. कौन बनेगा करोड़पति कार्यक्रम में एक प्रतिभागी की मदद करते हुए सोनाक्षी सिन्हा ने संजीवनी बूटी के संदर्भ में कहा कि हनुमान वो बूटी सीता के लिए लाए थे. तब से अब तक सोशल मीडिया पर उनका मजाक बनाया जा रहा है कि उन्हें माइथॉलजी की ‘बेसिक’ जानकारी तक नहीं है. हालांकि, प्रतिभागी राजस्थानी महिला को भी ये पता नहीं था.
सवाल ये है कि एक मिलेनियल लड़की के लिए माइथॉलजी की जानकारी होना जरूरी है क्या?
ये कैसे निश्चित होगा कि बेसिक जानकारी क्या होती है और माइथॉलजी की कितनी बेसिक जानकारी किसी को होनी चाहिए?
पहली बात तो ये कि माइथॉलजी ही पुरुषों को केंद्र में रखकर लिखी-कही गई है. इसमें स्त्रियों का न तो परिप्रेक्ष्य है, न ही उनसे कुछ पूछा गया है. अगर मिलेनियल लड़कियां प्रचलित रामायण ही पढ़ें तो सबसे पहले उन्हें कैकेयी, मंदोदरी, मंथरा, कौशल्या, सुमित्रा, सीता, उर्मिला, शबरी, तारा की कहानियां नजर आएंगी. जबकि समाज प्रचलित रामायण में आदर्श पुत्र राम की परिकल्पना को लेकर बहस करता है. मिलेनियल लड़कियां आदर्श पुत्र राम को अपना आदर्श क्यों बनाएंगी, वो स्त्रियों की मुक्ति का प्रसंग स्त्री पात्रों में क्यों नहीं खोजेंगी?
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अगर रामायण से जुड़े मिथकों को पढ़ें तो लड़कियों को ये पता चलेगा कि कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा राजा दशरथ की रानियां थीं. तीन रानियां क्यों थी और ऐसी स्थिति में दशरथ के पुत्रमोह में स्वर्गवासी होने में गर्व करने जैसा क्या है? तीन रानियों का आपसी पारिवारिक कलह कराकर कैकेयी को दोषी ठहराना कहां तक उचित है? श्रीराम के दुखों का मूल कारण तो राजा दशरथ हैं. कैकेयी को विलेन बनाने की कोशिश में समाज में सुमित्रा का जिक्र तक नहीं किया जाता. उसी तरह सीता की अग्निपरीक्षा को महिमामंडित करते हुए लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला का जिक्र नहीं होता.
मतलब माइथॉलजी में मिलेनियल लड़कियां उन्हीं स्त्रियों के बारे में पढ़ें जिन्होंने पुरुषों की अति बर्दाश्त कर ली है. जैसे कौशल्या और सीता.
स्त्रियों की बात आते ही मिथकों को लेकर हाल में ही एक रोचक प्रसंग हुआ है. मशहूर इतिहासकार रोमिला थापर का एक वीडियो वायरल किया जा रहा है जिसमें वो कह रही हैं कि युधिष्ठिर का प्रेरणास्रोत राजा अशोक हो सकते हैं. यहां पर रोमिला युधिष्ठिर को एक महाकाव्य के पात्र के रूप में देख रही हैं. इतिहास के मुताबिक महाभारत आठवीं-नौवीं शताब्दी तक लिखा गया था. राजा अशोक का इतिहास काल इससे काफी पहले दूसरी-तीसरी शताब्दी ईसा का पूर्व है. पर रोमिला को ट्रोल किया गया. कहा गया कि इतिहास की उन्हें ‘बेसिक समझ’ नहीं है. इतिहास की बेसिक समझ तो ये कहती है कि माइथॉलजी और इतिहास दोनों अलग अलग चीजें हैं. महाभारत माइथॉलजी है और राजा अशोक का कालखंड इतिहास.
समाज में ये प्रचलित धारणा है कि महाभारत पांच हजार साल पहले हुआ था. इसको लेकर काफी बहस हो चुकी है, लेकिन सच ये है कि प्रचलित महाभारत 20-30 साल पहले हुआ था टीवी पर. क्योंकि संस्कृत में लिखे महाभारत को शायद ही कोई पढ़ता है. इसी तरह संस्कृत में लिखे वाल्मीकि रामायण के बजाय लोग टीवी पर दिखाए जाने वाले रामायण सीरियल से ही अपना ज्ञान अर्जित करते हैं. जो लोग संस्कृत की विशेष पढ़ाई करते हैं, वही संस्कृत में लिखे इन काव्यों को पढ़ते हैं. ऐसे इक्का-दुक्का लोग ही मिलेंगे जो शौक से संस्कृत में इन चीजों को पढ़ रहे हैं.
भारत की आजादी के बाद ब्यूरोक्रेसी में पूर्ण रूप से भारतीयों का आगमन हुआ. धीरे-धीरे स्त्रियों के लिए इसमें जगह बननी शुरू हुई. अभी भी पूरी तरह से जगह नहीं बन पाई है. टेक्नॉलॉजी के आगमन के बाद पत्रकारिता, सॉफ्टवेयर, फाइनेंस, बैंकिंग, विज्ञान जैसे विषयों में भी स्त्रियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और धीरे-धीरे अपनी स्थिति मजबूत बनाई है. सेक्सुअल हैरेसमेंट ऐट वर्कप्लेस के लिए विशाखा गाइडलाइन्स आने के बाद स्त्रियों के लिए थोड़ा और आसान हुआ है. मी टू मूवमेंट चलने के बाद स्त्रियां थोड़ा और मजबूत महसूस कर रही हैं.
जब इतिहास में पहली बार एक साथ इतनी स्त्रियां वर्कप्लेस पर अपना हाथ बंटा रही हैं तो माइथॉलजी के फेर में पड़कर वो अपना भविष्य क्यों खराब करें? माइथॉलजी की उपयोगिता यही है कि वो जीवन जीने का अंदाज सिखा सकता है. पर ज्यादातर माइथॉलजी में तो बीते हुए कल की ही बातें हैं. उनका आज के जीवन या भविष्य से कोई लेना-देना ही नहीं है. विशेष रूप से अगर मिलेनियल लड़कियां माइथॉलजी को अपने जीवन का आधार बनायें तो वो बहुत पीछे चली जाएंगी.
औरतों के लिए अभी तो जगह बनी है, माइथॉलजी के बजाय अपने हकों का जानें तो बेहतर रहेगा.