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Thursday, 30 October, 2025
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सुप्रीम कोर्ट करेगा राज्यों के बनाए धर्मांतरण विरोधी कानूनों की संवैधानिक जांच

कई याचिकाएं उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, झारखंड, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की सरकारों द्वारा बनाए गए धर्मांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती देती हैं.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह विभिन्न राज्यों में लागू और लागू की गई धर्मांतरण विरोधी कानूनों पर रोक लगाने की मांग वाली याचिकाओं के समूह पर विचार करेगा.

चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने विभिन्न राज्य सरकारों से इन कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर चार हफ्तों के भीतर जवाब मांगा.

कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई छह हफ्तों बाद तय की है.

सुनवाई के दौरान, एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि कई राज्यों, खासकर उत्तर प्रदेश ने अपने धर्मांतरण विरोधी कानूनों को और ज्यादा सख्त बना दिया है. वकील ने दलील दी कि यूपी में इस कानून का उल्लंघन करने पर न्यूनतम 20 साल की सजा हो सकती है.

आगे यह भी कहा गया कि इन कानूनों में उल्टा सबूत पेश करने की जिम्मेदारी डाली गई है और जमानत मिलना लगभग असंभव बना दिया गया है, खासकर अंतरधार्मिक विवाह से जुड़े मामलों में. जमानत के लिए ‘दोहरी शर्तें’, जो आमतौर पर कठोर कानूनों जैसे यूएपीए और टाडा में मिलती हैं, उन्हें भी इन धर्मांतरण विरोधी कानूनों में शामिल कर लिया गया है, वकील ने कहा.

दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि इस मामले पर पर्याप्त समय देकर विचार करने की जरूरत है. इसलिए उसने उन राज्यों से चार हफ्तों में जवाब मांगा है जिन्होंने धर्मांतरण विरोधी कानून बनाए हैं और मामले को छह हफ्तों बाद फिर से सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है.

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दोनों पक्षों के लिए दो नोडल वकील नियुक्त किए हैं. अधिवक्ता सृष्टि अग्रिहोत्री को याचिकाकर्ताओं की ओर से और अधिवक्ता रुचिरा गोयल को राज्यों की ओर से नियुक्त किया गया है.

कई याचिकाएं उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, झारखंड, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की सरकारों द्वारा बनाए गए धर्मांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती देती हैं.


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