बांग्लादेश के हिंदू ‘Man Bites Dog’ सिंड्रोम के शिकार हो गए हैं – यानी भारतीय मीडिया में यह खबर असामान्य लगती है और स्थानीय प्रेस में इसे नज़रअंदाज किया जाता है. पिछले साल में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमलों के बारे में इतना लिखा और ट्वीट किया गया कि अब नए हमलों की खबरें आसानी से मीडिया में जगह नहीं बना पातीं.
एक प्रमुख भारतीय न्यूज़ वेबसाइट में काम करने वाले एक पूर्व सहकर्मी ने बताया कि उनके संपादक ने बांग्लादेश में दुर्गा पूजा संघों पर खबर चलाने के विचार को ठुकरा दिया क्योंकि उन्हें इस्लामवादियों की धमकियों के कारण पूजा पंडालों के लिए प्रायोजक नहीं मिल पा रहे थे.
संपादक ने कहा, “पाठक जानते हैं कि यह हो रहा है. उनकी दिलचस्पी खींचने के लिए हम कुछ नया नहीं लिख सकते. अगर हिंदुओं ने इस्लामवादियों पर हमला किया होता, तब यह खबर बनती.” मैं उन्हें दोष नहीं दे सकता. मैंने बांग्लादेश के हिंदुओं पर किताब लिखी है और दो साल तक उनकी स्थिति की रिपोर्टिंग की है, इसलिए मेरे लिए यह मुद्दा अब नया नहीं है.
लेकिन अब इस कहानी में एक नया पहलू जुड़ा है. भारतीय सरकार ने अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों के लिए समय सीमा बढ़ा दी है, ताकि वे बिना वैध यात्रा दस्तावेज़ के भी देश में कानूनी तौर पर रह सकें. जो लोग 31 दिसंबर 2024 से पहले भारत आए थे, उन्हें रहने की अनुमति दी जाएगी.
यह बांग्लादेश के हिंदुओं के लिए मददगार हो सकता है क्योंकि उनके देश में उनका इंतज़ार सिर्फ हिंसा, जबरन धर्म परिवर्तन या इशनिंदा कानून के तहत जेल है, लेकिन सवाल यह है कि इस मुद्दे पर अब तक आपने उनसे कोई आवाज़ क्यों नहीं सुनी?
क्या बांग्लादेश में हिंदू बोल सकते हैं?
संक्षिप्त जवाब: नहीं, वे बोल नहीं सकते. बांग्लादेश के हिंदू धर्म और समुदाय के नेता या तो जेल में हैं या छिपे हुए हैं. वहीं कुछ बांग्लादेशी पत्रकार, जिन्होंने उनके लगातार उत्पीड़न की रिपोर्ट करने की कोशिश की जो 5 अगस्त 2024 को शेख हसीना सरकार के पतन के बाद और बढ़ गया या तो अपनी नौकरी खो चुके हैं या रहस्यमय तरीके से मर गए हैं.
भारत में मेडिकल वीज़ा पर लंबे समय से रह रहे बांग्लादेशी हिंदू कार्यकर्ता रंजीत रॉय ने दिप्रिंट को बताया कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का विस्तार शायद उनकी जान बचा सकता है.
रॉय ने कहा, “हसीना शासन के पतन से पहले भी मैं अपने देश में हिंदुओं के खिलाफ अत्याचारों के बारे में मुखर रहा हूं, लेकिन अब, उनके पतन के बाद, रोज़ाना हो रहे खुले इस्लामी हिंसा के बीच मेरे लिए देश लौटना असंभव है. मैं बांग्लादेश में टार्गेट किए गए व्यक्तियों में से हूं.”
रॉय ने आगे कहा कि सीएए भारत की भू-रणनीति का भविष्य है. 1950 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए लियाकत-नेहरू समझौते की विफलता—जो अल्पसंख्यक अधिकारों को लेकर किया गया था, इसे भारतीय राज्य के लिए नैतिक जिम्मेदारी बनाता है कि पड़ोसी देशों से उत्पीड़ित हिंदुओं को वापस लाया जाए.
रॉय ने कहा, “बांग्लादेश पाकिस्तान नहीं था. 1971 में उसने अलग रास्ता चुना और ईस्ट पाकिस्तान बांग्लादेश बन गया. आज वही देश पिछली राह पर लौट गया है. हम उम्मीद करते हैं कि लगभग 2 करोड़ हिंदू मई 2026 तक CAA विस्तार का लाभ उठाएंगे.”
रॉय के अनुसार, बांग्लादेश के हिंदू केवल असहाय नहीं हैं; उनकी आवाज़ दबा दी गई है. वरिष्ठ हिंदू पत्रकार बिभुरंजन सरकार की लाश 22 अगस्त को मुन्शीगंज के गजारिया के चार बालकी इलाके में मेघना नदी से बरामद हुई, दो दिन बाद जब वह लापता हुए थे.
21 अप्रैल को द डेली स्टार के दिनाजपुर संवाददाता कोंगकॉन कर्माकर को ईमेल और व्हाट्सएप के जरिए नौकरी से निकालने की सूचना मिली. कर्माकर ने 17 अप्रैल को पूजा उद्धापन परिषद से जुड़े 55 साल के हिंदू नेता भावेश चंद्र रॉय के अपहरण पर रिपोर्ट की थी. बाद में भावेश चंद्र रॉय की लाश मिली.
इस मामले की रिपोर्टिंग को भारत सहित कई मीडिया आउटलेट्स ने उद्धृत किया. भारत के विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने 19 अप्रैल को ट्वीट किया:
“हमने बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यक नेता भावेश चंद्र रॉय के अपहरण और निर्मम हत्या को गंभीरता से देखा है. यह हत्या अंतरिम सरकार के तहत हिंदू अल्पसंख्यकों के व्यवस्थित उत्पीड़न का पैटर्न दर्शाती है.”
3 मई को द हिंदू ने न्यू दिल्ली स्थित राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि आठ महीने में अंतरिम बांग्लादेश सरकार ने 640 पत्रकारों को निशाना बनाया, जिससे मीडिया स्वतंत्रता पर अंकुश लगा.
बांग्लादेशी नास्तिक ब्लॉगर आज़म खान ने दिप्रिंट को बताया कि सिर्फ मुख्यधारा के मीडिया पर ही नहीं, बल्कि सोशल मीडिया यूजर्स को भी निशाना बनाया जा रहा है. उनके फेसबुक अकाउंट पर 95,000 फॉलोअर हैं. उन्होंने कहा कि युनुस प्रशासन और हिंदुओं के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा की आलोचना करने वाले पोस्ट को ब्लॉक किया जा रहा है.
उन्होंने कहा, “हाल ही में मैंने रांगपुर में हिंदुओं के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ पोस्ट किया और फेसबुक ने मुझे बैन कर दिया. यह एक घटना नहीं है, जब भी मैंने समीक्षा की मांग की, फेसबुक ने बैन को बरकरार रखा और मुझे ‘खतरनाक संगठनों’ का समर्थन करने का आरोप लगाया, जबकि मेरे पोस्ट वही संगठनों के खिलाफ थे जो बांग्लादेश में सभी उदार मूल्यों को नष्ट करना चाहते हैं.”
पूर्व बांग्लादेशी राजदूत मोरक्को मोहम्मद हारून अल रशीद ने कहा कि प्रेस और सोशल मीडिया पर प्रतिबंधों, भीड़ द्वारा हमलों, बलात्कार, इशनिंदा कानून के तहत गिरफ्तारियों और जबरन धर्म परिवर्तन के कारण पिछले साल अत्याचार बढ़ गए हैं.
उन्होंने कहा, “आप थक जाएंगे अगर आप गिनने की कोशिश करें कि कितने हिंदू बांग्लादेशियों को धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के झूठे आरोप में गिरफ्तार किया गया.”
अल्पसंख्यक अधिकारों के मुद्दे पर सबसे विश्वसनीय आवाज़ों में से एक, राणा दासगुप्ता, देश में छिपे हुए हैं. 70 से अधिक उम्र के और कैंसर से जूझ रहे दासगुप्ता बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं और उन्होंने बांग्लादेश अंतरराष्ट्रीय फौजदारी न्यायाधिकरण में अभियोजक के रूप में भी सेवा की. वह बांग्लादेश हिंदू-बौद्ध-ईसाई यूनिटी काउंसिल के महासचिव भी हैं. हसीना के पतन के बाद, दासगुप्ता के खिलाफ दो हत्या और दो हत्या प्रयास के मामले दर्ज हैं.
यूनिटी काउंसिल के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दिप्रिंट को नाम न छापने की शर्त पर बताया कि दासगुप्ता के खिलाफ मामले झूठे और राजनीतिक रूप से प्रेरित हैं.
उन्होंने चेतावनी दी कि “युनुस प्रशासन किसी को भी जेल में डालना चाहता है जो इस मुद्दे पर बोलने की हिम्मत करता है. सीएए का विस्तार हमारे लिए बड़ी उम्मीद लेकर आया है. युनुस प्रशासन को अब हिंदुओं को बांग्लादेश छोड़ने से रोकने के लिए हर संभव कदम उठाना चाहिए.”
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भारत में विरोध
सीएए की समय सीमा बढ़ाने के फैसले का भारत में भी विरोध हुआ है. तीन सितंबर को असम जातीय परिषद ने केंद्र के इस फैसले के खिलाफ प्रदर्शन किया और इसे “सबसे बड़ा अपराध” बताया.
AJP अध्यक्ष लुरिनज्योति गोगोई और महासचिव जगदीश भूयन ने मीडिया से कहा, “बीजेपी नेताओं को अच्छी तरह पता है कि असमिया बोलने वालों की संख्या साल दर साल घट रही है. हर दशक में असमिया बोलने वालों का अनुपात करीब 5% कम हो जाता है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, असम की सिर्फ 48% आबादी असमिया बोलती है.”
कांग्रेस की असम इकाई और आम आदमी पार्टी ने भी केंद्र के फैसले की निंदा की है.
पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल में भी सीएए को लेकर जबरदस्त बहस छिड़ी हुई है। बंगाल बीजेपी ने जहां इस कदम का स्वागत किया, वहीं तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता कुनाल घोष ने कहा, “यह सिर्फ मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश है क्योंकि बीजेपी यहां चुनाव से पहले CAA, NRC और SIR के नाम पर लोगों को गुमराह कर अपना एजेंडा पूरा करना चाहती है.”
लेकिन सुरक्षा के लिए बेताब बांग्लादेशी हिंदुओं के लिए यह बहस बहुत पहले ही खत्म हो चुकी है.
23 नवंबर 2023 को दिल्ली में मेरी किताब Being Hindu in Bangladesh के लॉन्च के समय लेखक-आर्थिक विशेषज्ञ संजीव सान्याल ने कहा था कि “बांग्लादेशी हिंदू वे भारतीय हैं जिन्हें हमने पीछे छोड़ दिया था.”
अब वक्त आ गया है कि हम उन्हें वापस लाएं.
(दीप हालदार लेखक और पत्रकार हैं. उनका एक्स हैंडल @deepscribble है. यह उनके निजी विचार हैं.)
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