बल्लारी/कोप्पल/बगलकोट: जब हुलिगेम्मा पहली बार स्कूल गई, तो टीचर ने उसके पिता का नाम पूछा. उसे कोई जानकारी नहीं थी. गलियारे में फुसफुसाहट हुई — “सुले मक्लू”, वेश्या का बच्चा.
“मैंने कभी पिता की तलाश नहीं की. हालांकि मुझे हमेशा पता था कि जीवन में पिता जैसा कोई होगा तो सुरक्षा मिलेगी, जो मेरी मां ने दी. मैंने लोगों को कहते सुना कि मेरी मां देवदासी हैं. इसे समझने में मुझे समय लगा,” 21 वर्षीय हुलिगेम्मा ने कहा. वह अपने मां केंचम्मा और तीन भाई-बहनों के साथ संडूर गांव, बल्लारी जिले में रहती हैं.
अब कर्नाटक में नया राज्य कानून 1982 में देवदासी प्रथा पर लगे प्रतिबंध से आगे जा रहा है. यह कानून देवदासियों और उनके बच्चों को आवास, स्वास्थ्य देखभाल, विरासत के अधिकार और कलंक से सुरक्षा का वादा करता है. यह प्रथा, जो ज्यादातर दलित महिलाओं को मंदिरों में समर्पित करती है लेकिन उन्हें वेश्या के रूप में लेबल करती है, राज्य में लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित करती रहती है.
लेकिन किसे लाभ मिलेगा यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि किसे गिना जाता है.
राज्य मानवाधिकार आयोग ने सिद्धारमैया नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार से कहा है कि देवदासियों का सर्वे पूरा करें और 23 अक्टूबर तक सिफारिशें जमा करें. 2007-08 के आखिरी सर्वे में कर्नाटक में 46,660 महिलाओं को गिना गया था. नए कानून के लाभों की पहुंच इस सर्वे पर निर्भर करेगी. अगर पहले की तरह केवल 1982 से पहले समर्पित महिलाओं को शामिल किया गया, तो केंचम्मा जैसी युवा देवदासियों और उनके बच्चों को फिर से बाहर रखा जाएगा.

इस महीने की शुरुआत में सिद्धारमैया ने घोषणा की कि देवदासी सर्वे सितंबर के पहले सप्ताह से किया जाएगा.
उन्होंने कहा, “अगर देवदासी प्रथा आज भी जीवित है, तो यह हम सभी के लिए शर्म की बात है.”
देवदासी जाति, धर्म और यौनश्रम के पेचीदा मोड़ पर हैं. हुलिगेम्मा ने पहली बार 18 अगस्त को राज्य विधानसभा में पास कर्नाटक देवदासी (रोकथाम, निषेध, राहत और पुनर्वास) अधिनियम, 2025 के बारे में एक सामुदायिक न्यूज़लेटर के माध्यम से सुना. उसने यह अपनी मां को सुनाया, जो पढ़ने में संघर्ष करती हैं.
“मेरी मां को उम्मीद है कि अब हम चारों बच्चे गरीबी और भेदभाव से मुक्त जीवन जी सकेंगे,” हुलिगेम्मा ने कहा. अपने एक कमरे के घर में, वह केंचम्मा के लिए मीठी दूध वाली चाय बनाती हैं.

45 वर्षीय केंचम्मा ने कहा, “मुझे डर है. मैं कभी अपनी बेटी को इस राह से नहीं गुजरने दूंगी.” उसे तब केवल दस साल की उम्र में उसके माता-पिता ने देवदासी के रूप में समर्पित किया था क्योंकि वह “सुंदर” थी और उन्हें पैसे की जरूरत थी. उसने अपनी ब्लाउज के नीचे से दो हार निकाले: एक सफेद-लाल मोतियों वाला मुथु और मंदिर में बंधा मंगलसूत्र. यह उसे देवी की सेविका को दर्शाता था; असल में यह उसे पुरुषों के लिए सेक्सवर्कर के रूप में दिखाता था.
केंचम्मा ने कहा, “यह सबसे बुरी प्रथा है, लोग आपको केवल यौनकर्मी के रूप में देखते हैं.” वह अब खेत मजदूरी करती हैं.
तीन बेटों से ज्यादा, वह हुलिगेम्मा पर ध्यान देती हैं, जो स्थानीय कॉलेज में बीए कर रही हैं. लेकिन यह संघर्ष है. इस सेमिस्टर की फीस वह नहीं दे पाई हैं.
“मैं पढ़ाई छोड़ना नहीं चाहती, यह ही एकमात्र तरीका है जिससे मेरी और मेरे परिवार की जिंदगी इस नर्क से बाहर निकल सके,” हुलिगेम्मा ने कहाय

सदियों पहले, कोई नहीं जानता कब, गरीब परिवार की लड़कियों को मंदिरों में देवी की सेवा के लिए समर्पित किया जाता था. जो पहले सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान पूजा था, वह दलित महिलाओं, खासकर मडीगा, मदार और होलेया समुदाय की महिलाओं के व्यवस्थित यौन शोषण में बदल गया. कर्नाटक में लगभग 95 प्रतिशत देवदासी दलित हैं. 1982 में राज्य ने देवदासी (समर्पण निषेध) अधिनियम के माध्यम से प्रथा को प्रतिबंधित किया. फिर भी यह प्रथा उत्तरी जिलों जैसे बेलागावी, विजयपुरा, बगलकोट, कोप्पल, बल्लारी, रायचूर और कालाबुरगी में जड़ें जमा रही.
मुक्त होने के लिए महिलाएं बच्चों को पढ़ाने और जाति गौरव के माध्यम से सम्मान स्थापित करने पर निर्भर रही हैं. राज्य की भूमिका न्यूनतम रही, हालांकि पिछले सर्वेक्षण में गिनी गई महिलाओं को देवदासी प्रमाणपत्र मिले, जिसके माध्यम से उन्हें कुछ लाभ मिले. कुछ को जमीन, लगभग 2,500 रुपये की पेंशन और विवाह के लिए वित्तीय प्रोत्साहन मिला—देवदासी से विवाह करने वाले पुरुष के लिए 3 लाख रुपये, महिला के लिए 5 लाख रुपये.

इस बार, देवदासियों ने कानून बनाने में अधिक भाग लिया. यह कानून नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (NLSIU) की टीम द्वारा सात महीने के शोध के बाद, एनजीओ, कार्यकर्ताओं और 15,000 से अधिक देवदासियों के साथ मिलकर तैयार किया गया. 15 देवदासियों के बच्चों ने उत्तरी कर्नाटक के जिलों में समस्याओं और सुझावों को दर्ज किया. इसके बाद सलाह-मशविरा हुए, जिसमें समुदाय ने अपने जीवन को सुधारने के लिए बदलाव सुझाए.
ड्राफ्टिंग कमिटी के कोऑर्डिनेटर आरवी चंद्रशेखर ने कहा कि सर्वे जाति विवरण बताएगा और दिखाएगा कि यह प्रथा जातिवादी उत्पीड़न से कैसे जुड़ी हुई है.