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Tuesday, 5 November, 2024
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रेलवे में खोया भरोसा लौटाने में जुटा है ये कर्मचारी, 78 लोगों का छूटा सामान पहुंचा चुका है मालिक तक

चार वर्षों में 78 यात्रियों को स्टेशन या ट्रेन में छूटी चीज़ें सही-सलामत उनके मालिक तक पहुंचाया जा चुका है. इन सामानों में मोबाइल फ़ोन, लैपटॉप, बैग, ज़रुरी दस्तावे़ज़ और गहने भी शामिल हैं.

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नई दिल्ली: नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर एक दिन में छह लाख से अधिक यात्री और 350 से अधिक ट्रेनें देश के कई राज्यों से आती और जाती हैं. इस भीड़ में अगर आपका कोई कीमती सामान ट्रेन या प्लेटफॉर्म पर छूट जाए तो कोई सोच भी नहीं सकता कि वह वापस भी मिलेगा. शायद यही वजह है कि अगर सामान खो जाए तो लोग उसके मिलने की उम्मीद ही छोड़ देते हैं, लेकिन ज़रा सोचिए कैसा हो यदि स्टेशन पर छूटे आपके कीमती सामान के लिए फोन आए और कोई सामने से लाकर आप को सौंप दे? यकीन नहीं आता न? यकीन मानिए लोगों का रेल में छूटा कीमती सामान चल कर अपने मालिकों तक पहुंच रहा है. और इस नेक काम में जुटे हैं नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के स्टेशन सुपरीटेंडेंट राकेश शर्मा.

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नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर कार्यरत स्टेशन प्रबंधक राकेश शर्मा कई लोगों के लिए फ़रिश्ता साबित हो रहे हैं. शर्मा ने अपने व्यक्तिगत प्रयासों से अब तक चार वर्षों में 78 यात्रियों को स्टेशन या ट्रेन में छूटी चीज़ें उन्हें सही-सलामत उनके मालिक तक पहुंचा चुके हैं. इन सामानों में मोबाइल फ़ोन, लैपटॉप, बैग, ज़रुरी दस्तावे़ज़ और यहां तक कि गहने भी शामिल हैं.

कैसे पहुंचते हैं सामान के मालिक तक?

शर्मा ने दिप्रिंट को बताया- ‘कुली या फिर ट्रेन में कार्यरत कर्मचारी या फिर कई बार यात्री भी लावारिस सामान ऑफिस तक पहुंचा देते हैं, जिसे लॉस्ट प्रॉपर्टी ऑफिस(एलपीओ) में जमा कराया जाता है. औपचारिक तौर पर हम एक (इन्वेंट्री) सूची बनाते हैं जिसमें आरपीएफ़(रेलवे प्रोटेक्शन फ़ोर्स) के कर्मचारी और उस व्यक्ति का हस्ताक्षर होता है जिसे सामान मिला है. यह तो हुई औपचारिक प्रक्रिया. लेकिन होता यह है कि लॉस्ट प्रॉपर्टी ऑफिस में सामानों की जानकारी लेने बहुत कम लोग ही जाते हैं, इसलिए मेरे पास जो सामान आता है उसको रजिस्टर कर मैं अपने पास रखता हूं और सामान के मालिक को ढूंढता हूं. यदि मुझे सामान का मालिक नहीं मिलता तो अखिर में लॉस्ट प्रॉपर्टी ऑफिस में सामान जमा करा देता हूं.’

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कैसे ढूंढा जाता है यात्रियों का पता

राकेश शर्मा ने बताया कि ट्रेन के जिस कोच और सीट पर सामान छूटता है, उस आरक्षित सीट के यात्री का पता पीएनआर (पैसेंजर नेम रिकॉर्ड) के जरिए पता किया जाता है, अगर उसमें फोन नंबर होता है तो फोन के जरिए वर्ना पते के जरिए उनके सामान की जानकारी दी जाती है. कई बार ऐसा भी हुआ है कि उनका नाम तो पता चल जाता है लेकिन पता या फोन नंबर नहीं मिलता…ऐसे में सोशल मीडिया बहुत बड़ा सहारा साबित होता है. फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप के जरिये मैं पाए गए सामान की जानकारी वायरल करने की कोशिश करता हूं.

उन्होंने कहा- ‘पिछले 3-4 साल से लॉस्ट प्रोपर्टी ऑफिस (एलपीओ) में कोई सामन जमा नहीं हुआ है. मैं अपने स्तर पर प्रयास करता हूं कि लोगों का सामान उन तक पहुंचा सकूं.

यदि कोई व्यक्ति सामान पर क्लेम करता है तो हम उससे टिकट की कॉपी और सामान की जानकारी मांगते हैं. यदि सारी जानकारी सामान से मेल खाती है तो हम व्यक्ति को सामान सौंप देते हैं. अपनी इसी मेहनत से शर्मा न सिर्फ भारतीय बल्कि विदेशी पैसेंजेर का भी सामान लौटा चुके हैं. इसी साल मार्च में ऑस्ट्रेलिया से भारत आये पॉल मलाम नाम के एक विदेशी का लैपटॉप चंडीगढ़ से दिल्ली आने वाली ट्रेन में छूट गया था. शर्मा ने फेसबुक के माध्यम से उस पॉल मलाम को ढूंढ निकाला जिनका यह लैपटॉप था.

फिलहाल अभी उनके पास कपड़ों से भरा एक बैग और एक सोने का लॉकेट है. उन्होंने कहा- ‘लॉकेट हमें ट्रेन नंबर 12006 केएलके शताब्दी के कोच नंबर सी-2 में 25.05.2019 को मिला है जिसकी तस्वीरें हमने वायरल कर दी है लेकिन अभी तक उस पर किसी ने क्लेम नहीं किया है.’

हाल ही में कालका शताब्दी ट्रेन में यात्रा कर रहे अमन सहगल का ‘कीबोर्ड’ ट्रेन में छूट गया. अमन ने हमें बाताया ‘ट्रेन में इतनी भीड़ रहती है कि छूटे सामान का वापस मिलना लगभग असंभव होता है लेकिन उसी शाम शर्मा जी ने मुझे कॉल किया और मेरा कीबोर्ड मुझे वापस मिल गया. शर्मा जी के इस प्रयास से भारतीय रेल पर मेरा भरोसा बढ़ा है. इस तरह के काम भारतीय रेल द्वारा किये जाने चाहिए. अकेले शर्मा जी ही इसके लिए प्रयत्नशील हैं इसलिए मैं उनकी सराहना करता हूं.’

तो यदि आप का भी कोई सामान नई दिल्ली स्टेशन पर छूट जाए तो मुमकिन है कि आप को सामान वापस मिल सकता है बशर्ते कि वह राकेश शर्मा तक पहुंचा हो.

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