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Monday, 4 November, 2024
होमदेशकुपोषण से भारत में मर रहे 68.2% बच्चे, पीएम मोदी का पोषण मिशन हो सकता है फेल

कुपोषण से भारत में मर रहे 68.2% बच्चे, पीएम मोदी का पोषण मिशन हो सकता है फेल

आईएमआरसी की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में मौत का शिकार होने वाले पांच साल से कम के बच्चों में 68.2 प्रतिशत की मौत कुपोषण की वजह से होती है.

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नई दिल्ली: भारत में आज भी कुपोषण से पांच साल से कम आयु के 68.2% बच्चों की मौत हो जाती है. ये देश के लिए बड़ी समस्या बनी हुई है. यहां यह जानना ज़रूरी है कि 1990-2017 में भारत में ये स्थिति सुधरी है और इन आंकड़ों में दो तिहाई की गिरावट ज़रूर हुई है. लेकिन अभी भी यह देश के बच्चों के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है.

इंडियन कॉउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (आईएमआरसी) की रिपोर्ट में 2017 तक मौजूद डेटा के हवाले से बताया गया है कि पांच साल तक के बच्चों में मौत की एक बहुत बड़ी वजह कुपोषण है. सबसे अचरज की बात है कि इस मामले में कोई राज्य या केंद्र शासित प्रदेश अपवाद नहीं है. बता दें कि डिजे़बिलिटी एडजस्टेड लाइफ ईयर्स (डीएएलवाईएस) में कुपोषण के शिकार कई राज्यों में तो सात गुणा तक अधिक है. इसमें सबसे अधिक राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और असम के साथ मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, नागालैंड और त्रिपुरा के बच्चे कुपोषण का शिकार है.  एक और बड़ी बात ये है कि इसकी वजह से भारत में होने वाले रोगों का भार बढ़ रहा है.

नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर विनोद के पॉल ने कहा, ‘सितंबर पोषण माह के तौर पर जाना जाता है और सरकार हर परिवार तक पहुंचने की कोशिश कर रही है. इस वैज्ञानिक रिपोर्ट के समय से आने की वजह से ये हर राज्य को ये समझने में मदद मिलेगी की कुपोषण से निपटने के लिए और प्रयास करने होंगे.’

कुछ आंकड़ें इस प्रकार हैं

यही नहीं 2017 तक भारत में जन्म के समय कम वजन का प्रतिशत 21.4% रहा, जबकि कुपोषण की वजह से बच्चों में विकास की दर 39.3 प्रतिशत रही है. इस दौरान 15.7 प्रतिशत बच्चे भारी कुपोषण का शिकार हुए.

चूंकि प्रजनन के दौरान महिलाओं में पौष्टिक भोजन का आभाव होता है जिसकी वजह से बच्चों में इसका सीधा प्रभाव पड़ता है. शोध में यह भी कहा गया कि 32.7 प्रतिशत बच्चे कम वजन से पीड़ित थे. जबकि 59.7 प्रतिशत आयरन की कमी से पीड़ित पाए गए.

वहीं महिलाओं में खून की कमी भी बड़ी समस्या बनी हुई है. रिपोर्ट मेंं पता चला कि 15 साल की लड़कियों से लेकर 49 साल महिलाओं के बीच एनीमिया से पीड़ित 54.4% महिलाएं थीं.

रिपोर्ट की मानें तो एनएनएम (नेशनल न्यूट्रिशन मिशन) के तहत चलाए जा रहे पोषण अभियान को इन आंकड़ों की वजह से धक्का लग सकता है और 2022 तक कुपोषण के समाप्त होने की संभावना नज़र नहीं आ रही है.

इस रिपोर्ट को 1990 से 2017 तक मौजूद तमाम राज्य के कई प्रकार के डाटा के आधार पर तैयार किया गया है. रिपोर्ट ग्लोबल बर्डन ऑफ़ डिज़ीज़ (जीबीडी) यानी रोग की वजह से दुनिया पर पड़ने वाल भार, चोट और जोखिमों से जुड़े अध्ययन (आरएफएस) से जुड़े मौजूद डेटा पर आधारित है. इसके तहत राज्यों को तीन समूहों में बांटा गया है.

मौके पर मौजूद आईसीएमआर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ न्यूट्रीशन की निदेशक डॉक्टर आर हेमलता ने कहा, ‘हमें कुपोषण के कारकों पर पैनी नज़र बनाए रखने की दरकार है और राज्यों में ज़ोर शोर से जागरुकता अभियान चलाने की ज़रूरत है.’

इसमें पहले सोशियो डेमोग्रैफिक इंडेक्स (एसडीआई) यानी सामाजिक जनसांख्यिकीय सूचकांक है जो जीबीडी पर आधारित है. जीबीडी को पर कैपिटा इनकम, शिक्षा के माध्यम और 25 साल तक की महिलाओं में प्रजनन दर जैसे बातों पर निर्धारित किया गया है. इन्हीं सब के आधार पर 1990 से 2017 तक मौजूद डेटा के सहारे से बताया गया है कि 2030 तक कुपोषण की स्थिति कैसी होगी.

इसके सहारे ये अनुमान लगाने की भी कोशिश की गई है कि क्या नेशनल न्यूट्रीशन मिशन (एनएनएम) 2022 और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और यूनिसेफ द्वारा इससे जुड़े 2030 तक के टारगेट को पूरा किया जा सकता है या नहीं.

इससे सिर्फ भारत ही पीड़ित नहीं है बल्कि दुनिया भर में होने वाली पांच साल से कम के बच्चों की आधी से ज़्यादा मौतों के लिए कुपोषण ही ज़िम्मेदार है. ऐसे न्यूयनतम और मध्यम आय वाले देश में ज़्यादा होता है जिनमें भारत भी शामिल है.

साल 2018 में पीएम नरेंद्र मोदी ने इस निपटने के लिए एनएनएम नाम का एक कार्यक्रम लॉन्च किया था जिसे पोषण के नाम से भी जाना जाता है. हालांकि, रिपोर्ट की मानें तो पोषण को सफल बनाने के लिए कई बड़े कदम उठाने होंगे और ऐसा नहीं किए जाने की स्थिति में पोषण मिशन के टारगेट 2022 को धक्का लग सकता है.

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1 टिप्पणी

  1. Jald se jald vyavastha karni chahiye. And bharat ko kuposhan se mukt hona maananeey pradhanmantri narendra modi se mera anurodh hai and. 2022 ki bajaay 2020
    And. Woh jaanana chahiye I am sorry

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