नई दिल्ली: बच्चों की स्कूल शिक्षा पर सालाना सबसे ज़्यादा खर्च हरियाणा के माता-पिता करते हैं. इसके बाद मणिपुर और पंजाब का नंबर आता है, जबकि बिहार पूरे देश में सबसे कम खर्च करने वाला राज्य है. यह जानकारी मंगलवार को केंद्र सरकार द्वारा जारी शिक्षा पर किए गए कम्प्रिहेंसिव मॉड्यूलर सर्वे (सीएमएस) में सामने आई.
यह सर्वे राष्ट्रीय सैम्पल सर्वे (80वां राउंड) के तहत सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने किया। इसमें 52,085 परिवारों को शामिल किया गया जिनमें 28,401 ग्रामीण और 23,684 शहरी और 57,742 स्कूल में पढ़ रहे छात्रों का डेटा लिया गया.
सर्वे के नतीजों के मुताबिक, मौजूदा शैक्षणिक सत्र में स्कूल शिक्षा पर प्रति छात्र औसतन वार्षिक खर्च ग्रामीण भारत में 8,382 रुपये और शहरी भारत में 23,470 रुपये आंका गया. यह आंकड़ा सभी स्तर की पढ़ाई और हर तरह के स्कूलों के लिए है.
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में माता-पिता औसतन हर साल एक बच्चे की स्कूल शिक्षा पर 12,616 रुपये खर्च करते हैं. इसमें कोर्स फीस, परिवहन, स्टेशनरी, यूनिफॉर्म और अन्य ज़रूरी खर्च शामिल हैं, इनमें सबसे बड़ा हिस्सा कोर्स फीस पर होता है.
लेकिन यह खर्च राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में काफी अलग-अलग है.
राज्यों में हरियाणा सबसे आगे है, जहां माता-पिता औसतन 25,720 रुपये प्रति छात्र खर्च करते हैं. इसके बाद मणिपुर (23,502), पंजाब (22,692), तमिलनाडु (21,526) और दिल्ली (19,951) का स्थान है.
केंद्र शासित प्रदेशों में, जहां आबादी अपेक्षाकृत कम है, चंडीगढ़ सबसे ऊपर है, जहां प्रति छात्र औसतन खर्च 49,711 रुपये है. इसके बाद दादरा और नगर हवेली व दमन और दीव (20,678) और पुडुचेरी (18,194) आते हैं.
वहीं, सबसे कम खर्च करने वाले राज्यों में बिहार (5,656), छत्तीसगढ़ (5,844), झारखंड (7,333) और ओडिशा (7,479) शामिल हैं. केंद्र शासित प्रदेशों में सबसे कम खर्च लक्षद्वीप में दर्ज हुआ है, जहां प्रति छात्र खर्च सिर्फ 1,801 रुपये है.
सबसे ज़्यादा खर्च प्राइवेट स्कूलों पर
सर्वे बताता है कि अरुणाचल प्रदेश में माता-पिता अपने बच्चों की प्राइवेट स्कूल शिक्षा पर सबसे ज़्यादा खर्च करते हैं. औसतन 63,197 रुपये प्रति छात्र सालाना. इसके बाद दिल्ली (46,716 रुपये), तमिलनाडु (44,150 रुपये) और सिक्किम (41,493 रुपये) का स्थान आता है.
केंद्र शासित प्रदेशों में चंडीगढ़ सबसे आगे है, जहां माता-पिता अपने बच्चों की प्राइवेट स्कूल शिक्षा पर औसतन 79,006 रुपये सालाना खर्च कर रहे हैं. इसके बाद दादरा और नगर हवेली व दमन-दीव (56,276 रुपये) और पुडुचेरी (45,374 रुपये) आते हैं.
हालांकि, अगर सिर्फ प्राइवेट स्कूल की कोर्स फ़ीस पर खर्च देखा जाए, तो हरियाणा सबसे ऊपर है—औसतन 16,405 रुपये प्रति छात्र, इसके बाद तेलंगाना (14,026 रुपये), तमिलनाडु (13,422 रुपये) और दिल्ली (12,672 रुपये).
शहरी-ग्रामीण और जेंडर का फासला
सर्वे साफ तौर पर दिखाता है कि बच्चों की पढ़ाई पर शहरी और ग्रामीण इलाकों में खर्च का बड़ा अंतर है.
औसतन, ग्रामीण परिवार अपने बच्चों पर 8,382 रुपये सालाना खर्च करते हैं, जबकि शहरी परिवार लगभग तीन गुना ज़्यादा—23,470 रुपये खर्च कर रहे हैं.
अगर कोर्स फीस पर ध्यान दें तो शहरी इलाकों में औसतन 15,143 रुपये खर्च होते हैं, जबकि ग्रामीण इलाकों में सिर्फ 3,979 रुपये. यही रुझान परिवहन, यूनिफॉर्म और किताबों जैसे दूसरे खर्चों पर भी देखने को मिलता है.
सर्वे में लिंग के आधार पर भी शिक्षा खर्च में अंतर सामने आया. औसतन, परिवार लड़कों पर 13,470 रुपये सालाना खर्च करते हैं, जबकि लड़कियों पर यह खर्च घटकर 11,666 रुपये रह जाता है.
यह अंतर इसलिए भी है क्योंकि आमतौर पर माता-पिता लड़कों को प्राइवेट स्कूल भेजते हैं, जहां खर्च बहुत ज़्यादा होता है और लड़कियों को सरकारी स्कूलों में भेजते हैं, जहां पढ़ाई मुफ्त या बहुत कम लागत पर होती है.
नवीनतम UDISE Plus रिपोर्ट के मुताबिक, 2023-24 में सरकारी स्कूलों में दाखिले का अनुपात था—50.95% लड़कियां और 49.05% लड़के.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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