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Thursday, 21 August, 2025
होमफीचरन बड़े कॉन्सर्ट, न भव्यता — कैसे DDA फ्लैट की बैठक भारतीय शास्त्रीय संगीत को अपना रही है

न बड़े कॉन्सर्ट, न भव्यता — कैसे DDA फ्लैट की बैठक भारतीय शास्त्रीय संगीत को अपना रही है

ऊपर का हिस्सा किसी शांत मोहल्ले के एक आम घर जैसा ही दिखता है. लेकिन जिस दिन वहां कोई बैठक होती है, उस दिन वह एकदम बदल जाता है.

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नई दिल्ली: हल्की पीली रोशनी में नहाए ‘अपस्टेयर्स’ में हुई बैठक का माहौल बेहद शांत था. करीब चालीस श्रोता पालथी मारकर चुपचाप बैठे थे, पूरी तन्मयता से सुनते हुए. उनके सामने तीन हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीतकार — तबला, हारमोनियम और गायक — अपनी धुन बुनना शुरू करते हैं.

जैज़ की तरह, भारतीय शास्त्रीय संगीत भी सिर्फ़ एक तरफ़ से सुनाने वाला कार्यक्रम नहीं होता. यह सुधार (इंप्रोवाइजेशन) पर आधारित है लेकिन कलाकार और श्रोता मिलकर इसे गढ़ते हैं.

“चाहे आप कितने भी प्रशिक्षित हों, बड़े हाल में आप श्रोताओं को महसूस नहीं कर सकते,” हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक अनिर्बान भट्टाचार्य ने कहा. बैठकों में यह अलग है. “मैं उनके चेहरे देख सकता हूं. मैं उनसे ऊर्जा लेता हूं.”

कलाकार के प्रदर्शन के दौरान दर्शक ताली नहीं बजा सकते, चाहे आलाप कितना भी अच्छा लगे. इसके बजाय, वे ‘वाह’ कह सकते हैं.

जैसे-जैसे दिल्ली में फिर से ताल और राग का चक्र घूम रहा है, बड़े ऑडिटोरियम की छाया में एक शांत पुनर्जीवन हो रहा है — बैठकों की वापसी. ये छोटी, नज़दीकी महफ़िलें भारतीय शास्त्रीय संगीत को अनुभव करने का अधिक निजी तरीका देती हैं. कई लोगों के लिए, यह पहली बार है जब वे इस तरह की नज़दीकी का अनुभव कर रहे हैं, जहां संगीत दर्शकों के लिए प्रस्तुत नहीं किया जाता, बल्कि उनके साथ बांटा जाता है.

“पंडित रवि शंकर ने कहा था कि अगर आज शास्त्रीय संगीत ज़िंदा है तो वह बैठकों की वजह से है,” एसपीआईसी मैके के संस्थापक किरण सेठ ने कहा. “बड़े कार्यक्रम अब ज़्यादा शो जैसे हो गए हैं, और जब आप हज़ारों के लिए गाते हैं तो तीव्रता स्वाभाविक रूप से कम हो जाती है क्योंकि आपको सबको खुश करना पड़ता है. लेकिन शास्त्रीय संगीत अनुभव, यह ऊंचाई पर ले जाने और कुछ यादगार देने के बारे में होता है — कुछ ऐसा जो बड़े मंचों पर पकड़ना मुश्किल है.”

Sukanya Banerjee sharing laughter and conversation with the audience before the artists' performance | Special arrangement
कलाकारों के प्रदर्शन से पहले दर्शकों के साथ हंसी-मजाक और बातचीत करती सुकन्या बनर्जी | विशेष व्यवस्था

दिल्ली की कभी फली-फूली बैठक संस्कृति से जुड़ी, अपस्टेयर्स, रस सिद्धि, नादयात्रा बैठक, ईवनिंग्स अनप्लग्ड, वीएसके बैठक जैसी समूह कलाकार और श्रोता के बीच की दूरी मिटा रहे हैं. ये मुख्यधारा के बड़े शास्त्रीय आयोजनों के पैमाने और दिखावे का एक विकल्प प्रस्तुत करते हैं.

लेकिन अपस्टेयर्स केवल जगह की परंपरा को ही नहीं बदल रहा. यह भारतीय शास्त्रीय संगीत की गहरी, प्रणालीगत चुनौती से भी सामना कर रहा है — इसका कमजोर वित्तीय ढांचा. रॉक या मेटल की तरह, जहां मर्चेंडाइज़, खास रिलीज़ और प्रायोजन कई आमदनी के साधन बनाते हैं, वहीं शास्त्रीय संगीत अब भी सरकारी अनुदान और अभिजात संरक्षण पर निर्भर है, जिससे विकास और नवाचार रुकता है.

समस्या सिर्फ़ फंडिंग तक सीमित नहीं है. यह एक सांस्कृतिक झिझक भी है, जहां परंपरा के प्रति सम्मान बनाए रखते हुए व्यापार को अपनाने से हिचकिचाहट है. इसकी जड़ें सदियों पुरानी दरबारी संरक्षण परंपरा में हैं.

“वह अकेला मॉडल नहीं हो सकता — सिर्फ़ संरक्षण पर निर्भर रहना. इसके बजाय, व्यवस्था को ज़मीन से बनाना चाहिए, जहाँ समर्थन सीधे दर्शकों से मिले,” अपस्टेयर्स की संस्थापक सुकन्या बनर्जी ने दिप्रिंट को बताया. “इसीलिए हमने अपस्टेयर्स बनाया: जहां टिकट 2,500 रुपये के हैं, घर का बना खाना बैठकों के अनुभव के साथ होता है, और लोग खुशी-खुशी असली चीज़ का हिस्सा बनने के लिए पैसे देते हैं.”

वह घर जो सुनता था

बैनर्जी और उनके पति तेजस घर बदलने के बीच थे. वे अपने अगले कॉन्सर्ट से पहले सब कुछ ठीक करने की जल्दी में थे. तेजस पेंटिंग्स टांगने में व्यस्त थे और हर बार बैनर्जी से हां या ना में सहमति ले रहे थे. वह सब संभाल रही थीं—अपने कुत्तों की खेल-लड़ाई रोक रही थीं, टीम को सेटअप में मदद कर रही थीं, रसोई में घरेलू कामगार को दिशा दे रही थीं. घर में बातें गूंज रही थीं: संगीत, उनके माता-पिता, शुरुआत से बैठक आयोजित करने की भागदौड़. इस अफरातफरी के बीच, अपस्टेयर्स की आत्मा पहले से ही ज़िंदा थी.

Sukanaya Banerjee and her husband, Tejas during the baithak | special arrangement
बैठक के दौरान सुकन्या बनर्जी और उनके पति तेजस | विशेष व्यवस्था

13 अगस्त की बैठक वसंत कुंज के अपस्टेयर्स में हुई जिसमें अनिर्बान भट्टाचार्य हिंदुस्तानी वोकल्स पर थे, दुर्जय भौमिक तबले पर और ललित सिसोदिया हारमोनियम पर थे.

अपस्टेयर्स की यह यात्रा 2018 में शुरू हुई—लगभग एक हादसे की तरह.

Anirban Bhattacharyya during his performance | Special arrangement
अनिर्बान भट्टाचार्य अपने प्रदर्शन के दौरान | विशेष व्यवस्था

तेजस और सुकन्या की शादी को बस एक साल हुआ था. वे अभी भी एक-दूसरे की दुनिया को धीरे-धीरे समझ रहे थे. सुकन्या, एक स्कूल टीचर, जिनका बचपन ऐसे घर में बीता था जहां हिंदुस्तानी शास्त्रीय राग सुबह की धूप की तरह गूंजते थे, ने कभी पूरा मेटल एल्बम नहीं सुना था. तेजस, एक सेल्फ-टॉट गिटारिस्ट, जो ब्लूज़ लीजेंड्स की पूजा करते और मेटल सोलोज़ पर झूमते बड़े हुए थे, राग और ताल में फर्क नहीं जानते थे. उनकी संगीत की दुनिया एक-दूसरे से बिल्कुल अलग थी—लेकिन उसी साल, कुछ ऐसा हुआ जिसने इस दूरी को पाटना शुरू किया.

उन्होंने देखा कि दोनों की बुनियाद एक जैसी है: सख्त अनुशासन, अभ्यास के प्रति जीवनभर की निष्ठा, और नियमों को तोड़ने वाला, नई राह बनाने वाला इम्प्रोवाइज़ेशन का जज़्बा—जो हिंदुस्तानी शास्त्रीय और मेटल, दोनों के दिल में धड़कता है.

“2018 में हम उनके माता-पिता से बात कर रहे थे—वे एक स्कूल शुरू करना चाहते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि युवा अब नहीं सुन रहे. लेकिन हमने कहा, आप समस्या को गलत समझ रहे हैं. असली समस्या जागरूकता नहीं है. दिक्कत यह है कि शास्त्रीय संगीतकारों की रोज़ी-रोटी नहीं चल पाती. कलाकारों को पैसे नहीं मिलते, दर्शक पैसे नहीं देते, और ज़्यादातर दर्शक खुद दूसरे कलाकार ही होते हैं. आप बहुत ज़्यादा बंद भी हो गए हैं, नए लोगों को आने ही नहीं दे रहे,” तेजस ने कहा.

उसी साल, उन्होंने इवनिंग राग शुरू किया—छोटे स्तर पर, जिसमें हर महीने 25 से 30 लोग ही आते थे.

दिल्ली में भी—“फ्री कॉन्सर्ट्स की राजधानी”—उन्होंने टिकट अनिवार्य रखा. यह फैसला अपने आप में एक बयान था: संगीत की कीमत है. और उसे उसी तरह देखा जाना चाहिए.

फिर महामारी आ गई. उन्होंने कॉन्सर्ट बंद कर दिए.

At Sukanya Banerjee and Tejas's home, the mic and speaker were set up in place before the performance | special arrangement
सुकन्या बनर्जी और तेजस के घर पर, प्रदर्शन से पहले माइक और स्पीकर लगा दिए गए थे | विशेष व्यवस्था

लेकिन रोनकिनी गुप्ता के एक कॉन्सर्ट के बाद यह शौक कुछ गंभीर हो गया. रोनकिनी एक हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायिका हैं जिन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड के लिए नामांकित भी किया गया है.

“सु्कन्या उनकी बहुत बड़ी फैन हैं,” तेजस ने याद किया. “वह रोनकिनी के कॉन्सर्ट में गईं और वापस आकर बोलीं, ‘मैं चाहती हूँ कि वह हमारे यहाँ गाएँ.’ और सच कहूँ तो, इतने सालों बाद भी लोग इवनिंग राग को याद करते थे. तो हमने संपर्क किया—और उन्होंने हाँ कह दी.”

“मैं बेरोज़गार थी,” बैनर्जी ने कहा. “हमारे पास इतने महंगे कलाकार को बुलाने के पैसे बिल्कुल नहीं थे. लेकिन हम उनकी फीस पर मोलभाव भी नहीं करना चाहते थे. मैं संगीतकारों के परिवार से आती हूँ. मैं जानती हूँ वह पैसा कितना मायने रखता है—उसे पाने के लिए वे कितनी मेहनत करते हैं. मैं उस सूची में एक और नाम नहीं बनना चाहती थी जो कलाकारों को कम पैसे देता है.”

वह पल एक टर्निंग पॉइंट बन गया.

“इसीलिए हमने इसे गंभीरता से शुरू किया,” बैनर्जी ने कहा. “कलाकारों को पैसे नहीं मिलते क्योंकि वही पैसा बार-बार उन्हीं पब्लिसिटी पाने वाले कलाकारों के बीच घूमता रहता है. हम उस चक्र को तोड़ना चाहते थे.”

मार्च से अब तक, उन्होंने 11 कॉन्सर्ट आयोजित किए हैं.

उन्होंने टिकट की कीमत बढ़ाई और प्रोडक्शन को बड़ा किया. खर्च इतने ज़्यादा हो गए थे कि इसे अब शौक की तरह लेना मुमकिन नहीं था.

बैनर्जी ने पिछले साल शिव नादर स्कूल की अपनी नौकरी से ब्रेक लिया, एक सरल और बेहद व्यक्तिगत वजह से. “अगर मैं कॉन्सर्ट पर नहीं जा सकती, तो क्यों न कॉन्सर्ट को ही घर ले आऊँ? यही अपस्टेयर्स की शुरुआत थी.”

नाम भी सोच-समझकर रखा गया था—गर्मजोशी से भरा, अपनापन जगाने वाला और सहज.

“अगर कोई पूछे कि कहाँ जा रहे हो, तो आप बस कह सकते हो, ‘ओह, हम ऊपर जा रहे हैं,’” बैनर्जी ने कहा. “हम चाहते थे कि यह जगह सबसे सहज और आसान महसूस हो. और ‘ऊपर’ से आसान क्या हो सकता है?”

कलाकारों को बुलाने से लेकर माहौल बनाने तक और पूरा मेन्यू खुद डिजाइन और पकाने तक—वह अपस्टेयर्स में सब कुछ खुद करती हैं.

Sukanaya Banerjee prepares to serve her guests, heating up the food in her new Vasant Kunj residence | Special arrangement
सुकन्या बनर्जी अपने नए वसंत कुंज निवास में अपने मेहमानों की सेवा के लिए तैयार हैं, भोजन गर्म कर रही हैं | विशेष व्यवस्था

शास्त्रीय संगीत की अर्थव्यवस्था

अपस्टेयर्स उन अनकहे अवरोधों को तोड़ने के लिए है, जो भारतीय शास्त्रीय संगीत को सिर्फ़ कुछ खास लोगों तक सीमित कर देते हैं. इसका मक़सद ऐसी जगह बनाना है, जहां जिज्ञासा डर की जगह ले सके — जहां कोई भी व्यक्ति, जिसने पहले कभी बैठक में हिस्सा न लिया हो, बिना किसी पहचान या सिफ़ारिश के आ सके.

“अभी हालात ये हैं कि अगर आप पहले से शास्त्रीय संगीत के दायरे में नहीं हैं तो आपको अक्सर कार्यक्रमों की ख़बर ही नहीं मिलती,” तेजस ने कहा. “और अगर मिल भी जाए तो लगता है कि शायद आप वहां जाने लायक नहीं हैं. सुनने वाले श्रोताओं की ज़रूरत है, सिर्फ़ कलाकारों की नहीं. और हमारे पास वो श्रोता नहीं हैं.”

उन्होंने मेटल संगीत में इसकी समानता देखी — ये भी एक कठिन विधा है, जिसका छोटा लेकिन वफ़ादार दर्शक वर्ग है. मगर मेटल में एक अर्थव्यवस्था है: टिकट बिक्री, मर्चेंडाइज़, ख़ास रिलीज़, प्रायोजन, विशेष शिक्षक, दुर्लभ वाद्य. श्रोता पैसे खर्च करते हैं क्योंकि उनके पास खर्च करने के विकल्प होते हैं. इसके विपरीत, भारतीय शास्त्रीय संगीत में श्रोताओं के पास कलाकार को सहयोग देने का लगभग कोई साधन नहीं है, सिवाय किसी कक्षा में दाख़िला लेने या संरक्षक बनने के.

“अगर कला का एकमात्र मॉडल ‘बड़ा आदमी’ बड़ी ग्रांट दे—तो स्वस्थ कला संभव नहीं,” उन्होंने तर्क दिया. “वो बड़ा आदमी सरकार भी हो सकता है. लेकिन व्यवस्था को नीचे से ऊपर तक बनाना होगा, जहां पैसा सीधे श्रोताओं से आए.”

अपस्टेयर्स एक लिविंग रूम है जहाँ सदियों पुराना संगीत फिर से सांस ले सकता है. जहाँ व्यापार कला का दुश्मन नहीं बल्कि उसकी ऑक्सीजन है.

बैनर्जी के अनुसार असली समस्या ये नहीं कि शास्त्रीय संगीत सबके लिए सुलभ नहीं है. बल्कि ये है कि कुछ कलाकार लोगों से जुड़ना नहीं जानते — और ढलने की जगह वे श्रोताओं को दोष देते हैं.

“सच कहूं तो, अभी ये खट्टे अंगूर वाली स्थिति है. क्योंकि आप दर्शक नहीं खींच पाते. और फिर पलटकर कहते हैं—लोग समझते नहीं क्योंकि वे ‘क्लासी’ नहीं हैं. ये सच नहीं है.”

शास्त्रीय संगीतकार परिवार में पली-बढ़ी बैनर्जी की मां 25 साल तक ऑल इंडिया रेडियो में काम करती थीं. बचपन से ही उन्हें महान कलाकारों को सुनने का अवसर मिला. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि उन्हें हमेशा अच्छा लगता था.

“मैं अक्सर कार्यक्रमों में सो जाती थी, रोती थी, घर जाना चाहती थी,” उन्होंने हँसते हुए स्वीकार किया. इसी वजह से, जब कोई कहता है कि उसे शास्त्रीय संगीत उबाऊ लगता है, तो वह उसे जज नहीं करतीं. बल्कि उससे जुड़ जाती हैं.

“फिर आप सचमुच बातचीत कर सकते हैं. और शायद उस बातचीत के अंत में उन्हें एक और मौका देने के लिए मना सकते हैं.”

यही बातचीत और दूसरा मौका देने वाली जगह अपस्टेयर्स के लिए बनाई गई थी. बैठकों में वह सब होता है जो बड़े सभागारों में संभव नहीं.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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