नयी दिल्ली, 20 अगस्त (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि विधवा महिला अपने ससुर की मृत्यु के बाद ससुराल की ‘सहदायिक’ या पैतृक संपत्ति से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है।
न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने कहा कि भले ही ससुर के पास अलग से या स्वयं अर्जित महत्वपूर्ण संपत्ति हो, लेकिन बहू के भरण-पोषण का जिम्मा केवल सहदायिक संपत्ति (पैतृक संपत्ति) से ही उत्पन्न होता है, जो उनकी (ससुर की) मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति का हिस्सा बनता है।
यह निर्णय इस प्रश्न पर आया कि क्या ऐसी पुत्रवधू अपने दिवंगत ससुर की पैतृक संपत्ति से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है?
उच्च न्यायालय ने कहा कि हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम (एचएएमए) की धारा 19(1) विधवा बहू को अपने ससुर से भरण-पोषण का दावा करने का वैधानिक अधिकार प्रदान करती है और यह उसके पति की मृत्यु की स्थिति में उसके भरण-पोषण के जिम्मा के रूप में उसके (ससुर के) कानूनी दायित्व को मान्यता प्रदान करती है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि लेकिन एचएएमए की धारा 19(2) को पढ़ने पर, यह बात सामने आती है कि विधवा बहू का ऐसा वैधानिक अधिकार, जो ससुर पर कानूनी दायित्व डालता है, उसके (बहू के) दायित्व पर एक महत्वपूर्ण प्रतिबंध लगाता है।
पीठ ने कहा कि यह प्रावधान ससुर के दायित्व को केवल उसकी सहदायिक संपत्ति तक ही सीमित करता है।
पीठ ने कहा, ‘‘यह स्पष्ट रूप से स्पष्ट करते हुए कि यदि ससुर के पास कोई सहदायिक संपत्ति नहीं है तो उनकी स्व-अर्जित संपत्ति या किसी अन्य संपत्ति से भरण-पोषण की मांग की जाती है जो सहदायिक संपत्ति के रूप में योग्य नहीं है, तो विधवा बहू के पास उसे (गुजारा भत्ता पाने का जिम्मा) लागू करवाने का अधिकार नहीं होगा।’’
उच्च न्यायालय एक निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर विचार कर रहा था जिसमें बहू की भरण-पोषण की याचिका को विचारणीय नहीं पाया गया था।
महिला के पति की मार्च 2023 में मृत्यु हो गई। महिला के ससुर का दिसंबर 2021 में ही निधन हो गया था।
भाषा
राजकुमार अविनाश
अविनाश
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