नयी दिल्ली, 20 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने यूएपीए मामले में बुधवार को कहा कि किसी भी आरोपी को निष्पक्ष और त्वरित सुनवाई के बिना जेल में सड़ने नहीं दिया जा सकता।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने निचली अदालत को निर्देश दिया कि वह मुकदमे की सुनवाई में तेजी लाए और इसे दो साल के भीतर पूरा करे, क्योंकि अभियोजन पक्ष को 100 से अधिक गवाहों से जिरह करनी है।
उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के अप्रैल 2022 के उस आदेश को चुनौती देने वाली दो अपीलों पर अपना फैसला सुनाया, जिसमें मामले में एक आरोपी को जमानत दे दी गई थी, लेकिन एक अन्य सह-आरोपी को राहत देने से इनकार कर दिया गया था।
जहां केंद्र की अपील में जमानत दिए जाने को चुनौती दी गई, वहीं दूसरी अपील सह-अभियुक्त द्वारा दायर की गई, जिसे राहत देने से इनकार कर दिया गया।
जनवरी 2020 में बेंगलुरु में 17 आरोपियों के खिलाफ कथित अपराधों के लिए प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसमें गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (यूएपीए) के प्रावधान भी शामिल थे।
बाद में यह मामला राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) को सौंप दिया गया और जुलाई 2020 में आरोपपत्र दायर किया गया।
पीठ ने कहा, ‘‘हालांकि, तथ्य यह है कि साढ़े पांच साल बीत जाने के बावजूद मुकदमा शुरू नहीं हुआ है। निष्पक्ष और त्वरित सुनवाई के बिना आरोपियों को जेल में सड़ने नहीं दिया जा सकता।’’
पीठ ने कहा कि दोनों आरोपियों को जमानत देने और अस्वीकार करने के लिए दिए गए कारण पूरी तरह से न्यायोचित और सही थे।
पीठ ने आरोपी को जमानत देने के उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
सह-आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने पाया कि वह प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों के साथ संलिप्त है।
इसने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए कारण जांच के दौरान एकत्र की गई सामग्री और आरोपपत्र में दर्शाए गए तथ्यों पर आधारित हैं।’’
अपीलों को खारिज करते हुए उच्चतम न्यायालय ने अभियोजन पक्ष को साक्ष्य प्रस्तुत करने और निर्धारित समय के भीतर सुनवाई पूरी करने में पूर्ण सहयोग सुनिश्चित करने का निर्देश दिया तथा आरोपियों से भी सहयोग करने को कहा।
पीठ ने कहा कि यदि यह पाया जाता है कि आरोपी मुकदमे में देरी करने की कोशिश कर रहा है तो निचली अदालत या अभियोजन एजेंसी को आरोपी की जमानत रद्द करने के लिए आवेदन करने की स्वतंत्रता है।
भाषा
देवेंद्र सुरेश
सुरेश
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.