(किशोर द्विवेदी)
लखनऊ, 10 अगस्त (भाषा) पुराने लखनऊ की तंग गलियों में रहने वाले 24 वर्षीय अजय को लगा कि पैसे कमाने का यह एक आसान तरीका है। शुरुआत में सब कुछ किसी सपने के सच होने जैसा लगा, लेकिन जैसे-जैसे हकीकत सामने आई, उसे एहसास हुआ कि वह एक गहरे भंवरजाल में फंस चुका है-ऐसे जाल में जो न जाने कितनों को मुसीबत में डाल चुका है।
एक रेस्तरों में खाना परोसने का काम करने वाले अजय को उसके एक दोस्त ने एक ‘क्रिप्टो ट्रेडर’ से मिलवाया जिसने अजय को एक दिन के लेन-देन के लिए अपने बैंक खाते का इस्तेमाल करने देने के एवज में 20 हजार रुपये देने की पेशकश की। एक दिन में इतनी बड़ी रकम के लालच में आकर अजय मान गया। साइबर ठगों ने उसके खाते को एक ‘म्यूल अकाउंट’ के तौर पर इस्तेमाल किया जिनका प्रयोग धोखाधड़ी के लिये किया जाता है।
‘म्यूल अकाउंट’ एक ऐसा बैंक खाता होता है जिसका इस्तेमाल अपराधी या साइबर ठग अपने गैरकानूनी लेन-देन को छिपाने या उन्हें अंजाम देने के लिए करते हैं। यह खाता अक्सर किसी तीसरे व्यक्ति के नाम पर होता है, जो जानबूझकर या अनजाने में धोखेबाजों की मदद कर रहा होता है।
अगली सुबह अजय के खाते में लाखों रुपये आ गए और फिर किसी और के निर्देश पर उन्हें निकालकर अनजान लोगों को सौंप दिया गया। कुछ ही हफ्तों में पुलिस ने अजय के दरवाजे पर दस्तक दी। पुलिसकर्मियों ने उसे बताया कि वह धन उसके खाते के जरिए की गई एक व्यापक अंतरराष्ट्रीय साइबर धोखाधड़ी का हिस्सा था। घबराकर अजय सरकारी गवाह बन गया। चौक, इंदिरा नगर, वृंदावन योजना और सुशांत गोल्फ सिटी की संकरी गलियों में मौजूद खाताधारकों और बिचौलियों की पहचान से जांचकर्ताओं को कंबोडिया, वियतनाम, लाओस और थाईलैंड से संचालित गिरोह के अन्य सदस्यों तक पहुंचने में मदद मिली।
पिछले तीन महीनों में अपराध शाखा और साइबर प्रकोष्ठ द्वारा की गई जांच से पता चला है कि अवैध धन को सफेद करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले दर्जनों बैंक खाते लखनऊ के युवक-युवतियों के हैं।
कई रेस्तरों और छोटी दुकानों पर काम करने वाले अनेक छात्र 10 हजार से 30 हजार रुपये तक के कमीशन के लालच में जानबूझकर अपने खातों को इस्तेमाल करने के लिये दे देते हैं।
पुलिस के अनुसार ये गतिविधियां चीनी संचालकों या उनके चीनी भाषा में ‘प्रॉक्सी’ द्वारा संचालित एन्क्रिप्टेड टेलीग्राम चैनलों पर संचालित की जाती हैं। स्थानीय स्तर पर गिरोह का संचालन करने वाले लोग बैंक खातों का विवरण और दस्तावेज एकत्र करते हैं। लेन-देन के दिनों में बड़े एनईएफटी, आरटीजीएस या आईएमपीएस हस्तांतरण के तुरंत बाद धन शोधन करने वाले खाताधारकों को नकदी निकालने के लिए बैंकों में ले जाया जाता है। फिर नकदी क्रिप्टो बिचौलियों को सौंप दी जाती है, जो इसे विकेंद्रीकृत, गैर-केवाईसी वॉलेट का उपयोग करके यूएसडीटी में बदल देते हैं।
भारत में साइबर अपराधों की एक श्रृंखला से जुटाए गए धन का इस्तेमाल इन गतिविधियों में किया जाता है। इनमें ऑनलाइन निवेश से जुड़ी धोखाधड़ी, फर्जी नौकरी या टास्क देने की योजनाएं, अश्लील वीडियो के जरिए ब्लैकमेल (सैक्सटॉर्शन) और फर्जी ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म शामिल हैं।
पुलिस के अनुसार, पीड़ितों द्वारा भेजी गई राशि पहले ‘म्यूल अकाउंट में डाली जाती है और फिर उसे ‘ब्लॉकचेन’ के जरिये ऐसे डिजिटल वॉलेट में भेज दिया जाता है, जो किसी एक देश के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते।
सिर्फ पिछले दो महीनों में ही लखनऊ पुलिस ने ऐसे खातों के जरिये पांच लाख रुपये से पांच करोड़ रुपये तक के धन शोधन का पता लगाया है। यह सभी धनराशि अंततः यूएसडीटी में परिवर्तित कर विदेश भेज दी जाती है। यह नेटवर्क कानूनी लेन-देन, कराधान और बैंकिंग के दायरे को गच्चा देने के लिये इस्तेमाल किया जाता है।
पुलिस के लिए चिंता की बात यह है कि पुराने लखनऊ के चौक, इंदिरा नगर, मड़ियांव, मलीहाबाद और बख्शी का तालाब जैसे इलाकों के साथ-साथ सुशांत गोल्फ सिटी, वृंदावन योजना और उपनगरीय मोहनलालगंज, गोसाईंगंज जैसे हाल में विकसित हुए इलाकों में बड़ी संख्या में ‘म्यूल अकाउंट’ होने की आशंका है।
पुलिस ने हाल के दिनों में राजधानी के विभिन्न इलाकों से लगभग 60 युवकों को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया। वे करोड़ों रुपये की साइबर धोखाधड़ी के मामलों में इस्तेमाल किए गए ‘म्यूल अकाउंट’ के वास्तविक धारक पाए गए।
अपर पुलिस उपायुक्त (लखनऊ दक्षिणी) रल्लापल्ली वसंत कुमार ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ”ये युवा कोई कुख्यात अपराधी नहीं हैं लेकिन उनकी हरकतें बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी को बढ़ावा देती हैं।”
राजधानी में ऐसे कई गिरोहों का भंडाफोड़ करने में अहम भूमिका निभा चुके कुमार ने कहा, ”कई युवाओं ने खेद व्यक्त किया है और स्वीकार किया है कि उन्होंने कानूनी जोखिमों को कम करके आंका था।”
हालांकि लखनऊ पुलिस ने ऐसे कई मामलों का पर्दाफाश किया है और इस पूरे गोरखधंधे की प्रक्रिया को पहचाना है। मगर अधिकारी मानते हैं कि इनके दायरे और जटिलताओं का पता लगाना मुश्किल होता है। एन्क्रिप्टेड संचार, विकेन्द्रीकृत क्रिप्टो वॉलेट और डिस्पोजेबल बैंक खातों के लेन-देन में कागज़ी सबूत बहुत कम रह जाते हैं।
जहां तक अजय की बात है तो वह अब अपने दोस्तों को आगाह करता है कि वे किसी दूसरे को अपने बैंक खाते का इस्तेमाल कभी ना करने दें।
उसने कहा, ”अब मुझे पता चला कि यह अपराध था। मैं खुशकिस्मत हूं कि मुझे दूसरा मौका मिला।”
भाषा किशोर सलीम नोमान
नोमान
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