नयी दिल्ली, आठ अगस्त (भाषा) सरकार को डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (डीपीडीपी) अधिनियम, 2023 में अब किसी बदलाव की गुंजाइश नहीं दिख रही है और पत्रकारों एवं नागरिक अधिकार संगठनों की तरफ से उठाए गए मुद्दों पर जल्द ही विस्तृत जवाब दिया जाएगा। एक आधिकारिक सूत्र ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।
पत्रकार संगठनों और नागरिक अधिकार समूहों ने बुधवार को आशंका जताई थी कि इस कानून के प्रावधान सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून को कमजोर कर सकते हैं और प्रेस की स्वतंत्रता भी खतरे में पड़ सकती है।
आधिकारिक सूत्र ने कहा, ‘डीपीडीपी अधिनियम संसद से पारित हो चुका है लिहाजा अब इसमें संशोधन संभव नहीं है। नियम निर्धारित किए जा रहे हैं जो केवल अधिनियम के दायरे में ही बनाए जा सकते हैं।’
सूत्र ने कहा कि डीपीडीपी अधिनियम और मसौदा नियमों को विभिन्न संस्थानों से मिले हजारों सुझावों के आधार पर तैयार किया गया है।
डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले सवालों (एफएक्यू) की सूची के बारे में सूत्र ने कहा कि सरकारी आश्वासन के अनुरूप इसे जल्द ही जारी किया जाएगा।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश, वकील प्रशांत भूषण, पूर्व न्यायाधीश ए.पी. शाह और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज सहित कई लोगों ने डीपीडीपी अधिनियम को लेकर संदेह जताया है।
उनका कहना है कि इस कानून के जरिये व्यक्तिगत जानकारी साझा करने पर रोक लगने से आरटीआई के तहत भ्रष्टाचार उजागर करने, योजनाओं की निगरानी और फाइलों की स्थिति जानने में बाधा आएगी।
इस कानून के प्रावधानों से पत्रकारों को विशेष छूट देने की मांग भी की गई है।
इस संबंध में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को ज्ञापन सौंपकर अपनी चिंताओं से अवगत कराया है। संगठन ने चेतावनी दी है कि पत्रकारों को इससे छूट देने की मांग नहीं माने जाने पर कानूनी रास्ता या आंदोलन का विकल्प अपनाया जाएगा।
डीपीडीपी अधिनियम डिजिटल व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण को विनियमित करने वाला व्यापक कानून है। इसके नियमों के मसौदे पर 6,900 से अधिक सुझाव मिले हैं।
भाषा प्रेम प्रेम रमण
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