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Friday, 15 November, 2024
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देश के विभाजन के समय बिछड़ी थीं दो सहेलियां, क्या झुमका फिर से मिलाएगा

देश के विभाजन के समय दो सहेलियां एक-दूसरे से बिछड़ गईं और जिनके पास झुमके के एक जोड़े के एक-एक झुमके थे.

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इस्लामाबाद: आज़ादी के दौरान देश में काफी कुछ बदला था, काफी कुछ बंट भी गया था. एक ही परिवार के कुछ लोग भारत में रह गए थे तो कुछ पाकसितान चले गए थे..ऐसी ही बटी थीं दो सहेलियां और बंट गई थीं उनकी कानों की बालियां. देश के विभाजन के समय दो सहेलियां एक-दूसरे से बिछड़ गईं और जिनके पास झुमके के एक जोड़े के एक-एक झुमके थे. क्या यह झुमका उन दोनों को एक बार फिर से मिला सकेगा. विभाजन की त्रासदी के बीच मानवीय रिश्तों की यह कहानी इस वक्त ट्विटर पर आई हुई है और ट्विटर यूजर से इसमें अपील की गई है कि दोनों सहेलियों को फिर से मिलाने में वे मदद करें.

पाकिस्तानी मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, इस कहानी को ट्विटर पर भारतीय इतिहासकार व लेखिका आंचल मल्होत्रा ने साझा किया है. यह कहानी आंचल की एक छात्रा नूपुर मारवाह और उसकी दादी तथा दादी की बिछड़ जाने वाली एक सहेली की है.

70 साल का है इंतज़ार

नूपुर की दादी अपनी सहेली से भारत विभाजन के समय बिछड़ गई थीं. बिछड़ते वक्त दोनों सहेलियों ने सोने के झुमके के एक जोड़े के एक-एक झुमके को ‘अपनी दोस्ती की कभी न मिटने वाली यादगार’ के तौर पर अपने पास रख लिया था.

आंचल ने लिखा है कि नूपुर की दादी किरन बाला मारवाह 1947 में पांच साल की थी और उनकी सहेली नूरी रहमान छह साल की. दोनों का संबंध जम्मू-कश्मीर के पुंछ से था. पाकिस्तान बनने के बाद नूरी व उनका परिवार पाकिस्तान चला गया. दोनों सहेलियों के बिछड़ने का वक्त आया तब दोनों बच्चियों ने अपनी दोस्ती की याद में झुमके के एक जोड़े के एक-एक झुमके को अपने पास रख लिया. दोस्त चली गई, दोस्ती पास रह गई.

वक्त गुजरता गया. सत्तर साल गुजर गए. एक दिन नूपुर ने अपनी दादी से स्कूल के प्रोजेक्ट के सिलसिले में देश विभाजन के बारे में पूछा. किरन बाला मारवाह ने अपनी अलमारी को खोला और एक कान का झुमका अपनी पोती के हाथ पर बतौर विरासत रख दिया. किरन बाला ने लगभग सत्तर साल से इस उम्मीद पर इस झुमके को अपने पास रखा कि कभी तो उनकी सहेली उनसे मिलेगी.

सोशल मीडिया ट्विटर पर मांगी मदद

आंचल ने कई ट्वीट में यह कहानी शेयर की. उन्होंने एक ट्वीट में लिखा, ‘आंसुओं से भरी आंखों के साथ किरन ने कहा कि दशकों पहले बिछड़ जाने वाली सहेली की याद में ही उन्होंने पोती का नाम नूपुर रखा. नूपुर ने कहा कि इसके बाद मुझे इस बात का अहसास हुआ कि दादी क्यों उसे कई बार नूरी कहकर बुलाती हैं.’

आंचल ने ट्वीट में पाकिस्तान के ट्विटर यूजर से अपील की है कि वे झुमकों की इस जोड़ी को और सहेलियों को एक-दूसरे से मिलाने के लिए कोशिश करें. उन्होंने लिखा,’सरहद के उस पार जो लोग इन संदेशों को पढ़ें, अगर उन्होंने अपने परिवार या नूरी दादी या नूरी नानी से यह कहानी सुन रखी हो, जिनके पास एक झुमका मौजूद है, तो वे कृपया संपर्क करें. किरन और नूरी को एक बार फिर मिलना चाहिए.’

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