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Monday, 11 August, 2025
होमदेशपिछले 10 साल में ASI का बजट हुआ दोगुना, लेकिन खुदाई पर खर्च हुआ 1% से भी कम

पिछले 10 साल में ASI का बजट हुआ दोगुना, लेकिन खुदाई पर खर्च हुआ 1% से भी कम

एएसआई के तहत 3,685 स्मारक और स्थल आते हैं. संस्कृति मंत्रालय के तहत काम करने वाली यह सरकारी एजेंसी आवंटन और खर्च पर सालाना रिपोर्ट जारी नहीं करती.

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नई दिल्ली: जब भी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की बात होती है, तो संरक्षण, खोज और खुदाई का ज़िक्र आता है, लेकिन सच यह है कि खुदाई का काम उनकी प्राथमिकता सूची में सबसे आखिर में आता है.

पिछले 10 सालों में हाल यह रहा कि एएसआई के कुल बजट का 1% से भी कम खुदाई पर खर्च हुआ. आंकड़े बताते हैं—2014 से 2024 के बीच एएसआई को कुल 9,652.01 करोड़ रुपये मिले, जिसमें से खुदाई पर सिर्फ 63.27 करोड़ (यानी 0.65%) रुपये खर्च किए गए.

2014 से 2019 के बीच खुदाई पर 28.46 करोड़ रुपये खर्च हुए, जबकि 2020 से 2024 के बीच यह थोड़ा बढ़कर 34.81 करोड़ हो गया था.

पैसों की कमी को वजह नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) के आंकड़े बताते हैं कि इस दौरान एएसआई का बजट लगभग दोगुना हो गया—2014 में 680.05 करोड़ से बढ़कर इस साल 1,278 करोड़ रुपये.

संसद और CAG के दस्तावेज़ दिखाते हैं कि एएसआई के कुल बजट का 90% से ज़्यादा सिर्फ स्मारकों के संरक्षण (41%) और कर्मचारियों के वेतन (56%) पर खर्च हुआ.

बाकी रकम में से सिर्फ 2% साइट म्यूज़ियम की देखरेख और अन्य छोटे मदों पर खर्च हुई.

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की 2022 की फॉलो-अप रिपोर्ट में कहा गया था कि एएसआई अपने बजट का 1% से भी कम असली खोज और खुदाई पर खर्च कर रहा है.

उस साल संस्कृति मंत्रालय ने संसद की लोक लेखा समिति (PAC) को भरोसा दिलाया था कि खोज और खुदाई पर खर्च बढ़ाकर कुल बजट का 5% किया जाएगा, लेकिन तीन साल बाद भी कोई बदलाव नहीं हुआ.

उत्तर भारत में कई साइट्स पर खुदाई का अनुभव रखने वाली एक पुरातत्वविद् ने कहा, “दुर्भाग्य की बात है कि बजट आवंटन में संतुलन नहीं है. खुदाई परियोजनाओं के लिए पैसे न मिलने से एएसआई शैक्षणिक रूप से पीछे जा रहा है.”

उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि अगर बजट का इतना बड़ा हिस्सा संरक्षण पर खर्च हो रहा है, तो इतने स्मारक खराब हालत में क्यों हैं. “इसका मतलब है कि रकम का सही इस्तेमाल नहीं हो रहा. हमारे स्मारकों में स्टाफ की भी कमी है.”

देश में एएसआई के अधिकार क्षेत्र में 3,685 केंद्रीय संरक्षित स्मारक और स्थल हैं. संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाली यह सरकारी एजेंसी अपने बजट और खर्च का वार्षिक ब्योरा जारी नहीं करती.

एएसआई का असंतुलित खर्च कई बार सार्वजनिक चर्चा में आया है. 2016 में कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने संसद में कहा था कि कई खुदाई प्रस्ताव या तो शुरू नहीं किए जा रहे या अधूरे छोड़ दिए जा रहे हैं.

लोकसभा में उस समय के संस्कृति राज्य मंत्री महेश शर्मा ने कहा था, “एएसआई साइट की क्षमता और शोध परियोजनाओं के आधार पर खोज और खुदाई का काम करता है, जो लंबे समय और बड़े भूगोल को कवर करता है. कुल खर्च में इसका प्रतिशत इस गतिविधि को दी जाने वाली अहमियत को नहीं दर्शाता. एएसआई ने न तो खुदाई का काम रोका है और न ही अधूरा छोड़ा है.”

एएसआई की संयुक्त महानिदेशक (स्मारक) नंदिनी भट्टाचार्य साहू ने दिप्रिंट को बताया, “संरक्षण कार्य की तुलना में खुदाई पर कम पैसा लगता है…खुदाई सिर्फ कुछ महीनों के लिए ही की जा सकती है.” उन्होंने कहा कि भारत में खुदाई महंगा काम नहीं है, क्योंकि ज़्यादातर काम मशीनों से नहीं, हाथों से किया जाता है.

उन्होंने कहा कि एएसआई का काम हर जगह खुदाई करना नहीं है. “हम ज़रूरत पड़ने पर ही खुदाई और खोज करते हैं.”

संरक्षण एक महंगा काम है. उन्होंने कहा, “लेकिन खुदाई के मामले में ऐसा नहीं है. इसलिए बजट का ज़्यादातर हिस्सा स्मारकों के संरक्षण में जाता है.”


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CAG ने क्या पाया

‘स्मारकों और पुरावशेषों के संरक्षण व संवर्धन के प्रदर्शन ऑडिट’ नामक रिपोर्ट में CAG ने 2007 से 2012 तक के एएसआई के खर्च का विश्लेषण किया.

CAG के मुताबिक, 41% खर्च संरक्षण परियोजनाओं पर, 56% स्टाफ व अन्य खर्चों पर, 2% साइट म्यूज़ियम पर और सिर्फ 1% खुदाई परियोजनाओं पर हुआ.

संस्कृति मंत्रालय ने, रिपोर्ट में कहा गया, बजट आवंटन बिना यह आकलन किए किया कि कितनी रकम की ज़रूरत है और उसे कितना सही ढंग से खर्च किया जा सकता है. “रकम की ज़रूरत केंद्रीय संरक्षित स्मारकों की संख्या और उनके संरक्षण की आवश्यकता के हिसाब से तय होनी चाहिए.”

आंकड़ों से साफ है कि 2014 में नई सरकार आने के बाद भी खुदाई को उसका हक नहीं मिला. उस साल 629.27 करोड़ रुपये के बजट में से खुदाई/खोज पर सिर्फ 4.34 करोड़ (0.69%) खर्च हुए.

यह रुझान आगे भी जारी रहा, 2015 में 5.48 करोड़ (0.8%), 2016 में 3.61 करोड़ (0.47%), 2017 में 5.29 करोड़ (0.56%), 2018 में 6.18 करोड़ (0.64%), 2019 में 3.56 करोड़ (0.35%), 2020 में 2.48 करोड़ (0.29%), 2021 में 5.48 करोड़ (0.53%), 2022 में 6.80 करोड़ (0.6%), 2023 में 9.98 करोड़ (0.88%), 2024 में 10.03 करोड़ (0.78%).

2022 की फॉलो-अप रिपोर्ट (2013-2022 अवधि) में CAG ने कहा कि संस्कृति मंत्रालय ने PAC को आश्वासन दिया था कि खोज/खुदाई पर खर्च बढ़ाकर कुल बजट का 5% किया जाएगा. “इसके बावजूद एएसआई का खर्च 1% से भी कम रहा.”

वरिष्ठ पुरातत्वविद् फणिकांत मिश्रा ने कहा, “स्मारक नाज़ुक होते हैं और खास देखभाल चाहते हैं. कई स्मारक जैसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल, अनिवार्य संरक्षण के दायरे में आते हैं, जहां खर्च अधिक होता है. इसलिए बजट का बड़ा हिस्सा संरक्षण में चला जाता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि खुदाई को न के बराबर पैसा मिले. खुदाई ही एएसआई का प्राथमिक काम है, जिससे हम अपने अतीत को जानते हैं. इस पर सही दृष्टिकोण चाहिए.”

एएसआई अपने 5 क्षेत्रीय और 37 सर्कल दफ्तरों के ज़रिये केंद्रीय संरक्षित स्मारकों व स्थलों का संरक्षण व प्रबंधन करता है.

राजस्व का मुख्य स्रोत है—प्रवेश टिकट. 2013 में सरकार ने बताया था कि 2013-2023 में टिकट वाले स्मारकों से 1,804.94 करोड़ रुपये की कमाई हुई, जबकि इसी अवधि में 3,117.87 करोड़ खर्च हुए—यानि आय से 1.5 गुना अधिक.

दिप्रिंट की जुलाई की रिपोर्ट में बताया गया था कि खुदाई के बजट में एकरूपता नहीं है. 2020 से 2024 के बीच 17 राज्यों में 58 साइट्स पर खुदाई हुई, जिस पर 34.81 करोड़ खर्च हुए. इसमें से एक-चौथाई (8.53 करोड़) गुजरात को और उसका भी 90% पीएम मोदी के गृह नगर वडनगर को मिला.

एएसआई भोपाल सर्कल के अधीक्षण पुरातत्वविद् मनोज कुर्मी ने कहा, “पिछले कुछ वर्षों में खुदाई की रफ्तार बढ़ी है, लेकिन खर्च बढ़ने में समय लगेगा.”

आखिरी बड़ी खुदाई 2019 में यूपी के सिसौली में हुई, जिसमें एएसआई के अनुसार 1900 ईसा पूर्व में फली-फूली एक योद्धा जनजाति के प्रमाण मिले.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(इस रिपोर्ट को अपडेट किया गया है.)


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