लखनऊ : उत्तर प्रदेश में सरकार के मुख्यमंत्री और मंत्रियों का टैक्स पिछले 38 साल से सरकारी खजाने से भरा जा रहा है. ये बात हैरान कर देने वाली जरूर लगती है, लेकिन ये सच है. दरअसल 1981 में वीपी सिंह की सरकार के दौरान उत्तर प्रदेश मिनिस्टर्स सैलरीज, अलाउंसेज एंड मिसलेनीअस एक्ट, 1981 में बनाया गया था. जिसमें उन्हें गरीब बताते हुए कहा गया है कि वे अपनी कम आमदनी से इनकम टैक्स नहीं भर सकते हैं. तब से ये एक्ट अभी तक चलता आ रहा है. अब योगी सरकार इसमें बदलाव करने पर विचार कर रही है.
उत्तर प्रदेश के प्रिंसिपल सेक्रेटरी (फाइनेंस) संजीव मित्तल ने दिप्रिंट से बातचीत में इस बात की पुष्टि की कि 1981 के कानून के तहत मुख्यमंत्री और उनके मंत्रियों का टैक्स राज्य सरकार की ओर से भरा गया है. पिछले दो वित्त वर्ष से योगी आदित्यनाथ सरकार के मंत्री भी सरकारी खजाने से ही टैक्स भर रहे हैं. इस वित्त वर्ष में योगी आदित्यनाथ और उनके मंत्रियों का कुल टैक्स 86 लाख रुपये था जो सरकार की ओर से दिया गया है.
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मौजूदा सरकार का पक्ष
यूपी सरकार के प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा ने मीडिया से बातचीत में कहा, ‘सरकार 38 साल पुराने इस एक्ट में बदलाव पर विचार कर रही है. चूंकि पहले ये मामला कभी चर्चा में रहा नहीं इसी कारण इस पर सोचा नहीं गया. लेकिन अब इस पर विचार किया जाए.’
अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस मुद्दे को उठाया था कि उत्तर प्रदेश में चार दशक पुराने एक कानून की वजह से मुख्यमंत्री और सभी मंत्रियों का इनकम टैक्स सरकारी खजाने से भरा जाता है, क्योंकि इसमें उन्हें गरीब बताते हुए कहा गया है कि वे अपनी कम आमदनी की वजह से इसे नहीं भर सकते हैं. इस मामले के तूल पकड़ने के बाद यूपी सरकार ने अपना पक्ष रखा है.
38 साल में बदले 19 सीएम
वीपी सिंह के बाद से यूपी में 19 मुख्यमंत्री बदले, लेकिन इस एक्ट में बदलाव नहीं किया गया. वीपी सिंह के बाद समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव, बहुजन समाज पार्टी की मायावती, कांग्रेस से नारायण दत्त तिवारी, वीर बहादुर सिंह और बीजेपी से कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, राम प्रकाश गुप्त और अब योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने. यही नहीं अलग-अलग दलों के करीब 1000 नेता भी इस कानून के अस्तित्व में आने के बाद मंत्री बन चुके हैं. लेकिन किसी ने इस एक्ट में बदलाव की पहल नहीं की.
सोशल एक्टिविस्ट प्रताप चंद्रा ने भी इस पर सवाल उठाते हुए कहा है कि आमतौर पर देखा जाता है कि चुनाव के दौरान जमा किए जाने वाले शपथ पत्रों में कई मंत्रियों के पास करोड़ों की चल-अचल संपत्ति घोषित होती है और महंगी गाड़ियों में चलते हैं. फिर इनका टैक्स सरकारी खजाने से क्यों दिया जाता है. ये तो अपने हाथ ही अपने लिए चेक साइन करने जैसा है. इस मामले में लगभग सभी दल एक साथ हैं. चाहे बीजेपी हो, सपा हो या कांग्रेस, बसपा सभी की सरकारों में सीएम व मंत्रियों ने इसका लाभ लिया है.
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कई पूर्व मंत्री इस एक्ट से ‘अंजान’
दिप्रिंट ने जब इस एक्ट के बारे में कुछ पूर्व मंत्रियों से बात की तो वे इसके बारे में जानकर हैरान रह गए. अखिलेश सरकार में स्किल डेवलेपेंट मंत्री रहे अभिषेक मिश्रा ने बताया कि उन्हें तो इस एक्ट की जानकारी भी नहीं. वह मंत्री रहने के दौरान अपना इनकम टैक्स पूरा देते थे. फाइनेंस एडवाइजर की सलाह पर सभी कार्य पूरे प्रॉसेस से होता था. वहीं अखिलेश सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे रविदास मेहरोत्रा का भी कहना है कि उन्हें भी ऐसे किसी एक्ट की जानकारी नहीं थी. वह भी खुद ही टैक्स देते थे.