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Sunday, 20 July, 2025
होमदेश75 सालों से झूठे वादों से तंग आकर मैनपुरी के ग्रामीणों ने खुद बनाई सड़क, नेताओं की एंट्री पर लगाया बैन

75 सालों से झूठे वादों से तंग आकर मैनपुरी के ग्रामीणों ने खुद बनाई सड़क, नेताओं की एंट्री पर लगाया बैन

दशकों से मजराज राजपुर की सड़क जर्जर हालत में थी. बाकी रास्ते हैं तो सही, लेकिन वह दूसरे गांव से होकर जाते हैं, ज़्यादा लंबे और अक्सर भीड़भाड़ वाले होते हैं.

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आगरा: जहां चाह होती है, वहां राह भी बनती है. उत्तर प्रदेश के मैनपुरी ज़िले के मजराज राजपुर गांव के लोगों ने यह कहावत सच कर दिखाई है. गांव के निवासियों ने खुद चंदा जुटाकर और मेहनत करके अपने गांव की सड़क बना डाली.

हालांकि, इस काम के पीछे खुशी नहीं, बल्कि नेताओं और अधिकारियों से सालों की उपेक्षा और नाराज़गी थी. पिछले 70 सालों में किसी ने भी गांव को मुख्य सड़क से जोड़ने वाले कच्चे रास्ते की सुध नहीं ली.

जब गांववालों से पूछा गया कि सड़क कैसे बनी, तो तुरंत जवाब मिला — “जब विकास की गुहार लगाकर थक गए, तो सबने मिलकर खुद ही सड़क बना दी.”

दशकों से मजराज राजपुर गांव की करीब 200 मीटर लंबी और 8 फीट चौड़ी सड़क बेहद खराब हालत में थी. यह रास्ता गांव को मुख्य ‘इलाबांस रोड’ से जोड़ता है. गांव तक पहुंचने के और रास्ते भी हैं, लेकिन वो इलाबांस गांव होकर जाते हैं, जो न सिर्फ लंबे हैं, बल्कि अक्सर भीड़भाड़ वाले भी रहते हैं.

बारिश के मौसम में यह कच्चा रास्ता कीचड़ और पानी भरने के कारण पूरी तरह बंद हो जाता था. बच्चों को शहर के स्कूल जाने में परेशानी होती थी और मरीजों को मैनपुरी अस्पताल ले जाना भी मुश्किल हो जाता था.

गांववालों का कहना है कि उन्होंने समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और भाजपा — तीनों सरकारों के समय नेताओं और अधिकारियों से सड़क की मांग की, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया.

किशनी विकासखंड के अंतर्गत ग्राम पंचायत इलाबांस में आने वाले इस गांव में ब्राह्मण परिवारों की संख्या अधिक है.

गांव के निवासी अजय मिश्रा ने बताया कि उन्होंने पूर्व विधायकों से लेकर मौजूदा मैनपुरी विधायक बृजेश कठेरिया तक को प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत सड़क बनवाने के लिए ज्ञापन दिए, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. सांसद डिंपल यादव के कार्यालय में भी कई बार मांग रखी गई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

पंचायत से लेकर ज़िला पंचायत, खंड विकास अधिकारी (BDO), तहसीलदार और उपजिलाधिकारी (SDM) तक — सभी जगह गुहार लगाई गई, लेकिन सिर्फ आश्वासन ही मिले. चुनाव आते ही नेता वादा करते थे कि सड़क बनवाएंगे, फिर नज़र नहीं आते थे.

थक-हारकर गांव के लोगों ने तय किया कि अब प्रशासन की राह नहीं देखी जाएगी. गांव के करीब 20 युवाओं और बुज़ुर्गों ने मिलकर आपसी सहयोग से 70,000 रुपये जुटाए. टूटी ईंटों से सड़क बनाने का काम शुरू हुआ. ग्रामीणों ने फावड़ा उठाया और खुद ही काम में लग गए. कुछ ही दिनों में 200 मीटर की ईंटों की सड़क तैयार हो गई, जो अब गांव को मुख्य सड़क से जोड़ने को लगभग तैयार है.

गांव के अजय मिश्रा ने कहा, “नेताओं और अधिकारियों से इतने बार हाथ जोड़ चुके थे कि अब खुद पर शर्म आने लगी थी. इसलिए तय किया कि सड़क हम खुद बनाएंगे — और अब जब बन गई है, तो अगली बार चुनावों में वोट मांगने कोई नेता इस सड़क से गांव में दाखिल नहीं हो सकेगा.”

गांव की एक और निवासी अन्नू मिश्रा ने बताया कि गांव में लगभग 250 लोग रहते हैं और सिर्फ 90 वोटर हैं. उन्होंने कहा, “सब लोग वोट डालते हैं, फिर भी हमें बुनियादी ज़रूरतों के लिए तरसना पड़ता है. यह सड़क हमने स्वाभिमान से बनाई है. यह सिर्फ ईंट की सड़क नहीं है, इसका मतलब है कि अब हमें किसी के आगे हाथ फैलाने की ज़रूरत नहीं.”

गांव प्रधान के प्रतिनिधि नरेश परमार ने बताया कि 200 मीटर लंबी सीसी (कंक्रीट) सड़क के लिए प्रस्ताव भेजा गया था, लेकिन पंचायत के पास फंड नहीं है. यह सड़क केवल विकासखंड या ज़िला पंचायत की मदद से ही बन सकती है.

जब मैनपुरी ज़िले के अधिकारियों से संपर्क किया गया, तो उन्होंने इस मामले की जानकारी होने से इनकार किया. किशनी के एसडीएम गोपाल शर्मा ने कहा कि वे गांव का दौरा करेंगे और ग्रामीणों से उनकी समस्याओं के बारे में बात करेंगे.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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