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Saturday, 19 July, 2025
होमदेशविशेषज्ञों ने एकीकृत एमबीबीएस-बीएएमएस के लिए संतुलित,साक्ष्य-आधारित दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया

विशेषज्ञों ने एकीकृत एमबीबीएस-बीएएमएस के लिए संतुलित,साक्ष्य-आधारित दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया

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नयी दिल्ली, 19 जुलाई (भाषा) केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित एकीकृत एमबीबीएस-बीएएमएस पाठ्यक्रम को लेकर जारी तीखी बहस के बीच विशेषज्ञों ने जोर देकर कहा कि दोनों विशेषज्ञताओं के बीच नैदानिक अनुभव और अनुसंधान सहयोग साझा करना भारत के लिए एकीकृत स्वास्थ्य सेवा में एक स्वर्णिम मानक स्थापित करने की कुंजी है।

हालांकि चिकित्सा पेशेवरों, शिक्षकों और नीति निर्माताओं के बीच इस बात को लेकर चर्चा हो रही है कि क्या भारत अपने प्राचीन आयुर्वेदिक चिकित्सा ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक पद्धतियों के साथ सफलतापूर्वक एकीकृत कर सकता है?

वरिष्ठ प्लास्टिक सर्जन और ट्रिपल अमेरिकन बोर्ड-प्रमाणित चिकित्सक डॉ. अजय कश्यप ने कहा, “भारत शल्य चिकित्सा के जनक सुश्रुत का जन्मस्थान है और राइनोप्लास्टी (नाक का पुनर्निर्माण), मोतियाबिंद सर्जरी और गुदा-मलाशय सर्जरी जैसे उनकी शल्य चिकित्सा तकनीकें आज भी उपयोग में हैं।”

डॉ. अजय कश्यप की हाल ही में प्रकाशित पुस्तक ‘द क्वेस्ट ऑफ सुश्रुत’ इस प्राचीन शल्यचिकित्सक के योगदान की पड़ताल करती है और इस बात पर जोर देती है कि भारत, चिकित्सा पुनर्जागरण के कगार पर खड़ा है।

सर गंगा राम अस्पताल में लैप्रोस्कोपिक, लेजर एवं सामान्य शल्य चिकित्सा के अध्यक्ष और एकीकृत चिकित्सा के समर्थक डॉ. बीबी अग्रवाल ने कहा, “यह पूर्व बनाम पश्चिम या प्राचीन बनाम आधुनिक का मामला नहीं बल्कि मरीज के लिए क्या सबसे अच्छा काम कर सकता है, इसको लेकर है।”

उन्होंने कहा, “भारत के पास एकीकृत स्वास्थ्य सेवा में एक स्वर्णिम मानक स्थापित करने का अवसर है, लेकिन इसे वैज्ञानिक सत्यापन, नैदानिक परीक्षणों और मानकीकृत देखभाल प्रोटोकॉल के आधार पर स्थापित किया जाना चाहिए।”

अग्रवाल ने कहा, “व्यक्तिगत संरचना (प्रकृति), ऋतु में परिवर्तन और समग्र जीवनशैली समायोजन के आधार पर अलग-अलग उपचार सहित कई आयुर्वेदिक सिद्धांत वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय हो रहे हैं। दुनिया भर के स्वास्थ्य केंद्र अब इन ढांचों से प्रेरणा ले रहे हैं, जिन्हें अक्सर ‘एकीकृत स्वास्थ्य’ के रूप में फिर से प्रचारित किया जाता है। विडंबना यह है कि भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति को बहुत कम महत्व दिया जाता है। फिर भी, चुनौतियां बनी हुई हैं।”

उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि देश के कई हिस्सों में आयुर्वेद की वर्तमान पद्धति में अक्सर मजबूत नैदानिक परीक्षणों, मापनीय परिणामों और गहन समीक्षा वाले शोध का अभाव होता है।

कश्यप ने कहा कि एमबीबीएस और बीएएमएस (आयुर्वेदिक चिकित्सा एवं शल्य चिकित्सा स्नातक) के पाठ्यक्रमों को मिलाने से पहले साझा नैदानिक अनुभव और अनुसंधान सहयोग होना चाहिए।

उन्होंने कहा, “एमबीबीएस के विद्यार्थियों को आयुर्वेद को वैज्ञानिक रूप से समझने दें और बीएएमएस के विद्यार्थियों को निदान और आधुनिक आपातकालीन प्रोटोकॉल का प्रशिक्षण दें। एकीकरण प्रमाण-आधारित होना चाहिए।”

भाषा जितेंद्र संतोष

संतोष

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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