नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने मार्च 2020 में तबलीगी जमात के आयोजन में शामिल होने आये विदेशियों को कोविड-19 मानदंडों का कथित उल्लंघन करते हुए ठहराने के आरोपी 70 भारतीय नागरिकों के खिलाफ आरोप खारिज कर दिए हैं. अदालत ने कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि उन्होंने किसी प्रतिबंधित गतिविधि में हिस्सा लिया था.
न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के कोविड-19 संक्रमित पाए जाने या कोविड-19 रोग फैलाने के इरादे या जानकारी के साथ लापरवाही या गैरकानूनी तरीके से घूमने के बारे में प्राथमिकी या आरोपपत्र में ‘कोई भी उल्लेख नहीं’ था.
अदालत ने कहा, ‘‘पूरे आरोपपत्र में इस बात का कोई ज़िक्र नहीं है कि इनमें से कोई भी याचिकाकर्ता कोविड-19 संक्रमित पाया गया था या वे 24 मार्च, 2020 के बाद मरकज से बाहर निकले थे या उनसे कोविड-19 फैलने की आशंका थी.’’
न्यायमूर्ति कृष्णा ने 17 जुलाई को याचिकाकर्ताओं को आरोपमुक्त कर दिया था, लेकिन विस्तृत आदेश शुक्रवार को उपलब्ध कराया गया.
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ इन आरोपपत्रों को जारी रखना प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा और न्याय के हित में भी नहीं है.
अदालत ने कहा, ‘‘आरोपपत्र और उनसे संबंधित कार्यवाही को रद्द किया जाता है और याचिकाकर्ताओं को आरोपमुक्त किया जाता है.’’
इन 70 व्यक्तियों पर कोविड-19 के दौरान विदेशी तबलीगी जमात के सदस्यों को ठहराकर मानदंडों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था, जब निषेधाज्ञा लागू थी.
फैसले में कहा गया कि आईपीसी की धारा 188 (लोक सेवक द्वारा जारी आदेश की अवज्ञा) के तहत अपराध का संज्ञान लेना गलत था क्योंकि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता.
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने 3 अप्रैल, 2020 से पृथकवास की अवधि के दौरान कोविड-19 जांच कराई थी और उनकी रिपोर्ट में संक्रमण की पुष्टि नहीं हुई थी और उन्हें डॉक्टर की निगरानी में अलग रखा गया था.
फैसले में कहा गया, ‘‘रिकॉर्ड पर ऐसी कोई सामग्री नहीं है, जिससे साबित हो सके कि वे किसी ऐसे कृत्य में लिप्त थे, जिससे कोविड-19 का संक्रमण फैलने की आशंका हो. आरोपपत्र में कोई सामग्री पेश नहीं की गई और आईपीसी की धारा 269 और 270 के तत्वों की पूर्ति को प्रमाणित करने के लिए कोई सबूत रिकॉर्ड पर नहीं रखा गया.’’
यह फैसला 70 भारतीय नागरिकों की 16 याचिकाओं पर आया, जिनका प्रतिनिधित्व अधिवक्ता आशिमा मंडला ने किया.
दिल्ली पुलिस ने मार्च 2020 के कार्यक्रम में विदेशियों की मेजबानी के लिए दर्ज एफआईआर को रद्द करने की याचिकाओं का विरोध किया था और कहा था कि आरोपी स्थानीय निवासियों ने कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए आवाजाही पर प्रतिबंधात्मक आदेशों का उल्लंघन करते हुए निजामुद्दीन मरकज (बैठक स्थल) में आगंतुक प्रतिभागियों को रहने की जगह दी थी.
कुछ प्राथमिकियों में नामजद विदेशी नागरिकों ने या तो अपने देश वापस जाने के लिए दोष स्वीकार कर लिया या उन्हें आरोप मुक्त कर दिया गया या मामले में बरी कर दिया गया.
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि प्राथमिकी या आरोपपत्र में ऐसा कोई दस्तावेज़ नहीं है, जिससे पता चले कि वे कोविड-19 से संक्रमित थे और इसलिए, उन पर महामारी रोग अधिनियम के तहत बीमारी फैलाने का आरोप नहीं लगाया जा सकता.
अदालत को ऐसा कुछ भी रिकॉर्ड में नहीं मिला, जिससे पता चले कि याचिकाकर्ता सीआरपीसी की धारा 144 के तहत अधिसूचना जारी होने के बाद एकत्रित हुए थे.
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता पहले से ही मरकज में मौजूद थे और पूर्ण लॉकडाउन लागू होने के बाद, उनके लिए वहां से निकलना संभव नहीं था.
फैसले में कहा गया कि घरों से बाहर निकलना पूर्ण लॉकडाउन का उल्लंघन होता और साथ ही कोविड-19 जैसी बीमारी फैलने की आशंका भी होती.
फैसले में कहा गया, ‘‘मानवाधिकारों का सवाल तब उठा, जब महामारी के कारण उनकी आवाजाही पर रोक लगा दी गई और उन्हें मरकज में ही रहने के लिए मजबूर होना पड़ा, जहां वे लॉकडाउन की घोषणा से पहले से ही जमा थे. यह जमावड़ा सीआरपीसी की धारा 144 के तहत अधिसूचना के बाद नहीं हुआ था. वे बेबस लोग थे, जो लॉकडाउन के कारण फंस गए थे.’’
अदालत ने कहा कि केवल मरकज में रहना अधिसूचना द्वारा निर्धारित किसी भी गतिविधि का उल्लंघन नहीं है. अदालत ने कहा कि वे न तो किसी प्रदर्शन के लिए, न ही किसी सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, धार्मिक समारोह, साप्ताहिक बाज़ारों के आयोजन या समूह भ्रमण के लिए इकट्ठा हुए थे.
अदालत को अधिसूचना के बाद ऐसी कोई गतिविधि नहीं मिली. अदालत ने महामारी रोग अधिनियम, 1897 और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 सहित कानूनी प्रावधानों का कोई उल्लंघन नहीं पाया.
अदालत ने कहा,‘‘कोविड-19 अवधि के दौरान उपरोक्त धाराओं के तहत देशभर की विभिन्न अदालतों में मामले दर्ज किए गए थे, वे सभी मामले या तो आरोपियों की रिहाई या बरी होने पर समाप्त हुए हैं, जिनके खिलाफ ये एफआईआर और आरोप पत्र दाखिल किए गए थे.’’
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