नई दिल्ली: दिल्ली के वसंत कुंज स्थित जय हिंद कैंप के 5,000 से ज़्यादा लोग पिछले मंगलवार से बिजली के बिना रह रहे हैं. ऐसा तब हुआ जब BSES अधिकारियों ने पुलिस के साथ मिलकर तीन बिजली मीटर हटा दिए—दो मंदिर से और एक मस्जिद से. ये मीटर पूरे कैंप को सब-मीटर के ज़रिए बिजली दे रहे थे, जिनकी वैधता पर सवाल था.
यह कार्रवाई मई 2024 में दिल्ली की एक जिला अदालत के आदेश के बाद हुई, जिसमें BSES को इलाके से सभी अवैध बिजली कनेक्शन हटाने का निर्देश दिया गया था. अदालत ने पाया कि BSES ने यह जांचने की कोई कोशिश नहीं की कि क्या मीटरों से बिजली कहीं और तो नहीं भेजी जा रही.
जय हिंद कैंप की ज़मीन पर मालिकाना हक को लेकर विवाद है. अदालत ने अपने आदेश में कहा, “BSES ने यह जानने की कोई कोशिश नहीं की कि मीटरों से बिजली सिर्फ मंज़ूरशुदा जगहों पर ही जा रही है या कहीं और भी. उसने मौके पर जाकर कोई जांच नहीं की.”
मामला यह है कि ज़मीन मालिकों का आरोप है कि वहां अवैध झुग्गियां बनाई गई हैं और रहने वालों ने अपने नाम से बिजली और पानी के कनेक्शन ले लिए हैं.
शुक्रवार को कोर्ट ने रहवासियों को अस्थायी राहत दी और 12 फरवरी 2020 के एक पुराने आदेश पर 8 अगस्त 2025 तक रोक लगा दी. इसका मतलब है कि अगली सुनवाई तक कोई बेदखली या कब्ज़ा नहीं होगा. निवासियों के वकील ने दलील दी कि अगर बेदखली हुई तो लोगों को “अपूरणीय क्षति” होगी.
पुलिस के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, “बिजली का कनेक्शन मस्जिद और मंदिर के नाम पर लिया गया था, लेकिन उससे पूरे कैंप को बिजली दी जा रही थी. यह नियमों का उल्लंघन है. कनेक्शन सिर्फ मंदिर और मस्जिद के लिए था, पूरे कैंप के लिए नहीं.”
दिप्रिंट को यह भी जानकारी मिली है कि बकाया बिजली बिल भी एक कारण था—मस्जिद वाले मीटर पर करीब 4 लाख और मंदिर के एक मीटर पर 11 लाख रुपये बकाया हैं.

मंदिर कमेटी के एक सदस्य ने दिप्रिंट को बताया कि कैंप में बिजली सप्लाई के लिए मुख्य मीटर मंदिर में लगाया गया था, लेकिन उसका उद्देश्य पूरे कैंप को बिजली देना था. उन्होंने कहा, “लोगों से सब-मीटर की रीडिंग के आधार पर उनका हिस्सा लिया जाता था. जब पूरे एरिया को एक मीटर से बिजली देना मुश्किल हुआ, तो दो मुख्य मीटर लगाए गए और बिजली बांट दी गई.”
इलाके के एक निवासी, जो मामले की जानकारी रखते हैं, नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने बताया कि अगर बिजली सिर्फ मंदिर और मस्जिद के लिए थी, तो फिर वहां 40 किलोवॉट क्षमता वाले तीन मीटर क्यों लगाए गए? जबकि इन जगहों की ज़रूरत इससे काफी कम थी. BSES की तरफ से इस पर कोई बयान नहीं आया कि उन्हें इस इलाके में सब-मीटरों के बारे में जानकारी थी या नहीं.
इस बीच, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस कार्रवाई की आलोचना की. उन्होंने कहा, “बंगाल में 1.5 करोड़ से ज्यादा प्रवासी मज़दूर गरिमा के साथ रहते हैं, लेकिन बीजेपी-शासित राज्यों में बंगालियों को अपने ही देश में घुसपैठिया जैसा व्यवहार झेलना पड़ रहा है. सिर्फ बांग्ला बोलने से कोई बांग्लादेशी नहीं हो जाता. ये लोग उतने ही भारतीय हैं जितने बाकी लोग, चाहे वे कोई भी भाषा बोलते हों.”
दिप्रिंट ने बीजेपी सांसद और प्रवक्ता प्रवीण खंडेलवाल से फोन और मैसेज के ज़रिए संपर्क किया. उनकी ओर से जवाब मिलने पर यह रिपोर्ट अपडेट कर दिया जाएगा.
सूत्रों के अनुसार, बिजली काटने का फैसला अब इसलिए लिया गया क्योंकि आज अदालत में इस मामले की सुनवाई हुई.
पुलिस अधिकारी ने घटनाक्रम समझाते हुए कहा, “BSES ने हमें पत्र भेजा था. वो पहले भी कनेक्शन काटने आए थे, लेकिन इस बार उन्होंने सुरक्षा के लिए पुलिस बल मांगा था, जो हमने मुहैया कराया ताकि वे अपनी कार्रवाई सुरक्षित ढंग से कर सकें.”
वहीं रहवासियों ने बताया कि करीब 3-4 महीने पहले BSES के लगभग 20 अधिकारी बिजली काटने आए थे, लेकिन लोगों ने उन्हें रोक लिया और जाने को कह दिया.
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विवादित ज़मीन का मामला
यह ज़मीन दिल्ली के वसंत कुंज स्थित मसूदपुर गांव में है. ज़मीन मालिकों ने कोर्ट में दावा किया है कि 1984-85 से 2014 तक उनका नाम सरकारी राजस्व रिकॉर्ड (खतौनी) में दर्ज है और इस ज़मीन का इस्तेमाल वो और उनके सह-मालिक पारंपरिक रूप से खेती के लिए करते थे.
1982 में मसूदपुर को दिल्ली नगर निगम अधिनियम के तहत शहरी गांव घोषित किया गया था. हालांकि, 1980 में दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) ने गांव की ज़्यादातर ज़मीन अधिग्रहित कर ली थी, लेकिन यह खास ज़मीन उस प्रक्रिया से बाहर रह गई.
2004 में ज़मीन का विवाद तब शुरू हुआ जब उप-जिलाधिकारी (SDM) ने यह ज़मीन “गैर-कृषि उपयोग” का हवाला देते हुए गांव सभा को ट्रांसफर कर दी. ज़मीन मालिकों ने इस फैसले को कोर्ट में चुनौती दी.
2015 में ज़मीन मालिकों को कैंप में तीन बिजली मीटर चल रहे मिले — एक मस्जिद में और दो मंदिर में. उन्होंने कोर्ट में मुकदमा किया. कोर्ट ने पाया कि ये कनेक्शन बिना अनुमति के लगाए गए थे और इनके जरिए पूरे कैंप को सब-मीटर से बिजली सप्लाई की जा रही थी.
मस्जिद पर 3.48 लाख रुपये और मंदिर पर 6.52 लाख व 11 लाख के बिजली बिल आए थे. कोर्ट ने इन्हें बिना नियंत्रण के बड़े स्तर पर बिजली उपयोग का सबूत माना.
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि इस बात का कोई रिकॉर्ड नहीं है कि ये धार्मिक स्थल 2014 में मीटर लगने से पहले मौजूद थे.
कोर्ट ने 2024 के आदेश में कहा, “संभव नहीं लगता कि एक मंदिर महीने में 3 लाख रुपये की बिजली खर्च करे.” कोर्ट ने उस समय किसी ढांचे को तोड़ने का आदेश नहीं दिया और तीन लंबे समय से रह रहे परिवारों को अगली सुनवाई तक बेदखली से राहत दी थी.
साथ ही, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि भले ही अवैध कब्जाधारियों को कुछ मूलभूत सुविधाएं मिल सकती हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें अवैध या अनियमित बिजली कनेक्शन की इजाजत दी जाए.
‘बच्चे सो नहीं पा रहे’
जैसे ही आप जय हिंद कैंप की संकरी गलियों में दाखिल होते हैं, आपको पक्की सड़कें नज़र नहीं आएंगी. यहां ज्यादातर लोग पश्चिम बंगाल से आए प्रवासी हैं और असम, बिहार, उत्तर प्रदेश के लोग भी यहां रहते हैं.
गली में जगह-जगह बारिश का पानी भरा है, चारों तरफ कूड़े और पुराने कपड़ों के ढेर लगे हैं. हाल ही की बारिश के बाद कैंप के बाहर पानी जमा हो गया है, जिससे मच्छर और पानी से फैलने वाली बीमारियां फैलने का खतरा बढ़ गया है.
यहां रहने वाले ज़्यादातर लोग घरेलू कामगार, कबाड़ बीनने वाले, कैब ड्राइवर या डिलीवरी पार्टनर हैं, जो मुश्किल से अपनी ज़िंदगी चला पाते हैं. अब जब उन्हें एक हफ्ते से ज्यादा समय से बिजली नहीं मिल रही है, तो पहले से कठिन जीवन और भी मुश्किल हो गया है.
जय हिंद कैंप में 2001 से रह रहे नबी हुसैन ने कहा, “हम तब से बहुत परेशानी में हैं. यहां बुज़ुर्ग हैं, कुछ बीमार हैं और कुछ महिलाएं गर्भवती हैं. इतने दिनों से हम इसी हाल में जी रहे हैं, ऐसा लग रहा है जैसे नरक में हैं.” उनकी फैमिली उन तीन परिवारों में से एक है जिन्हें बेदखली से राहत दी गई है.

पश्चिम बंगाल से आई एक घरेलू कामकाजी महिला, जो जय हिंद कैंप में रहती हैं, दिप्रिंट से बात करते हुए रो पड़ीं. उनके दो बच्चे हैं—एक 14 साल का और एक 8 साल का. उन्होंने कहा कि बिजली कटने के बाद से ज़िंदगी जीना बहुत मुश्किल हो गया है.
उन्होंने कहा, “बारिश की वजह से मच्छर बहुत हो गए हैं और इतनी गर्मी है कि मेरे बच्चे रात में सो नहीं पाते.” इसी कारण से दोनों बच्चे कई दिनों से स्कूल नहीं जा पा रहे हैं.
वो हर दिन सुबह 6 बजे काम पर निकल जाती हैं. उन्होंने कहा, “अगर मैं अपने बच्चे को इतनी सुबह जगाने की कोशिश करती हूं, तो वो मिन्नत करता है कि थोड़ा और सोने दो क्योंकि वो ठीक से सो नहीं पाया. अगर मैं समय पर काम पर नहीं पहुंचती तो डांट पड़ती है. अगर बच्चों की मदद करने के लिए घर पर रुकूं, तो नौकरी चली जाएगी.”
महिला ने कहा, “हम बहुत मुश्किल में हैं. मैं बयां भी नहीं कर सकती कितनी परेशानी है. हम ज्यादा कुछ नहीं मांग रहे, बस बिजली वापस दे दो. ताकि हमारे बच्चे स्कूल जा सकें और हम चैन से काम पर जा सकें.”
कैंप के पास भरे पानी के पास खेलता एक 8 साल का बच्चा बोला कि बिजली जाने के बाद से वो स्कूल नहीं जा पाया है क्योंकि बिजली नहीं है, घर में मोबाइल चार्ज नहीं हो पा रहा और इसलिए वो अपना होमवर्क भी नहीं कर पा रहा.
बच्चे ने मासूमियत से कहा, “हमारे टीचर वॉट्सऐप पर होमवर्क भेजते हैं, लेकिन फोन बंद पड़ा है.” और फिर अपने दोस्तों के साथ खेलने भाग गया.

डॉक्यूमेंट चेक अभियान
हालांकि, जय हिंद कैंप के लोगों का आरोप है कि बिजली काटने की कार्रवाई सिर्फ एक तकनीकी मामला नहीं, बल्कि एक बड़ी भेदभाव की नीति का हिस्सा है. उनका कहना है कि उन्हें सिर्फ इसलिए निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि वे बंगाली हैं और उन पर बांग्लादेशी नागरिक होने का शक किया जाता है, जबकि उन्होंने अपने गांवों में बने वैध पहचान पत्र जमा कर दिए हैं, जो पूरी तरह से सत्यापित हैं.
दिल्ली पुलिस ने यह अभियान उपराज्यपाल सचिवालय के 10 दिसंबर 2023 को दिल्ली के मुख्य सचिव और पुलिस आयुक्त को भेजे गए निर्देश के बाद शुरू किया था. इसमें कहा गया था कि दिल्ली में रह रहे ‘‘बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासियों’’ की पहचान की जाए और उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए.
पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट से बातचीत में बताया, “पिछले 6-7 महीनों में हमने सिर्फ वसंत कुंज इलाके से 39 बिना दस्तावेज़ वाले प्रवासियों को वापस भेजा है.” उन्होंने यह भी साफ किया कि इन 39 लोगों में से कोई भी जय हिंद कैंप का निवासी नहीं था.
अधिकारी ने आगे बताया कि जय हिंद कैंप में कई बार वेरिफिकेशन अभियान चलाए गए, लेकिन वहां से किसी को भी ‘अवैध प्रवासी’ नहीं पाया गया.

पुलिस अधिकारी ने बताया कि इसी तरह के दस्तावेज़ सत्यापन अभियान साउथ-वेस्ट जिले के अन्य इलाकों में भी चलाए गए हैं — जैसे रंगपुरी पहाड़ी, जहां सापेरा कैंप, गुलाबो कैंप, इसराइल कैंप, शंकर कैंप और नाला कैंप जैसी बस्तियां हैं. इसके अलावा रुचि विहार और नंगल देवत इलाकों में भी यह अभियान चलाया गया.
दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार, साउथ-वेस्ट जिले से करीब 150 लोगों को ‘अवैध प्रवासी’ बताकर दिल्ली के एफआरआरओ (विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय) के ज़रिए वापस भेजा गया है.
एक टीम में छह पुलिस अधिकारियों को पश्चिम बंगाल भी भेजा गया था ताकि लोगों की जानकारी की पुष्टि की जा सके, लेकिन अधिकारी ने बताया कि वहां की स्थानीय पुलिस का सहयोग नहीं मिलने से जांच में मुश्किलें आईं.
पास के फार्महाउस में घरेलू कामकाज करने वाले जय हिंद कैंप के 19 साल पुराने निवासी शेख जावेद अली ने कहा, ‘‘हम भारतीय हैं. यहां ज़्यादातर लोग पश्चिम बंगाल के बंगाली हैं, बांग्लादेश से नहीं.’’
अली ने बताया कि पुलिस और प्रशासन की टीम कई बार आई है, यहां तक कि हमारे गांव जाकर भी जांच की है, फिर भी हमें शक की निगाह से देखा जाता है.
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने अपना जन्म प्रमाण पत्र और बाकी कागज़ात दिखाए हैं, सब जमा कर दिए हैं. मैं बांग्लादेश से नहीं हूं, कानून का पालन करने को तैयार हूं, लेकिन जब मैंने अपनी पहचान साबित कर दी है, तो बार-बार मुझे परेशान क्यों किया जा रहा है?’’
नबी हुसैन ने कहा, ‘‘इस बार न कांग्रेस आई, न आम आदमी पार्टी और न ही बीजेपी. चुनाव के वक्त सभी पार्टियां यहां आती थीं, गलियों में घूमती थीं और खुद को हमारे जैसा दिखाने की कोशिश करती थीं.’’
हुसैन ने दिप्रिंट से कहा, ‘‘उन्होंने बिजली कनेक्शन, हर घर में सरकारी मीटर, पानी की पाइपलाइन, पक्की सड़कें वादा की थीं, लेकिन कुछ नहीं हुआ.’’
अब उन्हें लगता है कि जिन्होंने एक समय वोट मांगे थे, वो अब पहचानने को भी तैयार नहीं. उन्होंने पूछा, ‘‘अगर हमें यहां से जाने को कहा गया, तो हम कहां जाएंगे?’’
हालांकि, पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस आरोप से इनकार किया कि बिजली काटने का संबंध ‘अवैध प्रवासियों’ की पहचान अभियान से है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘‘यह बिजली कटौती बांग्लादेशी नागरिकों की पहचान के अभियान से जुड़ी नहीं है. यह अदालत के आदेश का पालन करते हुए की गई है.’’
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