नई दिल्ली: जब जून 2024 में मोहन चरण माझी ने ओडिशा के पहले भारतीय जनता पार्टी (BJP) के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उस समारोह में मौजूद थे, तब वे बीजेपी के आदर्श मुख्यमंत्री प्रोफाइल पर पूरी तरह खरे उतरते थे. वे चार बार के विधायक हैं, जिन्होंने पार्टी संगठन से ऊपर उठकर यह मुकाम हासिल किया. वे एक साधारण परिवार से आते हैं. उनके पिता शिक्षक थे और वे संथाल समुदाय से हैं, जैसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू. इस वजह से आदिवासी वोटरों में उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है.
लेकिन, एक साल बाद, मुख्यमंत्री के लिए सब कुछ ठीक नहीं लग रहा. यहां तक कि उनके अपने संगठन जैसे एबीवीपी भी कथित तौर पर सड़कों पर उतर आए हैं, महिलाओं के खिलाफ बढ़ते गंभीर अपराध और कमजोर होती कानून व्यवस्था के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. विपक्ष, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और कमज़ोर हो चुकी कांग्रेस शामिल है, इस मौके को भुना रहा है. इस विरोध की बड़ी वजह है: एक कॉलेज छात्रा का कथित बलात्कार और आत्महत्या. छात्रा ने आरोप लगाया था कि एक प्रोफेसर ने उनका यौन उत्पीड़न किया, लेकिन जब अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की, तो उन्होंने खुद को आग लगा ली. इसके अलावा पुरी में भगदड़ और एक बीजेपी नेता द्वारा एक वरिष्ठ अधिकारी की पिटाई को लेकर भी विवाद हुआ है, जिससे ओडिशा में बीजेपी की छवि को नुकसान पहुंचा है.
स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि राष्ट्रपति मुर्मू जो ओडिशा की सबसे प्रमुख आदिवासी नेता मानी जाती हैं उन्होंने 14 जुलाई को छात्रा से AIIMS भुवनेश्वर में अचानक मुलाकात की, जब वे अस्पताल में दीक्षांत समारोह में शामिल होने आई थीं. केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, मुख्यमंत्री माझी और राज्य सरकार के कई मंत्री भी अस्पताल पहुंचे, ताकि इस घटना के असर को संभाला जा सके क्योंकि उस वक्त छात्रा मौत और ज़िंदगी के बीच जूझ रही थीं.
22 साल की छात्रा 15 जुलाई को AIIMS में जलने से हुई चोटों के कारण चल बसी. इससे माझी सरकार एक बड़े राजनीतिक संकट में आ गई. बालासोर के फकीर मोहन ऑटोनॉमस कॉलेज में पढ़ रही छात्रा ने बीएड विभाग के प्रमुख पर बार-बार यौन और मानसिक उत्पीड़न का आरोप लगाया था और यौन संबंधों की मांग करने का भी आरोप लगाया.
1 जुलाई को जब कॉलेज की आंतरिक शिकायत समिति ने कोई कार्रवाई नहीं की, तो उन्होंने प्राचार्य, बीजेपी सांसद प्रताप सारंगी, केंद्रीय राज्य मंत्री सूर्यवंशी सूरज, बालासोर से बीजेपी विधायक मानस कुमार दत्ता, मुख्यमंत्री कार्यालय और केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान तक से संपर्क किया, लेकिन कहीं से कोई जवाब नहीं मिला. 12 जुलाई को, जब उन्होंने कहा था कि अगर न्याय नहीं मिला तो वह कोई सख्त कदम उठाएंगी तो उसी दिन उन्होंने प्राचार्य के कार्यालय के बाहर खुद को आग लगा ली.
माझी अब विपक्ष के निशाने पर हैं. विपक्षी दल उन सभी मंत्रियों के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं जिनसे छात्रा ने मदद मांगी थी. नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी ने 16 जुलाई को राज्यभर में बंद बुलाया, जबकि कांग्रेस ने 17 जुलाई को इसी मुद्दे पर बंद का ऐलान किया. दोनों ही दल माझी सरकार पर छात्रा को न बचा पाने का आरोप लगा रहे हैं.
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने मृत छात्रा के पिता से बात की और इस घटना को “आत्महत्या नहीं, हत्या” बताया.
उन्होंने एक्स पर लिखा, “ओडिशा में न्याय के लिए लड़ रही एक बेटी की मौत बीजेपी सिस्टम द्वारा की गई एक सीधी हत्या है. वह बहादुर छात्रा यौन उत्पीड़न के खिलाफ बोलीं, लेकिन उन्हें बार-बार धमकियां, परेशानियां और अपमान झेलना पड़ा. जो लोग उनकी सुरक्षा के लिए थे, वही उन्हें तोड़ते रहे. हमेशा की तरह, बीजेपी सिस्टम ने आरोपी को बचाया और एक मासूम बेटी को खुद को आग लगाने पर मजबूर कर दिया.” “यह आत्महत्या नहीं है, यह सिस्टम द्वारा की गई एक संगठित हत्या है. मोदी जी, चाहे ओडिशा हो या मणिपुर—देश की बेटियां जल रही हैं, टूट रही हैं, मर रही हैं और आप? आप चुप बैठे हैं. देश को आपकी चुप्पी नहीं चाहिए, उसे जवाब चाहिए. भारत की बेटियों को सुरक्षा और न्याय चाहिए.”
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विपक्ष बनाम मंत्री
बीजेडी नेता नवीन पटनायक, जो राज्य हारने के बाद से माझी सरकार के सबसे मुखर आलोचक रहे हैं, उन्होंने इस घटना को “सिस्टम की नाकामी” बताया और सभी जिम्मेदार अधिकारियों के इस्तीफे की मांग की.
15 जुलाई को, जिस दिन छात्रा की मौत हुई, पटनायक ने मीडिया से कहा, “यह और भी दुखद है कि कैसे एक फेल सिस्टम किसी की जान ले सकता है. सबसे पीड़ादायक बात यह है कि यह कोई दुर्घटना नहीं थी, बल्कि उस सिस्टम का नतीजा था जो मदद करने की बजाय चुप बैठा रहा. न्याय की लड़ाई लड़ते-लड़ते उस लड़की ने आखिरकार अपनी आंखें बंद कर लीं.”
बालासोर से बीजेपी सांसद प्रताप चंद्र सारंगी, जो घटना के बाद से सवालों के घेरे में हैं, उन्होंने अपना बचाव करते हुए कहा कि 2 जुलाई को लड़की और उसकी दोस्त उनसे मिली थीं और इसके बाद उन्होंने कॉलेज प्रिंसिपल और एसपी से संपर्क किया और एफआईआर दर्ज करने को कहा.
सारंगी ने बताया, “एसपी ने कहा कि उन्होंने कॉलेज को शिकायत दर्ज करने को कहा है और प्रिंसिपल ने कहा कि वे अंदरूनी स्तर पर मामले को देख रहे हैं और एक हफ्ते में फैसला लेंगे. मैंने प्रिंसिपल से कहा था कि HoD (प्रोफेसर) को छुट्टी पर भेजें, लेकिन दुर्भाग्य से लड़की ने आत्महत्या कर ली.”
इस पर ओडिशा कांग्रेस अध्यक्ष भकत चरण दास ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा, “लड़की सबसे पहले 30 जून को लोकल पुलिस स्टेशन गई थी और एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी, लेकिन पुलिस ने मामला दर्ज नहीं किया. वह दोबारा पुलिस स्टेशन गई, लेकिन फिर भी कुछ नहीं हुआ. फिर वह लोकल बीजेपी विधायक से मिली, लेकिन उन्होंने भी एसपी से एफआईआर नहीं दर्ज कराई.”
भक्त चरण दास ने दोहराया कि “कोई भी उसे नहीं बचा सका.”
उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ की बात करते हैं, लेकिन जब यह ‘बेटी’ बीजेपी नेताओं को बुला रही थी, तब कोई भी उसकी मदद को नहीं आया. बीजेपी के लिए यह और शर्मनाक है कि वह लड़की ABVP की मेंबर थी और फिर भी नेता उसकी मदद नहीं कर पाए. जब वे अपनी ही कार्यकर्ता की मदद नहीं कर सके, तो दूसरों की क्या करेंगे? हम मांग करते हैं कि एसपी को सस्पेंड किया जाए और सभी उन मंत्रियों को हटाया जाए जिन्होंने लड़की की एफआईआर दर्ज कराने में मदद नहीं की.”
इस पर बीजेपी नेताओं ने जवाब दिया है. ओडिशा बीजेपी के उपाध्यक्ष नऊरी नायक ने दिप्रिंट से कहा, “यह घटना दुखद है. आज बीजेडी और कांग्रेस के छात्र नेता सड़कों पर विरोध कर रहे हैं, लेकिन जब वह लड़की मदद मांग रही थी, तब उन्होंने कुछ नहीं किया. शायद गुस्से या निराशा में उसने आत्महत्या कर ली, या हो सकता है उन्होंने उसे उकसाया हो. जांच में सच सामने आ जाएगा.”
महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध
जिस छात्रा की आत्महत्या ने पूरे राज्य को हिला दिया है, वह कोई अकेली घटना नहीं है.
जून 2024 से अब तक, मुख्यमंत्री माझी की सरकार में महिलाओं के खिलाफ कई यौन शोषण, गैंगरेप और अपराध सामने आए हैं.
पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने महिलाओं के समर्थन से लगातार 20 साल तक ओडिशा की सत्ता में बने रहे थे.
फरवरी में भी एक यौन उत्पीड़न का मामला सामने आया था, जिसने पूरे राज्य को झकझोर दिया था. यह मामला माझी सरकार के लिए बहुत बड़ी शर्मिंदगी बन गया और आखिरकार विदेश मंत्रालय को भी इसमें दखल देना पड़ा.
कलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल टेक्नोलॉजी (KIIT) में पढ़ने वाली एक नेपाली छात्रा ने आत्महत्या कर ली थी. आरोप था कि उनका यौन शोषण किया गया और उसे ब्लैकमेल भी किया गया. इसके बाद नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने सोशल मीडिया पर चिंता जताई. KIIT प्रशासन ने पहले इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद माझी सरकार को कार्रवाई करनी पड़ी और एक लड़के को गिरफ्तार किया गया.
2 महीने के अंदर KIIT में एक और नेपाली छात्रा की मौत हो गई, जिससे ओडिशा की अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक छवि को और नुकसान पहुंचा.
ये घटनाएं बीजेपी के लिए खतरे की घंटी हैं, खासकर जब 2024 विधानसभा चुनावों में पार्टी को भुवनेश्वर सीट से बड़ी जीत मिली थी.
15 जून को गोपालपुर बीच पर एक गैंगरेप की घटना हुई, जिसमें 10 लोगों ने एक लड़की के दोस्त को बांधकर उनका गैंगरेप किया. इस घटना पर भारी नाराज़गी हुई और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राज्य के मुख्य सचिव और डीजीपी को नोटिस भेजा. यह घटना तब हुई जब प्रधानमंत्री का ओडिशा दौरा होने वाला था.
18 जून को क्योंझर जिले में एक लड़की की लाश मिली. पहचान होने के बाद परिवार ने यौन शोषण का आरोप लगाया. 25 जून को गंजाम जिले में एक क्लिनिक मालिक पर 17 साल की लड़की से रेप का आरोप लगा.
इसी जिले में 28 जून को एक और घटना हुई, जिसमें कक्षा 8 की छात्रा से उनके दूर के रिश्तेदारों ने बलात्कार किया. 20 जून को पीएम मोदी के ओडिशा दौरे के दौरान, कांग्रेस ने महिलाओं पर हो रहे अपराधों के विरोध में भूख हड़ताल की.
बीजेडी नेता प्रमिला मलिक ने दिप्रिंट से कहा, “पिछले एक साल में महिलाओं पर अपराध बढ़े हैं, लेकिन राज्य सरकार झूठी उपलब्धियों को प्रचारित करने में लगी है. पुलिस कहां है? हर पल ऐसी घटनाएं क्यों हो रही हैं? सरकार को जवाब देना चाहिए, लेकिन जिस छात्रा ने आत्महत्या की, उसकी मदद किसी ने नहीं की. यह बहुत ही दुखद स्थिति है.”
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पुरी भगदड़ और अधिकारी से बदसलूकी
जब ओडिशा सरकार ने जून के आखिरी हफ्ते में अपने शासन के एक साल पूरे होने का जश्न मनाया, उसी दौरान बीजेपी नेता जगन्नाथ प्रधान के एक कदम ने राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया.
30 जून को, भुवनेश्वर सेंट्रल विधानसभा से जीतने वाले जगन्नाथ प्रधान ने भुवनेश्वर नगर निगम के कमिश्नर के साथ मारपीट की. उन्होंने अधिकारी को ऑफिस से घसीटकर बाहर निकाला और पीटा. इस घटना के वीडियो तुरंत वायरल हो गए.
इस घटना के विरोध में, ओडिशा प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों ने सामूहिक छुट्टी ले ली, जिससे प्रशासन ठप हो गया. ये अफसर प्रधान की गिरफ्तारी के बाद ही वापस काम पर लौटे.
शुरुआत में, बीजेपी ने चुप्पी साधने की कोशिश की, लेकिन जब अफसर झुकने को तैयार नहीं हुए, तो पार्टी को क्राइसिस मैनेजमेंट में लगना पड़ा. प्रधान को सरेंडर करने के लिए समन भेजा गया. भुवनेश्वर सांसद अपराजिता सारंगी समेत कई बीजेपी नेताओं ने व्यक्तिगत तौर पर इस हमले की निंदा की.
जून में पुरी की जगन्नाथ रथयात्रा, जो ओडिशा का सबसे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक पर्व माना जाता है, भारी अव्यवस्था और बदइंतजामी की वजह से भगदड़ में बदल गई. इस हादसे में तीन लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों घायल हुए.
यह घटना तब हुई जब अधिकारियों ने VIP के लिए एक अलग गेट बना दिया और आम लोगों के गेट बंद कर दिए, सिर्फ एक निकास द्वार छोड़ा गया. इसके साथ ही भीड़ नियंत्रण और ट्रैफिक की कोई योजना नहीं थी, जिससे अफरा-तफरी मच गई और भगदड़ हो गई.
इसने एक बार फिर माझी सरकार की तैयारी और कमजोर प्रशासनिक नियंत्रण पर सवाल खड़े कर दिए.
ओडिशा बीजेपी के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, “एक बड़ी समस्या यह है कि राज्य के कई अधिकारी अब भी बीजेडी के प्रभाव में हैं. बीजेडी ने 20 साल से ज्यादा समय तक शासन किया है. हर विभाग में उनके कैडर हैं, और कुछ अफसर अब भी अपने पुराने नेताओं को रिपोर्ट करते हैं.”
उन्होंने कहा, “जैसे मारपीट वाले मामले में, सभी अफसर हड़ताल पर चले गए, लेकिन बीजेडी के शासन में कभी ऐसा नहीं हुआ था. प्रधान की गिरफ्तारी के बाद भी अफसरों को मानने में वक्त लगा.”
बीजेपी नेता ने माना, “यह मुख्यमंत्री और पार्टी के लिए चिंता की बात है कि ऐसे अफसरों से कैसे निपटा जाए जो अब भी बीजेडी के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन महिलाओं पर हो रहे अपराध उससे भी बड़ा मुद्दा है. इससे हमारे महिला वोटर्स खिसक सकते हैं. यही वजह थी जिससे यूपी में अखिलेश यादव और बिहार में लालू को हार का सामना करना पड़ा था.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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