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Friday, 18 July, 2025
होमफीचरमुंबई में कबूतरखानों को हटाने की मुहिम—BMC क्यों झेल रहा है पक्षी प्रमियों की मुखालफ़त

मुंबई में कबूतरखानों को हटाने की मुहिम—BMC क्यों झेल रहा है पक्षी प्रमियों की मुखालफ़त

कबूतरों को दाना डालने वाले इलाकों को बंद करने की कोशिशों का स्थानीय लोगों ने कड़ा विरोध किया है, लेकिन प्रशासन और स्वास्थ्य विशेषज्ञ फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों के बढ़ते मामलों को लेकर चेतावनी दे रहे हैं.

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मुंबई: दादर स्टेशन के पास एक ट्रैफिक आइलैंड पर 68 साल की मंजू परमार ज़मीन पर अनाज का एक मुट्ठी छिड़कती हैं. दर्जनों कबूतर उड़कर नीचे आते हैं और अपनी चोंच से अनाज चुगते हैं. परमार उन्हें शांति से देखती हैं. यह उनका रोज़ का नियम है, जो मुंबई के हज़ारों लोगों के साथ साझा होता है.

उनके लिए कबूतरों को खाना खिलाना एक सरल दयालुता का काम है. लेकिन मुंबई के कई लोगों के लिए कबूतर एक गंभीर स्वास्थ्य खतरा हैं. ये पक्षी इमारतों, बिजली के तारों और फुटपाथों पर बैठे देखे जाते हैं, और शहर के 51 कबूतरखानों में सैकड़ों की संख्या में इकट्ठा होते हैं.

परमार ने कहा, “कबूतरखानों से कोई दिक्कत नहीं है. अगर हमें ज़िंदा रहने के लिए हर वक्त खाना चाहिए, तो कबूतरों को क्यों नहीं चाहिए? और जो लोग स्वास्थ्य खतरे की बात करते हैं, तो कैंसर और हार्ट अटैक जैसी कई और समस्याएं हैं. जो हमारी किस्मत में है, वही हमें मिलेगा.”

मुंबई के कई निवासी जब एक ही जगह सैकड़ों कबूतरों की मौजूदगी से स्वास्थ्य से जुड़े खतरे की शिकायत करने लगे, तो महाराष्ट्र सरकार ने शहर के मशहूर कबूतरखानों को बंद करने का आदेश दिया.

लेकिन यह आसान नहीं है. आदेश के बाद बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) ने इस प्रक्रिया को शुरू किया, लेकिन उन्हें उन लोगों से कड़ा विरोध झेलना पड़ रहा है जिनके लिए कबूतरों को खाना खिलाना सालों से एक रोज़मर्रा की आदत रही है.

बीएमसी पिछले एक हफ्ते से कोशिश कर रही है, कबूतरों को खाना खिलाने वालों पर जुर्माना लगा रही है, लेकिन न तो कबूतरखुराक देने वाले लोग रुक रहे हैं और न ही कबूतर वहां से हट रहे हैं.

“यह लगभग उतना ही चुनौतीपूर्ण है जितना कि ठेलेवालों को हटाना. यह एक फलता-फूलता इकोसिस्टम है. आप कबूतरों का कुछ नहीं कर सकते. इसलिए, हम सिर्फ लोगों को जागरूक कर सकते हैं जो उन्हें खाना खिला रहे हैं,” एक वरिष्ठ BMC अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा.

दादर कबूतरखाना के स्थानीय निवासियों ने दिप्रिंट को बताया कि अधिकारियों द्वारा पास की अनाज की दुकान हटाने के बाद दुकानदार ने अपनी दुकान पास की गली में शिफ्ट कर दी.

3 जुलाई को शिवसेना की विधान परिषद सदस्य (MLC) मनीषा कयांदे ने कबूतरखानों के कारण बढ़ते स्वास्थ्य खतरों का मुद्दा उठाया, खासकर दादर के ट्रैफिक आइलैंड पर.

उन्होंने ऐसी स्टडीज़ का हवाला दिया जिनमें कबूतरों की बीट और पंखों को फेफड़ों के संक्रमण और अन्य सांस की बीमारियों से जोड़ा गया है. इसके जवाब में मंत्री उदय सामंत ने कहा कि मुंबई में 51 कबूतरखाने हैं और वह बीएमसी को इन्हें बंद करने का आदेश देंगे.

पशु अधिकार कार्यकर्ता पल्लवी सचिन पाटिल और स्नेहा विसारिया ने मंगलवार को बॉम्बे हाई कोर्ट में सरकार के निर्देशों के खिलाफ एक रिट याचिका दायर की और BMC को इन जगहों को तोड़ने से रोकने की मांग की. हालांकि, हाई कोर्ट ने अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया.

“मानव स्वास्थ्य सबसे महत्वपूर्ण है, इसलिए हम इस समय किसी भी प्रकार की अंतरिम राहत देने के पक्ष में नहीं हैं. साथ ही, मानव स्वास्थ्य से संबंधित जो भी मेडिकल सामग्री/सबूत हैं, जिनका इन जगहों को बंद करने की नीति पर असर पड़ता है, उन्हें नगर निगम द्वारा दाखिल किए जाने वाले हलफनामों के जरिए रिकॉर्ड पर लाया जाए,” हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है.

अगली सुनवाई 23 जुलाई को निर्धारित है.

कबूतरखानों का इतिहास

कबूतरखानों का इतिहास लगभग तीन सौ साल पुराना है, जब मुंबई, जिसे उस समय बॉम्बे कहा जाता था, एक शहर के रूप में बन रही थी. ये बस ऐसे स्थान होते हैं जिनमें पानी के टब और फव्वारे होते हैं, जो कबूतरों को खाना खिलाने के लिए बनाए गए थे.

जब सात द्वीपों को मिलाकर एक ज़मीन का टुकड़ा बनाया जा रहा था ताकि एक शहर बसाया जा सके, उस समय ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यापारियों को आकर्षित करने के लिए प्रोत्साहन दिए, जिससे गुजराती लोगों का—हिंदू, जैन, मुस्लिम और पारसी—आना शुरू हुआ.

शहर के इतिहासकार भरत गोठोस्कर ने कहा, “गुजरात से आए जैन और हिंदुओं में ‘दया से भोजन कराना’ नाम की एक परंपरा होती है. उनका मानना है कि कबूतरों को खाना खिलाने से पुण्य मिलता है. जब शहर फैलने लगा, तो जहां भी गुजराती समुदाय गया, वहां कबूतरखाने बनाए गए.”

उन्होंने यह भी कहा कि चूंकि ईस्ट इंडिया कंपनी देश और मुंबई में अपनी मौजूदगी को मजबूत कर रही थी, इसलिए उसने इस परंपरा को औपचारिक रूप देने की अनुमति दी, क्योंकि वह स्थानीय धार्मिक रीति-रिवाजों में दखल नहीं देना चाहती थी.

File photo of pigeons at Gateway of India in Mumbai | ANI

मुंबई के गेटवे ऑफ इंडिया पर कबूतरों की फाइल फोटो | एएनआईमुंबई में 51 तय कबूतरखाने हैं, और इसके अलावा कई गैर-आधिकारिक जगहों पर भी कबूतरों को दाना डाला जाता है, जैसे इमारतों की छतों और पैरापेट्स पर. कुछ अनौपचारिक कबूतरखाने गेटवे ऑफ इंडिया, बांगंगा और चौपाटी जैसे इलाकों में भी बन गए हैं.

गोठोस्कर ने कहा, “इस बात में कोई शक नहीं कि कबूतर बीमारियां फैलाने के मामले में उड़ने वाले चूहे जैसे हैं. भले ही कबूतरखानों को बंद कर दिया जाए, लेकिन लोग उन्हें नई जगहों पर दाना डालना जारी रखेंगे क्योंकि यह एक गहराई से जुड़ा हुआ विश्वास है. मुझे लगता है कि पूरी तरह से बैन लगाने के बजाय लोगों को जागरूक करना ज़्यादा ज़रूरी है. और ऐसा करने के लिए समुदाय के नेताओं को भरोसे में लेकर जनता को समझाना चाहिए.”

कबूतरखाने बंद करना

यह पहली बार नहीं है जब इन जगहों पर सवाल उठे हैं. हालांकि, बीएमसी को ज़्यादातर बार विरोध का सामना करना पड़ा, कुछ ही मामलों में सफलता मिली.

बीएमसी के जी-नॉर्थ वार्ड अधिकारी विनायक विसपुते, जिनके अधिकार क्षेत्र में मुंबई का सबसे बड़ा दादर कबूतरखाना आता है, ने दिप्रिंट को बताया कि 2021-22 में उन्होंने दो कबूतरखानों को बंद करवाने में सफलता पाई. एक खार में था और दूसरा सांताक्रुज़ में, जहां वे उस वक्त वार्ड अधिकारी थे.

उन्होंने कहा, “हां, यह चुनौतीपूर्ण था, इसमें कोई शक नहीं है. मुझे लोगों के काफी विरोध का सामना करना पड़ा. उन्होंने मेरे खिलाफ कोर्ट में भी केस किया. लेकिन अंत में हम जीत गए. जब मैं खार और सांताक्रुज़ का वार्ड ऑफिसर था, तो हमने वहां के कबूतरखानों को जब्त कर उन्हें सौंदर्यीकरण परियोजनाओं में बदल दिया.”

विसपुते ने बताया कि कुछ लोग तर्क देते हैं कि अगर वे जुर्माना भर दें, तो उन्हें कबूतरों को दाना डालने की इजाज़त मिलनी चाहिए. उन्होंने कहा कि उन्हें यह समझाना मुश्किल होता है कि जुर्माना इजाज़त नहीं बल्कि रोक लगाने के लिए होता है.

खार का कबूतरखाना एक ट्रैफिक आइलैंड था, जिसे बाद में सजाया गया, जबकि सांताक्रुज़ वाला एक बड़ा गोलाकार स्थान था, जिसे एक बगीचे में बदल दिया गया. इन जगहों पर दाना डालना बंद होने के बाद अब वहां ज्यादा कबूतर नहीं आते.

दादर का कबूतरखाना करीब 100 साल पुराना है और इसे विरासत स्थल घोषित किया गया है. इसके बावजूद, विसपुते का मानना है कि वे इसका अच्छा इस्तेमाल कर पाएंगे.

A flock of pigeons at a kabutarkhana in Mumbai's Santacruz West | By Special Arrangement
मुंबई के सांताक्रूज़ पश्चिम में एक कबूतरखाने में कबूतरों का झुंड | विशेष व्यवस्था द्वारा

उन्होंने आगे कहा, “हम इस ढांचे को तोड़ने नहीं जा रहे हैं. न ही हम पक्षियों या जानवरों के खिलाफ हैं. मैं मानता हूं कि इसमें हमें ज़्यादा समय लगेगा, लेकिन हमारा अभियान जारी रहना चाहिए. लोग कबूतरों को दाना डालना रातोंरात बंद नहीं करेंगे. यह सोचना कि इसे एक हफ्ते, एक महीने या कुछ महीनों में बंद किया जा सकता है, बहुत ज़्यादा उम्मीद करना होगा.”

विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले 10 वर्षों में मुंबई में कबूतरों की आबादी तेजी से बढ़ी है और यह अब एक सार्वजनिक परेशानी बन गई है. उनका मानना है कि जितना ज्यादा कबूतरों को दाना दिया जाएगा, उनकी संख्या उतनी ही बढ़ेगी.

स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी कबूतरखानों से फेफड़ों की बीमारियों का खतरा बताते हैं.

पल्मोनोलॉजिस्ट्स ने चेतावनी दी है कि कबूतरों के पंखों और बीट से फेफड़े और सांस संबंधी बीमारियां बढ़ रही हैं. ये बैक्टीरिया और वायरस फैलाते हैं जो खासकर कबूतरखानों के पास रहने वालों के लिए स्वास्थ्य जोखिम बनते हैं.

हिंदुजा अस्पताल के कंसल्टेंट पल्मोनोलॉजिस्ट और एपिडेमियोलॉजिस्ट डॉ. लांसलॉट पिंटो ने कबूतरखानों को बंद करने की पहल का स्वागत किया.

“यह एक स्वागत योग्य फैसला है, और अगर आप शहर के किसी भी पल्मोनोलॉजिस्ट से पूछेंगे, तो वे बताएंगे कि पिछले एक दशक में हम हायपरसेंसिटिविटी पन्यूमोनाइटिस (HP) के मामलों में वृद्धि देख रहे हैं,” उन्होंने दिप्रिंट से कहा. “मुंबई में ज़्यादातर लोगों के घरों में पक्षी नहीं होते, और जब हम पूछते हैं कि क्या आपको कबूतरों से संपर्क है, तो अक्सर जवाब हां में मिलता है.”

HP की पहचान सबसे पहले 1965 में हुई थी और इसे उन लोगों से जोड़ा गया था जो पक्षियों को पालतू बनाकर रखते थे.

हिंदुजा अस्पताल के एक रिसर्च पेपर के अनुसार, जिसे इस साल एम्सटर्डम में होने वाले यूरोपियन रेस्पिरेटरी एनुअल कांग्रेस में पेश किया जाएगा, शहर में इंटरस्टिशियल लंग डिजीज (ILD) के मामलों में वृद्धि हुई है.

HP सबसे आम ILD है, और इससे 47 प्रतिशत लोग पीड़ित हैं। इस पेपर में यह भी पाया गया कि HP के 50 प्रतिशत से ज्यादा मरीज़ कबूतरों के आसपास रहते थे.

File photo of a flock of pigeons perching on power lines at Kalachowki in Mumbai | ANI
मुंबई के कालाचौकी में बिजली के तारों पर बैठे कबूतरों के झुंड की फाइल फोटो | एएनआई

पिंटो ने कहा कि यह पक्षियों को मारने की बात नहीं है, बल्कि प्राकृतिक संतुलन को वापस लाने की जरूरत है. “हम पक्षियों को मारने की बात नहीं कर रहे हैं; बस यही कह रहे हैं कि उन्हें दाना डालकर उनकी आबादी को अनावश्यक रूप से न बढ़ाएं,” डॉक्टर ने कहा.

चेंबूर में रहने वाले नवकिशोर पांडे, जो नियमित रूप से दादर कबूतरखाने जाकर कबूतरों को दाना डालते हैं, स्वास्थ्य जोखिम के तर्क से सहमत नहीं हैं.

उन्होंने कहा, “बीमारियां कबूतर नहीं फैला रहे हैं. असली खतरा कबूतरखाने के आसपास चलने वाली हजारों गाड़ियों से है. पहले शहर में गाड़ियों की संख्या कम करो. सरकार वहां कार्रवाई नहीं करती क्योंकि उसमें पैसों का फायदा है.”

बीएमसी की कार्रवाई

इस बीच, बीएमसी के कर्मचारी इन जगहों पर नियमित रूप से अचानक निरीक्षण कर रहे हैं. बीएमसी अधिनियम के 2006 के नागरिक स्वच्छता और सफाई उपविधियों के अनुसार, नगर निकाय को सार्वजनिक स्थानों पर पक्षियों या जानवरों को खाना खिलाने पर 500 रुपये का जुर्माना लगाने का अधिकार है.

3 जुलाई से 13 जुलाई के बीच, जब से बीएमसी ने जुर्माना वसूलना शुरू किया, कुल 108 लोगों पर जुर्माना लगाया गया और बीएमसी ने 55,700 रुपये जुर्माने के रूप में एकत्र किए.

दादर कबूतरखाने में 16 लोगों पर जुर्माना लगाया गया और अनाज के बैग ज़ब्त किए गए. कुछ जगहों पर बीएमसी ने कबूतरों को खाना खिलाने पर रोक लगाने वाले बोर्ड लगाए हैं, जबकि कुछ जगहों पर उसके अधिकारी पक्षियों को खाना खिलाने वालों को जागरूक कर रहे हैं.

ऊपर जिक्र किए गए बीएमसी अधिकारी ने कहा, “इस मौजूदा अभियान में, हम जहां संभव हो वहां कुछ संरचनाओं को तोड़ रहे हैं और हम अनाज के बैग भी ज़ब्त कर रहे हैं ताकि खाना उपलब्ध न हो सके। हम स्थानों पर बोर्ड भी लगा रहे हैं.”

विसपुते ने कहा कि उनकी टीम कबूतरखानों के आसपास के मंदिरों के ट्रस्टियों से भी बात कर रही है ताकि उन्हें जागरूकता अभियान में शामिल किया जा सके.

“यह गतिविधि कुछ समय तक जारी रहेगी, और कुछ दिनों की निगरानी के बाद अगर हमें लगता है कि लोग नहीं मान रहे हैं, तो हम पुलिस की मदद ले सकते हैं और उसी अनुसार कार्रवाई की जा सकती है,” बीएमसी अधिकारी ने कहा.

TPSJ के एलुमनाई, अभिषेक निम्भोरकर के इनपुट के साथ.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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