नई दिल्ली: अमेरिकी फेडरल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन (एफबीआई) ने किश द्वीप से 9 मार्च 2007 को सेवानिवृत्त एजेंट रॉबर्ट ए. “बॉब” लेविनसन के अपहरण में ईरान के पाकिस्तान में वर्तमान राजदूत रेजा अमीरी मघदाम की कथित भूमिका के संबंध में सूचना मांगते पोस्टर जारी किए हैं. इस नोटिस में गायब एजेंट की “स्थिति बताने, बरामद करने और लौटाने” वाली सूचना पर 5 मिलियन डॉलर इनाम देने का वादा किया गया है.
दो कूटनीतिक सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि यह कदम आधुनिक कूटनीति के इतिहास में अनोखा है. राजदूतों को न सिर्फ़ आपराधिक दायित्व से सुरक्षा मिलती है, बल्कि उनके मिशन के परिसर को “शांति भंग या गरिमा को ठेस” पहुंचाने से भी बचाया जाता है. मघदाम 2023 से पाकिस्तान में तेहरान के राजदूत हैं.
पाकिस्तान के विदेश कार्यालय के प्रवक्ता शफकत अली खान ने बुधवार को कहा, “ईरान के राजदूत अपने पाकिस्तान-ईरान संबंधों को बढ़ावा देने की वजह से सम्मानित हैं. उन्हें राजदूत के सभी विशेषाधिकार, सुरक्षा और सम्मान दिए जाना चाहिए.”
एक भारतीय खुफिया अधिकारी के अनुसार, एफबीआई अधिकारी अमेरिकी नागरिकों के खिलाफ दुनिया में कहीं भी हुए अपराधों पर अपना अधिकार जताते हैं, और सैद्धांतिक रूप से पाकिस्तान में राजदूत मघदाम के खिलाफ कार्रवाई का दावा कर सकते हैं.
एक अन्य भारतीय राजनयिक ने कहा, “एफबीआई की वांछित सूचियों को जारी कर पाकिस्तान पर दबाव बनाया जा रहा है, लेकिन इस्लामाबाद को ढिलाई नहीं दिखानी चाहिए. हो सकता है मीडिया के ज़रिए यह कहा जाए कि तेहरान कुछ समय बाद अपने राजदूत को वापस बुलाए.”
सीआईए के ठेकेदार
लेविनसन, जिन्होंने 1970 से 1976 तक ड्रग एन्फोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन (DEA) और फिर 1976 से 1988 तक एफबीआई में काम किया, 2007 में ईरान के किश द्वीप से लापता हो गए थे. किश एक फ्री ट्रेड ज़ोन है, जहां अमेरिकियों को आने के लिए वीजा की ज़रूरत नहीं होती.
कहा जाता है कि रिटायर्ड एफबीआई एजेंट लेविनसन सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (CIA) के लिए एक फ्रीलांस असाइनमेंट पर काम कर रहे थे, और वह एक ऐसे समूह की ओर से कार्य कर रहे थे जिसे इस मिशन का आदेश देने का अधिकार नहीं था. एसोसिएटेड प्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, लेविनसन के परिवार को 25 लाख डॉलर की वार्षिकी दी गई ताकि वे कानूनी कार्यवाही न करें, जबकि कुछ अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई.
लेविनसन के असली मिशन को लेकर बहुत कम जानकारी सामने आई है। यह जरूर पता है कि उन्होंने अमेरिकी भगोड़े डावद सलाहुद्दीन से संपर्क किया था, जो उस द्वीप पर रह रहा था और 1980 में पूर्व ईरानी राजनयिक अली अकबर तबातबाई की हत्या के आरोपी थे. निर्वासित तबातबाई उस समय मैरीलैंड के बेथेस्डा में एक विरोधी-क्रांति समूह की बैठकें कर रहे थे.
एफबीआई से सेवानिवृत्ति के बाद, लेविनसन ने खुद को एक निजी जासूस के रूप में स्थापित किया, जो रूसी संगठित अपराध की गतिविधियों में विशेषज्ञता रखते थे. अमेरिकी अधिकारियों का निजी तौर पर कहना था कि वह किश द्वीप पर एक सिगरेट तस्करी गिरोह की जांच करने गए थे. बाद में यह भी कहा गया कि लेविनसन यह भी जांच कर रहे थे कि ईरानी अधिकारी किस तरह यूएई में पैसे भेजते हैं.
लेविनसन की खोज बाद में उन कई लोगों तक पहुंची जिनका कथित रूप से रूसी माफिया से संबंध था, जिनमें एक समय के हथियार व्यापारी सरकिस सोघानालियन और रूस के सबसे ताकतवर व्यापारियों में से एक ओलेग डेरीपास्का शामिल थे.
वहीं ईरानी वार्ताकारों का दावा था कि लेविनसन को एक “कट्टरपंथी गुट” ने बंधक बना लिया है और उसे रिहा कराने के प्रयास चल रहे हैं. यह मुद्दा पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी के साथ सीधे तौर पर उठाया था. हालांकि, ईरान की ओर से कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया गया.
फिर, इस साल मार्च में, अमेरिकी वित्त मंत्रालय ने तीन खुफिया अधिकारियों—गोलामहुसैन मोहम्मदनिया, तारगी दानेशवर और राजदूत मघदाम—पर “लेविनसन के अपहरण, संभावित मौत और ईरान द्वारा अपनी जिम्मेदारी छिपाने या भटकाने के प्रयासों” के आरोप में प्रतिबंध लगा दिए.
एफबीआई ने दावा किया कि दानेशवर, जिसे “सैयद तकी गहेमी” के नाम से भी जाना जाता है, ईरानी खुफिया मंत्रालय (MOIS) का एक वरिष्ठ जासूसी विरोधी अधिकारी था, जिसने उस समय मोहम्मद बासेरी की निगरानी की थी जब लेविनसन लापता हुए थे. बासेरी भी एफबीआई की मोस्ट वांटेड लिस्ट में शामिल हैं.
एफबीआई ने कहा कि मोहम्मदनिया ने 2016 में ईरान के राजदूत के रूप में अल्बानिया में सेवा दी थी. दिसंबर 2018 में उन्हें “अल्बानिया की राष्ट्रीय सुरक्षा को नुकसान पहुंचाने” के आरोप में निष्कासित कर दिया गया था. अमेरिका ने इस कदम की सराहना की थी. एफबीआई का कहना है कि उन्होंने लेविनसन की गुमशुदगी की जिम्मेदारी बलूचिस्तान के एक आतंकी समूह पर डालने की कोशिश की थी.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: भारत के 61.6% स्कूल 3-भाषा क्लब में शामिल, गुजरात-पंजाब सबसे आगे, तमिलनाडु और अरुणाचल सबसे नीचे