नयी दिल्ली, 15 जुलाई (भाषा) रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की एक प्रयोगशाला और तेलंगाना स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) बीबीनगर ने स्वदेशी तकनीक से अपनी तरह का पहला उन्नत कार्बन फाइबर कृत्रिम पैर विकसित किया है जो 125 किलोग्राम तक का भार सहन करने में सक्षम है। अधिकारियों ने मंगलवार को यह जानकारी दी।
रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, प्रदर्शन के मामले में बाजार में उपलब्ध विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मॉडल को टक्कर देने वाला यह कृत्रिम पैर जरूरतमंद आबादी को उच्च गुणवत्ता वाला किफायती समाधान मुहैया कराने के लिए डिजाइन किया गया है।
मंत्रालय के अनुसार, इस कृत्रिम पैर को डीआरडीओ की रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला (डीआरडीएल) और एम्स-बीबीनगर ने मिलकर विकसित किया है। उसने कहा कि डीआरडीएल के निदेशक जीए श्रीनिवास मूर्ति और एम्स-बीबीनगर के कार्यकारी निदेशक अहंतेम संता सिंह ने सोमवार को चिकित्सा संस्थान में आयोजित एक कार्यक्रम में इसे पेश किया।
अधिकारियों ने लागत प्रभावी ‘इंडिजीनसली डेवलप्ड ऑप्टिमाइज्ड कार्बन फुट प्रोस्थेसिस (एडीआईडीओसी)’ के निर्माण को ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल के तहत एक ‘बड़ी सफलता’ करार दिया है।
रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में बताया कि एडीआईडीओसी का 125 किलोग्राम तक के भार को ढोने के लिए जैवयांत्रिक परीक्षण किया गया, जिसमें इसे ‘पर्याप्त रूप से सुरक्षित’ पाया गया।
बयान के मुताबिक, अलग-अलग वजन के मरीजों के लिए इसके तीन संस्करण हैं और उम्मीद है कि इसके उत्पादन के दौरान लागत घटकर 20,000 रुपये से भी कम हो जाएगी, जबकि वर्तमान आयातित उत्पादों की लागत लगभग दो लाख रुपये है।
बयान में दावा किया गया है, ‘‘इस नवाचार के जरिये भारत में निम्न आय वर्ग के दिव्यांग जनों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले कृत्रिम अंगों तक पहुंच में उल्लेखनीय सुधार होने, महंगी आयातित प्रौद्योगिकियों पर निर्भरता घटने और दिव्यांगों के लिए व्यापक सामाजिक एवं आर्थिक समावेशन के प्रयासों को समर्थन मिलने की उम्मीद है।’’
भाषा पारुल नरेश
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