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Monday, 14 July, 2025
होमफीचरपटना का तारामंडल आज नई ऊंचाइयों पर है—इस बदलाव की शुरुआत एक IAS अफसर ने की थी

पटना का तारामंडल आज नई ऊंचाइयों पर है—इस बदलाव की शुरुआत एक IAS अफसर ने की थी

इस निवेश ने सिर्फ इमारत को दोबारा खड़ा नहीं किया, बल्कि बिहार में साइंस और एस्ट्रोनॉमी को देखने का नजरिया ही बदल दिया, प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ. अनंत कुमार गर्व से कहते हैं. वे ज़ोर देकर कहते हैं कि बिहार आर्यभट्ट की धरती भी है.

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पटना: ब्रह्मांड के रहस्यों ने हमेशा से खगोल विज्ञान में रुचि रखने वाले क्षितिज कांत को आकर्षित किया है, जो पटना के रेडिएंट इंटरनेशनल स्कूल में कक्षा 9 के छात्र हैं. 2016 में, सिर्फ छह साल की उम्र में, उन्होंने बेंगलुरु के तारामंडल का दौरा किया था. वह उनकी पहली तारामंडल यात्रा थी. इसी यात्रा ने उनके भीतर एक ऐसी जिज्ञासा जगा दी जो उन्हें कोलकाता से दिल्ली, कन्याकुमारी से चेन्नई तक ले गई — और आखिरकार, जनवरी 2025 में, वे पटना के तारामंडल पहुंचे.

“पटना का तारामंडल शानदार है. 360 डिग्री डोम और 3डी 8के तकनीक ने ऐसा अहसास कराया जैसे मैं किसी सैटेलाइट पर हूं, अंतरिक्ष में तैर रहा हूं,” उन्होंने इंदिरा गांधी तारामंडल में बिताए अपने सर्दियों के अनुभव को याद करते हुए कहा, जिसे 1993 में पहली बार जनता के लिए खोला गया था. क्षितिज के पिता स्टेशन मास्टर हैं, जिनके बार-बार शिफ्ट होते रहे हैं और हर नई पोस्टिंग के साथ उन्हें विज्ञान केंद्रों को देखने का मौका मिला.

जब इस रिपोर्टर ने उनसे बात की, तो क्षितिज गर्मी की छुट्टियों में फिर से तारामंडल जाने की योजना बना रहे थे.

यह सार्वजनिक विज्ञान संरचना आज भी बिहार के लोगों के बीच प्रासंगिक बनी हुई है और सरकार द्वारा किए जा रहे इसके बदलाव यह दिखाते हैं कि यह जगह कितनी महत्वपूर्ण है. कभी साधारण दिखने वाला यह स्थान अब एक चमचमाता कांच का टॉवर बन गया है. अब 2डी लैम्प प्रोजेक्शन और केवल सितारों-ग्रहों की एक घंटे लंबी पुरानी फिल्म नहीं दिखाई जाती. बेली रोड पर 13 एकड़ में फैले इस तारामंडल में अब 3डी 8के रिज़ोल्यूशन लेजर तकनीक, एक इंटरएक्टिव एस्ट्रोनॉमी गैलरी, और नया बैठने का इंतजाम है, जिसमें सीटें 261 से घटाकर 225 की गई हैं. यह अब दर्शकों के लिए एक शानदार अनुभव है, जिसमें हिंदी और अंग्रेजी में उपलब्ध नासा से प्राप्त नई फिल्मों की 30 मिनट की पॉवर-पैक्ड शो होती है.

पटना तारामंडल में प्रसिद्ध अंतरिक्ष यात्रियों के चित्र | ज्योति यादव | दिप्रिंट

प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ. अनंत कुमार ने बताया, “दो साल की पुनर्विकास प्रक्रिया के बाद इसे अप्रैल 2024 में जनता के लिए खोला गया. यहां हर दिन 1,500 से ज्यादा लोग आते हैं और कभी-कभी यह संख्या 2,000 तक पहुंच जाती है.”

2022 में राज्य सरकार ने पुरानी संरचना को नया रूप देने के लिए 36 करोड़ रुपये स्वीकृत किए थे.

तारामंडल 2.0

अब हर दिन आठ शो और बेहतर सीटिंग क्षमता की वजह से टिकट काउंटरों के बाहर लंबी कतारें लगती हैं. देशभर से व्लॉगर इसकी भव्यता को अपने कैमरों में कैद करने आते हैं और यूट्यूब व रील्स के जरिए इसका रोमांच पूरे देश में फैला रहे हैं.

“इस निवेश ने सिर्फ संरचना को नहीं बदला—इसने यह भी बदला कि बिहार विज्ञान और खगोलशास्त्र को कैसे देखता है,” कुमार ने गर्व से कहा, साथ ही यह भी जोड़ा कि बिहार आर्यभट्ट की धरती है.

उनसे पहले, डॉ. चंद्रशेखर सिंह ने जनवरी 2019 से दिसंबर 2019 तक संक्षिप्त समय के लिए प्रोजेक्ट डायरेक्टर का पद संभाला था.

प्रसिद्ध सार्वजनिक विज्ञान अवसंरचना की सभी प्रशंसाएं अप्रतिबंधित नहीं हैं. शिक्षाविदों का तर्क है कि इसमें स्कूली बच्चों की सक्रिय भागीदारी की कमी है—जिसे बिहार संग्रहालय ने बखूबी अंजाम दिया है | ज्योति यादव | दिप्रिंट

सिंह ने याद किया कि 1990 के दशक में बिहार ने जापान से 2डी तकनीक मंगाई थी, जो उस समय एक बड़ी तकनीकी उपलब्धि थी. लेकिन समय के साथ यह तकनीक पुरानी हो गई और जब-जब मशीनें खराब होती थीं, तो देश में कोई तकनीशियन नहीं होता था जो उन्हें ठीक कर सके, और पुर्जे भी बाहर से मंगवाने पड़ते थे.

सिंह ने कहा, “मशीनों की खराबी के चलते शो कई बार दिनों या महीनों तक बंद रहते थे. इसी पृष्ठभूमि में, 2013 में मुख्यमंत्री के प्रयास से इसे आधुनिक बनाने का विचार शुरू हुआ.”

उनके अनुसार, कौन-सा प्रोजेक्टर लगाना है और कौन-सी तकनीक अपनानी है, इस पर निर्णय लेना आसान नहीं था, क्योंकि 2010 के बाद 3डी तकनीक तेजी से विकसित हो रही थी और अब यह चिकित्सा और एयरोस्पेस जैसे क्षेत्रों में भी मुख्यधारा बन चुकी थी.

उन्होंने बताया, “आखिरकार, 2019 में जब मैं प्रोजेक्ट डायरेक्टर था और दुनिया 3डी 8के तकनीक की ओर बढ़ रही थी, तब हमने टेंडर फाइनल किए.”

कुमार को पूरा विश्वास है कि पटना का तारामंडल सबसे बेहतरीन है.

डॉ. कुमार ने कहा, “अगर रैंकिंग होती, तो हम पहले नंबर पर आते.”

इसके रूपांतरण का असर स्पष्ट है. शिव शंकर सहाय, नोडल अधिकारी के अनुसार, हर दिन दर्शकों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है और यह 2,000 को पार कर गई है.

उन्होंने कहा, “जब तक 8के तकनीक से बेहतर कुछ नहीं आ जाता, तब तक हम देश का सबसे अत्याधुनिक तारामंडल बने रहेंगे.”

ज्योति यादव | दिप्रिंट

टिकट, पार्किंग और प्रदर्शनी से तारामंडल ने 3.5 करोड़ रुपये की आमदनी की है, जो इसके 50 कर्मचारियों—ऑपरेटरों, गार्डों और सहायक कर्मचारियों—के वेतन और संचालन के लिए पर्याप्त है.

‘इंटरएक्शन और मज़ा की कमी’

वैज्ञानिक ढांचे की इस मशहूर सार्वजनिक इमारत की तारीफ के बीच कुछ आलोचनाएं भी सामने आई हैं. शिक्षकों का कहना है कि इसमें स्कूली बच्चों की सक्रिय भागीदारी की कमी है—कुछ ऐसा जो बिहार म्यूज़ियम ने बहुत अच्छे से किया है.

रेडिएंट इंटरनेशनल स्कूल की प्रिंसिपल मनीषा सिन्हा ने कहा, “हमारे बच्चों को बिहार म्यूज़ियम और साइंस सेंटर जाना बहुत पसंद है, लेकिन तारामंडल, भले ही अब आधुनिक हो गया हो, फिर भी बच्चों के लिए खास आकर्षण या कार्यक्रमों की कमी है.”

स्कूल का अंतिम बैच तारामंडल तब गया था जब उसे मरम्मत के लिए बंद नहीं किया गया था.

सिन्हा ने बताया कि करीब एक दशक तक तारामंडल सिल्क साड़ी की प्रदर्शनियों तक सीमित हो गया था.

उन्होंने याद करते हुए कहा, “2015–16 के बाद यह मुश्किल से तारामंडल रह गया था. अब जब इसे फिर से विकसित कर दिया गया है, तो यह नई पीढ़ी को प्रेरित करने के लिए तैयार है—अगर सही कार्यक्रम बनाए जाएं.”

14 साल की सौम्या, जो कक्षा 9 की छात्रा है और रेडिएंट इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ती है, विज्ञान में गहरी रुचि रखती है. अपनी इसी रुचि के चलते वह स्कूल की यात्रा के बिना दो बार नए रूप में तैयार हुए तारामंडल जा चुकी है. उसने वहां दो शो देखे—‘लाइफ ऑफ ट्रीज़’ और ‘वॉयजर्स’. लेकिन अपनी यात्राओं के दौरान उसने एक दिलचस्प बात नोट की.

उसने कहा, “मेरे लिए एस्ट्रोनॉमी गैलरी बहुत इंटरएक्टिव और मज़ेदार थी, लेकिन बाकी लोग उसे नज़रअंदाज़ कर रहे थे—ज्यादातर लोग सिर्फ सेल्फी लेने में व्यस्त थे.” उसने आगे कहा, “एआई की मौजूदगी से लगता है कि भविष्य कैसा होगा.”

बच्चों और स्कूलों की मांग पर प्रतिक्रिया देते हुए, परियोजना निदेशक ने बताया कि तारामंडल ने पहले महीने के लिए मुफ़्त शो की पेशकश की है | ज्योति यादव | दिप्रिंट

हालांकि हर यात्रा ने उसे विज्ञान, अंतरिक्ष और मानवता के अस्तित्व के बारे में और जानने की जिज्ञासा दी, लेकिन उसे लगा कि यह सिर्फ एक मूवी शो या खगोलशास्त्र गैलरी से ज्यादा होना चाहिए.

उसने कहा, “काश वहां एक स्मृति चिन्ह सेक्शन होता—कुछ जो मैं घर ले जा सकती. हर चीज़ की कहानी को दिलचस्प तरीके से सुनाने के लिए एक गाइड भी होना चाहिए.”

उसका सहपाठी और विज्ञान प्रेमी क्षितिज भी इससे सहमत था.

उसने कहा, “अनुभव को बेहतर बनाने के लिए साइंस-आधारित गतिविधियां और क्विज़ होनी चाहिए. अभी यह ज़्यादा एक सिनेमा हॉल जैसा लगता है, जहां कई बड़े लोग बस हूटिंग करते हैं, जिससे खोज का आनंद कम हो जाता है.”

नोडल अधिकारी शिव शंकर सहाय ने भरोसा दिलाया कि कई रोमांचक बदलाव हो रहे हैं.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “एक स्मृति चिन्ह की दुकान खुलने वाली है और परिसर में मौजूद दो पार्कों को एस्ट्रोनॉमी पार्क में बदला जाएगा.” उन्होंने बताया कि हाल ही में तारामंडल ने दूरबीन के ज़रिए एक खगोलीय घटना का प्रदर्शन किया, जिसमें 20 मई से 24 मई 2025 के बीच शनि, शुक्र और चंद्रमा एक सीध में आए.

उन्होंने आगे कहा, “हम एक 25-सीटर वर्चुअल रियलिटी थियेटर भी इंस्टॉल करेंगे.” यह प्रोजेक्ट एक साल के अंदर पूरा होने की उम्मीद है और आगे और भी विस्तार की योजना है.

बच्चों और स्कूलों की मांगों पर प्रतिक्रिया देते हुए, प्रोजेक्ट डायरेक्टर ने बताया कि तारामंडल ने पहले महीने मुफ्त शो की सुविधा दी थी.

उन्होंने कहा, “अगर छात्र अपने प्रिंसिपल से विज़िट के लिए रसीद ले आएं तो हम उन्हें 20 रुपये में टिकट देते हैं.”

हालांकि, पूर्व प्रोजेक्ट डायरेक्टर चंद्रशेखर सिंह ने कहा कि सिर्फ मूवी स्क्रीनिंग से आगे बढ़ते हुए रचनात्मक भागीदारी ज़रूरी है.

अपने कार्यकाल के दौरान, सिंह ने एक साइंस स्कॉलरशिप प्रोग्राम शुरू किया था, जिसमें विजेता छात्र समूहों को 10,000 रुपये का पुरस्कार दिया जाता था. कुल 500 समूहों को इस पहल का लाभ मिला, इससे पहले कि यह बंद हो गया.

उन्होंने कहा, “आप सिर्फ एक साइंस सेंटर के भरोसे बच्चों की जिज्ञासा को संतुष्ट नहीं कर सकते.”

बिहार के लिए एक नया युग

पटना का तारामंडल लगभग भुला ही दिया गया था. लेकिन 2021 में बदलाव की शुरुआत हुई जब कुमार रवि, 2005 बैच के आईएएस अधिकारी, बिहार के बिल्डिंग सेक्रेटरी बने. आने वाले वर्षों में उन्होंने बिहार के इंफ्रास्ट्रक्चर परिवर्तन का नेतृत्व किया—कलेक्टरेट्स, कन्वेंशन हॉल, म्यूज़ियम्स और प्रतिष्ठित बापू टॉवर के प्रोजेक्ट को अंजाम दिया. उनके कई प्रोजेक्ट्स में से तारामंडल का पुनरुद्धार सबसे अहम माना जाता है, उनके सहकर्मियों का कहना है.

पटना तारामंडल में आगंतुक | ज्योति यादव | दिप्रिंट

रवि ने कहा, “तारामंडल कई वर्षों से बंद पड़ा था—जब तक कि 2021 में साइंस एंड टेक्नोलॉजी विभाग (DST) ने इसके पुनरुद्धार का प्रस्ताव नहीं दिया.”

उन्होंने कहा, “बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन डिपार्टमेंट (BCD) ने इस बदलाव को अंजाम दिया—फेसाड लाइटिंग, नया गेस्ट हाउस और लैंडस्केप एन्हांसमेंट.” रवि के लिए यह काम व्यक्तिगत रूप से भी खास था. “मैं खुद स्कूल के समय पहली बार इस तारामंडल में आया था, जैसे कि बहुत सारे और छात्र. इसका फिर से जीवित होना एक शानदार अनुभव था.”

रवि के कार्यकाल में, बीसीएड ने दरभंगा में एक नया तारामंडल भी विकसित किया. इसके अलावा, वे डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम साइंस सिटी के चल रहे निर्माण पर नज़र रख रहे हैं, जो राजेंद्र नगर में मोइन-उल-हक स्टेडियम के पास 22 एकड़ ज़मीन पर बन रहा है. 640 करोड़ रुपये के बजट के साथ, यह साइंस सिटी नवंबर 2025 तक पूरा होने की उम्मीद है.

वर्तमान में एक पॉलिटेक्निक कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. चंद्रशेखर सिंह ने कहा, “तारामंडल को साइंस सिटी के संदर्भ में देखा जाना चाहिए, क्योंकि जब वह शुरू होगा, तब वह बच्चों को ऐसा अनुभव देगा जो पहले कभी नहीं मिला.” उन्हें उम्मीद है कि यह एक विज्ञान-आधारित आंदोलन की शुरुआत करेगा.

आयातित तकनीक

2022 में, कुमार रवि और उस समय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव लोकेश कुमार सिंह, प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ. कुमार के साथ जर्मनी और फ्रांस की यात्रा पर गए. उनका उद्देश्य भारत के लिए नवीनतम तकनीकी नवाचार लाना था.

इस यात्रा के दौरान, उन्होंने जर्मनी की प्रसिद्ध कंपनी कार्ल ज़ाइस को चुना, जो ऑप्टिकल, मैकेनिकल और डिजिटल प्रोजेक्शन सिस्टम बनाने में माहिर है. इस साझेदारी से पटना के तारामंडल को एक उन्नत डिजिटल 2D/3D आरजीबी लेज़र-आधारित प्रोजेक्शन सिस्टम मिला, जिसने खगोलशास्त्र की दुनिया में एक नया मानक स्थापित किया.

इस सुविधा को आधुनिक बनाने के लिए कोलकाता से आठ विशेषज्ञों की एक टीम बुलाई गई. उन्होंने सबसे पहले गुंबद की बाहरी सतह पर वॉटरप्रूफिंग का काम किया ताकि पानी का रिसाव न हो सके, फिर पुरानी इमारत की मजबूती के लिए ज़रूरी मरम्मत की गई.

डॉ. कुमार ने बताया, “गुंबद की अंदरूनी सतह के लिए एक विशेष स्क्रीन अमेरिका से मंगाई गई थी,” जिससे तारामंडल का विज़ुअल अनुभव बेहतर हुआ.

एलईडी-आधारित प्रोजेक्टर, जिसमें कई लेंस लगे हैं, 16 मीटर के प्रोजेक्शन गुंबद पर लाखों तारों को जीवंत कर देता है. यह गुंबद एल्यूमिनियम की स्क्रीन पर सही कोण पर प्रोजेक्शन दिखाता है.

तारामंडल अब सिर्फ़ शिक्षा के केंद्र नहीं, बल्कि मनोरंजन के केंद्र बन गए हैं. विजिटर्स गुंबद के नीचे और गैलरी में सेल्फ़ी लेते हैं. व्लॉगर्स इसे मात्र 100 रुपये में ज़रूर देखने लायक अनुभव बताते हैं | ज्योति यादव | दिप्रिंट

प्रोजेक्शन के अलावा और भी चीजें जोड़ने के लिए, एक उच्च क्षमता वाली ऑप्टिकल टेलीस्कोप को राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद के ज़रिए 10 लाख रुपये में खरीदा गया, जिसे अब खगोल गैलरी में प्रदर्शित किया गया है.

तारामंडल में 25 इंटरएक्टिव प्रदर्शनियां भी हैं, जो विज्ञान के विकास और ऐतिहासिक खोजों को दिखाती हैं—जैसे बिग बैंग थ्योरी, विक्रम लैंडर, आदित्य-एल1 और आर्यभट्ट की प्रतिमा.

प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ. कुमार ने बताया, “भारत में सभी तारामंडलों में से, केवल कोलकाता और कर्नाटक के तारामंडल में ही यह नवीनतम 3डी प्रोजेक्शन सिस्टम है—लेकिन उनके पास 8K रेजोल्यूशन नहीं है.”

‘अंतरराष्ट्रीय स्तर के अनुभव’

34 वर्षीय डेटा साइंटिस्ट गौतम कुमार, जो बिहार के रहने वाले हैं, दिसंबर 2024 में जब इंदिरा गांधी तारामंडल पहुंचे तो एक लहर सी यादों की उनके ज़हन में दौड़ गई. यह जगह उनके बचपन की यादों से जुड़ी है, जैसे कि बहुत से पटना और बिहार के अन्य हिस्सों में बड़े हुए लोगों के लिए है.

उन्होंने पहली बार तारामंडल की यात्रा 2000 के दशक की शुरुआत में की थी. उस समय, यह सिर्फ विज्ञान देखने की जगह नहीं थी, बल्कि एयर कंडीशन हॉल में बैठकर 2डी प्रोजेक्शन में खगोलीय चीजें देखना एक रोमांचक अनुभव था, और टिकट की कीमत सिर्फ 10 रुपये या 15 रुपये हुआ करती थी.

अब, दशकों बाद, कुमार फिर लौटे—इस बार एक वैज्ञानिक के रूप में, अपने तीन साल के भांजे और पांच साल की भांजी को साथ लाकर उन्हें यह अनुभव दिखाने के लिए.

उन्होंने कहा, “3डी शो तो सांस रोक देने वाले थे.” विज्ञान म्यूज़ियम्स के अनुभवी विज़िटर के तौर पर वे पहले बिरला तारामंडल और जवाहरलाल नेहरू तारामंडल भी देख चुके थे, लेकिन यह अनुभव उनसे अलग लगा.

कुमार ने बताया, “मेरा भाई जो अमेरिका में रहता है, वह भी इस अनुभव से चकित रह गया. उसने कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय तारामंडलों के बराबर, अगर उनसे बेहतर नहीं तो, ज़रूर है.” उन्होंने आगे कहा, “मेरे लिए खगोलशास्त्र गैलरी भी खास थी.”

46 वर्षीय लॉर्ड खान, जो राजनीतिक विज्ञान में स्नातक हैं और अब एक व्यवसायी हैं, तारामंडल की अपनी पहली यात्रा को आज भी जीवंत रूप से याद करते हैं. “उस समय पटना में घूमने की ज़्यादा जगहें नहीं थीं. तारामंडल कुछ ही जगहों में से एक था.”

इस बार वे अपने दो बेटों, यशव और आरिफ के साथ आए, जो क्रमशः कक्षा 10 और 12 के छात्र हैं. लेकिन इस बार की यात्रा में खास बात यह थी कि यह युवा लड़के नहीं थे जो परिवार को तारामंडल ले जा रहे थे—बल्कि उनकी बहन किरण खान (उम्र 50 वर्ष) थीं, जिन्होंने मई की तपती गर्मी में पूरे परिवार को वहां जाने के लिए प्रेरित किया.

किरण खान ने कोलकाता के तारामंडल का भव्य अनुभव पहले किया था और चाहती थीं कि देखें पटना का अनुभव उससे कैसे मेल खाता है. तारामंडल के प्रवेश द्वार पर खड़ी होकर उन्होंने एक दिलचस्प बात नोट की—बच्चों से ज़्यादा वयस्क इकट्ठा थे.

ऑडिटोरियम के अंदर, बच्चों की तुलना में वयस्क अधिक थे. पहले जैसी उत्तेजना की गूंज सुनाई नहीं दी. हंसी-ठिठोली की जगह शांत अवलोकन ने ले ली. यह दृश्य उन दशकों से बिल्कुल अलग था जब बच्चे तारामंडल को जादू, आश्चर्य और अनंत संभावनाओं की जगह मानते थे.

किरण खान ने कहा, “आजकल बच्चों के लिए पूरा ब्रह्मांड उनकी हथेली में है.”

टिकट काउंटर पर कार्यरत कृष्ण मोहन ने कहा, “आज के बच्चों को विज्ञान म्यूज़ियम और तारामंडल में लाना एक चुनौती बन गया है.”

उन्होंने बताया कि अब हॉल के अंदर की प्रतिक्रियाएं वैसी नहीं रहीं जैसी पहले हुआ करती थीं.

अब तारामंडल सिर्फ शिक्षा की जगह नहीं, मनोरंजन के केंद्र भी बन गए हैं. विज़िटर डोम के नीचे और गैलरी में सेल्फी लेते हैं. व्लॉगर इसे 100 रुपये में एक ‘ज़रूर देखने लायक’ अनुभव बताते हैं.

किरण खान ने कहा, “जरूरत है बच्चों की जिज्ञासा को जगाने की और उन्हें स्क्रीन से दूर खींचने की.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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