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Sunday, 13 July, 2025
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मॉल में दुकानें, नई नीति और बढ़ता निवेश—उत्तर प्रदेश ने शराब कारोबार के दरवाजे खोले

उत्तर प्रदेश के शराब क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में बड़ा बदलाव आया है. शराब उद्योग को समर्पित निवेशक सम्मेलन में 4,320 करोड़ रुपये के प्रस्ताव मिले.

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश शराब निर्माण और निवेश के लिए तेजी से एक प्रमुख केंद्र के रूप में उभर रहा है. यह बात राज्य आबकारी विभाग के पहले निवेशक सम्मेलन में साफ नजर आई, जो खासतौर पर शराब उद्योग के लिए आयोजित किया गया था. इस सम्मेलन में कुल 4,320 करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव मिले.

आबकारी विभाग के अनुसार, बुधवार को हुए इस सम्मेलन में 15 कंपनियों ने शराब, बीयर, वाइन और अल्कोहल के उत्पादन के लिए निवेश प्रस्ताव दिए. ये कंपनियां गोरखपुर, लखनऊ और मथुरा सहित 15 जिलों में अपनी यूनिट्स शुरू करेंगी.

राज्य सरकार के अधिकारियों ने बताया कि राजधानी लखनऊ में हुआ यह एक दिवसीय सम्मेलन शराब क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया गया था, जिसमें उत्पादन, वितरण, विपणन और संबंधित उद्योग शामिल हैं. इस कार्यक्रम का मकसद निवेशकों को राज्य की कारोबारी नीतियों से परिचित कराना और एक अनुकूल वातावरण दिखाना था.

दिप्रिंट को मिले आबकारी विभाग के आंकड़ों के अनुसार, पिछले सात वित्तीय वर्षों में विभाग की आय में काफी बढ़ोतरी हुई है और यह दोगुनी से भी ज्यादा हो गई है. 2018-19 में विभाग की आय 23,927.56 करोड़ रुपये थी, जो अब 52,573.07 करोड़ रुपये को पार कर चुकी है.

Graphic by Manali Ghosh | ThePrint
मनाली घोष | दिप्रिंट

आय के साथ-साथ राज्य में शराब उत्पादन में भी भारी वृद्धि हुई है. 2018 में यूपी में 62.95 करोड़ लीटर शराब बनती थी. अप्रैल 2025 तक यह आंकड़ा तीन गुना बढ़कर 182.6 करोड़ लीटर से ज्यादा हो गया है.

सम्मेलन में दिप्रिंट से बात करते हुए आबकारी मंत्री नितिन अग्रवाल ने कहा कि यूपी धीरे-धीरे शराब निर्माण का केंद्र बनता जा रहा है.

उन्होंने बताया कि हाल के वर्षों में राज्य को इंवेस्ट यूपी पोर्टल के माध्यम से शराब आधारित उद्योगों के लिए 142 निवेश प्रस्ताव मिले हैं. इनमें से 135 समझौता ज्ञापन (MoU) पर साइन हो चुके हैं, जिनकी कुल कीमत 39,479 करोड़ रुपये है और इनसे 73,000 से ज्यादा नौकरियों की उम्मीद है.

इनमें से 46 परियोजनाएं जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी कर चुकी हैं और जल्द काम शुरू करेंगी. इनका कुल निवेश 7,888 करोड़ रुपये है. अब तक 19 यूनिट्स शुरू हो चुकी हैं, जिन्होंने 2,339 करोड़ रुपये का निवेश किया है और 2,316 लोगों को रोजगार दिया है.

शनिवार को दिप्रिंट से बात करते हुए नितिन अग्रवाल ने राज्य में निवेशकों की बढ़ती रुचि के तीन प्रमुख कारण बताए—पिछले कुछ वर्षों में आबकारी नीतियों में बदलाव, कुछ कारोबारियों का एकाधिकार खत्म होना और 2017 से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में कानून-व्यवस्था में सुधार.

नीतिगत उपाय

आबकारी विभाग के अधिकारियों के अनुसार, 2018 में उत्तर प्रदेश सरकार ने शराब के लाइसेंस पाने में करीब एक दशक से चले आ रहे कुछ व्यापारियों के एकाधिकार को खत्म करने के लिए एक बड़ा कदम उठाया.

सुधार के तहत सरकार ने मेरठ के लिए विशेष लाइसेंस जोन को खत्म कर दिया और सभी जिलों के लिए एक समान आबकारी संरचना लागू कर दी. दुरुपयोग रोकने के लिए थोक दुकानों के लाइसेंस पर रोक लगा दी गई और ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया शुरू की गई, जिससे किसी व्यक्ति/व्यवसाय को अधिकतम दो लाइसेंस तक सीमित कर दिया गया.

रिटायर्ड आईएएस अधिकारी और पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव (गन्ना उद्योग व आबकारी) संजय भूसरेड्डी ने कहा कि “2018 से 2023 के बीच का समय आबकारी विभाग की नीतियों में बड़े बदलाव का था, जिससे वर्षों से चले आ रहे बड़े निवेशकों के एकाधिकार को खत्म किया गया.”

उन्होंने कहा, “पहले यूपी में शराब उद्योग से जुड़े चड्ढा, जैसवाल जैसे बड़े उद्योगपति ही शराब उत्पादन व निर्माण में छाए रहते थे, लेकिन 2018-19 और 2019-20 में जब हमने नीतियां बदलीं, तो छोटे व्यवसायी भी इस क्षेत्र में आ सके.”

“2018-19 में हमने एक व्यक्ति/व्यवसाय के लिए एक जिले में अधिकतम दो लाइसेंस और पूरे राज्य में चार लाइसेंस की सीमा तय की. फिर 2019-20 में यह सीमा घटाकर एक जिले में एक और पूरे राज्य में दो लाइसेंस कर दी गई.”

उन्होंने यह भी बताया कि किसानों की आमदनी बढ़ाने और निवेश आकर्षित करने के लिए मार्च 2022 में आबकारी विभाग ने “मेड इन यूपी” वाइन की अवधारणा शुरू की, जिसमें स्थानीय फलों से बनी शराब पर कोई आबकारी शुल्क नहीं लगाया गया.

कुछ अधिकारियों ने राजस्व बढ़ाने के पीछे लिए गए बड़े फैसलों को भी इसका कारण बताया.

एक वरिष्ठ आबकारी अधिकारी ने बताया, “जुलाई 2020 में कैबिनेट के एक फैसले से शॉपिंग मॉल में प्रीमियम क्वालिटी की शराब और बीयर बेचने की अनुमति दी गई और इसका लाइसेंस शुल्क भी तय किया गया. इसका वार्षिक शुल्क 12 लाख रुपये रखा गया है, जिसे कोई भी व्यक्ति, कंपनी, फर्म या संस्था ले सकती है. इस फैसले से यूपी में शराब बिक्री को लेकर धारणा में बदलाव आया है.”

उन्होंने कहा, “अब उत्तर प्रदेश के कम से कम 50 मॉल्स में शराब की दुकानें हैं. एक और बड़ा बदलाव यह देखने को मिला है कि अब महिलाएं मॉल में स्थित दुकानों से शराब खरीदना ज्यादा पसंद करती हैं. हमने इस बदलाव को देखा है और उनके लिए शराब तक पहुंच आसान बनाई है.”

1 अप्रैल को राज्य की नई आबकारी नीति 2025-26 लागू हुई, जिसमें कई बड़े बदलाव किए गए. सबसे अहम बदलाव यह था कि शराब की दुकानों के आवंटन के लिए ई-लॉटरी प्रणाली शुरू की गई, जिससे लाइसेंस प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाया जा सके.

पहली बार सरकार ने “कॉम्पोजिट शॉप्स” की अवधारणा शुरू की, जिसमें बीयर और भारतीय निर्मित विदेशी शराब (आईएमएफएल) की अलग-अलग दुकानों को एक यूनिट में जोड़ा गया ताकि खुदरा कारोबार सरल हो सके. उत्पाद पैकेजिंग में भी बदलाव हुआ — नियमित विदेशी शराब श्रेणी में 90 मिली की बोतल और प्रीमियम श्रेणी में 60 मिली व 90 मिली दोनों विकल्प उपलब्ध होंगे.

शिखर सम्मेलन में जारी इंटरनेशनल स्पिरिट्स एंड वाइंस एसोसिएशन ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2023-24 के वित्तीय वर्ष में राज्य के मादक पेय उद्योग ने 56,000 करोड़ रुपये का बाजार राजस्व उत्पन्न किया और राज्य की जीडीपी में 2.4 प्रतिशत का योगदान दिया.

रिपोर्ट में बताया गया है कि राज्य के कर राजस्व का 25 प्रतिशत हिस्सा शराब बिक्री से आता है. आईएमएफएल श्रेणी ने भी सालाना 10 प्रतिशत की दर से वृद्धि दर्ज की है, जो प्रीमियम उत्पादों की बढ़ती मांग के कारण है.

रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि राज्य के कंटेनर ग्लास उत्पादन का 80 प्रतिशत हिस्सा मादक पेय उद्योग द्वारा इस्तेमाल होता है. वर्तमान में राज्य में 27,308 लाइसेंस प्राप्त शराब की खुदरा दुकानें हैं, जिनमें कुल मिलाकर 1.3 लाख से अधिक लोग कार्यरत हैं.

शराब क्षेत्र पर मुख्यमंत्री की नजर

मुख्यमंत्री आदित्यनाथ भाषणों में शायद ही कभी आबकारी राजस्व के आंकड़ों का जिक्र करते हैं, लेकिन उनके करीबी अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि वह राज्य को एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की अपनी व्यापक महत्वाकांक्षा के तहत इन आंकड़ों पर बारीकी से नजर रखते हैं.

मुख्यमंत्री कार्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, आदित्यनाथ के साथ बैठकें आबकारी विभाग के लिए खासतौर पर शराब से जुड़े मामलों पर चर्चा के समय चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं.

एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हम कोशिश करते हैं कि ‘शराब’ शब्द का इस्तेमाल जितना कम हो सके उतना करें. योगीजी को यह शब्द पसंद नहीं है और जब इसका ज़िक्र होता है तो वे स्पष्ट रूप से प्रतिक्रिया देते हैं.”

हालांकि शब्दों को लेकर असहजता है, लेकिन आबकारी विभाग के अधिकारियों ने कहा कि मुख्यमंत्री ने उन्हें इस क्षेत्र में सुधार के लिए पूरी छूट दी है. यूपी आबकारी विभाग के एक अन्य अधिकारी ने कहा, “यही योगीजी थे जिन्होंने शराब तस्करी पर सख्ती करने पर जोर दिया. इसी से ट्रैक-एंड-ट्रेस सिस्टम की शुरुआत हुई.”

आगरावाल ने भी इनवेस्टर समिट में बताया कि पिछले आठ वर्षों में आदित्यनाथ के नेतृत्व में आबकारी विभाग की आय तेजी से बढ़ी है और नए व पुराने दोनों निवेशकों से अपील की कि वे यूपी को एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में योगदान दें.

उन्होंने कहा, “निवेशकों का उत्साह यूपी के व्यापारिक माहौल में बढ़ते भरोसे को दर्शाता है. हमने एक ऐसा इकोसिस्टम बनाया है जो औद्योगिक विकास और व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा देता है.”

वहीं, आबकारी आयुक्त आदर्श सिंह ने हितधारकों की भागीदारी के महत्व पर जोर देते हुए आश्वासन दिया कि अगले वर्ष की आबकारी नीति बनाते समय उद्योग जगत के प्रमुख सुझावों को ध्यान में रखा जाएगा.

फ्रूट वाइनरी

उत्तर प्रदेश का शराब उद्योग कृषि से भी गहराई से जुड़ा है, जिसमें 3.4 लाख से अधिक किसान अनाज और गन्ना शराब उत्पादन के लिए आपूर्ति करते हैं.

नवाचार और ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राज्य ने स्थानीय फलों से बनी वाइन पर पांच साल तक आबकारी शुल्क छूट की घोषणा की है. इस कदम को फल उत्पादन बढ़ाने और राज्य भर में कृषि आधारित उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के एक बड़े प्रयास के रूप में देखा जा रहा है.

लखनऊ के मलिहाबाद क्षेत्र में उत्तर प्रदेश की पहली फ्रूट वाइनरी भी पिछले महीने शुरू हुई, जो आम और विभिन्न स्थानीय फलों से बनी मादक पेय तैयार करती है.

100 एकड़ के आम के बाग में बनी इस इकाई की स्थापना करीब 10 करोड़ रुपये की लागत से हुई है और इसे लखनऊ के बागवानी विशेषज्ञ माधवेंद्र देव सिंह ने स्थापित किया है, जो मल क्षेत्र के मूल निवासी हैं. उन्होंने 2023 में आयोजित इनवेस्टर समिट में राज्य के बागवानी विभाग के साथ एक एमओयू साइन किया था.

माधवेंद्र ने दिप्रिंट को बताया कि वाइनरी में वाइन की बिक्री सीधे की जाएगी और दो महीने के भीतर दर्शकों के लिए गाइडेड डे टूर भी शुरू किए जाएंगे. उन्होंने कहा, “हम वाइन यूपी में स्थानीय रूप से उपलब्ध फलों से बना रहे हैं. हम अंगूर का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं. मीड के लिए हम कतरनिया घाट से लाई गई मल्टी-फ्लावर और सरसों की शहद का उपयोग कर रहे हैं.”

“हमारी मीड आम, शहतूत और पुदीने से बनाई जाती है, और इसमें अल्कोहल प्राकृतिक रूप से बनता है—यह कृत्रिम किण्वन (आर्टिफिशियल फर्मेंटेशन) के जरिए नहीं तैयार होता. हम अपने किसी भी उत्पाद में एथेनॉल नहीं मिलाते.”

उन्होंने बताया कि पहले बैच के चार वाइन उत्पाद तैयार हैं, जो मल और मलिहाबाद क्षेत्र के किसानों द्वारा उगाए गए फलों से बने हैं. इनकी कीमत 300 रुपये से लेकर 1,200 रुपये तक होगी और ये कई साइज में उपलब्ध होंगे.

सिंह ने बताया कि एक अनोखा हाइब्रिड पेय “ब्रैगॉट” भी विकसित किया गया है, जो बीयर और मीड दोनों की विशेषताओं को मिलाकर बनाया गया है.

बुधवार को इनवेस्टर समिट में सुपीरियर इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने 74 करोड़ रुपये की वाइनरी विस्तार परियोजना की घोषणा की.

कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर मनीष अग्रवाल ने कहा, “हमने सरकार के साथ एमओयू साइन किया है और उत्पादन बढ़ाने की योजना है. सिंगल-विंडो क्लीयरेंस सिस्टम ने पूरी प्रक्रिया को आसान बना दिया; हमने बिना किसी सरकारी दफ्तर गए सारी औपचारिकताएं ऑनलाइन पूरी कर लीं. यूपी में हमें यही बदलाव देखने को मिला है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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