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Sunday, 13 July, 2025
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एयरफोर्स को चाहिए नई उड़ान — 5G फाइटर लाएं, तेजस Mk2 और AMCA को अपग्रेड करें

इस साल के अंत तक भारत के लड़ाकू विमानों के स्क्वाड्रनों की संख्या 42 से घटकर 31 हो जाएगी. वर्ष 2030 तक मिराज-2000, मिग-29, जगुआर स्क्वाड्रनों को हटा दिया जाएगा तो यह संख्या और घट जाएगी.

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इतालवी जनरल गुइलियो डौहेट ने 104 साल पहले जो थ्योरी दी थी वह आज सही साबित हो गई है. उन्होंने सैद्धांतिक अवधारणा प्रस्तुत करते हुए कहा था कि एक वक़्त आएगा जब वायुसेना की ताकत युद्ध जीतने में निर्णायक सिद्ध होगी. भारत का ‘ऑपरेशन सिंदूर’ हो या इजरायल का ‘ऑपरेशन राइजिंग लायन’ या अमेरिका का ‘ऑपरेशन मिडनाइट हैमर’, 48 दिनों के अंदर यह जाहिर हो गया कि राजनीतिक और सैन्य लक्ष्य हासिल करने में हवाई अभियानों ने किस तरह अपनी प्रमुखता साबित की.

‘ऑपरेशन सिंदूर’ में भारतीय वायुसेना (आईएएफ) का सामना लगभग बराबर की क्षमता वाले प्रतिद्वंद्वी से था और उसका प्रदर्शन सबसे अलग होकर उभरा. उसे परमाणु युद्ध के डर से संभलकर कदम उठाने पड़े, जबकि इज़राइल और अमेरिका की एयरफोर्स को किसी चुनौती का सामना नहीं था.

वैसे, भारत का मुख्य प्रतिद्वंद्वी चीन है, पाकिस्तान तो महज खीज़ पैदा करने वाला तत्व है. ये दोनों प्रतिद्वंद्वी एक-दूसरे के रणनीतिक सहयोगी भी हैं. पिछले 40 वर्षों से भारत की रणनीति पाकिस्तान को ‘आक्रामक खौफ’ (जब जरूरी हो तो आक्रमण करने के खौफ) में रखने की, और चीन को ‘विरत करने वाले खौफ’ में रखने की रही है.

पिछले 20 वर्षों से भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति का ज़ोर एक साथ दो मोर्चों पर लड़ने की तैयारी करने पर रहा है. पाकिस्तानी वायुसेना की क्षमता चीन की इस क्षमता के 40 फीसदी का बराबर ही है फिर भी उसे मनोविज्ञानिक रूप से हराने के लिए ‘आईएएफ’ ने अपना पूरा ज़ोर लगा दिया. मैंने इसके बारे में लिखा था कि उसने “एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा दिया”. उस स्थिति की कल्पना कीजिए जब ज्यादा सीधी टक्कर होगी, जो भविष्य में हो सकती है.

‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान  क्षमता, तकनीक, ऑपरेशन संबंधी रणनीति और सामरिक नीति के मामलों में ‘आईएएफ’ की प्रत्यक्ष कमियां उजागर हो गईं. उसमें तुरंत बदलाव की जरूरत है.

रणनीति की समीक्षा

सेना की रणनीतिक समीक्षा तुरंत की जानी चाहिए, और वायुसेना की ताकत पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए. इसमें वर्तमान क्षमताओं का गहन मूल्यांकन करने के साथ ही भविष्य में मानव सहित/ऑटोमेटिक एयर पावर के विकास के उद्देश्य से उभरती टेक्नोलॉजी को शामिल करने के 25 वर्षीय तकनीकी परिप्रेक्ष्य को जोड़ा जाए. दीर्घकालिक, मध्यकालिक, और अल्पकालिक जरूरतों के मद्देनजर स्पष्ट समय सीमाएं तय की जाएं.

राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति

भारत को अपनी सेनाओं में तेजी से बदलाव लाने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति और इसके साथ जुड़ी राष्ट्रीय प्रतिरक्षा नीति को भी औपचारिक स्वरूप देने की जरूरत है. इससे ऐसी सैन्य रणनीति का रास्ता साफ होगा, जो तमाम तरह के संघर्ष से जुड़े खतरों का सामना करने में सहायक होगी. राजनीतिक नेता अपने सार्वजनिक भाषणों में सुरक्षा के जिस राजनीतिक सिद्धांत की बात करते हैं उसे तार्किक रणनीति में तब्दील करना बहुत जरूरी है.

पाकिस्तान के आतंकवाद केंद्रित जिस छद्म युद्ध को ‘न्यू नॉर्मल’ बना दिया गया है, और चीन अपना वर्चस्व जताने के लिए अस्पष्ट वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का जिस तरह फायदा उठाना चाहता है उसके खिलाफ एक स्पष्ट रणनीति बनाने की जरूरत है.

नेशनल डिफेंस पॉलिसी में समयबद्ध कार्यक्रम तय किए जाएं: अल्पकालिक समय सीमा 2030 हो; मध्यकालिक समय सीमा 2040 हो; और दीर्घकालिक समय सीमा 2050 हो. इस मामले में चीन के बदलाव के तरीके से सीख ली जा सकती है.

भारत में इतनी क्षमता और सामर्थ्य होनी चाहिए कि वह जब जरूरत पड़े, पाकिस्तान के अंदर इतनी खौफ पैदा कर कि वह कोई गड़बड़ी करने की हिम्मत न करे. भारत को 2035 तक चीन को चुनौती देने और 2047 तक उसकी सैन्य ताकत की बराबरी करने की स्थिति में आ जाना चाहिए. इसके लिए भारत के रक्षा बजट को एक दशक तक उसकी जीडीपी के 4 फीसदी के बराबर रखना होगा और इसके बाद इसे 3 फीसदी से नीचे नहीं लाना होगा.

अभी इसमें महज 0.6 फीसदी की जो वृद्धि की गई है वह ऊंट के मुंह में जीरे के समान है. भारतीय अर्थव्यवस्था फिलहाल जिस 6.5 फीसदी की दर से इजाफा कर रही है उसके बूते 2035 तक वह दोगुनी होकर 8 ट्रिलियन डॉलर की हो जाएगी. और 2047 तक वह 17.5 ट्रिलियन डॉलर की हो जाएगी. रक्षा बजट को अगर जीडीपी के 3-4 फीसदी के बराबर रखा गया तो वह 2035 में 240-320 अरब डॉलर, और 2047 में 525-700 अरब डॉलर के बराबर का हो जाएगा.

ऑपरेशनों से संबंधित रणनीति

एयर पावर का सबसे अच्छा नतीजा तब मिलता है जब उसका अग्रिम इस्तेमाल किया जाए, और इसके इस्तेमाल में कम से कम समय गंवाया जाए. पश्चिमी सीमा के मोर्चे पर ऐसा निषिद्ध रेखा का अतिक्रमण करने के बाद दुश्मन को लंबे समय तक आशंकित रखकर किया जा सकता है या दुश्मन द्वारा सीमा पार किए जाने के 24 घंटे पहले इसका इस्तेमाल करके किया जा सकता है. उत्तरी सीमा पर प्रभावी खुफियागीरी और निगरानी तथा टोही कार्रवाई एलएसी पर सेना के असामान्य जमावड़े का पता लगाकर हमले को समय से पहले ही रोकने में मददगार हो सकती है. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान इन दोनों सिद्धांतों को भुला दिया गया. दुश्मन को 15 दिन पहले ही आगाह कर दिया गया. इसके साथ खूब ढोल पीट-पीटकर बड़े दावे किए गए. इस तरह दुश्मन को अपनी तैयारी करने का मौका दिया गया.

एयर पावर का इस्तेमाल शुरुआत से ही निर्णायक रूप में किया जाना चाहिए. इसके तहत सामरिक, ऑपरेशन संबंधी और रणनीतिक स्तर के लक्ष्यों को एक साथ साधने की कोशिश की जाए. ताकत के धीरे-धीरे इस्तेमाल से दुश्मन को जोरदार जवाबी कार्रवाई करके पहल अपने हाथ में लेने की सुविधा मिलती है. यह आतंकी अड्डों पर हमलों के बाद 7 मई को, और इसके बाद हुई हवाई जंग के दौरान हुआ. नतीजतन, हमारा लड़ाकू विमान मार गिराया गया.

आतंकी अड्डों पर हमले से पहले और उसके दौरान दुश्मन के एयर डिफेंस को नुकसान पहुंचाने/नष्ट करने में आईएएफ की विफलता साफ तौर पर निर्णय में चूक का मामला था. कमजोर चालों और दुश्मन के इरादों तथा उसकी सामर्थ्य के बारे में गलत धारणाओं ने समस्या को और गंभीर बना दिया. राजनीतिक मजबूरियां जो भी रही हों, आईएएफ को घटनाओं को अंजाम देकर बुनियादी बातों पर अमल करने से कोई नहीं रोक रहा था. तेज हवाई जंग में वास्तव में क्या हुआ यह कोई नहीं जानता. जरा यह देखिए कि ‘ऑपरेशन राइजिंग लायन’ में इजरायल ने शुरू के 24 घंटे में क्या नतीजे हासिल किए. आईएएफ ने 9 और 10 मई की रातों को निर्णायक रणनीतिक हवाई हमले किए और उसे कोई नुकसान नहीं हुआ. यह इसी बात को साबित करता है.

उस परिदृश्य की कल्पना कीजिए जब आईएएफ पाकिस्तान एअर फोर्स (पीएएफ) को धोखे से हवाई जंग में उलझा लेती है और उसे लंबी दूरी तक मार करने वाली एअर डिफेंस सिस्टम से निशाना बनाती है जिससे घबराकर उसके विमान अफगान सीमा की ओर भाग खड़े होते हैं. इसी के साथ आईएएफ मानव रहित एरियल सिस्टम (यूएएस) और हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइलों से उसकी एअर डिफेंस सिस्टम को निशाना बनाती है. इसके ठीक बाद वह आतंकी अड्डों, हवाई अड्डों, और कमांड/कंट्रोल केंद्रों को निशाना बनाया जा सकता था. यह सब 12 घंटे के अंदर किया जा सकता था, जैसा कि इजरायल ने कर दिखाया है.

संख्या और गुणवत्ता

भारत के लड़ाकू विमानों की संख्या दिन-ब-दिन घटती जा रही है. इस साल के अंत तक उनके स्क्वाड्रनों की संख्या 42 से घटकर 31 हो जाएगी. वर्ष 2030 तक मिराज-2000, मिग-29, और जगुआर स्क्वाड्रनों को हटा दिया जाएगा तो यह संख्या और कम हो जाएगी. ‘एचएएल’ साल में 24-32 तेजस एमके1ए ही बना पाएगी, इसलिए 2040 तक इस कमी की भरपाई शायद ही हो पाएगी. निजी क्षेत्र की भागीदारी से उत्पादन क्षमता को बढ़ाना पड़ेगा.

चीन पांचवीं जेनरेशन (5जी) के दो विमान— जे-20 और जे-35—पेश कर रहा है. वह 6जी के दो फाइटर विमान भी प्रदर्शित कर रहा है जिन्हें 2030 के बाद बेड़े में शामिल किया जाएगा. पाकिस्तान जल्दी ही 40 जे-35 फाइटर विमान और संभवतः तुर्की के ‘केएएएन’ फाइटर विमान भी हासिल कर सकता है. भारत का ‘एडवांस्ड मीडियम कंबैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए)’ अभी भी विकास के चरण में है और इसे 2035 से पहले बेड़े में शामिल किए जाने की उम्मीद नहीं है. जे-35 फाइटर में गोपनीयता का जो गुण है और इसके अलावा इसमें हवा से हवा में 400 किमी तक मार करने वाली जो पीएल-17 मिसाइल फिट है वह दूसरी ऐसी सभी मिसाइलों को पीछे छोड़ देती है.

संख्या और गुणवत्ता के मामले में फिलहाल जो अंतर है उस पर भारत को गंभीरता से सोचना होगा. उसे दूर करने के लिए 4.5/5जी फाइटरों के 6-7 स्क्वाड्रन आयात करने होंगे या उनके उत्पादन का लाइसेंस  हासिल करना होगा. ‘एएमसीए’ को देसी एरो इंजिन के साथ 6जी फाइटर में बदलना पड़ेगा. 83 विमानों की शुरुआती मांग पूरी की जाने के बाद ‘तेजस एमके1ए के83’ प्रोजेक्ट को खत्म करने की भी मांग है. और इस प्रोजेक्ट को बंद किए जाने के बाद ‘तेजस एमके2’ का उत्पादन शीघ्र शुरू करने की मांग भी है. आईएएफ दुश्मन की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों के चलते पिछड़ना गवारा नहीं कर सकती.

‘फोर्स मल्टीप्लायर’

हवा में पूर्व चेतावनी और कंट्रोल की व्यवस्था, इलेक्ट्रोनिक युद्ध, ‘आईएसआर’, हवा में ईंधन भरने की व्यवस्था के बिना एयर पावर का पूरा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. भारत को इन ‘फोर्स मल्टीप्लायरों’ की संख्या और गुणवत्ता बढ़ाने की जरूरत है.

एयर डिफेंस अब आक्रमण और बचाव, दोनों के लिए एयर पावर का अंतरंग हिस्सा बन गया है. जरा गौर कीजिए कि इजरायल ने ईरान के एयर डिफेंस को कमजोर करके और खुद को बेहतर एयर डिफेंस के बूते बैलिस्टिक मिसाइलों तथा ड्रोन के हमलों से सुरक्षित करके अपनी एअर पावर किस कदर बढ़ा ली है.

भारत के लिए अपनी महत्वपूर्ण व्यवस्थाओं को सुरक्षित करने और दुश्मन के क्षेत्र में घुसकर जवाबी हवाई कार्रवाइयों को मजबूती देने के लिए विस्तृत एयर डिफेंस सिस्टम तैयार करने के सिवा कोई विकल्प नहीं है. उसे दोनों मोर्चों के लिए दूर तक मार करने वाली एस-400 और एस-500 जैसी कम-से-कम 15 एयर डिफेंस सिस्टम्स की जरूरत है. यूक्रेन के पास अपनी प्रभावी वायुसेना नहीं है, तो उसने ताकतवर रूसी वायुसेना का मुक़ाबला मुख्यतः अपनी एयर डिफेंस सिस्टम के बूते ही किया.

‘यूएएस’ ने एयर पावर में एक नया आयाम जोड़ दिया है. भविष्य में ‘यूएएस’ का जितना इस्तेमाल किया जाने वाला है उसके हिसाब से ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में उसका 25-30 फीसदी हिस्सा ही इस्तेमाल किया गया. ‘ऑपरेशन राइजिंग लायन’, ‘ऑपरेशन स्पाइडर्स वेब’ और यूक्रेन युद्ध ने भी दिखा दिया है कि आधुनिक युद्ध में ‘यूएएस’ बड़ी भूमिका निभाने वाला है. लागत से ज्यादा लाभ देने वाली इस टेक्नोलॉजी की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि यह दूसरी महंगी वेपन सिस्टम्स में खर्च की बचत करा सकती है.

जमीन से जमीन पर लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें भी एअर पावर में वृद्धि कर सकती हैं, जो कि ‘ऑपरेशन मिडनाइट हैमर’ में टोमाहॉक मिसाइलों के इस्तेमाल से सिद्ध हो चुका है. परमाणु हथियारों ने बैलिस्टिक मिसाइलों के इस्तेमाल में सावधानी बरतना अनिवार्य कर दिया है लेकिन ऐसा आगे भी चल नहीं सकता. तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद ईरान इजरायल को बैलिस्टिक मिसाइलों से निशाना बनाता रहा. इस मामले में भारत को महारत हासिल है कि वह पाकिस्तान की पहुंच से दूर हथियार बना करके चीन की बराबरी कर सके.

बहुपक्षीय ऑपरेशन

पीएएफ ने बहुपक्षीय ऑपरेशन के मामले में आईएएफ को पीछे छोड़ दिया है. उसने एयर पावर के सभी तत्वों को उपग्रह डाटा लिंक से जोड़ दिया है, जिसके कारण पहचान तथा वेपन के बहुआयामी साधनों के बूते सभी ऑपरेशन्स को तालमेल के साथ आगे बढ़ाया जा सकता है. हवा से हवा में, एयर डिफेंस, और जमीन से जमीन पर मार करने वाली मिसाइलों को एक साधन द्वारा लक्ष्य की पहचान करके दूसरे प्लेटफॉर्म से दागा जा सकता है जबकि उन्हें दूसरे प्लेटफॉर्म से गाइड किया जा सकता है.

आईएएफ कई तरह के विदेशी विमान का इस्तेमाल करता है, जिसके निर्माता सोर्स कोड साझा करने से मना करते हैं. उसके पास अपना देसी ‘आईएसआर’ और गाइडेंस उपग्रह नहीं है. इसके कारण बहु-क्षेत्रीय ऑपरेशन चलाना मुश्किल होता है लेकिन यह काम आईएएफ के लिए असंभव नहीं है. बहु-क्षेत्रीय ऑपरेशन चलाने की क्षमता न होने से एयर पावर का पूरा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. आदर्श स्थिति यह होगी कि समेकित ‘ट्राइ-सर्विस’ क्षमता हासिल की जाए.

थिएटर कमांड

एयर पावर जबकि भविष्य की लड़ाइयों में प्रमुख भूमिका निभाने वाली है, तब भारत के थिएटर कमांड वाले नजरिए पर पुनर्विचार करने की जरूरत पड़ेगी. हमारी सामर्थ्य हमें हर एक थिएटर कमांड के लिए अपने एयर संसाधन बनाने की गुंजाइश नहीं देती. आईएएफ को ‘स्ट्रेटेजिक एयर कमांड’ के तहत रखना ही समझदारी होगा.

एक समेकित स्टाफ हर एक थिएटर के लिए विस्तृत योजना तैयार करे और ‘स्ट्रेटेजिक एयर कमांड’ से तालमेल बिठाए. लेकिन ‘यूएएस’, हेलिकॉप्टर, शॉर्ट/मीडियम रेंज वाली एयर डिफेंस सिस्टम्स को थिएटर कमांडों के तहत लाया जा सकता है.

सेना का कायाकल्प किए बिना भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता की रक्षा करने में सक्षम महाशक्ति नहीं बन सकता. और इस लक्ष्य के लिए अनिवार्य शर्त है—बदली हुई भारतीय वायुसेना.

लेफ्टिनेंट जनरल एच. एस. पनाग (सेवानिवृत्त), पीवीएसएम, एवीएसएम, ने 40 साल तक भारतीय सेना में सेवा की. वे उत्तरी कमान और केंद्रीय कमान के कमांडर रहे. रिटायरमेंट के बाद, उन्होंने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण में सदस्य के रूप में काम किया. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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