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Wednesday, 16 July, 2025
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एनसीएसटी ने ग्रेट निकोबार परियोजना पर जानकारी देने से किया इनकार

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नयी दिल्ली, नौ जुलाई (भाषा) राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) ने ग्रेट निकोबार द्वीप पर प्रस्तावित मेगा बुनियादी ढांचा परियोजना के आदिम जनजातीय समूहों और बाघ अभयारण्यों से गांवों के स्थानांतरण पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में संसदीय विशेषाधिकार एवं अन्य कानूनी छूट का हवाला देते हुए जानकारी देने से इनकार कर दिया है।

‘पीटीआई’ (प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया) के संवाददाता ने इस वर्ष तीन अप्रैल को एक आरटीआई आवेदन दायर किया था जिसमें एक जनवरी, 2022 से हुईं आयोग की सभी बैठकों के ब्यौरे, ग्रेट निकोबार द्वीप विकास परियोजना एवं शोम्पेन जैसे विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) पर इसके प्रभाव के संबंध में केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय के साथ हुए सभी पत्राचार और बाघ अभयारण्यों के मुख्य क्षेत्रों से गांवों को स्थानांतरित करने के राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के निर्देश के संबंध में पत्राचार मुहैया कराने का अनुरोध किया गया था।

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) ने आरटीआई आवेदन प्राप्त होने के दो महीने से भी अधिक समय बाद नौ जून को उसका निपटारा किया और आवेदक को बैठकों के ब्यौरे की प्रतियों के लिए उसकी वेबसाइट पर जाने को कहा जबकि आयोग ने छह अप्रैल, 2021 से अब तक हुई बैठकों का ब्यौरा अपनी वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया है।

ग्रेट निकोबार परियोजना और एनटीसीए के निर्देश के बारे में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर में एनसीएसटी ने पीटीआई संवाददाता से ‘‘आवश्यक जानकारी के लिए एनसीएसटी में संबंधित फाइल संख्या प्रदान करने’’ को कहा।

प्रथम अपील पर दो जुलाई के अपने जवाब में आयोग ने कहा कि अपीलकर्ता द्वारा मांगी गई जानकारी को संवैधानिक प्रावधानों और आरटीआई अधिनियम की प्रासंगिक धाराओं के तहत खुलासा करने से छूट प्राप्त है।

उप सचिव और प्रथम अपीलीय प्राधिकारी (एफएए) वाई पी यादव ने अपने जवाब में संविधान के अनुच्छेद 338 ए का हवाला दिया, जिसके तहत आयोग राष्ट्रपति को रिपोर्ट प्रस्तुत करता है और अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों से संबंधित शिकायतों की जांच करने के लिए सशक्त है।

आरटीआई के जवाब में कहा गया कि चूंकि एनसीएसटी के लिए राष्ट्रपति को जानकारी देना संवैधानिक रूप से अनिवार्य है और चूंकि ये रिपोर्ट संसद में पेश की जाती हैं इसलिए आरटीआई अधिनियम के तहत ऐसी जानकारी आमजन के सामने प्रकट करने की कोई बाध्यता नहीं है।

आयोग ने आरटीआई अधिनियम की धारा आठ के कई खंडों का भी हवाला दिया, जो सार्वजनिक प्राधिकारियों को विशिष्ट मामलों में जानकारी रोकने की अनुमति देते हैं।

उन मामलों में जानकारी मुहैया कराने से छूट का प्रावधान है जिनसे ‘‘संसदीय विशेषाधिकार’’ का उल्लंघन होता हो, किसी के जीवन या शारीरिक सुरक्षा को ‘‘खतरा’ पहुचता हो, सूचना के स्रोत की ‘‘पहचान’’ होती हो या जांच या अभियोजन में ‘‘बाधा’’ आती हो।

जनजातीय अधिकार विशेषज्ञों ने कहा कि आयोग द्वारा अपनी बैठकों का विवरण साझा करने से इनकार करना पारदर्शिता और सार्वजनिक जवाबदेही की भावना के विपरीत है।

जनजातीय अधिकारों के एक विशेषज्ञ ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘‘एनसीएसटी एक संवैधानिक संस्था है जिसका गठन जनजातीय हितों की रक्षा के लिए किया गया है। अगर यह अपनी कार्यप्रणाली के बारे में बुनियादी जानकारी तक पहुंच से इनकार करना शुरू कर देता है, तो ऐसी संस्था के होने का पूरा उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा।’’

जानकारी देने से इनकार ऐसे समय में किया गया है जब ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना को संरक्षणवादियों, वैज्ञानिकों और जनजातीय अधिकार समर्थकों की तीखी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें डर है कि इससे मूल निवासी समुदाय विस्थापित हो सकते हैं और पारिस्थितिकी के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों को अपरिवर्तनीय क्षति हो सकती है।

इसी प्रकार, बाघ अभयारण्यों से गांवों को स्थानांतरित करने के एनटीसीए के निर्देश ने विवाद को जन्म दे दिया है, जिसमें प्रभावित जनजातीय समुदायों के साथ परामर्श की कमी और वन अधिकार अधिनियम के कथित उल्लंघन को लेकर चिंता व्यक्त की गई है।

एनसीएसटी सदस्य आशा लाकड़ा ने जून में ‘पीटीआई-भाषा’ से एक साक्षात्कार में कहा था कि ग्रेट निकोबार में आदिवासी समुदाय विकास के विरोधी नहीं हैं लेकिन द्वीप पर प्रस्तावित मेगा बुनियादी ढांचा परियोजना के बारे में उनमें पर्याप्त जानकारी का अभाव है।

लाकड़ा ने आदिवासी समुदायों की समस्याओं की समीक्षा के लिए पांच से सात जून तक अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में एनसीएसटी टीम का नेतृत्व किया। उन्होंने कहा कि आयोग ने ग्रेट अंडमानी, जारवा, निकोबारी और शोम्पेन सहित सभी जनजातीय समूहों के प्रतिनिधियों के साथ एक विस्तृत बैठक की।

लिटिल और ग्रेट निकोबार जनजातीय परिषद के अध्यक्ष बरनबास मंजू ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि परिषद को बैठक में आमंत्रित नहीं किया गया था और उन्हें स्थानीय मीडिया के माध्यम से इसके बारे में पता चला।

भाषा

सिम्मी नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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