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शुक्रवार, 4 जुलाई, 2025
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द्रविड़ पार्टियां DMK और AIADMK अपने सहयोगियों को सत्ता में क्यों नहीं देती हिस्सा

तमिलनाडु की दो बड़ी द्रविड़ पार्टियां — DMK और AIADMK — राज्य में कभी भी अपने सहयोगी दलों को सत्ता में भागीदारी नहीं देतीं. अब बीजेपी ने AIADMK से 2026 के चुनावों के लिए गठबंधन किया है.

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चेन्नई: अप्रैल 2025 में भारतीय जनता पार्टी और ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (AIADMK) के बीच फिर से गठबंधन होने के बाद से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कई बार यह दावा कर चुके हैं कि 2026 के विधानसभा चुनावों के बाद तमिलनाडु में एनडीए की सरकार बनेगी और उसमें बीजेपी भी शामिल होगी. मगर हर बार AIADMK ने उनके इस बयान को सख्ती से ठुकरा दिया है.

अमित शाह के 27 जून के ताज़ा बयान के बाद भी AIADMK ने साफ इनकार कर दिया. राज्य के राजनीतिक जानकारों का कहना है कि AIADMK की यह सख्ती इसलिए है ताकि वह अपनी ‘द्रविड़ पहचान’ को बचाए रखे और उन वोटरों को नाराज़ न करे जो तमिलनाडु में सिर्फ एक पार्टी की सरकार पसंद करते हैं, भले ही उस पार्टी को स्पष्ट बहुमत न मिला हो.

तमिलनाडु में जब से द्रविड़ पार्टियों ने चुनावी राजनीति शुरू की है, उन्होंने गठबंधन में चुनाव तो लड़ा है, लेकिन कभी भी अपने सहयोगी दलों को सत्ता में भागीदारी नहीं दी है. यहां तक कि जब खुद को बहुमत नहीं मिला, तब भी सत्ता में भागीदारी नहीं दी.

उदाहरण के तौर पर 2006 के विधानसभा चुनाव में द्रविड़ मुनेत्र कषगम (DMK) को बहुमत नहीं मिला था—उसने 234 सीटों वाली विधानसभा में 96 सीटें ही जीतीं, जबकि बहुमत के लिए 118 सीटें चाहिए थीं. उस वक्त उसके सहयोगी दलों जैसे पट्टाली मक्कल काच्ची (PMK) और कांग्रेस ने सरकार को बाहर से समर्थन दिया था.

AIADMK ने भी कई बार चुनाव में गठबंधन किया है, लेकिन उसे हमेशा खुद ही बहुमत मिल गया, इसलिए उसे सहयोगियों को सत्ता में शामिल करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी.

AIADMK और बीजेपी ने 2021 से पहले कभी भी तमिलनाडु में राज्य चुनाव के लिए गठबंधन नहीं किया था. 2021 में पहली बार दोनों ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन बहुमत नहीं मिल सका.

हालांकि, इन दोनों बड़ी द्रविड़ पार्टियों ने कई बार अपने सहयोगी दलों के सहारे चुनाव में जीतने की कोशिश की है, मगर राज्य के राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि ये पार्टियां छोटे दलों को कभी ज्यादा मजबूत नहीं होने देना चाहतीं.

राजनीतिक विश्लेषक ए. रामासामी ने कहा, “द्रविड़ पार्टियां छोटे दलों के साथ इसलिए गठबंधन करती हैं ताकि उनके वोट मिल सकें, लेकिन सत्ता में उन्हें हिस्सेदारी देने का कोई इरादा नहीं होता.”

उन्होंने कहा, “द्रविड़ पार्टियां नहीं चाहतीं कि उनके सहयोगी दल ज्यादा मजबूत हों. हर चुनाव में हम देखते हैं कि ये पार्टियां अपने सहयोगियों को पहले के मुकाबले कम सीटें देने की कोशिश करती हैं, उनकी पिछले चुनाव की परफॉर्मेंस देखकर.”


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‘गठबंधन से आती है अव्यवस्था’

दिप्रिंट से बात करते हुए राजनीतिक विश्लेषक एन. सत्य मूर्ति ने कहा कि तमिलनाडु के लोग कभी भी गठबंधन सरकार के पक्ष में नहीं रहे क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसी सरकार टिकाऊ नहीं होती.

उन्होंने कहा, “तमिलों के मन में यह गहरी सोच बैठी हुई है कि गठबंधन से हमेशा अव्यवस्था फैलती है, चाहे उन्हें इतिहास पता हो या न हो. यह सोच पुराने नेताओं और वोटरों से चली आ रही है, जिस कारण आज भी गठबंधन सरकार अस्थिर मानी जाती है.”

हालांकि, छोटे दलों को गठबंधन सरकार का विचार पसंद आता है.

विदुथलाई चिरुथाइगल काच्ची (VCK) के महासचिव सिंथनई सेल्वन ने दिप्रिंट से कहा, “आज की राजनीतिक स्थिति में पहल बड़े द्रविड़ दलों को करनी चाहिए, न कि हमारे जैसे छोटे दलों को. तभी हम सत्ता में हिस्सेदारी मांग सकते हैं, जब ये दोनों बड़े दल इतने कमज़ोर हो जाएं कि खुद सरकार न बना पाएं और हमें समर्थन देना पड़े. फिलहाल तमिलनाडु में यह सिर्फ चर्चा का विषय है.”

देसिया मुरपोक्कु द्रविड़ कड़गम (DMDK) की महासचिव प्रेमलता विजयकांत ने सोमवार को चेन्नई में मीडिया से कहा कि वह गठबंधन सरकार के पक्ष में हैं. उन्होंने कहा, “जब चुनाव साथ मिलकर लड़ा जाता है, तो सरकार भी साथ क्यों न बनाई जाए?” हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि इसका फैसला तो बड़ी पार्टियों को ही लेना है.

इस मुद्दे पर जब DMK प्रवक्ता टी. के. एस. इलंगोवन से पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि गठबंधन सरकार पर बात करने की कोई ज़रूरत ही नहीं है.

इलंगोवन ने कहा, “हमारे किसी भी सहयोगी दल ने अभी तक सत्ता में भागीदारी की मांग नहीं की है. 2006 में भी जब हमारे पास बहुमत नहीं था, तब भी हमने उनके समर्थन से सरकार बनाई थी. तमिलनाडु की राजनीतिक पार्टियां जानती हैं कि गठबंधन सरकार कितनी मुश्किल होती है.”

AIADMK प्रवक्ता और पूर्व मंत्री वैगई चेलवन ने कहा कि खुद जनता ही गठबंधन सरकार के पक्ष में नहीं है.

उन्होंने कहा, “आप चुनाव से पहले गठबंधन की घोषणा करें या न करें, सीटों के बंटवारे से जनता को सब समझ आ जाता है कि अंदरखाने क्या चल रहा है. बीते चुनावों ने दिखाया है कि जनता उन गठबंधनों पर भरोसा नहीं करती, जो सरकार में साथ आने की बात करते हैं.”

BJP की पूर्व प्रदेश अध्यक्ष तमिलिसाई सौंदरराजन ने दिप्रिंट से कहा कि 2006 के बाद की राजनीति में गठबंधन सरकार का रास्ता खुला है. उन्होंने कहा, “हम साफ कर चुके हैं कि चुनाव NDA गठबंधन मिलकर लड़ेगा और वही सरकार बनाएगा. मगर कुछ लोग इसे गलत तरीके से पेश कर रहे हैं.”

राजनीतिक विश्लेषक रवींद्रन दुरैसामी ने कहा कि तमिलनाडु की जनता हमेशा ऐसा वोट करती है कि राज्य में एक ही पार्टी की सरकार बने.

उन्होंने कहा, “भले ही कोई तीसरा या चौथा मोर्चा DMK और AIADMK के वोट बांट दे, फिर भी जनता की सामूहिक सोच ऐसी रहती है कि किसी एक पार्टी को ही बहुमत मिल जाए और वही सरकार बनाए.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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