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गुरूवार, 3 जुलाई, 2025
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जातीय हिंसा के दो साल बाद मणिपुर का दौरा करने की संभावना तलाश रहे हैं PM मोदी

यह बात सामने आई है कि इस विषय को पहली बार आधिकारिक रूप से जून में केंद्रीय गृह सचिव गोविंद मोहन की मणिपुर यात्रा के दौरान उठाया गया था. हालांकि, अभी तक इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है.

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नई दिल्ली: मणिपुर में जातीय हिंसा शुरू होने के दो साल से थोड़े अधिक समय बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्य का दौरा करने की संभावना पर विचार कर रहे हैं. सरकार, राजनीति और सुरक्षा से जुड़े कई सूत्रों ने दिप्रिंट को यह जानकारी दी.

इन सूत्रों के मुताबिक, इस विषय को पहली बार आधिकारिक रूप से जून के पहले सप्ताह में केंद्रीय गृह सचिव गोविंद मोहन की मणिपुर यात्रा के दौरान उठाया गया था. मोहन की यात्रा का घोषित उद्देश्य ज़मीन पर हालात की समीक्षा करना और आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों के लिए राहत और पुनर्वास प्रयासों का आकलन करना था. लेकिन इस दौरान उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक में पीएम के मणिपुर दौरे की संभावना का मुद्दा भी उठाया.

राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के अलावा इस बैठक में सुरक्षा से जुड़े प्रमुख अधिकारी भी शामिल थे, जिनमें मुख्य सचिव, राज्य पुलिस, असम राइफल्स, बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (BSF), इंटेलिजेंस ब्यूरो, नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) और अन्य एजेंसियों के वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे.

बैठक में मौजूद दो सूत्रों के अनुसार, मोहन ने कहा कि वह “आगामी महीनों में पीएम के मणिपुर दौरे की संभावना का भी आकलन करेंगे.” उन्होंने बताया कि भले ही पीएम की यात्रा को लेकर कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन अधिकारी ज़मीन पर तैयारियों में जुट गए हैं.

दिप्रिंट ने गोविंद मोहन से ईमेल के ज़रिए और मणिपुर के मुख्य सचिव पी.के. सिंह से कॉल और ईमेल के ज़रिए संपर्क करने की कोशिश की. जवाब मिलने पर रिपोर्ट अपडेट की जाएगी.

राज्य भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने, नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि भले ही कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन ज़मीन पर कई गतिविधियां चल रही हैं.

भाजपा नेता ने कहा, “इम्फाल में कुछ सड़कों का उन्नयन हो रहा है. फिर कांगला किला और मणिपुर विश्वविद्यालय में कुछ हेलीपैड साइट तैयार किए जाने की बातें चल रही हैं. इन गतिविधियों से अटकलें और तेज हो गई हैं.”

सुरक्षा तंत्र से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि तैयारियों के तहत उन परियोजनाओं की सूची भी बनाई जा रही है जो लगभग पूरी हो चुकी हैं और जिन्हें पीएम उद्घाटित कर सकते हैं. साथ ही, खासकर पीएम के संभावित रास्ते वाली कुछ सड़कों की मरम्मत की जा रही है.

सूत्र ने बताया कि यदि प्रधानमंत्री आते हैं तो वे हाल ही में पूरी हुई नई सिविल सचिवालय इमारत का उद्घाटन भी कर सकते हैं.

सुरक्षा तंत्र के एक दूसरे सूत्र ने कहा कि पीएम के दौरे की योजना पहले से चल रही है और केंद्र की ओर से यह संदेश आया है कि पूरी तैयारियां की जाएं, क्योंकि दौरे की सूचना अंतिम क्षणों में आ सकती है.

सूत्र ने यह भी बताया कि शुरुआत में योजना थी कि संसद के मानसून सत्र (जो 21 जुलाई से शुरू हो रहा है) से पहले यात्रा हो, लेकिन अब ऐसा लग नहीं रहा है. इसके अलावा, पीएम के दौरे से पहले राज्य की दो विरोधी जातियों के बीच कुछ सहमति बनाने की भी कोशिशें चल रही हैं, जिसके लिए सभी पक्षों से कई बैठकें हो रही हैं.

अगर पीएम मोदी दौरा करते हैं, तो यह मणिपुर में 3 मई 2023 को हुई हिंसा के बाद पहली बार होगा. यह हिंसा पहाड़ी इलाकों में मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के विरोध में हुई जनजातीय एकजुटता रैली के बाद भड़की थी.

हिंसा शुरू होने के बाद से पीएम मोदी का राज्य का दौरा न करना विपक्ष की ओर से संसद के भीतर और बाहर आलोचना का विषय बना रहा है.

इस जातीय संघर्ष में अब तक 200 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और 60,000 से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं. राज्य की दो प्रमुख जातियों—मुख्य रूप से हिंदू मैतेई और आदिवासी कुकी-जो चिन समुदाय—पूरी तरह अलग-थलग हो गए हैं. कुकी समुदाय ने इम्फाल घाटी छोड़ दी है जहां मैतेई रहते हैं, और मैतेई लोगों ने पहाड़ी इलाके छोड़ दिए हैं जहां कुकी समुदाय बसा है.

हिंसा नियंत्रण में, लेकिन तनाव बरकरार

हालांकि मणिपुर में हिंसा अब काफी हद तक नियंत्रित हो चुकी है, लेकिन राज्य में तनाव अभी भी बना हुआ है.

राज्य की दो मुख्य राष्ट्रीय राजमार्गों पर यात्री यातायात अब भी बाधित है. हालांकि, इन हाईवे को खोलने की कोशिशें हुईं, लेकिन वे सफल नहीं रहीं, जिसके चलते मैतेई समुदाय के लोगों के पास राज्य से बाहर जाने के लिए केवल हवाई यात्रा का ही विकल्प बचा है. इसी तरह, कुकी-जो-चिन समुदाय के लोग घाटी में नहीं आ सकते.

कानून-व्यवस्था की लगातार बिगड़ती स्थिति को देखते हुए केंद्र सरकार ने इस साल फरवरी में मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया. हालांकि विधानसभा को भंग नहीं किया गया, बल्कि छह महीने के लिए स्थगित रखा गया. राष्ट्रपति शासन 12 अगस्त तक लागू रहेगा. यदि तब तक सरकार नहीं बनी, तो केंद्र हर छह महीने में संसद की मंजूरी से इसे अधिकतम तीन साल तक बढ़ा सकता है.

लेकिन अब जब हिंसा में कमी आई है, तो भाजपा विधायकों की ओर से चुनी हुई सरकार बहाल करने की मांग पिछले कुछ महीनों में तेज हो गई है. पिछले शनिवार को भाजपा विधायक, जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह भी शामिल थे, मणिपुर भाजपा अध्यक्ष ए. शारदा देवी से मिले और दोबारा अपनी मांग दोहराई कि राज्य में जन प्रतिनिधि सरकार बहाल की जाए.

हालांकि, केंद्रीय भाजपा नेतृत्व ने अब तक इस पर कोई फैसला नहीं लिया है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में दि टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि जब हालात अनुकूल होंगे, तब जन सरकार स्थापित की जाएगी.

60 सदस्यों वाली विधानसभा में फिलहाल 59 विधायक हैं, क्योंकि नेशनल पीपल्स पार्टी के विधायक एन. कायसी का निधन हो चुका है. भाजपा को अभी भी विधानसभा में बहुमत प्राप्त है.

केंद्र सरकार अपनी ओर से घाटी और पहाड़ियों में नागरिक समाज संगठनों के साथ बैठकें कर रही है ताकि सामान्य स्थिति बहाल की जा सके. पिछले महीने, गृह मंत्रालय ने कुकी-जो उग्रवादी संगठनों से भी बातचीत की थी, जिनके साथ उसने ऑपरेशन निलंबन (SoO) समझौता किया था.

गृह मंत्रालय इस समझौते को आगे बढ़ाने की तैयारी में है, जो फरवरी 2024 में समाप्त हो गया था. मंत्रालय यह भी चाहता है कि 14 नामित SoO कैंपों में से सात, जो मैतेई बहुल क्षेत्रों के पास स्थित हैं, बंद कर दिए जाएं. सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े सूत्रों के अनुसार, इस पर फैसला इसी महीने होने वाली अगली बैठक में लिया जा सकता है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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