नोएडा: शहर की एक लाइब्रेरी में, लाइब्रेरियन की कीबोर्ड पर धीमी-धीमी टाइपिंग और किताबों में झुके छात्रों की शांति को अचानक बाहर का शोर तोड़ देता है — एक नौजवान हिंदी में फोन पर गालियां दे रहा था. उसकी झल्लाहट बढ़ती जा रही है, चेहरा और गुस्से से तमतमा रहा है, जबकि वह एक शांत सड़क के बीचोंबीच खड़ा है.
नोएडा के कई चेहरे हैं — और हर चेहरा उस विरोधाभास से बना है, जो शहरी भारत की पहचान है.
इस सैटेलाइट टाउन की एक ही सड़क पर आप पूरी तरह अलग-अलग दुनिया देख सकते हैं. एक ओर कांच से ढकी ऊंची इमारतें हैं, जिनमें आईटी प्रोफेशनल्स और अमीर लोग काम करने आते हैं और दूसरी ओर बदबूदार खुली नालियां हैं, जो नोएडा की कुख्यात पहचान बन चुकी हैं. कहीं बिना पहचान वाले छोटे घर हैं, तो कहीं सपनों जैसे भव्य अपार्टमेंट, जो “लग्ज़री” का प्रतीक बन चुके हैं. एक समय में यह इलाका सिर्फ एक औद्योगिक क्षेत्र या दिल्ली का छोटा सैटेलाइट टाउन था, लेकिन अब यह खुद एक बड़ा शहर बन चुका है. आज इंटरनेट पर भी नोएडा को लेकर कई सबकल्चर बन चुके हैं — जिसमें अपराध की खबरें, व्यंग्यात्मक मीम्स और भव्य मॉल्स की तस्वीरें शामिल हैं, लेकिन 50 साल बाद भी नोएडा अब तक अपने सार्वजनिक स्थानों और एक ऐसी संस्कृति का इंतज़ार कर रहा है जो दिल्ली या गुरुग्राम से उधार न ली गई हो.
उस वक्त जब दिल्ली में किराया बहुत बढ़ने लगा था, 1992 से नोएडा के एक बंगले में रहने वाले रंगकर्मी एम.के. रैना ने कहा, “हमारे पास घर हैं, लेकिन ‘होम’ नहीं हैं और ना ही कोई ऐसा शहर है जिससे हम जुड़ाव महसूस करें. एक शहर को उसकी पहचान, उसकी सोच देने के लिए लोगों को मिलकर काम करना चाहिए था. हमारे पास RWAs हैं, लेकिन उससे आगे कुछ नहीं है.”
हालांकि, स्थिति पूरी तरह निराशाजनक भी नहीं है. रैना ने कहा कि बुनियादी ज़रूरतें — जैसे बिजली और पानी — अक्सर ठीक रहती हैं. दिल्ली वालों के लिए ये दोनों चीज़ें किसी वरदान से कम नहीं हैं.
आज के गेटेड कम्युनिटीज़ और ताकतवर RWAs से पहले, कुछ नेक इरादे वाले लोग थे जिन्होंने सच में एक शहर बनाने की कोशिश की थी.
उन्हीं में से एक हैं महेश सक्सेना, जिन्होंने 1997 में नोएडा लोक मंच की स्थापना की. वे 1980 के दशक में नोएडा आए थे. आज भी, नोएडा की जिस सार्वजनिक लाइब्रेरी में वे बैठते हैं, वहीं लोक मंच का दफ्तर भी चलता है | फोटो: अंतरा बरुआ/दिप्रिंट
1997 में नोएडा लोक मंच की स्थापना करने वाले महेश सक्सेना उनमें से एक हैं जिन्होंने इस शहर को बेहतर बनाने की कोशिश की. एक तरह से वे पुराने ज़माने के अच्छे इंसान जैसे हैं, जो शायद आज के दौर में कम ही मिलते हैं. वे 1980 के दशक में नोएडा आए थे और आते ही उन्होंने नोएडा की अफसरशाही में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ स्थानीय लोगों को जोड़कर धरने प्रदर्शन शुरू किए.
जब ये बड़े आंदोलन सफल नहीं हुए, तो उन्होंने छोटे लेकिन ज़रूरी कामों की ओर रुख किया — जैसे कि पब्लिक लाइब्रेरी, श्मशान घाट और सरकारी अस्पताल की व्यवस्था सुधारना.
कारगिल शहीद कर्नल विजयंता थापर के अंतिम संस्कार के बाद, सक्सेना ने नोएडा श्मशान घाट की ज़िम्मेदारी संभाल ली. इसके अलावा, उन्होंने सरकारी अस्पताल के बाहर एक स्थायी “मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं?” डेस्क भी लगवाया.
सालों में बहुत कुछ बदल गया है.
आज गौतम बुद्ध नगर में कई अलग-अलग तरह के ‘नोएडा’ उभर चुके हैं — और कुछ लोग इस शहर के लिए कुछ करने की सोच भी नहीं रखते. अब यहां हाईराइज़ इमारतों, गेटेड कॉलोनियों और गांवों की झलक — तीनों का मिला-जुला रूप है.
77 साल के सक्सेना ने कहा, “फ्लैटों में रहने वाले लोग टाउनशिप के बारे में बिलकुल भी नहीं सोचते. अगर आज नोएडा में 25 लाख लोग रहते हैं, तो उनमें से बहुत ही कम लोग समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं. हम समय-समय पर सर्वे करते हैं, लोगों से उनकी समस्याएं पूछते हैं, लेकिन 50 साल बाद भी वे हल नहीं हो पाई हैं.”
उनके अनुसार, सबसे बड़ी समस्याएं हैं — नालियों का बिना ट्रीटमेंट का गंदा पानी, सेप्टिक टैंकों की कमी, जल प्रदूषण और झुग्गियों का लगातार फैलाव. उन्होंने सवाल किया, “क्या इमारतें ही विकास का इकलौता पैमाना हैं?”
उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले सक्सेना का कहना है कि उन्होंने नोएडा के कुछ बेहतर दिन भी देखे हैं. वे दावा करते हैं कि उन्होंने नीरा यादव को पद से हटवाने में अहम भूमिका निभाई थी — वही आईएएस अधिकारी जिन्हें नोएडा जमीन घोटाले में दो साल की सज़ा हुई थी. यह घोटाला 1993 से 1995 के बीच हुआ था और उस वक्त नीरा यादव नोएडा अथॉरिटी की सीईओ थीं.

महेश सक्सेना ने उदासी से कहा, “वो वक्त अलग था. तब मीडिया भी ईमानदार हुआ करता था.” उन्होंने कहा, “एक बार नीरा यादव ने मुझसे पूछा था — मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?”
तब लोगों को जुटाना आसान था. उन्हें शहर से जुड़ी स्थानीय समस्याओं की फिक्र थी और वे आगे भी आते थे.
आज भी सक्सेना खुद को व्यस्त रखते हैं. सेक्टर 14 में स्थित उनकी सार्वजनिक लाइब्रेरी, जो शहर के पुराने सेक्टरों में से एक है, हर दिन करीब 15 “गृहणियां और वरिष्ठ नागरिकों” को आकर्षित करती है. वे किताबें पढ़ने और लौटाने आते हैं — जिनमें इतिहास, साहित्य और कभी-कभी सेल्फ-हेल्प जैसी किताबें शामिल होती हैं. ये सभी लोग पास-पड़ोस के इलाके से आते हैं.
लाइब्रेरी की प्रभारी विभा कौल के मुताबिक, “शहर में ऐसा कोई और ठिकाना नहीं है.”
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एक अजीब-सी मिलावट
शहर और इसके लोग कॉमेडियन्स और सोशल मीडिया क्रिएटर्स को कंटेंट की भरमार देते हैं. शहर में एक साधारण-सी ड्राइव ने लेखक, फिल्ममेकर और पॉडकास्टर अनुराग माइनस वर्मा को बहुत कुछ सोचने का मौका दे दिया — शराबियों से लेकर एक इतालवी मॉल तक.
उन्होंने कहा, “नोएडा में लोग ऐसे रहते हैं जैसे उन्हें कोई छिपा कैमरा, भगवान, या उनके अदृश्य दुश्मन देख रहे हों. सब कुछ एक परफॉर्मेंस की तरह है. यहां तक कि अपनी थार से उतरना भी उनके दिमाग में बिग बॉस के लिए ऑडिशन जैसा लगता है.”
उन्होंने यह भी कहा कि बिग बॉस में जाना कई स्थानीय नोएडा क्रिएटर्स की प्राथमिक महत्वाकांक्षा है. इस नवगठित महानगर में शहरी और ग्रामीण के बीच की सीमाएं धुंधली हो गई हैं.
अनुराग माइनस वर्मा ने कहा, “आप एक अजीब-सी मिलावट देखते हैं: खेतों की ज़मीन को रियल एस्टेट ब्रॉशर में बदला जा रहा है, स्थानीय युवा ज़मींदार और जिम मालिक बन रहे हैं, किसान के बेटे अब इंस्टाग्राम पर प्रोटीन पाउडर बेच रहे हैं.”
वर्मा ने आगे कहा, “जिन लोगों ने ज़मीन बेची, उनके बच्चे अब उन्हीं के कल्चर की नकल करने की कोशिश कर रहे हैं जो उन कांच की इमारतों के अंदर बैठते हैं जो उन्हीं की ज़मीन पर बनी हैं.”
लेकिन वर्मा के मुताबिक उनका एकमात्र असली मंच हैं सड़कें — जहां वे अपने वाहनों का प्रदर्शन करते हैं, जो उनके व्यक्तित्व का विस्तार हैं. सोशल मीडिया पर ऐसे कई रील्स हैं जहां युवा अपनी थार चमकाने के लिए समर्पित हैं और साथ ही ड्राइवरों के खिलाफ शिकायतों की लंबी लिस्ट भी है.
उन्होंने कहा, “सड़क वह जगह है जहां हर कोई तय कर रहा है कि प्रतिष्ठा का मतलब क्या है और इसलिए हर वाहन पर गर्व से जाति का नाम लिखा होता है — और अब तो इंस्टाग्राम व यूट्यूब आईडी भी. जाति और फॉलोवर काउंट इनके लिए सांस्कृतिक पहचान का आधार है.”
कॉमेडियन शुभम गौर अपने एक वीडियो में नोएडा के स्टीरियोटाइप को पलट देते हैं. एक बार फिर, उन्हें नोएडा की सांस्कृतिक मान्यताओं को पलटने के लिए बहुत कुछ नहीं करना पड़ता — वे बस एक ऐसे व्यक्ति की पहचान अपनाते हैं जो विनम्र है. वह पार्किंग को लेकर झगड़ा नहीं करते, सिक्योरिटी गार्ड से शालीनता से बात करते हैं और पालतू कुत्ते को लेकर गुस्सा नहीं करते.
यह नम्रता नोएडा की नागरिकता के विपरीत मानी जाती है — जहां लोग रोज़मर्रा की छोटी-छोटी शहरी परेशानियों से चिढ़े हुए दिखते हैं.
अपराध की परछाईं में
नोएडा को किसी शांत पुस्तकालय आंदोलन के लिए नहीं जाना जाता. बल्कि, कुछ युवाओं के लिए यह शहर उन सनसनीखेज अपराधों से बना है, जो एक समय पर नोएडा की पहचान बन चुके थे.
2000 के दशक में यहां निठारी हत्याकांड हुआ — एक अमानवीय हत्या श्रृंखला जिसमें व्यापारी मोनिंदर सिंह पंधेर और उसके घरेलू सहायक शामिल थे और साथ ही आरुषि तलवार और हेमराज बंजाडे की डबल मर्डर केस भी हुए.
ट्रू क्राइम पॉडकास्टर्स आर्यन मिश्रा और ऐश्वर्या सिंह उस समय स्कूल में थे.
ऐश्वर्या ने कहा, “दोनों केस आज भी बहुत साफ याद हैं, लेकिन ऐसा नहीं था कि हमारा कोई सीधा संबंध था.” यह जोड़ी ‘द देसी क्राइम पॉडकास्ट’ होस्ट करती है, जिसे भारत का सबसे बड़ा ट्रू क्राइम पॉडकास्ट माना जाता है. “लेकिन कुछ जुड़ाव ज़रूर थे. ये हमारे शुरूआती एपिसोड्स में शामिल केस थे.”
ऐश्वर्या को याद है कि उन्होंने तलवार के स्कूल में एक बास्केटबॉल मैच खेला था, जबकि मिश्रा को याद है कि उन्होंने उसी स्कूल में एक साइंस कॉम्पिटिशन में हिस्सा लिया था. अब मिश्रा भले ही मुंबई में रहते हों, लेकिन उनकी मौसी पंधेर के घर के पास रहती थीं.
मिश्रा ने हंसते हुए कहा, “हर बार जब हम वहां से गुज़रते थे, मेरी मां हमें फिर से वही मर्डर की कहानी सुनाती थीं — जैसे पहली बार बता रही हों.”
मिश्रा और सिंह ने नोएडा के शिव नाडार स्कूल में पढ़ाई की और उनके अनुभव “लगातार टकराव” वाले रहे.
मिश्रा ने कहा, “गांव शहर के ताने-बाने में बुने हुए हैं. मेरी मां वकील हैं और नोएडा ज़िला अदालत में केस लड़ती हैं. आप सोचते हैं कि जिन मामलों (जैसे दहेज केस) को वे देखती हैं, वे तो गांवों के होने चाहिए.”
‘देसी क्राइम पॉडकास्ट’ का एक समर्पित श्रोता वर्ग है, जो मिश्रा और सिंह की कहानी कहने और एक माहौल रचने की शैली से जुड़ाव महसूस करता है, लेकिन जब केस नोएडा से जुड़े होते हैं, तो वे उनमें “निजी रंग” भर पाते हैं और क्योंकि ये कहानियां पहले से ही लोगों के ज़ेहन में गहराई से दर्ज हैं, नए श्रोता भी इन एपिसोड्स से जुड़ जाते हैं.
एक एपिसोड में, वे 2023 में शिव नाडार यूनिवर्सिटी की एक छात्रा की हत्या का ज़िक्र करते हैं, जिसे उनके जुनूनी सहपाठी अनुज सिंह ने मार डाला था. उस एपिसोड में दोनों यह चर्चा करते हैं कि वे इस जगह और घटना से कितनी गहराई से परिचित हैं.
मिश्रा ने एपिसोड में गंभीरता से कहा, “हमारा विश्वविद्यालय से गहरा नाता रहा है. यह सब कुछ हमारे बहुत करीब है – इसने हमारी किशोरावस्था को आकार दिया.”
उन्होंने शुरुआती एपिसोड्स में आरुषि तलवार हत्याकांड और निठारी हत्याओं को फिर से उठाया. हालांकि, इन मामलों को कई साल बीत चुके थे और इनसे जुड़ी तमाम परतें अब सार्वजनिक डोमेन में मौजूद थीं, फिर भी एपिसोड्स को अच्छी प्रतिक्रिया मिली. खासतौर पर आरुषि वाला एपिसोड, सिंह के अनुसार, “बेहद ज़बरदस्त प्रतिक्रिया” लेकर आया.
2023 में नोएडा में 50 हत्याएं, महिलाओं के खिलाफ 453 अपराध और 1,098 वाहन चोरी के मामले दर्ज हुए. ये तीनों श्रेणियां 2022 और 2021 की तुलना में कम रहीं.
मिश्रा ने समझाया, “मुझे नहीं लगता कि नोएडा पर आधारित एपिसोड्स श्रोताओं को बाकियों से ज़्यादा आकर्षित करते हैं, लेकिन एसएनयू मर्डर केस और निठारी केस में हम ऐसे लोगों से बातचीत कर पाए जो केस से जुड़े थे – दोस्त, गवाह.”
दोनों ट्रू क्राइम प्रेमियों के लिए उत्तर प्रदेश से जुड़ी छवियां — जैसे बीहड़, मिर्ज़ापुर और ‘क्राइम बेल्ट’ — उनके शहर को देखने के नज़रिये में घुलमिल गई हैं.
लेकिन, “यह महज़ धारणा नहीं रह जाती जब आप अपराध होते हुए देख रहे होते हैं. एसएनयू मर्डर में देसी कट्टा इस्तेमाल हुआ था. जब इस तरह की घटनाएं होती हैं, तो वे नोएडा को ‘मॉब लैंड’ की छवि और मजबूत करती हैं.”
2023 में नोएडा में 50 हत्याएं, महिलाओं के खिलाफ 453 अपराध और 1,098 वाहन चोरी के केस दर्ज हुए. ये आंकड़े 2022 और 2021 से कम हैं.
कॉमेडियन शुभम गौर शहर के दृश्य और अपराध के बीच के रिश्ते को बिलकुल साफ शब्दों में बयां करते हैं.
अपने एक रील में, वे एक ऐसे नोएडा निवासी का किरदार निभाते हैं जिसकी केवल एक ही चीज़ में दिलचस्पी है. बाकी सब कुछ — उसके कपड़े, जूते, घड़ी — सब सस्ता है. वह केवल एक चीज़ पर खर्च करता है — अपनी बंदूक पर.
यहां तक कि नेटफ्लिक्स की सीरीज़ ‘मिर्ज़ापुर’ के लेखक के लिए भी, जिसने अपराध से भरे यूपी को सुर्खियों में ला दिया था, नोएडा अब कहानियों के लिए उपजाऊ ज़मीन बन गया है.
CA त्रिभुवन मिश्रा, जिसे ‘मिर्ज़ापुर’ के पुनीत कृष्णा ने लिखा है, में नोएडा को केंद्र में रखा गया — और शहर को नेटफ्लिक्स की पृष्ठभूमि दे दी गई.
कृष्णा ने कहा, “एक खास तरह की धारणा बनी हुई है. गाज़ियाबाद, नोएडा, मेरठ — इनका जुड़ाव सनसनीखेज चीज़ों से होता है और जब आप किसी खास तरह के शहर के बारे में लिख रहे होते हैं, तो धारणा एक भूमिका निभाती है.”
हालांकि, जब बात CA त्रिभुवन मिश्रा की आई — जो अपने मुख्य किरदार की सेक्स वर्कर के रूप में की गई साइड जॉब की कहानी है — तो कृष्णा ने नोएडा को इसलिए चुना क्योंकि वहां विरोधाभास हैं — एक छोटे शहर की आत्मा, जो एक बड़े शहर की झलक के नीचे छिपी हुई है.
उन्होंने कहा, “मेरे दिमाग में 2-3 खास बातें थीं. मैं कोई बहुत बड़ा शहर नहीं चाहता था — जहां गैंग्स खुलकर घूम सकें. मैं एक ऐसा स्थान चाहता था जो एक मेल्टिंग पॉट हो, देखने में अच्छा लगे और अच्छी तरह डेवलप्ड हो.”
उन्होंने नोएडा की पहचान के साथ एक प्रयोग भी करना चाहा — ताकि एक “यौन स्वतंत्रता” की कहानी उस शहर में सामने आए, जो खुले विचारों के लिए मशहूर नहीं है.
एक और नेटफ्लिक्स सीरीज़, ‘सेक्टर 36’, “ढीले तौर पर” निठारी हत्याकांड पर आधारित है और उसमें अब चमकते हुए नोएडा शहर के कुछ पहलू भी नज़र आते हैं.
असल घटनाओं के विपरीत, शो में एक प्रतिष्ठित स्कूल का लड़का अगवा कर लिया जाता है. एक शॉक्ड महिला, जो चमकदार ट्रैकसूट में है, हक्का-बक्का होकर यह सब देखती हैं.
शो में जांच अधिकारी कहता है, “हम तीन अफसर हैं और 1.5 लाख की आबादी! क्या हमें छुट्टी का हक नहीं है?”
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इन्फ्रास्ट्रक्चर का जलवा
नोएडा के इन्फ्रास्ट्रक्चर बूम को सबसे ज़्यादा उसके मॉल्स की कतार के लिए जाना जाता है. भले ही ये मॉल दिल्ली और गुरुग्राम के आलीशान शॉपिंग सेंटर्स के कई साल बाद और मॉल क्रेज के थमने के बाद आए हों — आज ये नोएडा की लोकप्रिय कल्पना में मज़बूती से अपनी जगह बना चुके हैं और शहर की पहचान का अहम हिस्सा बन गए हैं.
DLF का मॉल ऑफ इंडिया खुद को नोएडा का “सबसे बड़ा मॉल” कहता है. शुक्रवार की एक दोपहर को यह मॉल लगातार लोगों की आवाजाही से गुलज़ार रहता है, लेकिन ये लोग एक जैसे नहीं होते. यहां हर तरह के लोग आते हैं.
कुछ युवा लड़के Miniso और Harry Potter के पॉप-अप स्टॉल के बाहर जमा हैं, फोटो खींच रहे हैं और Harry Potter के लोगो के साथ परफेक्ट सेल्फी एंगल ढूंढ रहे हैं.
कुछ लोग अपने किसी ज़रूरी काम से आए हैं, तो कई ऐसे हैं जो बस मॉल के माहौल का आनंद ले रहे हैं — चमचमाती रोशनी, AC की ठंडक और चमकते हुए स्टोर.
निखिल यादव, जो मॉल में कंसीयर्ज के तौर पर काम कर रहे हैं, नीले सूट में रैडी हैं. वह दिल्ली यूनिवर्सिटी से बी.कॉम कर रहे हैं और एक साइड गिग की तलाश में थे. अपना खुद का बिज़नेस शुरू करने का सपना रखने वाले निखिल को मॉल में आने वाले हाई-प्रोफाइल लोगों से मिलना पसंद है और उन्हें लगता है कि ये कनेक्शन भविष्य में उनके लिए अच्छा मौका बन सकते हैं.
उन्होंने इशारा करते हुए उन टेक कंपनियों और कॉमर्शियल संस्थानों की ओर जो अब नोएडा को अपना घर बना चुके हैं, कहा, “यहां काम बुरा नहीं है. अलग-अलग स्टोर्स में जाने का मौका मिलता है, उनकी सेल्स के बारे में पता चलता है. असल बात ये है कि नोएडा में अगर आपके पास कोई बिज़नेस आइडिया है — तो आप उसे लागू कर सकते हैं, बशर्ते आप सही लोगों को जानते हों, लेकिन पहले आइडिया होना चाहिए.”

उन्होंने मॉल में मौजूद सुविधाओं के बारे में बताया. मॉल का तापमान 22 डिग्री पर रखा जाता है. यहां की 4-व्हीलर पार्किंग में 1,696 गाड़ियां खड़ी हो सकती हैं. मॉल में 81 एस्केलेटर (चलती सीढ़ियां) हैं. पूरा मॉल 20 लाख वर्ग फीट में फैला है, जिसमें 304 स्थायी स्टोर और 75 छोटे कियोस्क हैं. H&M और Uniqlo जैसे बड़े ब्रैंड पहले यहां खुले थे, गुड़गांव से भी पहले.
यह मॉल सिर्फ नोएडा वालों के लिए नहीं है. पूर्वी दिल्ली में रहने वाले लोग भी यहां मॉल आने लगते हैं क्योंकि यह उनके लिए पास है. पहले उनका फेवरेट स्पॉट कनॉट प्लेस हुआ करता था, लेकिन अब वो दोनों जगहों पर आते-जाते रहते हैं.
नोएडा के लोग अपने शहर की सुविधाओं को लेकर उत्साहित हैं और उन्हें इस पर गर्व भी है.
27 साल की वकील गौरी खन्ना ने कहा, “मेरी फेवरेट जगहों में से एक Colocal है. वहां का माहौल बहुत शांत और खुला होता है.”
Colocal का पहला आउटलेट छतरपुर के धान मिल में है. इसका एक और कैफे खान मार्केट में भी है – जो कि एक ट्रेंडी और महंगा इलाका माना जाता है.
खन्ना ने कहा, “दिल्ली के कई लोगों में नोएडा को लेकर हमेशा से एक तरह की बढ़त महसूस करने की भावना रही है, लेकिन अब हकीकत को स्वीकार करना ज़रूरी है.”
उन्होंने सीधे रियल एस्टेट की कीमतों की ओर इशारा किया. “दिल्ली के अच्छे और पुराने इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए भी नोएडा में अच्छा 3 बीएचके घर खरीदना मुश्किल हो सकता है.”
डिस्कवर पैटर्न्स में काम करने वाले एक आर्किटेक्ट, जो एनसीआर में कई प्रोजेक्ट्स पर काम कर चुके हैं, ने इस फर्क को और साफ किया.
उन्होंने कहा, “नोएडा को कारोबारी लोग गुरुग्राम पर तीन वजहों से चुनते हैं – यहां कीमतें कम हैं, सेक्टर गेटेड हैं और स्टिल्ड पार्किंग में पैसा नहीं लगाना पड़ता.”
गुरुग्राम में घर बनवाने वाले लोगों को एक फ्लोर सिर्फ स्टिल्ड पार्किंग (ऊंची जमीन पर बनी पार्किंग) के लिए देना पड़ता है, जबकि नोएडा में वे जितना चाहें, उतना निर्माण कर सकते हैं.
बुद्धिजीवी माहौल की कमी
1990 के दशक में थिएटर डायरेक्टर एमके रैना ने नोएडा में संस्कृति की थोड़ी रूह फूंकने की कोशिश की. नोएडा अथॉरिटी के उस समय के चेयरमैन की एक कॉल के बाद, उन्होंने एक “आर्ट्स काउंसिल” बनाने का सुझाव दिया — ऐसा मंच जहां लेखक और चित्रकार मिलकर बातचीत कर सकें, लेकिन यह योजना कभी शुरू ही नहीं हो पाई.
रैना थिएटर वर्कशॉप्स करना चाहते थे, लेकिन नोएडा के ऑडिटोरियम्स एक दिन के लिए 25,000 से 30,000 रुपये तक चार्ज करते थे. रैना और कुछ प्रतिष्ठित स्थानीय लोगों ने ‘नोएडा इंटरनेशनल सेंटर’ की भी कल्पना की थी — कुछ वैसा जैसा दिल्ली का इंडिया इंटरनेशनल सेंटर है. इसे 2015 तक खुलना था, लेकिन जैसे ही योजना आगे बढ़ी, नोएडा अथॉरिटी ने यह मांग कर दी कि इसका नेतृत्व वे ही करेंगेय
रैना ने कहा, “मान लीजिए मैं सलमान रुश्दी को बुलाना चाहता हूं, तो क्या वह किसी ब्यूरोक्रेट के बुलावे पर आएंगे? इसके लिए शहर के जाने-माने नामों की ज़रूरत थी.”
इस विचार को ज़िंदा रखने के लिए रैना अब अपने घर के आंगन में वर्कशॉप्स करते हैं — एक तरह की कैजुअल मुलाकातें, जिसमें ज़्यादातर युवा होते हैं और रैना उनके साथ बैठकर चाय बनाते हैं.
उनकी सबसे बड़ी शिकायत यही है कि नोएडा में युवाओं के लिए ऐसे सार्वजनिक स्थान नहीं हैं जहां वे आराम से बातें कर सकें, संवाद कर सकें.

हालांकि, नोएडा में दलित प्रेरणा स्थल ज़रूर है, जिसे यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने बनवाया था. इसे उन्होंने वास्तविक समय में स्मारक खड़ा करने की एक कोशिश के तौर पर प्रस्तुत किया. मॉल ऑफ इंडिया से महज़ एक किलोमीटर की दूरी पर बने इस स्थल में हाथियों की मूर्तियां हैं, जिनके चारों ओर करीने से लगे हुए पाम के पेड़ हैं, विशाल समाधि जैसे ढांचे हैं और प्रवेश शुल्क 25 रुपये है.
अधिकतर समय यहां पुरुषों के समूह दिखाई देते हैं, जो स्मारक की छाया में आराम करते हैं. एक युवा महिला, जो साफ तौर पर इस मौके के लिए तैयार होकर आई हैं, अपने बच्चे और पति के साथ पार्क में घूमती हैं. वे अभी हाल ही में नोएडा शिफ्ट हुई हैं और यह उनके परिवार की इस पार्क में पहली विज़िट है.
वह मुस्कराते हुए कहती हैं, “मेरे पति प्राइवेट जॉब करते हैं. हमें नोएडा बहुत पसंद है — बिल्कुल सही जगह है.”
(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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