नयी दिल्ली, 30 जून (भाषा) निर्वाचन आयोग के अधिकारियों ने बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) कराने के कदम का बचाव करते हुए सोमवार को कहा कि कई ‘‘अपात्र व्यक्ति’’ मतदाता पहचान पत्र हासिल करने में सफल रहे हैं, क्योंकि यह प्रक्रिया 2004 से समय-समय पर नहीं की गयी थी।
उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘कई लोग’’ जानबूझकर या अनजाने में विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों के कई मतदाता पहचान पत्र अपने पास रखने में कामयाब हो गए और सॉफ्टवेयर के माध्यम से ऐसे मामलों का पता लगाना असंभव है।
अधिकारियों ने ‘अपात्र व्यक्तियों’ का उल्लेख करते हुए कहा कि पात्रता संबंधी दस्तावेज भी आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। इसलिए, किसी मतदाता या राजनीतिक दल द्वारा की गई शिकायतों और आपत्तियों के मामले में, ऐसी शिकायतों की तर्कसंगत तरीके से जांच करना मुश्किल हो जाता है।
कई लोग एक ही स्थान के सामान्य निवासी हैं और उन्होंने वहीं अपना मतदाता पहचान पत्र बनवा लिया, लेकिन वे जाने से पहले के अपने पुराने कार्ड को बनाए रखने में सफल हो गए हैं, जो एक अपराध है।
विपक्षी दलों का कहना है कि इस कवायद से वास्तविक मतदाता बिहार में अपने अधिकार से वंचित हो सकते हैं जिसका फायदा सत्तारूढ़ दल को मिल सकता है।
वर्ष 1952 से 2004 तक 52 वर्षों की अवधि में नौ बार पूरे देश में या अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न गहन संशोधनों के माध्यम से मतदाता सूचियां नए सिरे से तैयार की गईं। यानी औसतन लगभग हर छह साल में एक बार। हालांकि, पिछले 22 वर्षों में गहन पुनरीक्षण नहीं किया गया है।
निर्वाचन आयोग इस साल बिहार से शुरुआत करते हुए छह राज्यों में मतदाता सूचियों की गहन समीक्षा करेगा ताकि जन्म स्थान की जांच करके विदेशी अवैध प्रवासियों को बाहर निकाला जा सके।
बिहार में इस साल के अंत में चुनाव होने जा रहे हैं, जबकि पांच राज्यों – असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव 2026 में होने हैं।
यह कदम, जिसे बाद में अन्य राज्यों में भी लागू किया जाएगा, बांग्लादेश और म्यांमा सहित अवैध विदेशी प्रवासियों पर विभिन्न राज्यों में की गई कार्रवाई के मद्देनजर अहम है।
भाषा आशीष धीरज
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