नयी दिल्ली, 27 जून (भाषा) भारत ने शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर में दो जलविद्युत परियोजनाओं पर हेग स्थित स्थायी मध्यस्थता न्यायालय के फैसले को दृढ़ता से खारिज करते हुए कहा कि उसने पाकिस्तान के साथ विवाद समाधान के तथाकथित ढांचे को कभी मान्यता नहीं दी है।
विदेश मंत्रालय ने किशनगंगा और रातले जलविद्युत परियोजनाओं पर पाकिस्तान की आपत्तियों से संबंधित मामले में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए कहा कि भारत इस तथाकथित ‘पूरक निर्णय’ को अस्वीकार करता है।
अपने फैसले में मध्यस्थता न्यायालय ने कहा कि अप्रैल में सिंधु जल संधि को स्थगित रखने का भारत का निर्णय विवाद पर उसके अधिकार को सीमित नहीं करता है तथा उसका फैसला सभी पक्षों पर बाध्यकारी है।
विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘‘पाकिस्तान के इशारे पर यह नवीनतम नाटक आतंकवाद के वैश्विक केंद्र के रूप में अपनी भूमिका के लिए जवाबदेही से बचने का उसका एक और हताश प्रयास है।’’
विदेशमंत्रालय ने बयान में कहा गया, ‘‘पाकिस्तान द्वारा इस मनगढ़ंत मध्यस्थता तंत्र का सहारा लेना, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर धोखाधड़ी और हेरफेर करने की उसकी दशकों पुरानी प्रवृत्ति के अनुरूप है।’’
इसमें कहा गया कि सिंधु जल संधि के प्रावधानों के तहत दोनों परियोजनाओं की डिजाइन के कुछ पहलुओं पर पाकिस्तान द्वारा आपत्ति उठाए जाने के बाद भारत ने स्थायी मध्यस्थता न्यायालय की कार्यवाही को कभी मान्यता नहीं दी।
विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘‘आज, सिंधु जल संधि 1960 के तहत कथित रूप से गठित अवैध मध्यस्थता न्यायालय ने, संधिक का खुला उल्लंघन करते हुए, भारतीय केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं के संबंध में तथाकथित एक ‘पूरक निर्णय’ दिया है।’’
विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत का रुख हमेशा से यही रहा है कि इस तथाकथित मध्यस्थ निकाय का गठन अपने आप में सिंधु जल संधि का गंभीर उल्लंघन है और इसके परिणामस्वरूप इस मंच के समक्ष कोई भी कार्यवाही और इसके द्वारा लिया गया कोई भी निर्णय भी इसी कारण से अवैध है।
भारत ने 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकवादी हमले के एक दिन बाद पाकिस्तान के खिलाफ कदम उठाते हुए 1960 की सिंधु जल संधि को स्थगित कर दिया था।
मंत्रालय ने कहा, ‘‘जब तक संधि स्थगित है, तब तक भारत संधि के तहत अपने किसी भी दायित्व को पूरा करने के लिए बाध्य नहीं है।’’
इसमें कहा गया है,‘‘किसी भी मध्यस्थता अदालत को, और इस अवैध रूप से गठित मध्यस्थ निकाय को, जिसका कानून की नजर में कोई अस्तित्व नहीं है, भारत की एक संप्रभु के रूप में अपने अधिकारों का प्रयोग कर की गई कार्रवाई की वैधता की जांच करने का अधिकार नहीं है।’’
भाषा धीरज संतोष
संतोष
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