नयी दिल्ली, 25 जून (भाषा) साल 1975 में ‘आंधी’ फिल्म के सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने के बीच इसे प्रस्तुत करने के लिए रूस पहुंचे गीतकार-फिल्मकार गुलजार को खबर मिली कि फिल्म को भारत में प्रतिबंधित कर दिया गया है।
चुनावों की पृष्ठभूमि में बनाई गई फिल्म ‘आंधी’ एक प्रेम कहानी है, जिसमें एक होटल प्रबंधक (संजय कुमार) और उनकी अलग रह रही पत्नी (सुचित्रा सेन) के बीच की कहानी दिखाई गई है। वे कई सालों बाद फिर से मिलते हैं जब सेन राजनीतिक नेता बन जाती हैं।
लेखिका सबा महमूद बशीर की 2019 में आई ‘गुलज़ार की आंधी: इनसाइट्स इनटू द फिल्म’ किताब फिल्म से जुड़े विवाद और इसकी रिलीज के दौरान देश में राजनीतिक माहौल पर प्रकाश डालती हैं।
कई लोगों ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और सेन के किरदारों में समानताएं देखी थीं, जिनमें सफेद बाल, पहनावा और चलने का तरीका शामिल था, लेकिन आईके गुजराल के नेतृत्व वाले तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को इसमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लगा और फिल्म फरवरी में सिनेमाघरों में रिलीज हुई।
फिर 25 जून 1975 को गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी।
उसी साल जुलाई में गुलज़ार मास्को में एक फिल्म महोत्सव में फिल्म पेश करने गए थे और तब उन्हें फिल्म पर प्रतिबंध का पता चला। उस समय यह फिल्म 20 हफ्तों से ज़्यादा समय से सिनेमाघरों में लगी हुई थी।
बशीर ने किताब में लिखा है, “उन्हें पता चला कि उन्हें शो से बाहर होना पड़ेगा, क्योंकि फिल्म भारत में प्रतिबंधित कर दी गई थी। निश्चित रूप से, यह एक फिल्म पत्रिका थी जिसने ‘आंधी’ पर एक फीचर प्रकाशित किया था, जिसका शीर्षक था, ‘अपने प्रधानमंत्री को स्क्रीन पर देखें’।’
पुस्तक में गुलज़ार का साक्षात्कार भी शामिल है, जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे प्रतिबंध के बाद वह वापस भारत आ गए।
गुलजार ने याद करते हुए कहा, ‘संजीव भी मेरे साथ थे। हमारे वापस आने के बाद, जे ओम प्रकाश जी (फिल्म के निर्माता) ने प्रतिबंध हटवाने के लिए बहुत प्रयास किए। हम पहले से ही 24वें सप्ताह में थे, इसलिए हमने दो दृश्यों को संशोधित करने का फैसला किया।’
बाद में शामिल किए गए नए दृश्यों में से एक में आरती देवी इंदिरा गांधी के चित्र को देखती हुई उन्हें ‘आदर्श’ कहती हैं।
गुलजार ने कहा, ‘उन्होंने हमसे वह हिस्सा जोड़ने को कहा। उन्होंने जोर दिया। तब तक फिल्म 23वें या 24वें सप्ताह में चल रही थी।’
गुलज़ार ने ज़ोर देकर कहा कि मुख्य किरदार और इंदिरा गांधी के बीच कोई समानता नहीं थी, लेकिन उन्होंने आरती देवी के स्वभाव और हाव-भाव के लिए दिवंगत प्रधानमंत्री से कुछ प्रेरणा जरूर ली थी।
गुलजार ने कहा ‘उस समय, यह इंदिरा गांधी की जीवन कथा नहीं थी। लेकिन आज भी, उनके जैसा कोई नहीं है, इसलिए उन्हें ध्यान में रखना सबसे अच्छा व्यक्तित्व था। तदनुसार, यह वह संदर्भ था जिसे कोई भी अभिनेता दे सकता था – जिस तरह से वह चलती थीं, जिस तरह से वह सीढ़ियों से उतरती थीं, जिस तरह से वह हेलीकॉप्टर से उतरती थीं।’’
उन्होंने कहा, ‘हमने उनके गुणों का अच्छे संदर्भ में उपयोग किया – इसलिए नहीं कि किरदार उन पर या उनके जीवन पर आधारित था। लेकिन फिर – विपक्षी दलों ने टिप्पणी की कि आरती देवी के चरित्र को शराब पीते हुए दिखाया गया है, और कुछ ने दो असंबंधित व्यक्तित्वों को जोड़ने का फैसला किया।’
गुलज़ार के अनुसार, आग में घी डालने का काम फ़िल्म के विज्ञापनों और पोस्टरों ने किया।
पुस्तक में बशीर ने लिखा है कि इस बात पर बहस करना बेबुनियाद है कि क्या ‘आंधी’ इंदिरा गांधी के जीवन पर आधारित है, लेकिन वास्तविक और फिल्म के किरदारों के बीच समानताएँ काफ़ी हद तक चौंकाने वाली हैं।
उन्होंने लिखा ‘आरती देवी और श्रीमती गांधी दोनों की शादी टूट चुकी थी। अगर आरती देवी पर एक रैली में पत्थर फेंके गए थे, तो 1967 में उड़ीसा के भुवनेश्वर के पास एक रैली में श्रीमती गांधी पर भी पत्थर फेंके गए थे। विवाह टूटने के इस संयोग और फिरोज गांधी के इलाहाबाद में एक होटल चलाने के तथ्य ने आलोचकों और दर्शकों को यह विश्वास दिलाया कि ‘आंधी’ इंदिरा गांधी की कहानी थी।’
गुलजार ने याद किया कि बाद में वे मास्को गए थे, जहाँ उनकी मुलाकात गुजराल से हुई, जो सोवियत संघ में भारतीय राजदूत के रूप में काम कर रहे थे।
उन्होंने कहा ‘गुजराल साहब ने मुझे बताया कि यह संजय (गांधी) थे जिन्होंने विवाद को अच्छी तरह से नहीं लिया। अन्यथा, दूसरों की ओर से कोई आपत्ति नहीं थी। मुझे अपना जवाब भी याद है, कि यह उन चीजों में से एक है जो लोकतंत्र में होती हैं।’
भाषा नोमान मनीषा
मनीषा
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