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Wednesday, 16 July, 2025
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आदिवासियों पर विकास का बोझ, उनके ‘जल, जंगल, जमीन’ खतरे में: नेताम

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मुंबई, पांच जून (भाषा) वरिष्ठ आदिवासी नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने बृहस्पतिवार को आदिवासियों के अधिकारों की सुरक्षा की जोरदार वकालत करते हुए आरोप लगाया कि उन्हें प्रगति का बोझ उठाने पर मजबूर किया जा रहा है और उनके ‘जल, जंगल और जमीन’ खतरे में हैं।

नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के 25 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर- ‘कार्यकर्ता विकास वर्ग- द्वितीया’ के समापन समारोह में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भाग लिया।

इस अवसर पर उन्होंने छत्तीसगढ़ के हसदेव वन में कोयला खनन पर चिंता जताई और पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम के कथित उल्लंघन का भी मुद्दा उठाया।

नेताम ने कहा, ‘‘अदालत के आदेश के बावजूद सरकार ने हमारे सरगुजा हसदेव जंगल में कोयला खनन के मुद्दे पर कोई ध्यान नहीं दिया है। मैं आरएसएस से पूछना चाहता हूं कि अगर कानून और न्यायपालिका का सम्मान नहीं किया जाता है, तो क्या होना चाहिए? 150 साल पहले, इस देश के लोगों ने इसी कारण से अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी।’’

नेताम ने कहा कि आदिवासियों को विकास का बोझ उठाना पड़ रहा है।

उन्होंने कहा, ‘‘औद्योगिकीकरण एक बड़ी चुनौती है। हालांकि यह आवश्यक है, लेकिन ऐसा लगता है कि केवल आदिवासियों को ही स्थानांतरित होने के लिए कहा जा रहा है। वनों और आदिवासी भूमि की रक्षा के लिए बनाए गए कानूनों के बावजूद, ‘जल, जंगल, जमीन’ खतरे में हैं।’

भाषा शुभम सुरेश

सुरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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