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Friday, 22 November, 2024
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मोदी-शाह की जोड़ी बदले की राजनीति को एक नये स्तर तक ले गई है

भारतीय राजनीति इन दिनों प्रतिशोध के दुष्चक्र में उलझ गई है और भाजपा ने इसे एक नये स्तर पर पहुंचा दिया है— सबसे पहले तो तीन एजेंसियों को अपना त्रिशूल बनाते हुए इसके साथ कुछ टीवी चैनलों और सोशल मीडिया को भी जोड़ कर, दूसरे, बगल का अपना दरवाजा दलबदलुओं के लिए पूरा खोल कर.

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यह मौसम तो कश्मीर मसले का है लेकिन पिछले कुछ हफ़्ते कुछ अलग ही तरह से बीते हैं. सार्वजनिक चर्चा नरेंद्र मोदी और इमरान ख़ान से हट कर सीबीआई, ईडी और आईटी पर केन्द्रित रही है. इसकी वजह यह है कि इधर हमने देखा कि कई ताकतवर और रसूखदार व्यक्तियों के यहां छापे पड़े, उनके खिलाफ चार्जशीट दायर हुई, उनसे सवाल पूछे गए (जिसे भारतीय मीडिया ‘ग्रिलिंग या गहन पूछताछ’ कहना पसंद करती है), उन्हें अदालतों में बार-बार लाया गया. अब तो चाहे कश्मीर में जो कुछ हो रहा हो या इमरान की ओर से कोई बड़बोला बयान दिया गया हो या मोदी ट्रंप की कलाई पर हाथ मार रहे हों, ये तस्वीरें सुर्खियां या सनसनी बनने के बजाए दिल्ली के जोरबाग में पी. चिदम्बरम के घर की दीवार फांदते अधेड़ सीबीआई अफसरों की तस्वीरों के आगे फीकी पड़ जाती हैं.

यह मुझे राजनीति के एक पहुंचे हुए उस्ताद से एक शाम हुई गपशप की याद दिला देती है, जिसमें उन्होंने यह ज्ञान दिया था कि वह क्या चीज़ है जो ‘हम नेताओं’ को काम करने की ताकत देती है. मैं पहले ही बता दूं कि यह गपशप पूरी तरह अल्कोहल-फ्री आपसी डिनर के दौरान हुई थी, जिसमें ‘आध्यामिकता’ के किसी ऊंचे स्तर को छूने की कोई गुंजाइश नहीं थी. मेरे मेजबान ने सवाल किया, ‘आप ही बताइए, आख़िर हम लोग राजनीति में अपना जीवन क्यों खपाते हैं? जिसे आप लोग ‘पावर’ कहते हैं उसके लिए हम लोग तमाम धूल-धक्कड़, धूप-गर्मी, हेलिकॉप्टर के झटके, धक्का-मुक्की, कोर्ट के मामले, गिरफ्तारियां क्यों झेलते हैं? इसमें ऐसा क्या करंट है?’

उन्होंने ख़ुद ही जवाब देते हुए कहा- नहीं, पैसा वह करंट नहीं है, क्योंकि जितना भी पैसा बना लीजिए, आप उसका मजा नहीं उठा सकते. ‘हमारे यहां की जो राजनीति है उसमें आप अमीर दिखें तो यह नहीं चलेगा.’ उन्होंने कहा कि आपकी कार हो, आपका घर हो, आपके कुर्ते हों, सब साधारण दिखने चाहिए. आपके परिवार वालों को भी गहना-जेवर, अमीरी का दिखावा करते नहीं दिखना चाहिए.


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मैंने पूछा, ‘तो फिर, आप राजनीति में क्यों बने रहते हैं? राजनीतिक ताकत और दौलत में फिर क्या करंट रह जाता है अगर आप उसका मजा ही नहीं ले सकते?’ उन्होंने जवाब दिया, ‘यही आप नहीं समझोगे शेखर गुप्ता जी!’ इसके बाद उन्होंने समझाया कि सत्ता मिलने के बाद क्या होता है. तब आपने जिसे हराया है उसके साथ वही करते हैं जो उसने आपके साथ किया था— केवल उसके साथ ही नहीं, उसके लोगों के साथ भी. उन्होंने कहा, ‘हमें पता होता है कि हर ज़िले, हर गांव में उसके लोग कौन हैं. हम उनके ख़िलाफ़ पुलिस, निगरानी वगैरह के लोगों को लगा देते हैं. जिन्हें हम वाकई निशाना बनाना चाहते हैं उनके लिए किलो भर अवैध अफीम या हत्या के आरोप भी तैयार रखते हैं.’

इसके बाद उन्होंने सवाल किया— तब क्या होता है? मैंने कहा, ‘जाहिर है, आप जिसे निशाना बनाते हैं वह परेशान होता है तो साफ है कि आपने बदला ले लिया.’ उन्होंने कहा, ‘देखिए, आप नेता लोग को नहीं समझते हैं. इन लोगों को जब हम परेशान करते हैं तो ये लोग अपने बॉस के पास दौड़ते हैं, हुज़ूर बचाओ मुझे. उनका नेता कहता है कि वह उन्हें नहीं बचा सकता क्योंकि उसके पास पावर नहीं है. जब वह तड़पता है, तब दिल में जो ठंडक पड़ती है उसके लिए ही पांच साल धक्के खाते हैं हम.’

अब आप यह मत सोच लीजिएगा कि यह भी एक और गप है, क्योंकि मैं आपको ये बताने का वादा करता हूं कि यह शख्स कौन था. बस आखिर तक इस स्तम्भ को पढ़िए, क्योंकि इस कहानी में भी एक पेच है. दरअसल यह बातचीत करीब एक दशक पहले हुई थी. इस बीच इतना सबूत इकट्ठा हो चुका है कि उनकी बात सही लगे.

यहां पर आकर हम देख रहे हैं कि चिदम्बरम हिरासत में हैं, उन्हें और उनके बेटे कार्तिक को आईएनएक्स मीडिया मामले में आरोपी बनाया गया है; हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा, कांग्रेस के पूर्व कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा को 90 साल की उम्र में एसोसिएटेड जरनल्स लि. को ज़मीन आवंटन के मामले में चार्जशीट किया गया है; कमलनाथ के ख़िलाफ़ आयकर की जांच चल रही है, उनके भतीजे पर अगस्टा वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर ख़रीद में घूस लेने का आरोप लगाया गया है और बैंक कर्ज के घोटाले में गिरफ्तार किया गया है; सोनिया गांधी और राहुल तथा उनके प्रमुख सहायकों पर नेशनल हेराल्ड मामले में मुकदमा चल रहा है, कर्नाटक कांग्रेस के बड़े नेता डी.के. शिवकुमार ईडी की नज़र में हैं, आदि-आदि.

भाजपा के सत्ता में आने के कुछ ही दिनों बाद 2015 में हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह पर भ्रष्टाचार का एक मामला दायर किया गया और जिस दिन उनकी दूसरी लड़की की शादी थी उस दिन उनके घर पर छापा मारा गया. उन्हें विवाह स्थल से घर की ओर दौड़ना पड़ा और विवाह भोज को रद्द करना पड़ा. प्रफुल्ल पटेल को कई मामलों में ईडी से जूझना पड़ रहा है; ममता बनर्जी की पार्टी के कई लोगों और उनकी पसंद के कई पुलिस अफसरों को सीबीआई के चक्कर काटने पड़ रहे हैं.

अब आप पीछे लौटकर भी देख सकते हैं. 2001 में सत्ता में आने के दो सप्ताह के अंदर ही जयललिता ने अपने पूर्ववर्ती एम. करुणानिधि को 12 करोड़ के ‘फ्लाइओवर घोटाले’ के लिए घेर लिया और रात के करीब 2 बजे उनके घर पर छापा डलवा दिया. उस समय एक बूढ़े व्यक्ति को सीढ़ियों से उतारे जाने की तसवीरों ने आपको जरूर हिला दिया होगा.

लालू, मुलायम, मायावती पर सीबीआई, ईडी या आईटी समय-समय पर आरोप जड़ती रही हैं, चाहे राज एनडीए का रहा हो या यूपीए का. यह और बात है कि केंद्र से इनका जैसा समीकरण रहा उसी के मुताबिक आरोपों का पुलिंदा मोटा या पतला होता रहा. जरा उन दिनों के पुराने ब्यौरे देख आइए जब परमाणु संधि को लेकर यूपीए के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जाने वाला था.

इन पुराने संदिग्धों की सूची में नया नाम राज ठाकरे का जुड़ गया है, जिनके ऊपर ईडी ने फर्जी सौदे करने और आईएल-एंड-एफएस कांड में 20 करोड़ बनाने का आरोप लगाया है. इन तमाम मामलों की जांच कीजिए, आपको इनमें एक खास बात नज़र आएगी. हरेक मामले में जिस पार्टी को निशाना बनाया गया है उसने खुद सत्ता में रहते हुए उन लोगों के ख़िलाफ़ ऐसा ही कुछ किया था जो आज सत्ता में हैं. अमित शाह और नरेंद्र मोदी दशकों तक कानूनी और आपराधिक आरोपों को झेलते रहे. अमित शाह तो एक ‘फर्जी एनकाउंटर’ और हत्या के आरोप में तीन महीने तक जेल में भी रहे, हालांकि बाद में उन्हें बरी कर दिया गया.

याद कीजिए कि शाह को भी एक बच्चे की शादी के दौरान पकड़ा गया था. उनके खिलाफ सीबीआई जांच का आदेश देने वाले दो जजों में से एक ने तो रिटायर होने से दो दिन पहले यह आदेश दिया था. यह जज गाज़ियाबाद में हुए कथित प्रोविडेंट फंड घोटाले के लिए सीबीआई जांच का सामना कर रहे थे.


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सीबीआई ने जल्दी ही उसे बरी कर दिया था और तब की अखिलेश यादव की सेक्युलर सरकार ने उसे यूपी मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष बना दिया था. एक शादी के बीच छापा, रिटायर होने से दो दिन पहले एक जज की हड़बड़ी, और फिर इसके बाद पुरस्कार! है न जाना-पहचाना सिलसिला? अब यह देखने का कोई मतलब नहीं है कि पहला पत्थर किसने मारा.

हम एक दुष्चक्र में उलझ चुके हैं. जो चीज़ दो दशक पहले राज्यों में होती थी वह अब केंद्र में हो रही है. भाजपा ने इसे केवल एक नये स्तर पर पहुंचा दिया है— सबसे पहले तो तीन एजेंसियों को अपना त्रिशूल बनाते हुए इसके साथ कुछ टीवी चैनलों और सोशल मीडिया को भी जोड़ कर; दूसरे, बगल का अपना दरवाज़ा दलबदलुओं के लिए पूरा खोल कर.

उस शाम मेरे मेजबान ने मुझसे शायद यही कहा था. यह हमारी खुरदरी प्रादेशिक राजनीति का तरीका था— बादल बनाम अमरिंदर, जयललिता बनाम करुणानिधि, देवीलाल बनाम बंसीलाल बनाम भाजनलाल… अब यह सिलसिला दिल्ली पहुंच गया है.

ऊपर मैंने जो वादा किया था वह भूला नहीं हूं कि मैं उस बड़े राजनेता का नाम जरूर बताऊंगा जिन्होंने प्रतिशोध और परपीड़ा सुख की आधुनिक ज़मीनी राजनीति का पाठ पढ़ाया था. ये थे हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला, और बातचीत हरियाणा भवन में हुई थी. और आज वे कहां हैं? तिहाड़ जेल में. वे और उनके बेटे भ्रष्टाचार के लिए 10 साल जेल की सज़ा काट रहे हैं. बदले की राजनीति ने और मतदाताओं ने उन्हें यहां पहुंचा दिया है. पिछले लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी, जिसने कभी हरियाणा में बहुमत हासिल किया था, महज़ 1.8 प्रतिशत वोट हासिल कर पाई. मुझे इंतज़ार है कि वे जेल से बाहर निकलें तो मैं उनसे पूछूं कि उनके विचार से राजनीति अब किस दिशा की ओर जा रही है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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