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Friday, 22 November, 2024
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मोदी सरकार यूनिफार्म सिविल कोड पर काम कर रही है

समान नागरिक संहिता नहीं होने के कारण, हमारे धर्मनिरपेक्ष समाज में एक समुदाय विशेष का धार्मिक विशेषाधिकार विवाद का विषय बन गया है.

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स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण अपेक्षा के अनुरूप था. इसका ज़्यादातर हिस्सा जहां अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने के सरकार के हाल के कदम तथा आलोचकों से सवाल करने पर केंद्रित था, वहीं सर्वाधिक अनपेक्षित ज़िक्र भारत की आबादी को नियंत्रित करने के बारे में था. तीन तलाक़ के खिलाफ कानून बनाए जाने के बाद, मोदी का ‘जनसंख्या विस्फोट’ की चर्चा करना क्या इस बात का एक और सबूत है कि सरकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समान नागरिक संहिता के सपने को साकार करने पर सक्रियता से काम कर रही है?

हम भावी परिदृश्य की चर्चा करें उससे पहले एक स्पष्टीकरण, प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के अगले कदम का अंदाज़ा लगाना मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव है. पर, दो महत्वपूर्ण संकेतों से इशारा मिलता है कि सरकार संसद के अगले सत्र में समान नागरिक संहिता विधेयक ला सकती है. वादों को पूरा करना प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट संकेत दिया है कि दशकों पुरानी समस्याओं को लटकाए रख कर, अधूरे प्रयासों से या किश्तों में हल नहीं किया जा सकता है. वैसे तो उन्होंने अनुच्छेद 370 के संदर्भ में इस बात का उल्लेख किया है, पर इस बात को 70 वर्षों से कायम हर मसले पर लागू किया जा सकता है, समाज के एक वर्ग द्वारा की जा रही समान नागरिक संहिता की मांग पर भी. यहां यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अनुच्छेद 370 और बाबरी मस्जिद-राम मंदिर विवाद जैसे विवादित मुद्दों की तरह ही समान नागरिक संहिता की मांग पर कदम उठाने का समय भी आ गया है.

ये संकेत देते हुए कि उनका दूसरा कार्यकाल भी पहले के समान एक्शन से भरा होगा (पहले कार्याकल में नोटबंदी, जीएसटी और सर्जिकल स्ट्राइक जैसे कदम उठाए गए थे). प्रधानमंत्री मोदी ने ‘एक देश, एक संविधान’ के विचार की व्याख्या की और अगले पांच वर्षों के लिए सरकार के एजेंडे का भी ब्योरा दिया. एक (बिजली) ग्रिड, एक मोबिलिटी कार्ड, एक चुनाव आदि-आदि. हालांकि, विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराने के विचार के कार्यान्वयन में कई संवैधानिक और व्यवहारिक बाधाएं हैं, पर विभिन्न विधेयकों को पारित कराने में मोदी सरकार की राजनीतिक और अंकगणितीय महारत को देखते हुए यह विचार भी शीघ्र ही हकीकत बन सकता है.

जनसंख्या नियंत्रण

और फिर उनके भाषण में आया समान नागरिक संहिता के बारे में दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण संकेतक  मोदी ने कहा, ‘हमारे समाज में एक वर्ग ऐसा है जो अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि के परिणामों से भलीभांति अवगत है. वे हमारी प्रशंसा और सम्मान के पात्र हैं.’ उन्होंने आगे कहा, ‘यह (छोटे परिवार की नीति) उनके राष्ट्रप्रेम की अभिव्यक्ति है…देशभक्ति का एक रूप. हमें समाज के उस तबके को प्रेरित करने की आवश्यकता है जो अभी भी ये सोच नहीं रखते. हमें जनसंख्या विस्फोट की चिंता करनी चाहिए.’


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उन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों से ऐसी योजनाएं शुरू करने का आह्वान किया कि जिनसे सुनिश्चित किया जा सके कि एक राष्ट्र के रूप में हम आने वाली पीढ़ियों पर एक ‘अस्वस्थ और अशिक्षित’ समाज नहीं थोपें.

परिवार नियोजन?

देश में 1952 में आरंभ परिवार नियोजन कार्यक्रम बहुत सफल रहा है, पर ये अब भी आर्थिक विकास और गरीबी उन्मूलन के लिए सतत विकास के लक्ष्यों के अनुरूप नहीं है. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की आबादी 15.7 प्रतिशत बढ़ कर 2026 तक 1.4 अरब के स्तर पर पहुंच सकती है. विद्वानों, अर्थशास्त्रियों और समाजविज्ञानियों के बीच इस बात पर कोई असहमति नहीं है कि तेज़ी से बढ़ती आबादी दरअसल अधिकतर आर्थिक फायदों को निष्प्रभावी बना देती है, जिसके कारण आर्थिक विकास की गति धीमी पड़ जाती है. गरीबी, अशिक्षा और परिवार के आकार के बीच के पारस्परिक संबंधों की बात अनुसंधानों से स्थापित हो चुकी है.

पर गौर करने वाली बात ये है कि मोदी ने सबका ध्यान ‘गैरजिम्मेदार’ लोगों की ओर खींचा है, जो पहले से ही बढ़ रही आबादी को और बढ़ाने में योगदान देते हैं और अपने बच्चों को एक अनिश्चित भविष्य की ओर धकेलते हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने सामाजिक सुधारों (खास कर हिंदुओं में) का भी ज़िक्र किया जिसने कि सती प्रथा जैसे पुराने रिवाजों को खत्म करने का काम किया.

मुस्लिम समाज में प्रभावशाली सामाजिक सुधार आंदोलनों के अभाव के चलते सरकार को तीन तलाक़ को अवैध घोषित करने वाला कानून बनाना पड़ा. मुस्लिम मर्दों के बहुविवाह की प्रथा को नहीं छोड़ने के पीछे उनमें गहरे बैठे धार्मिक विश्वास की भूमिका है. जिसे कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का समर्थन प्राप्त है. भारत में बहुविवाह अवैध है. पर समान नागरिक संहिता के अभाव में भारत के धर्मनिरपेक्ष समाज में एक समुदाय विशेष का धार्मिक विशेषाधिकार विवाद का विषय बन गया है.

एकरूपता की नीति

धार्मिक आस्थाओं, सामाजिक वर्जनाओं, धार्मिक आचार संहिताओं और पर्सनल लॉ के ऊपर जनसंख्या नियंत्रण की एक समान नीति की मांग लंबे समय से चली आ रही है. भारतीय जनता पार्टी और उसका वैचारिक अभिभावक आरएसएस, दोनों ही समान नागरिक संहिता की मांग करते रहे हैं. पर भाजपा का ये तर्क कि तीन तलाक़ को खत्म किए जाने के बाद समान नागरिक संहिता लागू किए जाने से मुस्लिम महिलाओं को अधिक अधिकार और समान अवसर मिल सकेगा, अन्य दलों को इस कदम के विरोध का बहाना देता है.


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अनुच्छेद 370 की समाप्ति और अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की मांगों के समान ही समान नागरिक संहिता की मांग भी ‘अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक’ के विवाद में फंस गई है. पूरी संभावना है कि मोदी सरकार अभी या जल्दी ही इस मामले पर विचार करेगी और संसद के अगले सत्र में उचित समय पर इस बारे में विधेयक पेश करेगी. जिस आसानी से भाजपा अपने विधेयक पारित करा लेती है, उसे देखते हुए ये उम्मीद करना वाजिब होगा कि समान नागरिक संहिता का विधेयक भी दोनों सदनों में पारित हो सकेगा.

उसके बाद एकमात्र अनसुलझा मुद्दा अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर का रह जाएगा.

(लेखक ‘ऑर्गनाइज़र’ के पूर्व संपादक हैं. यहां प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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