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Friday, 22 November, 2024
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स्वतंत्रता दिवस के मौके पर भारत विरोधी खबरें चलाना, पाकिस्तान सरकार के दोहरे चरित्र को दिखाता है

पाकिस्तान लगातार आरोप लगाता है कि भारत में मुस्लिम और अल्पसंख्यकों का शोषण किया जाता है. लेकिन पाकिस्तान का खुद का रिकार्ड इस मामले में काफी खराब है.

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पाकिस्तान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया नियामक प्राधिकार (पीईएमआरए) ने 10 अगस्त को पाकिस्तान के सभी प्रसारकों को सलाह जारी की है कि पाकिस्तान और भारत के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर जश्न का कार्यक्रम प्रसारित न किया जाए.

पीईएमआरए ने सभी प्रसारकों को कहा कि अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर से हटाए जाने को लेकर पाकिस्तानी मीडिया कश्मीर के लोगों के बारे में बताएं और ध्यान रखें कि इससे पाकिस्तान और कश्मीर के लोगों की भावना आहत न हो. प्रसारकों ने कहा कि, ‘सभी मीडिया चैनल अपने चिन्ह को ब्लैक एंड वाइट करें और भारत द्वारा किस प्रकार मुस्लिमों और अल्पसंख्यकों का शोषण हो रहा है यह भी दिखाएं.’ इस तरह की सलाह पर सवाल उठाने चाहिए.

टू नेशन थ्योरी के विचार के साथ ही पाकिस्तान भारत से अलग हुआ था. जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने 1947 में भारत को आज़ाद घोषित कर दिया. इस थ्योरी के पीछे तर्क यह था कि मुस्लिम और हिंदू लोग एक साथ नहीं रह सकते हैं. इसके बाद 1971 में पूर्वी पाकिस्तान ने यह तय किया कि वो अब पश्चिमी पाकिस्तान के साथ नहीं रह सकते, जबकि दोनों ही मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र हैं.

पाकिस्तान लगातार आरोप लगाता है कि भारत में मुस्लिम और अल्पसंख्यकों का शोषण किया जाता है. लेकिन पाकिस्तान का खुद का रिकॉर्ड इस मामले में काफी खराब है. ऐसे आरोप पाकिस्तान के दोहरे चरित्र को दर्शाते हैं.

पाकिस्तानी संविधान में भी गैर-मुस्लिम समुदायों और अहमदी लोगों के साथ भेदभाव किया जाता है. अहमदी समुदाय पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हैं, जिस कारण उनके साथ भेदभाव किया जाता है. पाकिस्तान का बहुसंख्यक सुन्नी समुदाय लगातार अल्पसंख्यक हिंदू, ईसाई और शिया लोगों को टारगेट करता है. इन समुदाय के लोगों को न्याय मिलने में भी काफी दिक्कतें होती हैं.

हाल ही में एक ईसाई महिलाआसिया बीबी ने ईशनिंदा के मामले में 9 साल जेल में बिताए. बाद में कोर्ट ने आसिया को इस मामले में निर्दोष माना और उसकी रिहाई का आदेश दिया.

पाकिस्तान का ये दावा कि कश्मीर के लोग काफी खराब स्थिति में रह रहे हैं. यह सरासर गलत है. आरोप लगाने से पहले पाकिस्तान खुद के इतिहास को देखे कि उसने पाकिस्तान के हिस्से वाले कश्मीर में लोगों के साथ कैसा व्यवहार किया है.

1947 में जिस प्रकार पख्तूनी कबाईलियों ने पाकिस्तान सरकार की मदद से कश्मीर से गिलगिट-बलूचिस्तान के हिस्से को हड़प लिया और 1970 में उससे विशेष दर्जा भी छीन लिया. कश्मीर को लेकर इस्लामाबाद की नीतियां काफी दमनकारी रही हैं.

पाकिस्तान के हिस्से वाला कश्मीर भी स्वतंत्र नहीं है. इस क्षेत्र की अपनी खुद की सरकार है. लेकिन ये सरकार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में चलने वाली कश्मीर काउंसिल के प्रति जवाबदेही रखती है. पाकिस्तान के हिस्से वाले कश्मीर में कोई भी कानूनी तौर पर चुनाव नहीं लड़ सकता. जब तक कि वो अपनी प्रतिबद्धता पाकिस्तान सरकार के साथ न जताए.

पाकिस्तान जिस तरह से कश्मीर मुद्दे को लेकर दोहरा रवैया दिखाता आया है, पीईएमआरए को इसकी भी समीक्षा करनी चाहिए.

पिछले 70 सालों से पाकिस्तान अपने लोगों में भारत विरोधी मानसिकता पैदा करता आया है, जिस कारण वहां के युवा भारत को घृणा के रूप से देखते हैं. इसके पीछे दो कारण हैं. पहला, पाकिस्तान लगातार ऐसे जिहादियों को भारत में आतंक फैलाने के लिए तैयार करना चाहता है, जो भारत से नफरत करता हो. दूसरा, पाकिस्तान अपने लोगों में भारत का डर बनाकर बजट का बड़ा हिस्सा गृह विभाग और विदेशी मामलों पर खर्च करता है.

अगर पाकिस्तान दक्षिण एशिया में शांति कायम रखना चाहता है, तो उसे भारत विरोधी कहानी गढ़ना बंद करना पड़ेगा. खासकर स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर.

दोनों देशों के नीति निर्मताओं को सोचना चाहिए कि स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सभी मतभेदों को भूलकर आज़ादी का जश्न मनाना चाहिए. दक्षिण एशिया में शांति तभी बनी रह सकती है, जब विभाजनकारी राजनीति से ऊपर उठकर सभी देश एक साथ आएं और मिलकर काम करें.

(लेखक पाकिस्तानी पत्रकार हैं.जो वर्तमान में निर्वासन पर फ्रांस में रह रहे हैं. लेखक पत्रकारिता पढ़ाते हैं और पाकिस्तान पर किताब लिख चुके हैं. लेखक safenewsrooms.org संचालित करते हैं ,जो दक्षिण एशिया में प्रेस सेंसरशिप पर काम करते हैं. ये उनके निजी विचार हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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